लहर आना कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
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15 : लहर आना   कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक 

लहर आना रे संगी लहर आना रे । नावाँ जुगेक नावाँ लहर आना रे ।। भेल उच्छिन जाति – पांति ऊँच – नीचेक भेद नीति भिनाभेद निंग्छेक मंतर जाना रे । फोरीफंदी बोली- चाली छंइद – कापेक कुटिचाली पोंगापंथी जिनगिक जहर जाना रे । नर – नारी भेद कहाँ नर जहाँ नारी सिरजनकारिनी नारिक बतर आना रे । रीति – नीति तभी माना मानेक पहिले भेउ जाना गाली गुचवेक नावाँ डहर जाना रे मानुसेक मगज चाँद डिहरल सुइन के हमर गात सिहरल मानुसवादी बनेक पहर जाना रे जनी – मरद संगे खटब मिल – मिस नाचव गावब परखोक पोंगापंथिक चकर जाना रे ।

भावार्थ-प्रस्तुत कविता में, मनुष्यता के विकास में जो भी बाधक हैं उनका परित्याग कर नई चीजों का

लाने की जरूरत है। नर-नारी में भेद करना, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच में भेद करना,

बिना तर्क की कसौटी में कसे किसी बात को मानना इन सारी चीजों का परित्याग करना होगा

तभी हम आगे बढ़ेंगे। इन सारी चीजों को एक आंदोलन के लहर के रूप में लगना होगा। 

khortha for JSSC
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