बुढी आर ओकर नाती (Budhi aar okar Nati)

6. बुढी आर ओकर नाती – – अरविन्द कुमार

  • पुस्तक – खोरठा लोकसाहित्
  • प्रकाशक – झारखण्ड जनजातीय कल्याण शोध सस्थान ,मोरहाबादी ,रांची ,कल्याण विभाग झारखण्ड सरकार 
    • प्रथम संस्करण – 2012   “©www.sarkarilibrary.in”
  • संपादक – 
    • प्रधान संपादकए. के. झा
    • अन्य संपादक
      • गिरिधारी गोस्वामी आकाशखूंटी 
      • दिनेश दिनमणि
      • बी एन ओहदार
      • श्याम सुन्दर महतो श्याम 
      • शिवनाथ प्रमाणिक
      • चितरंजन महतो “चित्रा’
  • रूपांकनगिरिधारी गोस्वामी आकाशखूंटी
  • मुद्रक – सेतु प्रिंटर्स , मोरहाबादी ,रांची 

 

KeyPoints – एगो बुढ़ी, नाती, बाघ, बोर गाछ , बोन-भंइसा, राजाक बेटी,   “©www.sarkarilibrary.in”

एगो गाँवें एगो बुढ़ी रह- हली। ओकर बेटा-पुतोहु तो नाइ रहथिन खाली एगो सोना लखें नाती रहइ । नातीक उमइर एहे छोउ–सात बछर हतइ। ऊ बुढ़ी रोइज बोन से पतइ-दोइतन, झुरी-काठी आर बोन से कंद-मुल आनतली आर ओकरे से गुजर-बसर कर हली ।

एक दिन ऊ बोन गेली आर खूब झुरी-काठी जमा कर कोनो तरि बाँइध तो देली मुदा अलगावेहे नाँइ पारी । घरी घरी कोरसिस करली मुदा हाइर गेली। ऊ डाक दइकें कहली- आवा रे जीव-जन्तु ! तनी मदद करा भाइ! कठिया अलगाइ दा रे। बुढ़ीक डाक सुइन एगो बाघ आइ धमकल आर कहलइ-‘ ए बुढ़ी, हामें तोरा कठिया अलगाइ देबउ तो हमरा की देबें? “बुढ़ी हाँथ जोइर कहली- ए बाघ भाइ, हाम गरीब दुखी हों, से की दिये पारबउ ? बाघ फिन कहलइ- “अच्छा तोर घार कोन कोन हथुन ?” बुढ़ी बताओही जे हामर बेटा-बेटी कोइ नाइ है, खाली एकेगो नाती हे। तखन बाघ कहलइ- अच्छा ठिक, नतीया देबे तो अलगाइ देबउ । बुढी बाघ के फरमाइस सुइन सकपकाइ गेली आर कहली – नाइ बाघ हामार एकेगो सोना लखें नाती हे तोराँ दइ देवउ तो हामें की करब? बाघ फिन कहलइ- नाँइ, तोरा नतिया दियेहे भेतउ आर नाँइ देबें तो तोरे खइबउ । हमराँ बड़ी जोर भूख लागल है।  “©www.sarkarilibrary.in”

बुढ़ी तो फेरा में फांइस गेली।  ने हां कहे पारी ने ना । ऊ सोचली एखन हां कही देहिअइ फिन मटियाइ देबइ। दरसन देबे नाइ करबइ । कुछ दिन बाघ भुलाइ जाइत ताब बोन आवब। एहे सोइच ऊ बाघ के हां कही देली। बाघ काठी आलगाइ देलइ आर कहलइ – हामें कइसे बिसवास करियर की तोंय नाती देवें? बुढ़ी कहलइ- बिसवास तो करेहे भेतउ बाघ । जखन सब सुइत जिता, हामें आपन नातीक तेल-उल लगाइके खाटी सुताइ देबइ आर हूंवे दीया लइकें हम्हूं रहबउ तोंय आइ जिहें । बुढ़ी घार चइल गेली आर खाइ पी चुपचाप घार भितर सुइत गेली । बाघ आइल, आरा पहर देखल, जब भिंसोरिया होवे लागलइ तो गोसाइकें बोन घुइर जाहे ।

