बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन (1857-1947 )
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  • 20 जुलाई, 1937 को बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कॉंग्रेस मंत्रिमंडल का गठन हुआ, जिसमें अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ० सैयद महमूद, जगलाल चौधरी आदि शामिल हुए ।
  • रामदयालु सिंह विधान सभा के अध्यक्ष तथा अब्दुल बारी उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
  • सितम्बर 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ और ब्रिटेन की सरकार ने भारत को युद्ध में शामिल करने का निर्णय लिया, तो विरोधस्वरूप काँग्रेस ने सरकार से सहयोग समाप्त कर दिया । फलतः सभी प्रांतों में सरकारों का विघटन हो गया । 
  • बिहार में भी श्रीकृष्ण सिंह ने 31 अक्टूबर, 1939 को त्याग पत्र देकर मंत्रिमंडल को भंग कर दिया । 
  • मार्च 1946 में बिहार में एक बार फिर चुनाव संपन्न हुए । इस बार विधान सभा की 152 सीटों में कॉंग्रेस को 98, मुस्लिम लीग को 34, मोमीन को 5, आदिवासियों को 3 तथा निर्दलीय को 12 सीटें मिलीं । 
  •  30 मार्च, 1946 को श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार में सरकार का गठन हुआ। किंतु, काँग्रेस द्वारा अंतरिम सरकार के गठन का मुस्लिम लीग ने प्रतिक्रियात्मक जवाब दिया तथा देश भर में दंगे भड़क उठे । बिहार में भी दंगों का प्रभाव पड़ा। छपरा, बांका, जहानाबाद, मुंगेर आदि इलाकों में दंगों का ज्यादा प्रभाव रहा । 
  • डॉ० राजेन्द्र प्रसाद तथा आचार्य कृपलानी ने लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की । 
  • 6 नवंबर, 1946 को गाँधीजी ने बिहार के नाम एक पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने बिहार में फैले दंगे पर काफी दुःख व्यक्त किया । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बिहार आकर दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया । 
  • दिसंबर, 1946 ई० में जब संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में भारतीय संविधान सभा का अधिवेशन शुरू हुआ तो मुस्लिम लीग के सदस्य इसमें सम्मिलित नहीं हुए । 
  • 20 फरवरी, 1947 ई० को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने जून 1948 तक भारत को स्वाधीनता प्रदान करने की घोषणा की। 
  • इस बीच 5 मार्च, 1947 को गाँधीजी बिहार की यात्रा पर आये और वह जब तक बिहार में रहे प्रार्थना, शांति और एकता का संदेश देते रहे । 
  • 14 मार्च, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बने । 
  • जुलाई 1947 में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस बिल’ संसद में प्रस्तुत किया गया तथा आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गये । देश की स्वतंत्रता की इस यादगार घड़ी में बिहार में भी खुशियां मनायी गयीं । 
  • स्वतंत्र भारत में बिहार के प्रथम राज्यपाल के रूप में श्री जयरामदास दौलतराम तथा मुख्यमंत्री के रूप में श्रीकृष्ण सिंह ने पदभार ग्रहण किया । 

स्वतंत्रता पूर्व बिहार में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन 

वर्ष  अधिवेशन स्थान  अध्यक्ष 
1912  (27वां )  बांकीपुर, पटना  रंगनाथ सिंह मधोलकर 
1922 38वां गया  देशबंधु चित्तरंजन दास
1940 53वां रामगढ़, झारखंड मौलाना अबुल कलाम आजाद

 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के क्रांतिकारियों का योगदान 

  • >> बिहार में क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में श्री सियाराम सिंह के नेतृत्व में 
  • ‘सियाराम दल’ ने उल्लेखनीय योगदान दिया । 
  • इस दल के कार्यक्रम में चार बातें मुख्य थीं— धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जन संगठन । 
  • बिहार के प्रारंभिक क्रांतिकारियों में डॉ० ज्ञानेन्द्र नाथ, केदार नाथ बनर्जी तथा बाला ठाकुर 
  • दास प्रमुख थे । इन्होंने 1906-1907 में रामकृष्ण सोसाइटी की स्थापना की । 
  • → 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र चाकी ने मुजफ्फरपुर के जिला जज डी० एच० किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास किया, किन्तु धोखे से वकील प्रिंगले कैनेडी की पत्नी और बेटी की हत्या हो गयी । 
  • > पुलिस से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम बोस को 
  • गिरफ्तार कर 11 अगस्त, 1908 को फांसी पर लटका दिया गया । 
  • 1913 ई० में सचिन्द्र नाथ सान्याल ने पटना में अनुशीलन समिति की स्थापना की। इसके संचालन का भार अप्रत्यक्ष रूप से बी० एन० कॉलेज के एक छात्र बंकिमचंद्र मित्र के ऊपर था । 
  • > बंकिमचंद्र ने हिन्दू ब्यॉयज एसोसिएशन नामक एक संस्था भी गठित की। 
  • > ढाका अनुशीलन समाज के बिहार में प्रमुख नेता थे – सचिन्द्र नाथ सान्याल, रासबिहारी बोस, 
  • हिरण्यमय बनर्जी, वासुदेव भट्टाचार्य, बंकिमचन्द्र मित्र आदि । 
  • > 1915 में बंकिमचंद्र मित्र को सचिन्द्र नाथ सान्याल के साथ बनारस षड्यंत्र कांड में गिरफ्तार 
  • कर लिया गया और इन्हें तीन साल के सश्रम कारावास की सजा हुई । 
  • > इसी प्रकार से भागलपुर में ढाका अनुशीलन समिति के सदस्य रेवती नाग, फणिभूषण भट्टाचार्य, नलिनी बागची आदि ने क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 
  • > क्रांतिकारी गतिविधियों को गति देने के क्रम में 1927 में पटना युवक संघ की स्थापना हुई । इस संघ में शामिल लोगों में मणिन्द्र नारायण राय, फूलन प्रसाद वर्मा, कृष्णवल्लभ सहाय, बृजनंदन प्रसाद इत्यादि प्रमुख थे । । 
  • > 1929 ई० में रामवृक्ष बेनीपुरी एवं अम्बिका कांत सिंह के नेतृत्व में पटना में राय महेन्द्र प्रताप के घर ‘पाटलिपुत्र युवक संघ’ तथा 1918 में मोतिहारी में ‘बिहारी युवक संघ’ की स्थापना की गयी । 
  • > पटना से अम्बिका कांत सिंह तथा जगदीश नारायण के सहयोग से ‘युवक’ नामक एक 
  • मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू हुआ । 
  • > बिहार की महिला क्रान्तिकारियों में कुसुम कुमारी देवी एवं सुश्री गौरी दास का नाम महत्वपूर्ण है । > 28 जून, 1931 को पटना में भिखना पहाड़ी के पास पुलिस ने सूरज नाथ चौबे एवं दिल्ली 
  • षड्यंत्र केस के अभियुक्त हजारी लाल को गिरफ्तार कर लिया । 
  • > 9 नवंबर, 1932 को चंद्रमा सिंह ने लाहौर एवं पटना षड्यंत्र कांड के मुखबिर फनेन्द्र नाथ की हत्या कर दी । 

