संबंधबोधक
संबंधबोधक की परिभाषा
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वैसे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के बाद आकर उनका (संज्ञा या सर्वनाम) संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ स्थापित करता है, उसे संबंधबोधक कहते हैं।
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जैसे- राँची के बाद रामगढ़ आएगा। इस वाक्य में ‘के बाद’ संबंधबोधक है। ऐसे वाक्यों में ‘के’ ‘से’ ‘को’ आदि विभक्ति की अपेक्षा रहती है।
संबंधबोधक केभेद
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इसके तीन आधार माने गये हैं-
(1) प्रयोग
(2) अर्थ
(3) उत्पत्ति ।
प्रयोग के आधार पर संबंधबोधक के भेद
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प्रयोग के आधार पर संबंधबोधक के दो भेद हैं
(क) संबद्ध संबंधबोधक
(ख) असंबद्ध संबंधबोधक
क. संबद्ध संबंधबोधक
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संबद्ध संबंधबोधक शब्द संज्ञा के बाद जो विभक्ति होती है, उसके बाद आते हैं। जैसे-घी के बिना दाल नहीं बनेगी। इस वाक्य में बिना संबद्ध संबंधबोधक है। जो ‘के’ के बाद आया है।
ख. असंबद्ध संबंधबोधक
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असंबंध संबंधबोधक शब्द संज्ञा के बदलते रूप के बाद आते हैं। जैसे- मजदूरों तक रोटी पहुँचा आओ। इस वाक्य में तक असंबद्ध संबंधबोधक है, जो संज्ञा के बदलते रूप के बाद आया है।
अर्थ के आधार पर संबंधबोधक के भेद
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अर्थ के आधार पर संबंधबोधक के 13 भेद होते हैं
(क) कालवाचक – आगे, पीछे, पश्चात् आदि ।
(ख) विनिमयवाचक – जगह, बदले आदि ।
(ग) संग्रहवाचक – तर, भर आदि।
(घ) स्थानवाचक – पास, निकट आदि।
(ड) सादृश्यवाचक – बराबर, योग्य आदि ।
(च) दिशावाचक – तरफ, आरपार आदि ।
(छ) विरोधवाचक – विपरीत, उलटे आदि ।
(ज) साधनवाचक – मारफत, द्वारा आदि।
(झ) तुलनावाचक – आगे, सामने आदि ।
(ञ) हेतुवाचक– वास्ते, खातिर आदि।
(ट) सहचरवाचक– साथ, संग आदि।
(ठ) विषयवाचक– भरोसे, विषय आदि।
(ड) व्यक्तिरेकवाचक– अलावा, बिना आदि।
उत्पत्ति के आधार पर संबंधबोधक के भेद
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उत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक के दो भेद है
(क) मूल संबंधबोधक।
(ख) यौगिक संबंधबोधक।
क. मूल संबंधबोधक
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हिन्दी, संस्कृत और उर्दू भाषाओं के वे शब्द जो मूल रूप से संबंधबोधक हैं, मूल संबंधबोधक कहलाते हैं।
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जैसे- बिना, खतिर, तरफ, मार्फत, पर्यन्त, सिवाय आदि।
ख. यौगिक संबंधबोधक
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वैसे संबंधबोधक जो संज्ञा, विशेषण, क्रिया और क्रिया-विशेषण शब्दों से बनते हैं। यौगिक संबंधबोधक कहलाते हैं।
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जैसे- कारण, संग, ऐसा, जैसा, चलते, मारे, भीतर, आगे आदि ।
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