चेरो विद्रोह Chero Vidroh

चेरो विद्रोह (1770-1819) / (Chero Vidroh )

  1. प्रथम चरण ( 1770-71) 

  2. द्वितीय चरण (1800-19)

 

चेरो विद्रोह प्रथम चरण ( 1770-71) 

  • विद्रोह का कारण  
    • अंग्रेजों द्वारा पलामू की राजगद्दी के दावेदार गोपाल राय को समर्थन प्रदान करना
    • प्रथम चरण का दमनकर्ताजैकब कैमक

उत्तराधिकार की लड़ाई (पलामू का राजा पद के लिए )

टीम – 1 (हार होगा)

टीम – 2 (जीत होगा )

पलामू के चेरो राजाचित्रजीत राय

  • दीवान  – जयनाथ सिंह

अंग्रेज

नेतृत्व – जैकब कैमक

पलामू किले पर कब्जा

पलामू  का नया राजागोपाल राय

भोगता विद्रोह (1770-1771) 

  •  चेरो विद्रोह के प्रथम चरण ( 1770-71) के समानान्तर प्रारंभ । 
  •  नेतृत्वजयनाथ सिंह भोगता (चित्रजीत राय का दीवान)
    • सहयोग – भोगता एवं चेरो 
  • परिणाम – जयनाथ सिंह पराजित 
    • जयनाथ सिंह सरगुजा भाग गया 
    • पलामू का नया राजा – गोपाल राय (अंग्रेजों द्वारा घोषित ) 

 

चेरो विद्रोह द्वितीय चरण (1800-19)

  •  नेतृत्व –  भूखन सिंह ,1800 में 
  • कारण 
    • चेरो जनजाति के लोगों से ज्यादा कर वसूलना 
    •  पट्टों का  पुनः अधिग्रहण 
  •  दमनकर्ता 
    • 1802 ई. में कर्नल जोंस के नेतृत्व में 
      • राजा भूखन सिंह को फाँसी दे दी गयी 
    • अंग्रेजों द्वारा जमींदारी पुलिस बल का गठन (1809 ई. में) 

 

चूड़ामन राय का चेरो राज्य नीलाम 

  • अंग्रेजों ने चेरो राजा चूड़ामन राय(पलामू के चेरो वंश का अंतिम राजा) द्वारा कर बकाया नहीं चुकाने के कारण उसके राज्य को 1813 ई. में  नीलाम कर दिया। 
    • 1815 ई. में देव के राजा घनश्याम सिंह को  बेच दिया 
    • चेरो राजवंश समाप्त हो गया
      • घनश्याम सिंह ने जागीरदारों की जागीरदारी को भी बेचना प्रारंभ कर दिया। 

1817 में अंग्रेजों के विरूद्ध पुनः विरोध प्रारंभ

  • नेतृत्व  –
    • चैनपुर के ठाकुर रामबख्श सिंह 
    • रंका के शिव प्रसाद सिंह 
  • दमनकर्ता  – रफसेज 
  • पलामू पर अधिकार 
    • 1819 ई. में अंग्रेजों ने पलामू को अपने अधिकार में ले लिया। 
    • पलामू पर शासन की जिम्मेदारी –  भरदेव के राजा घनश्याम सिंह 
  • 1819 ई. में चेरों ने घनश्याम सिंह व अंग्रेजों के विरूद्ध पुनः विद्रोह कर दिया

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