हाड़पा सर्ग दामुदेरक कोराञ् Harpa Sarg Damuderak Koran Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

 हाड़पा सर्ग Harpa Sarg Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

 Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

दामुदेरक कोराञ्  शिवनाथ प्रमाणिक

khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 
KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

दामुदेरक कोराञ्

दामुदर नदी की गोद में 

अध्याय-6 : हाड़पा 

  • हाड़पा- अचानक हड़प लेना 

  • इस काव्य का अंतिम अध्याय है। 

  • इस अध्याय में हुण आक्रमण से जो क्षति हुई थी उसकी पूर्ति धीरे-धीरे हो जाती है और लोग उस दुखद घटना को भूलने लगे हैं। 

  • दूसरी ओर कालकेतु बीमर रहने लगता है। अंत में वह अपना राजपात जनता को सौंप देता है। 

    • बुढ़ापा में कालकेतु ने अपना राजपाठ  सुगना मांझी को सौंप देता है 

    • और इस तरह राजवैध  द्वारा दिया गया श्राप सही साबित हो जाता है

  • सरंची के पिता सुगना को मांझी (मुखिया) तथा सरंची को  मानकी बनाया जाता है। 

  • एक बार दशहरा के अवसर पर मेला लगता है। हथिया नक्षत्र होने के कारण भारी वर्षा (सूप उझला पानी) होती है। 

  • दामोदर में इतनी बाढ़ आती है कि समस्त अंकसर को हड़प लेता है। भारी वर्षा से बचने के लिए लोग भागने लगते हैं। 

  • एक बुढ़ी औरत को बचाने के क्रम में सरंची पर वज्रपात होता और  वह मर जाती है। 

  • कमलकेतु इस सदमें को वर्दाश्त नहीं कर पाता और वह भी सरंची चिलाते हुए मर जाता । 

  • दोनों प्रेमी मर जाते हैं पर आज भी अंकसर क्षेत्र सरंची कमल के प्रेम की कथा कहता है।