नंगी हड़ताल ( 1930 ई०) 

  • > 4 मई, 1930 को गाँधीजी की गिरफ्तारी के पश्चात् स्वदेशी के प्रचार और विदेशी वस्त्रों 
  • के बहिष्कार की भावना इतनी प्रबल हुई कि छपरा जेल में कैदियों ने विदेशी वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया और स्वदेशी वस्त्र उपलब्ध न कराये जाने पर नंगे बदन रहने का निश्चय किया । 
  • > कई दिनों तक यह ‘नंगी हड़ताल’ जारी रही, तब जाकर कैदियों को स्वदेशी वस्त्र दिये गये । 

चौकीदारी कर बंदी आंदोलन (1930 ई०) 

  • > 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान चौकीदारी कर न अदा करने के अभियान का मुख्य स्थल पूर्वी भारत था, जिसमें बिहार की मुख्य भूमिका थी । 
  • >> यह आंदोलन मई, 1930 ई० में आरंभ हुआ 
  • > सबसे पहले मुंगेर, भागलपुर, सारण जिले में कर नहीं देने के लिए प्रेरित किया गया। मानने 
  • से इंकार या प्रतिरोध करने वालों का बहिष्कार किया गया । 

बेगूसराय गोलीकांड ( 1931 ई० ) 

  • > 26 जनवरी, 1931 ई० को प्रथम स्वाधीनता दिवस पूरे जोश व उत्साह से मनाने का निर्णय किया गया। इसके लिए श्री रघुनाथ ब्रह्मचारी के नेतृत्व में बेगूसराय जिले के परहास ( वर्तमान सुहृदनगर) से एक बहुत बड़ा जुलूस रवाना हुआ । 
  • । 
  • > यह जुलूस जब पुराने पोस्ट ऑफिस के पास पहुंचा तो डी. एस. पी. बशीर अहमद ने गोली 
  • चलाने का हुक्म दे दिया । इस गोली कांड में छह व्यक्ति घटना स्थल पर ही शहीद हो गये । > इन शहीदों में भैरवार के चंद्रशेखर सिंह, वनद्वार के रामचंद्र सिंह, रतनपुर के छट्टू सिंह और पहसारा के बनारसी सिंह शामिल थे। दो अन्य शहीदों के नाम अज्ञात हैं। टेढीनाथ मंदिर के सामने यह गोलीकांड हुआ था । 

बड़हिया ताल / बकाश्त आन्दोलन 

  • > ‘बकाश्त भूमि’ की वापसी के लिए कार्यानंद शर्मा के नेतृत्व में 1935 में मुंगेर जिलान्तर्गत 
  • ‘बड़हिया ताल’ में आन्दोलन चलाया गया । 
  • > यह आंदोलन शोषित और पीड़ित किसानों द्वारा जमींदारों से बकाश्त भूमि के रूप में परिवर्तित 
  • अपनी रैयत भूमि वापस लेने का सामूहिक प्रयास था । 
  • ‘बकाश्त भूमि’ उसे कहते थे जिसे मंदी के कारण लगान न दे पाने के कारण किसानों ने जमींदारों को दे दी थी । 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के किसानों का योगदान 