हफता दू हफता बाद बुढ़ी सोचली जे आब बाघ भुलाइ गेल हतक। ऊ फिन बोन गेली। बाघ ताक लगाइ-लगाइ हल। ऊ कूदले बुढ़ी जगुन आइ धमकल आर कहलइ- वाह बुढ़ी, तोंय तो हमरा  बेस धोखा देलें। आब हामें तोरौं नाँइ छोड़बउ आइझ तो तोरां खइवे करबउ । बुढ़ी हाथ-गोड़ पकड़े लागली आर कहे लागली-हामें तोरा धोखा नाँइ देतलियउ बाघ, थकल हारल हलों से कखने निंदाइ गेलों हाम्हूँ नाँइ जानों। तोंय आइज अइहों बाघ । हामें आपन नातीक तेल लगाइ सुताइ देले रहबउ । बाघ माइन गेल। कहलइ- ठिक हउ अबरी धांव छोइड़ दे हियउ, अबरी धोखा देलें तो जहीं पइबउ हुवें खाई जिबउ । एतना कही बाघ फइर काठी अलगाइ दे हे आर बुढ़ीक छोइड़ देहेइ ।  “©www.sarkarilibrary.in”

बुढ़ी घार अइली आर खुब सोचे लागली की करों? नाँइ देवइ तो हामरे खइतक, कोइ उपाय नाँइ सुझे। ताब ऊ नातीक तेल-उल माखाइ के खटीयें सुताइ देलइ आर वादाक मुताबिक दिया लइकें हूँवें बइस गेली । बाघ आइल आर चेंगाक खाटीये संग उठाइ बोन दने भागल। भागते-भागते खुब गाजार बोन घुइस गेल । आब एगो बोर गाछेक जइर भूँइ से सटइत रहे, बाघ बोर गाछेक निचु दइ गुजरल जा हले कि चेंगा जइर के पकइड़ के टंगाइ गेल। बाघ के पतो नाइ चले, ऊ छुछे खाटी लेले चइल चाहे।

चेंगा बिहान से सांइझ ओहे बोर गाछे बिताइ देहे। सुरुज डूबे लागल  तो बोन-भंइसा आवे लागला ओहे बोर गाछेक तर जेठिन ओखनिक बास रहे । भंइस के देइख चेंगा आर सपइट गेल। भंइस बइठला आर पागुर मारे लागला तो सुनाइ पड़लइ ककरो सिसकेक आवाज । ऊ साब मूंड उठाइ उपर ताके हथ तो देखो हा मानुस के चेंगा कांदे लागल है। ऊ साब चेंगाक हेंठें उतरे कहो हथ।  मुदा चेंगा डरे उतरे नाँइ। ऊ साब फिन कहला- हेंठें उतर बाबु, काहे डेरा हैं? हामिन कोनों नाँइ करबउ । हामनिक पिठिया बड़ी कॅडुआ हे, से खाली ओतने करिहें, जखन हामिन दह-तह में बइठब तखन पिठिया रगइद दिहे आर भुख लागतउ तो पतइ के दोना बानाइ हामिनेक दुही के पी लिहें। चेंगाक आब बिसवास भइ गेलइ कि भंइस सब कोना नाँइ करता। ऊ हेंठें नाँभल आर भंइस के दूध पी-पी के ओखनिक साथ रहे लागल ।  “©www.sarkarilibrary.in”

समइ बितते गेल, चेंगाक रोंवा-पाँइख झारे लागलइ। भंइस के दूध पी-पी चेंगा लाल भइ गेलइ । देही भिसिंड लोहा तरी सकत भइ गेलइ। चुइल सोना लखें चमके लागलइ । गते गते ऊ जुवान भई गेल। एक दिन ऊ नदीं नहा हल से ओकर एगो चुइल टुइट गेल ।। आब ऊ चुइल के पतइ के बिरी में राइख बोहाइ देल । बिरी, बोहते-बोहते नदीक दोसर धाइर चइल गेलइ जहाँ एगो राजाक बेटी नहा हली। ऊ बिरी के देइख के हाथें धरलइ आर खोलो ही। बिरी खुलल तो राजाक बेटी चुइल के देइख मोहित भइ जाही। चुइल सोना लखे खुब चमकइ। एते सुंदर चुइल केकर हइ भाइ ? एते सुंदर चुइल हे “तो लड़का कते सुंदर हवत? ऊ केस लइके आपन बाप जगुन गेली आर केस देखाइ के कहली- “बाप ई केस जकर हतइ हामें ओकरे से बिहा करबइ।” राजा केस देइख के मोहित भइ जाहे। ओकरो बेटीक बियाह के चिंता रहे आर ऊ कतना जगह आपन ठाकुर के लड़का तबसे भेजबो करले हल । ऊ गोटे राइज में ढिंढोरा पिटवाइ देल कि ई केस कोन लड़का के हे ओकरा खोइज के निकाला। हामें ऊ लड़का संग आपन बेटीक बियाह देबइ आर आधा राइजो दइ देबउ

