सुरूज आर रोटी कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

(सुरूज आर रोटी) कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

लाल सुरूज रोइज उगेहे आर ललुहने डुइब जाहे दिन भइर ऊ साखी रहे हे कते लोक जुलुसें – मिटींगे पुलिसेक गाली आर लाठी से मरइला । भाला , ओखिन के कि दोस रोटी मांगे खातिर उलगुलान करल हला रोटी दे , रोटी दे मुदा , बाह रे पुलिस ! रोटी के माने नाञ जानो हथ । रोटी के माने लाठी – गोली हवे ? ललुहन सुरज नियर गोलेगोल पापा । हम तो छोट छउवा लागों हम माने जानोहों मुदा , ऊ नात्र जाने , हमर बाप आर भाइ के माइर देला ।

छिः छिः ई बेवस्था मोरल परे ओखिन के हाथ ले हम डंडा आर झंडा लइ राखल हिअ । बोड़ भेल परे हाम्हूं बताइ रोटी माने कि हवे ? हम हुलमाइल – हुलुस्थुल कइर देबइ । हम उलगुलान कइर देब साखी रहियें लाल सुरूज

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तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – सूर्य और रोटी 

भावार्थ – इस कविता में रोटी भूख का और मानवीय अधिकार का प्रतीक है। भूखे व्यक्ति के लिए लाल उगता सूर्य गर्म तवे पर गर्म रोटी की तरह दिखाई देता है। भूख जीवों की सहजात वृति है। भूख मिटाना उसका कर्तव्य और अधिकार भी है। परन्तु इस मूलभूत अधिकार पर भी कुछ लोगों का कब्जा है। फलस्वरूप भूख जैसी मूल आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती। और जब मनुष्य इसकी पूर्ति के लिए मांग करता है, आंदोलन करता है पर उसे रोटी के एवज में लाठी-डंडे और गालियां मिलती है। अब मानवीय सभ्यता इस सृष्ठि की सर्वोच्च सभ्यता है, पर विडंबना तो देखिए भूख जैसी मूल आवश्कता को भी पूर्ति नहीं हो पाती है। यह कविता समाजवादी / वामपथी दर्शन से प्रभावित है।

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