  • 1917 में बिहार के नील उगाने वाले कृषकों की समस्याओं को लेकर महात्मा गाँधी ने चम्पारण में सत्याग्रह किया । 
  • बिहार में 1918 ई० के अन्त तक लगभग 97 प्रतिशत लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि कार्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न थे । उद्योगों अथवा व्यवसाय में लोगों का नियोजन अत्यंत कम था । कृषि की पद्धति भी पुरानी व्यवस्था पर आधारित थी और भू- राजस्व व्यवस्था अत्यन्त शोषणमूलक थी । 
  • ब्रिटिश शासकों द्वारा खाद्यान्न उत्पादन के स्थान पर नील आदि व्यावसायिक फसलों के उत्पादन के लिए किसानों को बाध्य किया जाता था । 
  • नील की खेती कृषकों के लिए अत्यंत हानिकारक थी । आरंभ में नील की खेती बिहार के चावल उपजाने वाले क्षेत्रों में ही सीमित रही । किन्तु, बाद में नील की खेती बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी होने लगी । फलतः नील बगान मालिकों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था । कतिपय कारणों से कृषि अर्थव्यवस्था अत्यंत हानिकारक हो गई और कृषक वर्ग निर्धन होता चला गया। अधिकांश किसान जमीन से बेदखल होने पर बटाईदार और भूमिहीन मजदूर बन गये तथा उनकी भूमि आदि साहूकारों एवं जमींदारों के पास चली गई । इन्हीं परिस्थितियों ने ब्रिटिश शासन एवं उनके सहयोगियों के विरुद्ध विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की ।
  • गांधीजी के सत्याग्रह व अहिंसापूर्ण आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को चंपारण कृषक अधिनियम-1918 पारित करना पड़ा। हालांकि इस अधिनियम से कृषकों को विशेष राहत नहीं मिली, परंतु कृषक एकता का प्रदर्शन अवश्य हुआ तथा कृषकों के समर्थक नेता के रूप में गाँधीजी को प्रसिद्धि मिली । 
  • > भूमि संबंधी मौलिक मुद्दों को उठाने में स्वामी विद्यानन्द का योगदान महत्वपूर्ण है । उन्होंने 
  • जमींदारी प्रथा की बुराइयों को उजागर किया तथा कृषकों को जागृत किया । 
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1920 के नागपुर अधिवेशन के ‘कर नहीं दो’ का नारा के आलोक में बिहार के कुछ स्थानों पर जमींदारों को लगान नहीं दिया गया। 
  • उत्तर बिहार में अनेक देशी रियासतों तथा बागान मालिकों को लगान का भुगतान नहीं किया गया। सारण जिले की स्थिति ज्यादा गंभीर थी । 
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन में बिहार के किसानों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। 
  • 1930 में समस्त बिहार में ‘चौकीदारी कर नहीं दो’ अभियान चला, जो काफी सफल रहा। > 1930 के दशक के आर्थिक मंदी ने बिहार के किसानों को भी प्रभावित किया। उनकी 
  • स्थिति और भी गंभीर हो गयी थी । 
  • गोपालगंज के भोरे और कटैया में स्थिति बड़ी गंभीर हो गई। यहाँ के किसानों ने पुलिस थानों पर आक्रमण भी किया । देवरिया अनुमंडल किसान सभा के अध्यक्ष सचिदानन्द के नेतृत्व में इन स्थानों में आन्दोलन हो रहा था । 
  • मई 1931 में जहानाबाद में हुए किसान सम्मेलन में जिले के जमींदारों द्वारा किसानों के दमन की निन्दा की गई तथा किसानों की शिकायतों की जाँच के लिए एक समिति नियुक्ति की गई। 
  • उस समय शाहाबाद में स्वामी भवानी दयाल संन्यासी बहुत सक्रिय थे । 
  • बिहार में कांग्रेस ने राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कृषक जाँच समिति भी नियुक्त की, जिसके अन्य सदस्य अब्दुल बारी, बलदेव सहाय तथा राजेन्द्र मिश्र थे । 
  • इस जाँच समिति के गहन प्रचार से कुछ जमींदारों ने डरकर लगान में काफी छूट भी दी । 1932 में दुबारा शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में किसान आंदोलन अधिक हिंसक हो गया और शिवहर, बेलसंड, बैरगनिया, तारापुर, मुंगेर आदि स्थानों में थानों पर आक्रमण भी हुआ । 
  • बिहार में कृषकों के सबसे प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती थे ।
  • सहजानंद सरस्वती एवं उनके सहयोगियों ने किसानों में राष्ट्रीयता की भावना को जीवित रखा और किसान आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की । अब यह किसान आंदोलन वामपंथ की ओर मुड़ गया । 
  • सहजानंद सरस्वती ने किसानों को एकजुट करने के लिए अनेक सभाएँ आयोजित कीं। केवल सन् 1933 में ही ऐसी 117 सभाएँ आयोजित की गईं, जिनमें वह स्वयं उपस्थित हुए ।
  • 1933 के आरंभ में किसान सभा के विरोध के बावजूद परिषद् में विधेयक पेश किया गया । इससे किसानों के मध्य रोष की लहर दौड़ गई और मुंगेर में किसानों ने एक सभा कर निश्चय किया कि वे आधे से अधिक लगान नहीं देंगे । 
  • पटना की सभा में सहजानन्द सरस्वती ने यह घोषणा भी कर दी कि काँग्रेस को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसान सभा का उपयोग करने नहीं दिया जायेगा । 
  • मधुबनी में मार्च 1933 के प्रान्तीय किसान सभा में किसान सभा को एक औपचारिक स्वरूप देने का प्रयास किया गया। हालांकि दरभंगा के महाराजा ने ऐसा नहीं होने दिया; लेकिन इसके बावजूद बिहटा में एक महीने के अन्दर दूसरा प्रान्तीय किसान सभा का आयोजन हुआ और इसके बाद सहजानन्द सरस्वती किसानों के निर्विवाद नेता बन गये । 
  • 1935 ई० तक किसान सभा के सदस्यों की संख्या अस्सी हजार हो गई । 
  • किसान सभा ने धीरे-धीरे अपने को काँग्रेस से अलग कर लिया और इस प्रकार 1935 ई० तक किसान सभा बिहार का एक शक्तिशाली एवं वामपंथी संगठन बन चुकी थी । 
  • 1937 में अन्ततः बकाश्त जमीन को लेकर वामपंथियों एवं कॉंग्रेस के मध्य संघर्ष उत्पन्न हो गया। यह सामाजिक वर्गों के मध्य स्पष्ट संघर्ष था, जिससे किसानों एवं ब्रिटिश सरकार के बीच भी संघर्ष उत्पन्न हो गया । 
  • 1938-39 तक कांग्रेस सरकार को किसान सभा से काफी संघर्ष करना पड़ा । परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के समय कांग्रेसी सरकार के त्याग पत्र दे देने के कारण संघर्ष और तनाव कम हो गया । 
  • 1940 ई० के निर्वाचन में कांग्रेस ने अपनी चुनाव उद्घोषणा पत्र में भूमि स्थायी प्रबन्ध या जमीन्दारी पद्धति के उन्मूलन की बात कही । इससे एक ओर जमींदारों को अपने काश्तकारी अधिकार से वंचित होने का भय हो गया तो दूसरी ओर ब्रिटिश शासकों को यह भय हो गया कि ब्रिटिश राज का उन्मूलन हो जायेगा । 
  • 1946 के पश्चात् कांग्रेस पार्टी सरकार में आई । इससे किसानों को आशा हो गई कि जमीन्दारी प्रथा का उन्मूलन हो जाएगा । 
  • 1946 में बिहार के किसान बकाश्त, मालगुजारी की दर की कमी के पुराने मुद्दों पर पुनः संगठित हो गये। बकाश्त के प्रश्न पर बिहार के विभिन्न भागों में वृहत पैमाने पर कृषक विद्रोह आरम्भ हो गया । 
  • इस समय किसानों का नेतृत्व स्वामी सहजानन्द सरस्वती कर रहे थे और आंदोलन में वामपंथी दल सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । 
  • किसान उत्साहित होकर जबर्दस्ती फसल काटने लगे और जमीन जोतने लगे, जिससे आंदोलन का स्वरूप हिंसक हो गया । 
  • किसानों एवं जमींदारों के बीच संघर्ष का एक अन्य मुद्दा था – भोली (जिन्स में लगान भुगतान), भूमि का नगदी (नगद लगान भुगतान) तथा भूमि में परिवर्तन । किसानों ने इन जमीनों पर अवैध ढंग से कब्जा करना शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप पूरे बिहार में अनेक हिंसात्मक संघर्ष हुए । 
  • काँग्रेसी सरकार ने 1947 में किसान आंदोलन पर काबू पाने के लिए बिहार सार्वजनिक 
  • व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम पारित किया । इस अधिनियम के उपबन्ध अत्यंत कठोर थे । एक उपबन्ध के अनुसार एक गाँव का किसान दूसरे गाँव में नहीं जा सकता था, जहाँ बकाश्त संघर्ष चल रहा हो । 