हाड़पा

सिरिस्टिक कारन तीन बसुत रउद, हवा आर पानी। 

ई सब तीनों जहाँ रहे फुटे हुएँ जीवेक जिनगानी ।।

सुरू हवे जखन जिनगानी तखन जीवेक लीला-खेला। 

छउवाक घर धुरा माटिक खेलल परें मेटाइ देला ।।

बुझा, परकीरतिक घोंघरचल भेउ कखनु बइरसा, कखनु जाड़। 

गात चोभरे घामें कखनु मधुमासे हवे फूलेक बाइढ़।।

कहूँ उठल पाहार-परबत 

देखा कहुँ सुखले टाँइड़। 

कहुँ टेकल गाजार बोने

लेला कहुँ नदिञ माइड़।। 

ई परकीरतिक नाना भाँइत टावा-ठेकान घाँटे गेलें।

चेकाइ रहे मानुस तखन पावे भेउ फरनवे गेलें ।।

जिगिस्ता करल परहु जोदि 

मनेक भरम मेटे नात्र । 

फहम खामखेयाली करें

भूत देवता, सिंग-बोंगात्र ।। 

कहूं बेरंडोक जोरवारी कहूं ठेर ठेरठेराइ।

धरती कखनु उलट-पलट कखनु नदी हाड़पा बोहाइ।।

बदलइक नेम ई जगते 

आदिकाल ले चलल आइल। 

बदइल गेला राजा-परजा

आरो मानुसेक बइलल चाइल ।। 

गाछेक आब्गा फुनगीं फुटे सइ गाछ कहूं खंगइट जाइ। 

भंगटल काठ एक दिन पोड़े सेहो एकदिन सिराय जाइ ।।

गुरा फुटल दुख बिसरला दामुदरेक बनबासी। 

धन-जन पोहाइ लागला अछल-गछल बोनेक चासी ।।

तने-मनें तोफात नाय  

सरंची कमलेक जुगल जोड़ी। 

दुइयो परेमी नेहाल भेला

दुखे-सुखे संग जोरी।। 

बोनेक कुछ परसिनाहा लोकेक लागे लागल परपरी। 

परेमी दुइयोक छिनगवे खातिर करे लागला नडु रारी ।।

मेंतुक किरिया खइला परेमी जनम-जनम संगे रहब। 

फड़रल कथा मुदइ के तनिको नात्र काने राखब ।।

टावा-ठेकान खोजाइर करला राजबइद धुमाक। 

उइड़ गेल अमर मानुस आइगें जेनियर धुआँक ।।

मेंतुक, असीस दइ गेला 

सँउसे आदिवासिक। 

नाँव करथ लोक-जन

गीत गावथ बनबासिक ।। 

भंगटल-खंगटल राइज देइख 

कालकेतुक चढ़ल फिकिर । 

रसें-रसें खाटी गतल 

मोरइक संवइ लिकिर-पिकिर ।।

राजबइदेक कहल कथा 

राजाक मने पोरल । 

सुगना मांझिक महल सोंइप

एक दिन सेहो फुराइल ।। 

बुढ़ती काले माइ मोरली सरंची सुकुँवारिक। 

बनबासिक रइखा करे खातिर माये असीस देलिक ।।

सुगना के ‘माँझी’ बनवाला 

अंकसर गढ़ेक लोके। 

बाँचल-खुचल धन दोलइत

बाँटला खेपे-खेपे।।

 बाँइट देल कामलकेतू गढ़-महल, घर-दुवाइर। 

माइड लेला बोनेक बासी रहे लागला अंध-पाथाइर।।

आस-पासेक डीहेक लोक 

गोंठ भेला महुवाक बोने। 

बाजल डुगडुगी कुल्हीं-डाँड़ी

हुलहुली बोनेक कोने-कोनें ।। 

जनी मरद, जुवान मुँहा आखराज गोंठ बोने। 

बीर सरंचिक “मानकी’ बनवला भेला खुसी जने-जने ।।

बोड़-छोट, अमीर गरीब 

सभे समान भेला। 

मानकी सरंचिक, हुकुमें

ऊँच-नीच सिरइला || 

बोन ले उच्छिन भेल बम्हनउटी खामखेयालेक रीत। 

मानुस-मानुस एक भेला जोराइ लागल परेम-पीरित ।।

आँधार घरें आलों बाइर 

निपटकानाक डहर देखवली। 

पोंगापंथिक डहर मुंइद

समाज के सोझवली।। 

बोनकटवइया राकस दिकू सरंचिक काँड़ेक डरे। 

जीउ लइके परइला मुदइ नदी पारेक डहरें।।

समाज के सरजुइतवे खातिर सुरू भेल हुलुसतुल । 

गरगराइ चले लागल सोझ सगरठे समतुल ।।

सरंची-कमलेक दुइयो चाकें बनबासिक गाड़ी दनदनाइल। 

चले लागल समान भामे समाजबादिक डहरें सोझाइल ||

आसिन मास बोने आइल लहलहाइ लागली धरती। 

गहगहाइ लागला बोनेकबासी हरियाइल दुब परतीं।।

महमहाइ गेल अंकसर 

मेला लागल जनमथाने। 

सरंची कमल मेला अइला

जोहार करे जने जने ।। 

बुढ़ा-जुवान, नर-नारी छउवा-पुताक बड़ी हुइब । 

मेलाक गहगहीं बोद्धेक मेला आनन्देक लहरें गेला डुइब ।।

गौतम बुद्धक संदेस 

मेलाञ परचार हवे लागल। 

सरंची-कमल कान पाइत

सुने आर सुनावे लागल || 

मेंतुक ! बदरी टापे लागल आसिन झटकाक लागे डर। 

मेला तखन फाटे लागल, जोदि बइरसे हँथिया नछतर !!

