रामानुजाचार्य कौन थे , के बारे में जाने

 

‘Statue of Equality”समानता की मूर्ति’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 11वीं सदी के भक्ति संत रामानुजाचार्य (saint Ramanujacharya) की स्मृति में हैदराबाद में 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ राष्ट्र को समर्पित की है।

इस प्रतिमा को करीब 1000 करोड़ रुपए की लागत से बने रामानुजाचार्य मंदिर में स्थापित किया गया है।
रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर 2 फरवरी से समारोह का आयोजन किया जाएगा। इसे ‘रामानुज सहस्राब्दी समारोहम’ नाम दिया गया है।
स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी रामानुजाचार्य के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से निर्मित की गई है।

मूर्ति की संरचना:

हैदराबाद के मुचिन्तल गांव में रामानुजाचार्य की मूर्ति बन कर तैयार है. 
ये भारत की दूसरी और विश्व की 26वीं सबसे ऊंची मूर्ति है.

यह बैठी हुई मुद्रा में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।इस मामले में थाइलैंड स्थित 302 फीट की बुद्ध की प्रतिमा सबसे ऊंची है।तेलुगू भाषी राज्यों में लोकप्रिय वैष्णव संप्रदाय के संन्यासी त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी के आश्रम में इस मूर्ति को लगाया जा रहा है. 
मूर्ति ‘पंचलोहा’ से बनी है, जो पांच धातुओं- सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का संयोजन है। 
216 फीट ऊंची  प्रतिमा ‘भद्र वेदी'(Bhadra Vedi) नाम की 54 फीट ऊँची इमारत पर स्थापित है।

परिसर में 108 दिव्यदेश

इस मूर्ति के साथ-साथ परिसर में 108 दिव्यदेश बनाए गए हैं. वैष्णव परंपरा के मुताबिक भगवान विष्णु के 108 अवतार और मंदिर माने जाते हैं. 
परिसर में बने 108 मंदिर इन्ही दिव्यदेशों के प्रतिरूप हैं. 
इनका निर्माण होयसल शैली में किया गया है.

Note

भगवान विष्णु के  24 अवतारों में से 10 अवतार भगवान विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं I 

यह हैं- मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, और कल्कि अवतार I

रामानुजाचार्य (saint Ramanujacharya)

भारत उनकी 1,000वीं जयंती को ‘समानता के त्योहार’ के रूप में मना रहा है।
वर्ष 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक थे।
उनके जन्म के समय उनका नाम लक्ष्मण रखा गया था। उन्हें इलाया पेरुमल के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ है दीप्तिमान।
संत रामानुजाचार्य का जीवनकाल 120 वर्षों का था। 
उन्हें ‘विशिष्ट अद्वैत’ सिद्धांत का जनक माना जाता है।
उन्होंने गैर-ब्राह्मण कांचीपूर्ण को अपना गुरु माना।
उन्होंने धनुर्दास नाम के पिछड़े समाज के व्यक्ति को अपना शिष्य बनाया।

रामानुजाचार्य जी ने यादव गिरी पर नारायण मंदिर बनवाया और उसमें दलितों को पूजा का अधिकार देकर समानता का संदेश दिया था।

रामानुजाचार्य की रचना


उन्होंने नवरत्नों के नाम से प्रसिद्ध नौ शास्त्रों की रचना की और वैदिक शास्त्रों पर कई भाष्यों की रचना की।

रामानुज के सबसे महत्त्वपूर्ण लेखन में ‘वेदांत सूत्र’ पर उनकी टिप्पणी (श्री भाष्य या ‘सच्ची टिप्पणी’) और भगवद-गीता पर उनकी टिप्पणी (गीताभास्य या ‘गीता पर टिप्पणी’) शामिल हैं।

उनके अन्य लेखन में ‘वेदांत संग्रह (वेद के अर्थ का सारांश), वेदांतसार (वेदांत का सार) और वेदांतदीप (वेदांत का दीपक) शामिल हैं।

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