  • दरभंगा और बेगूसराय में सबसे ज्यादा संख्या में किसान गिरफ्तार किये गये। इसके बावजूद किसानों ने हार नहीं मानी और संघर्षरत रहे । 
  • स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के विद्यार्थियों का योगदान 
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में बिहार के शैक्षिक संस्थाओं ने भी स्वतंत्रता के विचारों 
  • के प्रचार-प्रसार के लिए युवा शक्ति को संगठित किया । 
  • शिक्षकों के सहयोग से बिहार के छात्रों ने आंदोलन के रास्ते पर कदम बढ़ाया। अंग्रेजों ने हालांकि शिक्षण संस्थाओं और छात्रों पर नये-नये कठोर नियम बनाकर आंदोलन और विद्रोह को दबाने का प्रयास किया । 
  • दरभंगा में 1901 ई० में एक फूस के घर में सरस्वती अकादमी की स्थापना हुई । यह अकादमी (स्कूल) देश-प्रेम की शिक्षा का केंद्र था । कमलेश्वरी चरण सिन्हा, ब्रजकिशोर प्रसाद, हरनन्दन दास, सतीश चन्द्र चक्रवर्ती आदि इस अकादमी से जुड़े थे । 
  • 1906 में श्रीकृष्ण सिंह और श्री तेजेश्वर प्रसाद ने ‘बिहार स्टूडेन्ट्स कांफ्रेंस’ की स्थापना की। ये दोनों सुरेन्द्र नाथ बनर्जी से प्रभावित थे । 
  • राजेन्द्र प्रसाद कलकत्ता में अपने अध्ययन काल में ही स्वतंत्रता प्रेमियों के संपर्क में आये । 
  • इसी उद्देश्य से कलकत्ता में ‘सर्वेण्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना हुई थी । 
  • मुजफ्फरपुर में बाबू रामदयालु सिंह और मुंगेर का कृष्णा प्रसाद, जो 1910 में कानून का छात्र था, इस सोसाइटी से प्रभावित थे । 
  • सन् 1916 में तत्कालीन शिक्षा सदस्य सर शंकरन नायर ने केंद्रीय विधायिका परिषद् में पटना विश्वविद्यालय विधेयक’ प्रस्तुत किया । 
  • इस विधेयक की आपत्तिजनक धाराओं पर विरोध प्रकट करने के लिए नवंबर 1916 में पटना के बांकीपुर में बिहार प्रांतीय सम्मेलन का एक विशेष अधिवेशन हुआ । राजेन्द्र प्रसाद उन दिनों बिहार प्रांतीय संघ के संयुक्त सचिव थे । 
  • चंपारण दौरे के समय गाँधीजी द्वारा 1917 में चंपारण के ‘बड़हरवा लखनसेन’ नामक गाँव में एक स्कूल स्थापित किया गया। गाँव के शिवगुलाम लाल नामक एक उदार व्यक्ति ने स्कूल के लिए अपना घर दान कर दिया था । 
  • 1919 में चंपारण में गाँधी स्कूल के प्रधानाध्यापक के नेतृत्व में हडतालें हुईं । 
  • अंग्रेजों की दमन नीति के विरुद्ध 6 अप्रैल, 1919 को पटना सिटी के किला मैदान में राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक आदि के नेतृत्व में एक विशाल सभा हुई, जिसमें पटना के अधिकांश छात्र उपस्थित थे । 
  • पटना लॉ कॉलेज के छात्र सैयद मुहम्मद शेर और बी. एन. कॉलेज के छात्र अब्दुल बारी ने अक्टूबर 1920 में कॉलेज छोड़ दिया और घूम-घूमकर जनता को जागृत करने लगे । 
  • 1920 ई० के अंत तक पटना में विभिन्न कॉलेजों एवं स्कूलों के छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ चुके थे । कुछ छात्रों के लिए पटना के सदाकत आश्रम में रहने की व्यवस्था की गई । 
  • मुजफ्फरपुर के ‘भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कूल’ के छात्र भी काफी उद्वेलित थे ।
  • गाँधीजी ने छात्रों से स्कूलों एवं कॉलेजों के छोड़ने और आजादी की लड़ाई में भाग लेने की अपील की । 
  • टी. एन. जे. कॉलेज, भागलपुर के 40 छात्रों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया ।
  • दरभंगा के नॉर्थ ब्रुक जिला स्कूल, मधुबनी के वाटसन स्कूल, हाजीपुर हाईस्कूल तथा बगहा मिडिल स्कूल आदि शैक्षणिक संस्थाओं पर असहयोग आंदोलन का प्रबल प्रभाव था ।
  • राजेन्द्र बाबू ने पटना विश्वविद्यालय के सिनेट एवं सिंडिकेट की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया ।
  • मुजफ्फरपुर के बी. बी. कॉलेजिएट स्कूल, दरभंगा के सरस्वती एकेडमी, छपरा के कॉलेजिएट स्कूल तथा गया के एक स्कूल को राष्ट्रीय विद्यालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और इनका संचालन विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय ढंग से किया गया । 
  • गाँधीजी के आह्वान पर बिहारशरीफ में रामबिगहा के स्वर्गीय राय बहादुर एदल सिंह ने एक 
  • न्यास की स्थापना की। उसके अंतर्गत कुछ ही दिन पूर्व नालंदा कॉलेज की स्थापना हुई थी । > 1921 में पटना कॉलेज के हॉल में श्री शर्फुद्दीन बार ऐट लॉ की अध्यक्षता में ‘बिहारी स्टूडेंट्स कांफ्रेंस’ की प्रथम बैठक हुई। इस संगठन ने स्वदेशी वस्त्रों को धारण करने की प्रतिज्ञा की । इस बैठक का उद्देश्य छात्रों के मध्य सहयोग की भावना विकसित करना था । 
  • देश-प्रेम की भावना से मार्च 1921 तक अनेक प्राध्यापकों एवं छात्रों ने क्रमशः अपने पदों एवं पढ़ाई का त्याग कर दिया और राष्ट्रीय कार्यों में लग गये । 
  • बिहार स्टूडेंट्स कांफ्रेंस’ का सोलहवां अधिवेशन अक्टूबर 1921 को हजारीबाग में हुआ । 
  • इस अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीमती सरला देवी ने की । 
  • 1928 में मोतिहारी में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन बिहार युवक संघ के प्रो० ज्ञान साहा के नेतृत्व में हुई । ब्रिटिश सरकार प्रो० ज्ञान साहा को ‘अतिवादी विचारधारा’ का क्रांतिकारी समझती थी । 
  • छात्रों के निमंत्रण पर 1929 में सरदार पटेल भागलपुर आये । 
  •  1930 में नालंदा कॉलेज के छात्रों के प्रयास से बिहारशरीफ में युवक संघ की एक शाखा की स्थापना हुई । 
  •  सन् 1931 में आरा में बिहारी छात्रों का 24वां सम्मेलन हुआ, जिसमें ग्रामीणों का सहयोग प्राप्त करने के लिए कार्य करने का निश्चय किया गया । 
  • 1940 में बिहार के कई स्थानों पर विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता दिवस समारोहों में भाग लिया । स्वतंत्रता दिवस मनाने के कारण कई कॉलेजों के छात्र कठोर रूप से दंडित किये गये । > मुंगेर के अली अशरफ तथा सुनील मुखर्जी जैसे कम्युनिस्ट छात्र नेता कैद कर लिये गये । > जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के विरोध में 14 मार्च, 1940 को सारे प्रांत में जयप्रकाश दिवस मनाया गया । लगातार जारी विरोध, प्रदर्शन, आन्दोलन के कारण 22 अप्रैल 1946 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। देखें – Yusuf Meharally द्वारा संपादित जयप्रकाश नारायण की पुस्तक ‘INDIA Struggle for Freedom Political, Social and Economic अप्रैल 1940 में दरभंगा में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन हुआ । 
  • 16 नवंबर, 1940 को छात्र संघ के तत्वावधान में पटना, मुजफ्फरपुर और दरभंगा में छात्रों 
  • द्वारा दमन विरोधी दिवस मनाया गया । 
  • अप्रैल 1941 में मधुबनी में छात्र सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता रामवृक्ष बेनीपुरी ने की ।
  • अगस्त 1941 में बिहार प्रांतीय छात्र सम्मेलन में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उद्घाटन भाषण दिया । 
  • 1942 के अगस्त क्रांति के समय राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही बी. एन. कॉलेज के छात्रों ने वृहद जुलूस निकाला तथा इंजीनियरिंग कॉलेज, पटना ट्रेनिंग कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि संस्थानों के भवनों एवं छात्रावासों पर झंडे फहराये गये । 
  • छात्रों ने बिहार केंद्रीय छात्र परिषद् नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया। सरकार के अनेक कठोर कार्रवाइयों के पश्चात् भी छात्रों का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ । 
  • 1942-43 के पश्चात् बिहार के कई छात्र राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में लोकप्रिय हो गये । 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की महिलाओं का योगदान 

