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झारखण्ड की जनजातियाँ।। कोरवा जनजाति
कोरवा जनजाति
- कोरवा इस जनजाति को कोलेरियन जनजाति समूह का जनक माना जाता है।
- यह जनजाति प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह से तथा भाषायी दृष्टि से आस्ट्रो एशियाटिक समूह से संबंधित है।
- इन्हें झारखण्ड सरकार द्वारा शिकारी-संग्रहकर्ता माना जाता है।
- यह जनजाति मूलतः पलामू प्रमण्डल में पायी जाती है तथा झारखण्ड में इनका आगमन मध्य प्रदेश से हुआ था।
- इनकी दो उपजातियाँ पहाड़ी कोरवा (पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले) तथा डीहा/ डिहारिया कोरवा (नीचे गाँव में रहने वाले) है।
- इस जनजाति में 6 गोत्र पाए जाते हैं। जो हुटरटिये, खरपो, सूइया, कासी, कोकट तथा बुचुंग है।
- इस जनजाति में एकल विवाह का प्रचलन है तथा सगोत्र विवाह निषिद्ध है।
- इस जनजाति में चढ़के विवाह में कन्या के यहाँ तथा डोला विवाह में वर के यहाँ विवाह होता है।
- इनका प्रमुख त्योहार करमा है।
- इस जनजाति में सर्प पूजा का विशेष महत्व है।
- इस जनजाति की पंचायत को मयारी कहा जाता है।
- यह जनजाति कृषि, शिकार, पशुपालन, शिल्प निर्माण, मजदूरी आदि आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं।
- इस जनजाति में स्थानांतरणशील कृषि को ‘बियोड़ा‘ कहा जाता है।
- इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा, ग्रामरक्षक देवता ‘गमेल्ह‘ तथा पशुरक्षक देवता ‘रक्सेल‘ हैं।
- इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है।
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