ठाड़ बेराञ सुरूज नुकाइल 

बोहे सन-सन आँधी-बातास ।

झइर झाटका सुरू भेल

ठेरठेरी भेला लोक हतार ।। 

महकुप भेल गोटे धरती । 

करिया बदरी भेल अंधार। 

ठेर मलके घने-घनें 

बूंद बइरसे अंध-पथार ।।

मेला अब तो फाटे लागल 

बनबासी घर घुरे लागला। 

धधर-पिछर दौड़ा-दौड़ी

छउवा-गइर कांदे लागला || 

टिप-टाप ले सुरू भेल बइरसे लागल टिपिर टिपिर। 

सूप उझलाक पहिले बइरसे तखन बँद झिमिर-झिमिर।।

सूप उझलवा पानी बइरसे 

सन-सन बोहे तुफान अइसन । 

उजरे लागल कुँबा कुटिया

बइरसाक ताकइत राकस अइसन ।। 

बइरसाक बंद दस्युक-बान राकस मारे जोरवारी। 

नर-नारी चितकारे लागला पाथाइर हवे बोन माँझारी ।।

बानेक जीब मोरे ठेरे 

जोरिया-नाला बाइढ़ेक जोर। 

गाछ बोरेक उखरे लागल

सँउसे टापल बदरी घोर ।। 

सरंची कखरूँ बाइढ़ से बँचवे कखनु छउवा चेंगइर के।

वइसने कमल बुढ़-पुरनियाँक बँचवे हेंसइर-हेंसइर के।।

बाइद-बहियार एक भेल 

ढहे लागल घर दुवार। 

जल परलइ सुरू भेल

बोहे लागला गरु डागर ।। 

धन-जन के खयानत भेल 

केउ देबिक दोहाइ करें 

नाँव लेइ सिंगबोंगाक केउ

 ‘बुद्ध शरण’ गोहाइर करे।।

घर-दुवाइर नेस्तानाबुद 

धरतिक संगे रापु भेल। 

घोर बइरसा दिने राइत

थामेक नाँव नाज लेल ।। 

एगो बृद्धा नारी गिरली चिटा-माटिक पिछरे। 

दौइड़ सरंची कोरज लेली आने महलेक भीतरें।।

बतर सिरें कठोर बज्जर 

गिरल बीर बालाक माथाञ | 

हा कमल ! चित्कार उठल

नींदाइ गेली धरतिक कोराज || 

जा तक दौइड़ कमल आइल गेल फुराइ सरंचिक परान। 

मुँहें एको बक्तिता नात्र सिराइ गेल कमलेक सान।।

हेसरे लागल कमलकेतू 

लारू पातु गिर गेल ।

बइरसा, घाम, लोर ढरके

पानी तीनोक परान लेल ।। 

दामुदरेक कोराय  हाड़पा 

हड़इप लेल राजाक महल। 

देबिक थान, बुद्धक बिहार 

बुढ़िया बाने सभे  दहल ।।

दामुदरेक कारघाय  बाढ़ल 

मगधबंसेक झबराइल डाइर। 

उमादित्येक रोपल पोहा

बोहाइ देल दामुदर || 

टुटल-फुटल पथल-माटी  

कहत सरंची-कमलेक कथा। 

दामुदरेक कोराा एखनो 

अमर रहल अमर गाथा ।।

सइत पावेले गौतम बुध जनी चेंगइर तइज देल । 

टाका-कउड़िक मोह-माया तकरो ले नाता तोइर लेल ।।

निंगइछ देल सब सिद्धार्थे 

डोहगल सइतके खोजाइरे। 

थिराइ गेल गाछेक जुड़ात्र

अलबते पाइल आजवाइरें।। 

भाइभ-गुइन, देखल सइत”मानुस ले बोड़ केउ नान। 

गरीब दुखिक उपगा ले कोन्हों धरम बोड़ नान ।।”

खेंचा-टोना रोटी खातिर 

मनुस हियाँ फिफिआहथ । 

घीवे छाँकल रोटी खाइ

कुकुर पुँइछ हिलवऽहथ ।। 

निंदाइ खातिर आल छउवाक 

सुखल माटी धुराक बिछना। 

बाह रे ! पथलेक भगवान 

चंदन फूलेक तोर साजना ।।

मायेक गाते दूध नाञ 

आल छउवा टोवाँहथ 

लोटे गगरे गायेक दूध

भुतेक मुँड़े ढारऽहथ ।। 

सुखल टाँइड़े टुटल कुंबें देसेक चेगइर पढ़ऽहथ । 

चर्च महजिद सोनाक मंदिरे पैगम्बर हियाँ पूजाहथ ।।

सत्यार्थिक, असत बनवे खातिर 

सइत-पंथ तोइर देला। 

‘महायान आर हीनयान बनाइ

भगवानेक अवतार बनाइ देला || 

नालंदाय  बाचल पूँजी-पाघा  

पंथ दरसन पोड़ाइ देला। 

पोंगापंथे डिहरवे खातिर 

महाजाल आड़ाइ देला ||

सइत-पंथ देखाइ देला 

सरंची आर कमलकेतू बोने। 

बोन-संस्कीरतिक रइखा खातिर 

डिहइर गेला आपन मने ।।

SARKARI LIBRARY
AUTHOR : MANANJAY MAHATO

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