  • सन् 1917 ई० में बिहार में महात्मा गाँधी के पदार्पण के साथ ही आंदोलन में महिलाओं का झुकाव बढ़ गया । 
  • 1919 तक कस्तूरबा गाँधी, श्रीमती सरला देवी, प्रभावती जी, राजवंशी देवी, सुनीति देवी, राधिका देवी और वीरांगना महिलाओं की प्रेरणा से संपूर्ण बिहार की महिलाओं में आजादी के प्रति रुझान बढ़ गया । 
  • सरला देवी ने 1921 में बिहार आह्वान किया । श्रीमती सावित्री देवी ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दौरान होनेवाले समारोहों के बहिष्कार आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया । > पटना के श्रीमती सी. सी. दास, कुमारी गौरी दास और श्रीमती उर्मिला देवी ने स्वतंत्रता 
  • आंदोलन के दिनों में चर्खा एवं अन्य स्वदेशी वस्तुओं वस्तुओं के प्रचार में भाग लिया । 
  • 1921 ई० में देशबंधु कोष के लिए जब गाँधीजी ने बिहार का भ्रमण किया तो यहाँ की महिलाओं ने अपने आभूषण तक को दान में दिया । 
  • इस कार्य में महात्मा गाँधी के साथ श्रीमती प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) ने महत्वपूर्ण योगदान दिया । 
  • सन् 1930 ई० के नमक आंदोलन में भी बिहार की महिलाओं ने बड़े जोश-खरोश के साथ भाग लिया । श्रीमती शैलबाला राय के उत्तेजक भाषण से प्रभावित होकर संथाल परगना की महिलाओं ने नमक कानून को भंग किया । 
  • शाहाबाद जिले के श्री रामबहादुर बार एट लॉ की पत्नी ने सासाराम थाने के समक्ष नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया । 
  • हजारीबाग की श्रीमती सरस्वती देवी तथा श्रीमती साधना देवी को नमक कानून के उल्लंघन के लिए छह माह की सजा भी मिली । 
  • गिरिडीह की श्रीमती मीरा देवी को भी गिरफ्तार किया गया । 
  • पटना में श्रीमती हसन इमाम तथा श्रीमती विन्ध्यवासिनी देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों के दुकानों के सामने धरणा-प्रदर्शन को सफल बनाया। पटना के तत्कालीन कलक्टर को इन महिलाओं से मुकाबला करने के लिए भारी संख्या में महिला पुलिस बल की बहाली करनी पड़ी । 
  • मुंगेर की श्रीमती शाह मुहम्मद जुबैर एक बड़े घराने की मुस्लिम महिला थी, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया । 
  • इस आंदोलन में बहुरिया रामस्वरूप देवी का प्रभाव इतना था कि उन्हें 1931 में भागलपुर जेल में बन्द कर दिया गया । 
  • संथाल परगना जिले में श्रीमती साधना देवी ने नेतृत्व संभाल रखा था । 
  • श्रीमती चन्द्रावती देवी गया की प्रमुख नेतृ थीं। वह चौकीदारी कर के विरोध में गिरफ्तार भी हुईं । 
  • 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दिये गये मृत्युदंड के विरोध में आरा में एक विराट सभा का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता श्रीमती कुसुम कुमारी देवी ने की । 4 जनवरी, 1932 को गाँधीजी एवं अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया तब भी बिहार में हड़तालों और प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा । 
  • 4 जनवरी, 1933 को बिहार में गाँधीजी की गिरफ्तारी दिवस मनाया गया । 
  • 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने के आरोप में पटना में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी श्रीमती राजवंशी देवी तथा डिक्टेटर चन्द्रावती देवी सहित सात महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। श्रीमती राजवंशी देवी तथा चन्द्रावती देवी को डेढ़ वर्ष कारावास का दंड भी मिला । 
  • 1941 में महात्मा गाँधी ने जब साम्प्रदायिक तत्वों के विरुद्ध सत्याग्रह किया तो इसके समर्थन में बिहार की महिलाओं ने भी सत्याग्रह किया । 
  • इस सत्याग्रह आंदोलन के आरोप में गया की श्रीमती प्रियंवदा देवी, जगत रानी देवी एवं जानकी देवी को गिरफ्तार भी किया गया । दुमका में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती महादेवी केसरीवाल ने किया । 
  • बिहार के खादी आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । सरला देवी, सावित्री 
  • देवी, लीला सिंह, श्रीमती शफी, शारदा कुमारी, विन्ध्यावासिनी देवी, प्रियंवदा देवी, भगवती देवी जैसी महिलाओं ने इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । 
  • 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार की महिलाओं, विशेषकर चर्खा समिति की सदस्याओं ने अगस्त महाक्रांति की ज्वाला को धधकाने और उसे व्यापक बनाने की भरपूर कोशिश की ।  
  • 9 अगस्त, 1942 को पटना में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की बहन श्रीमती भगवती देवी के नेतृत्व में महिलाओं का एक विशाल जुलूस निकला । 
  • हजारीबाग में महिलाओं का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती देवी कर रही थीं, जिन्हें गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन जब श्रीमती सरस्वती देवी को हजारीबाग से भागलपुर जेल ले जाया जा रहा था तो विद्यार्थियों के एक जत्था ने धावा बोलकर उन्हें छुड़ा लिया। कुछ दिनों बाद उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया । 
  • भागलपुर जिले में आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती माया देवी कर रही थीं । 
  • गोविन्दपुर गाँव के श्री नरसिंह गोप की पत्नी जिरियावती ने 16 अंग्रेज सिपाहियों को गोली मार दी। 
  •  छपरा में 19 अगस्त, 1942 को हुई एक विशाल जनसभा की अध्यक्षता शांती देवी ने की ।
  • छपरा जिले के दिघवारा प्रखंड पर तिरंगा झंडा फहराने के आरोप में मलखाचक के स्वर्गीय 
  • राम विनोद सिंह की दो पुत्रियों शारदा एवं सरस्वती को 14 और 11 वर्ष की सजा दी गयी । 
  • दुमका में श्रीमती जाम्बवती देवी तथा श्रीमती प्रेमा देवी आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थीं । संथाल परगना के हरिहर मिर्धा की पत्नी बिरजी देवी की पुलिस ने हत्या कर दी । 
  • गया जिले की प्यारी देवी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया । 
  • वैशाली जिले के किशोरी प्रसन्न सिंह की पत्नी सुनीति देवी एवं बैकुण्ठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी ने पुरुष के वेश में साइकिल पर भ्रमण करके जन-जागरण किया । 
  • वैशाली की ही श्रीमती विन्दा देवी, शहीद फुलैना प्रसाद की पत्नी तारा देवी, मुजफ्फरपुर की भवानी मेहरोत्रा, भागलपुर की रामस्वरूप देवी, कुमारी धतुरी देवी, जिरिया देवी, मुंगेर की संपतिया देवी, शाहाबाद की फुई कुमारी, पटना की सुधा कुमारी शर्मा आदि महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया । 
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अनेक महिलाएँ पुलिस की गोली से शहीद भी हुईं, जिनमें प्रमुख हैं— छोड़मारा गाँव की श्रीमती विराजी मधियाइन, शाहाबाद के गाँव लसाढ़ी के शिव गोपाल दुसाध की पत्नी अकेली देवी, मुंगेर के रोहियार गाँव की कुंमारी धतुरी देवी आदि । 
  • बिहार की अन्य अत्यंत चर्चित महिला नेतृ थीं— शारदा देवी एवं श्रीमती उषा रानी मुखर्जी ।