राजाक आदमी चाइरो बटें पसइर गेला। कुछ गांव-गांव, कुछ बोने झारें। खोजते-खोजते राजाक आदमी सइ बोर गाछ तर पोहचला जहां ऊ लड़का रह हलइ । आब लड़का के ऊ सब देख ले हथ । फिन लड़का के सब बात बताइ दे हथिन । लड़का कहलइ देखा भाइ हमरा भंइस सब पोसले हथ। जदी ऊ सब इजाजत देता तो हामें बिहा कइर लेबउ । से सब से हमरा राय लिये दा तबे हामें कोनो कहबउन । राजाक आदमी भंइस के राय सुने खतिर हुवे बइठ जा हथ। सांइझ बेरा भइस सब आओ हथ तो सब बात सुनाइ देल जाहे। भंइस सब राय सलाह कर-हथ आर कह हथ- हाँ, हाँ लड़काक जोड़ी लगाना जरूरी है, बेजोड़ा थोड़े रहत? से जउ बिहा कर ।  “©www.sarkarilibrary.in”

लड़का के राजदरबार में लानल जाहे । फिन राजा ओकर नाम ठेकान पुछो हे । ऊ सब कुछ बताइ देहे। फिन राजा आपन बेटी संग ओकर बियाह कइर देलइ आर घोड़ा- हाँथी में बारात के सजाइ के ढोल-ढाक के साथ आपन बेटी आर दामाद के बिदाइ करलइन । बारात पहुँचल लड़काक गाँव तो ओकर बुढ़ी आजी बिमार खाटी सुतल हली। लड़का आर ओकर जनी हाँथी से उतर-हथ आर दुइयो बुढीक गोड़ लागला। बुढ़ी खाटी से गते-गते उठली आर उइठ के बइस गेली फिन कहो ही- तोंय के लागा राजा? आर हामें गरीब बुढ़ीक काहे गोड़ लागा-हा? हामर जगुन कुछ नाँइ हे बाबा। लड़का आपन आजी के अंकवाइर के पकड़ हइ आर कांइद-कांइद कह-हे- हामें तोर नाती लागीयो आजी । तोर नाती! जेकरा बाघ लइकें भागल हलउ। आर ई हामर जनी लागी। बुढ़ी आपन नाती आर नातिन पुतोस दुइयों के अँकवाइर ले ही। फिन तीनो हाँसी-खुसी रहे लागा-हथ ।  “©www.sarkarilibrary.in”

 

  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर कई गो बेटा है ? एको नाय  “©www.sarkarilibrary.in”
  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर कई गो नाती रहइ ? एक 
  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर नातीक उमइर एहे ? छोउ–सात बछर
  • Q.आवा रे जीव-जन्तु ! तनी मदद करा भाइ! कठिया अलगाइ दा रे।  कोन लोककथा में है ? बुढी आर ओकर नाती लोककथा
  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर कठिया अलगावेहे के मदद करले ? बाघ
  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर नातीक के खाय खोजे है ? बाघ
  • Q.बाघ, बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बुढी कर मदद कर बदले की मांग है ? नातीक
  • Q.बुढी आर ओकर नाती लोककथा में बाघ के , के धोखा देहय  ? बुढी   “©www.sarkarilibrary.in”
  • Q.बुढी कर नातीक खाटीये संग उठाइ बोन दने के भागल ?  बाघ
  • Q.चेंगा कौन गाछक जइर के पकइड़ के टंगाइ गेल ? बोर गाछेक
  • Q.चेंगा के बोर गाछ से हेंठें के उतरे कहो हथ ? बोन-भंइसा
  • Q.चेंगा वोन में केकर दूध  पी-पी के बोड़ भई गेल ?  बोन-भंइसा
  • Q.चेंगा के चुइल के देइख के मोहित भइ जाही ? राजाक बेटी
  • Q.एते सुंदर चुइल हे “तो लड़का कते सुंदर हवत? के कह है ? राजाक बेटी
  • Q.चेंगा केकर इजाजत से बिहा कइर ले राजी होतय ? बोन-भंइसा

 

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