आवा हामिन मंतर सीखब कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
आवा हामिन मतर सीखब आवा हामिन मंतर सीखब पहिल मंतर सीखा भारी सिक्ति बनान पोंगापंथिक वार पयान करा नवाँ ह पोढ़े – लिखेक जंतर सीखब । आवा हामिन मंतर सीखव बिचारेक झगरा हवेक चाही समान बिचार आचार चाही निंगठा ऊँच – नीचेक भेद देखा भेद तो देहक खेद बिचार करेक तंतर सीखब आवा हामिन मंतर सीखब गाँव – डीहें संगठल रहा काठी नियर संइतल रहा होवे जहाँ गुट – फूट दिनेक मांझे हुवाँ लूट आवा सभीन सुतंतर जियब आवा हामिन मंतर सीखब इतिहास हवे वा पुरान बुढ़ा हवे बा सयान कोन्हो बिचार पोइढ़ के नैतिक बात सुइन के बुझे खातिर अंतर सीखब आवा हामिन मंतर सीखब ।। पहिले जाना तभीं माना मानेक पहिले भेउ जाना बुइधेक गाली तभीं गुचे ने तो जिनगी होवे छूछे बाबा भीमेक जनतंतर सीखब । आवा हामिन मंतर सीखब ।।
भावार्थ-इस कविता के द्वारा जीवन में अच्छे गुणों को ग्रहण करने की बात कही गई है। किसी बात को हम तभी माने जब हम उसे अच्छी तरह जान जाएं। उसे तर्क की कसौटी में कस लें। आंख मूंद कर विश्वास न करें। इसके लिए नर-नारी सबो शिक्षित होना जरूरी है। ऊंच-नीच का भेद-भाव, बड़े-छोटे का भेद-भाव खत्म हो, वैयक्तिकता का विकास हो, भले-बुरे के पहचान हो क्षमता का विकास हो। यही सफलता के मंत्र है।
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