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के साहित्यकारों का योगदान 

  • बिहार में ऐसे साहित्यकारों की लंबी परंपरा रही है, जिनके साहित्य ने स्वतंत्रता संग्राम में जूझनेवाले को पर्याप्त प्रेरणा दी । इनमें प्रमुख नाम हैं— रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, पं० जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, मुकुटधारी सिंह, युगल किशोर सिंह, केशवराम भट्ट, जीवानंद शर्मा, मोहनलाल महतो ‘वियोगी’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ आदि । 
  • पं० जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी के ‘भारत की वर्तमान दशा’ तथा ‘स्वदेशी आंदोलन’ जैसी पुस्तकों से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को साहस एवं उत्साह प्राप्त हुआ । 
  • डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की लिखी ‘चम्पारण में महात्मा गाँधी’ और ‘खादी का अर्थशास्त्र’ जैसी कालजयी कृतियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के मन में संग्राम की अग्निशिखा को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । 
  • 1915 में रायबहादुर राव रणविजय सिंह की महत्वपूर्ण कृति ‘यूरोपीय महायुद्ध और भारत का कर्त्तव्य’ प्रकाशित हुई । 
  • भवानीदयाल संन्यासी की लिखी ‘कारावास की कहानी’ तथा ‘प्रवासी की कहानी’ आदि कृतियां अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर हैं । 
  • प० चम्पारण के बेतिया नगर निवासी श्री पीर मुहम्मद मूनिस की अमुद्रित कृति ‘चम्पारण 
  • के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास’ स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरक सामग्री था । > आचार्य शिवपूजन सहाय ने पत्रकारिता और साहित्य-रचना दोनों ही माध्यमों से स्वतंत्रता- आंदोलन में महत्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका का निर्वाह किया । ‘विभूति’ नामक उनकी स्वनामधन्य कहानी संग्रह में संकलित राष्ट्रीय सन्दर्भ की ‘मुण्डमाल’ कहानी का स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा की दृष्टि से अत्यंत महत्व है । इनके द्वारा लिखित लेख ‘क्रांति का अमर सन्देश’ पूरा का पूरा स्वतंत्रता आंदोलन से ही संदर्भित है । इसके अतिरिक्त ‘स्वतंत्रता होने से पहले’ तथा ‘देश का ध्यान’ शीर्षक उनके लेखों ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उनकी पात्रता और उनके कर्त्तव्य का विवेचन किया है, जो आज भी प्रासंगिक है । 
  • हिन्दी के महान साहित्यकार श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाएँ स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों 
  • के लिए बड़ी प्रेरक सिद्ध हुईं । रामवृक्ष बेनीपुरी के उपन्यास ‘पतितों के देश में’ और ‘कैली की पत्नी’ तथा शब्द-चित्र ‘लालतारा’ में वामपंथी राष्ट्रीयता का प्रकाश है । 
  • शिवपूजन सहाय के शब्दों में, “खंजन की तरह फुदकनवाली बेनीपुरी जी की भाषा, अवश्य ही स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं के लिए पर्याप्त उत्साहजनक थीं। 
  • हिन्दी के गद्य लेखक राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह ( गद्य – सम्राट) की स्वतंत्रता से संदर्भित रचनाओं का बहुत महत्व है । राजा साहब की सन् 1938 ई० में प्रकाशित कथाकृति ‘गाँधी- टोपी’ का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है । 
  • साहित्यकारों के भी दो वर्ग रहे हैं । एक वर्ग उन लोगों का है, जिन लोगों ने केवल लेखनी के माध्यम से इस संघर्ष में योग दिया। जैसे— केशवराम भट्ट, मोहनलाल महतो ‘वियोगी’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ आदि । दूसरी ओर, कुछ ऐसे, साहित्यकार भी हुए, जिन्होंने अपनी लेखनी और सेनानी धर्म दोनों से इस संग्राम की शिखा को उद्दीप्त किया । ऐसे साहित्यकारों में रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, रामदयाल पाण्डे, रघुवीर नारायण आदि प्रमुख थे । 
  • अंग्रेजी के पत्रकार महेश नारायण ने बिहार ( बाद में बिहार टाइम्स) के माध्यम से स्वतंत्र बिहार की स्थापना का आंदोलन चलाया । 
  • सारण जिले के जगन्नाथपुर निवासी गोपाल शास्त्री एक अल्पज्ञात सुकवि थे । इन्होंने भी स्वाधीनता का भाव जगाने वाली कविताएं लिखी हैं। इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं— राष्ट्रभाषा भूषण, राष्ट्र धर्मोपदेशिका, हरिजन स्मृति आदि । 
  • इस काल के दूसरे समर्थ कवि थे मुकुटलाल मिश्र ‘रंग’ । ऐसे तो ये शृंगारिक कवि थे लेकिन वे युगचेतना संपन्न भी थे । इन्होंने ‘दुर्गा सप्तशती’ का ‘दुर्गाविजय’ के नाम से पद्यानुवाद किया है । 
  • बाबू रघुवीर नारायण ने खड़ी बोली और भोजपुरी दोनों में काव्य-रचना की है, जिसमें देशभक्ति की उदात्त भावना भी है। इनकी सबसे प्रसिद्ध कविता बटोहिया है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य से स्वदेशभक्ति को परिपुष्ट किया गया है । 
  • भोजपुरी में उनकी दूसरी देशभक्तिपरक गीत है, ‘भारत-भवानी’ जो प्रायः राष्ट्रीय सभाओं में वंदे मातरम् की भांति गाया जाता था । 
  • मनोरंजन प्रसाद सिंह ने बटोहिया की तर्ज पर फिरंगिया नामक गीत लिखा । 
  • देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद के निर्देशन में निकलने वाले ‘देश’ का बिहार के पत्र – जगत में वही स्थान है, जो उत्तर प्रदेश में गणेश शंकर विद्यार्थी के ‘प्रताप’ का । इन पत्रों ने दमन की परवाह न कर देशवासियों में राष्ट्रीय भाव जगाया । 
  • 1928 से 1942 तक ‘दिनकर’ जी की अनेक क्रांतिकारी व राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत कविताएँ निकलीं, जिन्होंने भारतवासियों को प्रेरित करने के साथ कवि को भी असाधारण साहस प्रदान किया । इनमें प्रणभंग, हिमालय, दिल्ली, हाहाकार तथा आग की भीख आदि उल्लेखनीय हैं । 
  • इस युग में देवव्रत शास्त्री और जगन्नाथ मिश्र दो ऐसे पत्रकार थे, जो राजनीति से सीधी तरह जुड़े थे और अपने लेखों से राष्ट्रीय चेतना को बल प्रदान कर रहे थे । 
  • राहुल सांकृत्यायन की अनेक कहानियाँ भी पराधीनता की पीड़ा के अंकन की दृष्टि से स्मरणीय हैं । 
  • कवियों में मोहनलाल महतो ‘वियोगी’ ने ‘आर्यावर्त’ महाकाव्य के द्वारा भारतीय इतिहास की एक अत्यंत शौर्यपूर्ण घटना के चित्रण के साथ नारी के कर्त्तव्य का निर्धारण किया है। 
  • गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ने भी देशभक्ति पर अनेक कविताएँ लिखी हैं । 

संन्यासी विद्रोह 

  • स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के साधु-संतों का योगदान 
  • ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध प्रथम विद्रोह 1763 में बंगाल और बिहार के संन्यासियों ने ही किया था । इसे इतिहास में संन्यासी विद्रोह के नाम से जाना जाता है। 
  • भारत के इतिहास और गजेटियर के लेखक सर विलियम हंटर के अनुसार, “संन्यासी विद्रोह किसान विद्रोह था । .ये तथाकथित गृहत्यायी और सर्वत्यागी संन्यासियों के रूप में पचास-पचास का दल बांधकर सारे देश में घूमा करते थे” । 
  • इस विद्रोह ने किसानों के विद्रोह को धार्मिक प्रेरणा भी प्रदान की । 
  • बंगाल और बिहार में फैले संन्यासी विद्रोह के कई नेता थे, जिसमें प्रमुख थे— मजनूशाह, देवी चौधरानी, रामानंद गोसाईं आदि । 
  • पूर्णिया में भी 1770-71 में इस तरह के हमले हुए, जिसमें 500 विद्रोही पकड़े गये । इन विद्रोहियों के कार्य-कलापों से तंग आकर वारेन हेस्टिंग्स ने अत्यंत कठोर आदेश पारित कर विद्रोहियों का दमन किया । 
  • 1776 में संन्यासी विद्रोह का प्रमुख केन्द्र पटना के आस-पास के अंचलों में था । 
  • संन्यासियों की विद्रोही सेना ने पटना स्थित ईस्ट इंडिया कंपनी के कोठियों पर हमला कर अंग्रेजों के वफादार जमींदारों को लूट लिया और कंपनी सरकार को कर वसूलना मुश्किल कर दिया । 
  • सारण जिला में पाँच हजार विद्रोहियों की सेना एवं अंग्रेजों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें अंग्रेजी सेना पराजित भी हुई । 
  • यह आंदोलन 1800 ई० तक अपने विभिन्न रूपों में चलता रहा । इस विद्रोह के माध्यम से संन्यासियों एवं फकीरों ने आत्म- बलिदान का आदर्श और विदेशी पूँजीपतियों से देश की स्वतंत्रता का लक्ष्य निर्धारित किया । 

स्वामी सहजानन्द सरस्वती 

  • स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के देव गाँव में 1889 ई० में हुआ था । उनके बचपन का नाम नौरंग राय था तथा उनके पिता का नाम बेनी राय था । विद्रोही गतिविधियों के कारण उन्हें 1922-23 में गाजीपुर, बनारस, फैजाबाद तथा लखनऊ जेलों में भी रहना पड़ा । 
  • 1920 में बिहार दौरे के समय पटना में 5 दिसम्बर को एक संत से गाँधीजी की भेंट हुई 
  • यह संत स्वामी सहजानंद सरस्वती थे । 
  • गाँधीजी से भेंट के बाद उनकी वास्तविक देश सेवा आरंभ हुई। आरंभ में उनका कार्य- क्षेत्र बक्सर, भभुआ तथा शाहाबाद था । परंतु 1924 के बाद वे संपूर्ण बिहार में प्रसिद्ध हो गये । 
  • सन् 1927 में बिहटा (पटना) में सीताराम आश्रम को केन्द्र बनाकर वे संपूर्ण बिहारवासियों की सेवा में लग गये। उन्होंने किसानों के हित में विशेष कार्य किया। इस क्रम में उन्हें अनेक बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। 61 वर्ष की अवस्था में 1950 ई० में इनका देहावसान हुआ । 

भवानी दयाल संन्यासी 

  • इनके माता-पिता बिहार के रोहतास जिलान्तर्गत बहुआरा ग्राम के निवासी थे, जो बाद में 
  • कुली बनकर दक्षिण अफ्रीका चले गये थे । 
  • जोहांसबर्ग में 1892 में इनका जन्म हुआ । दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी से इनकी भेंट हुई और उनसे प्रभावित होकर ये भी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये। अपने विद्रोही स्वभाव के कारण इन्हें दक्षिण अफ्रीका में कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी। 
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ये बिहार में सक्रिय थे । अतः 1930 में इन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में भेज दिया गया । यहाँ से इन्होंने कैदी मथुरा प्रसाद सिंह के सहयोग से हस्तलिखित पत्रिका ‘कारावास’ निकाला । 
  • बिहार से प्रकाशित कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी इनके द्वारा किया गया । 
  • विदेशों में भारतीय सभ्यता-संस्कृति, भारतीय भाषा और भारतीय स्वतंत्रता का अलख जगानेवाले संन्यासियों में भवानी दयाल संन्यासी का नाम अग्रणी है । 

बाबा रामलखन दास उर्फ लाखन बाबा 

  • लाखन बाबा का जन्म झांसी में हुआ था, परन्तु बाबू राजेन्द्र प्रसाद के आग्रह पर वह छपरा जिले के सोनपुर प्रखंड में आ गये और यहीं के होकर रह गये । 
  • वह आरंभ से ही समाजसेवी, देशभक्त और क्रांतिकारी थे। भगत सिंह, राजगुरु 
  • तथा सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में भाग लिया । वह आम जनता के आस्था केन्द्र थे, इसलिए जनता पर इनका बहुत प्रभाव था। जब भारतीयों पर अंग्रेजी शासन का दबाव बढ़ने लगा तो वे खुलकर सामने आ गये और गाँवों में घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रचार करने लगे । अंग्रेजों ने बाबा की गिरफ्तारी के अनेक प्रयास किये लेकिन सफल नहीं हो पाये । 

बिहार का नामकरण और राज्य का गठन 

  • इस क्षेत्र के नामा करण के रूप में ‘बिहार’ शब्द सर्वप्रथम मिन्हास – उस – सिराज द्वारा तेरहवीं शताब्दी (सन् 1203 ई० के लगभग) में रचित तबक़ात – ए – नासिरी में प्रयुक्त हुआ है । 
  • सन् 1390 ई० में विद्यापति रचित ‘कीर्तिलता’ में भी बिहार शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • मध्यकाल में नालन्दा और ओदंतपुरी के निकट स्थित अनेक बौद्ध विहारों को देखकर संभवतः मुसलमान शासकों ने इस प्रदेश का नाम बिहार रख दिया । 
  • तुगलकों के समय में बिहारशरीफ का तथा शेरशाह के समय सासाराम और पटना सहित पूरे बिहार को ख्याति मिली । 
  • 1580 ई० में अकबर ने इसे एक प्रांत के रूप में संगठित किया । 
  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद अठारहवीं शताब्दी में यह क्षेत्र बंगाल के नवाब के अधीन आ गया। 1733 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन ने बिहार को बंगाल सूबे का हिस्सा बना लिया । तत्पश्चात् यह क्षेत्र बंगाल प्रान्त का अंग बना रहा । 
  • 1774 ई0 के रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा बिहार के लिए एक प्रांतीय सभा का गठन किया गया ।
  • 1865 ई० में पटना और गया के जिले अलग-अलग संगठित किये गये । 
  • डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, नंद किशोर लाल तथा श्री कृष्ण सहाय ( इन चारों) ने मिलकर जनवरी, 1894 में पटना से बिहार टाइम्स’ या ‘बिहारी’ समाचार-पत्र निकालना प्रारंभ किया । 
  • महेश नारायण या बाबू माहेश्वर प्रसाद के संपादन में प्रकाशित इस समाचार-पत्र के माध्यम से बिहार पृथक्करण आंदोलन अपनी जड़ें जमाने लगा । 
  • 1905 ई० में बंगाल विभाजन का प्रस्ताव लार्ड कर्जन ने किया, जिसके अंतर्गत हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र पश्चिमी बंगाल एवं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र पूर्वी बंगाल का गठन होना था । इस प्रस्ताव का राष्ट्रवादियों ने विरोध किया । 
  • 1906 ई० में राजेन्द्र बाबू, जो उन दिनों कलकत्ता के बिहारी क्लब’ के मंत्री थे, ने डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा, श्री महेश नारायण तथा अन्य नेताओं से विचार-विमर्श के पश्चात् पटना 
  • में एक विशाल ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ करवाया, जिसमें छात्रों की एक स्थायी समिति बनायी गयी। इससे ‘बिहार पृथक्करण आंदोलन’ को पर्याप्त बल मिलने लगा । 
  • 1908 ई० में बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का पहला अधिवेशन पटना में हुआ । इस अधिवेशन में मोहम्मद फखरुद्दीन ने बिहार को बंगाल से पृथक् कर एक नये प्रांत के रूप में संगठित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया । 
  • 1908 ई० में ही नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में आयोजित सभा में बिहार प्रदेश काँग्रेस कमिटी का गठन हुआ । तदोपरांत हसन इमाम बिहार प्रदेश काँग्रेस कमिटी के पहले अध्यक्ष चुने गये । 
  • 1909 ई० में ‘बिहार प्रादेशिक सम्मेलन’ का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में सम्पन्न हुआ । इसमें भी बिहार को अलग करने की जोरदार मांग की गयी । 
  • 1911 ई० तक बिहार बंगाल प्रेसीडेन्सी का हिस्सा था । 1911 ई० में केन्द्रीय विधान परिषद् में सच्चिदानंद सिन्हा और मोहम्मद अली ने बंगाल से बिहार के विभाजन का प्रस्ताव पेश किया । 
  • 12 दिसंबर, 1911 ई० को दिल्ली में आयोजित शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा के क्षेत्रों 
  • को बंगाल प्रेसीडेन्सी से पृथक् कर एक नये प्रांत के रूप में संगठित करने की घोषणा सम्राट् जॉर्ज पंचम की उपस्थिति में गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंज द्वारा की गयी । 
  • इस घोषणा के अनुसार 1 अप्रैल, 1912 ई० को बंगाल से 3 करोड़ 50 लाख की जनसंख्या वाला 1 लाख 13 हजार वर्गमील क्षेत्र अलग कर बिहार (उड़ीसा सहित) का नये प्रांत के रूप में विधिवत् उद्घाटन हुआ तथा पटना को इसकी राजधानी बनाया गया । 
  • बिहार को पृथक् राज्य बनाने की मुहीम का नेतृत्व डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा और महेश नारायण ने किया था, अतः बिहार को स्वतंत्र प्रांत के रूप में स्थापित करवाने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है । 
  • 20 जनवरी, 1913 ई० को बिहार – उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर के नवगठित कांउसिल की प्रथम बैठक बांकीपुर पटना में हुई, जिसकी अध्यक्षता बिहार- उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने की । 
  • 1916 में पटना उच्च न्यायालय और 1917 में पटना विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई । 
  • पटना में एक नये भवन (वर्तमान विधान सभा भवन) का निर्माण किया गया जिसमें 7 फरवरी, 1921 ई० को बिहार एवं उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउंसिल की प्रथम बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता सर मूडी ने की । 
  • 1935 में गवर्नमेन्ट ऑफ इंडिया एक्ट पारित होने के बाद 1 अप्रैल, 1936 ई० को बिहार से 
  • अलग उड़ीसा प्रांत का गठन किया गया तथा पुराने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के एक सदनी विधानमंडल की जगह नये कानून के अनुसार द्वि-सदनी विधानमंडल स्थापित किया गया । 
  • 1947 ई० में खरसावाँ और सरायकेला के क्षेत्र उड़ीसा को हस्तांतरित किये गये, किन्तु 18 
  • मई, 1948 ई० को इन्हें पुन: बिहार में सम्मिलित किया गया । 
  • भाषा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन के आलोक में 1956 ई० में बिहार विधान सभा की सीटों में परिवर्तन हुआ। बिहार तथा पश्चिम बंगाल ( क्षेत्रों का अन्तरण) अधिनियम, 1956 के अधिनियम के परिणामस्वरूप 1 नवंबर, 1956 ई० को बिहार की कुल 3166 वर्गमील भूमि 14,45,323 की आबादी के साथ पश्चिम बंगाल का अंग हो गई, जिसके कारण बिहार विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 331 से घटकर 316 हो गई। 
  • 1956 ई० में राज्यों के पुनर्गठन के क्रम में पुरुलिया एवं पूर्णिया जिला के कुछ क्षेत्र पश्चिम बंगाल को हस्तांतरित किये गये ।
  • 15 नवम्बर, 2000 को बिहार के दक्षिणी भाग ( 18 जिलों) को अलग करके झारखण्ड नामक एक अलग राज्य का गठन हुआ । इस विभाजन से पूर्व बिहार में 13 प्रमंडल और 55 जिले थे, जबकि विभाजन के पश्चात् बिहार में 9 प्रमंडल और 37 जिले रह गये । 
  • 2001 में ‘अरवल‘ जिला के निर्माण के बाद बिहार में जिलों की संख्या 38 हो गयी है ।