बिहार में प्रांतीय प्रशासन
- बिहार में प्रमंडल की संख्या : 9
- बिहार में जिला की संख्या : 38
- बिहार में अनुमंडल की संख्या : 101
- बिहार में प्रखण्ड की संख्या : 534
- बिहार में पंचायतो की संख्या :
- बिहार में गाँवो की संख्या :
बिहार के प्रमंडल की सूची :
बिहार के जिलों की सूची :
- स्थानीय प्रशासन का तात्पर्य वैसे प्रशासन से है, जो नगर निगमों, सुधार न्यासों, नगरपालिकाओं, पंचायती राज संगठनों, महानगर पालिकाओं, क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों, छावनी बोर्डों आदि के रूप में नागरिक जीवन की सुविधाओं से संबंध रखता है ।
- शहरी क्षेत्र की कुछ प्रमुख संस्थाएँ निम्नवत् हैं :
- महानगर निगम
- नगर निगम
- नगरपालिका
- महानगर निगम : यह नगरीय शासन का शीर्ष निकाय है । इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है । महानगर निगम उस शहर में स्थापित किये जाते हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से ऊपर है । नगर निगम
- नगर निगम की स्थापना भी राज्य सरकार के विधायी अंग द्वारा की जाती है। नगर निगम उन शहरों में स्थापित किये जाते हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से कम किन्तु 10 लाख से ऊपर हो ।
- नगरपालिका – उन शहरों में जिनकी आबादी 10 लाख से कम और 5 लाख से अधिक है, नगरपालिका की स्थापना की जाती है ।
बिहार में स्थानीय स्वायत्त शासन ( नगरपालिकाएँ व योजना समितियाँ)
- नगरी क्षेत्र में स्थानीय स्वायत्त शासन की इकाइयों को सांविधानिक आधार प्रदान किया गया है । इसके तहत संविधान का भाग 9 (क) 1 जून, 1993 को प्रभावी हुआ ।
- इस भाग ने दो प्रकार के निकायों को जन्म दिया—
- (i) स्वायत्त शासन की संस्थाएँ और
- (ii) योजना समितियाँ ।
- नगरपालिका
- शहरी स्वायत्त शासन की संस्थाओं को ‘नगरपालिका’ का नाम दिया गया ।
- अनुच्छेद 243 थ ने प्रत्येक राज्य के लिए ऐसी इकाइयाँ गठित करना अनिवार्य कर दिया है।
- किन्तु यदि कोई ऐसा नगर क्षेत्र है, जहाँ कोई औद्योगिक स्थापना हेतु नगरपालिका सेवाएँ प्रदान कर रहा है या इस प्रकार किये जाने का प्रस्ताव है तो ऐसी स्थिति में क्षेत्र का विस्तार और अन्य तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् राज्यपाल उसे औद्योगिक नगर घोषित कर सकता है । ऐसे क्षेत्र के लिए नगरपालिका गठित करना आवश्यक नहीं है ।
- नगरपालिकाएँ मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं—
- नगर पंचायत — ऐसे क्षेत्र के लिए जो ग्रामीण क्षेत्र से नगर क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा है ।
- नगर परिषद्-छोटे नगर क्षेत्र के लिए ।
- नगर निगम बड़े क्षेत्र के लिए ।
नगरपालिकाओं का गठन
- नगरपालिकाओं के सदस्य साधारणतः प्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित होते हैं। राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका में प्रतिनिधित्व के लिए उपबंध कर सकता है ।
- सदस्यता के लिए आवश्यक है कि उम्मीदवार या प्रत्याशी-
- नगर प्रशासन में विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाला व्यक्ति हो ।
- लोकसभा, राज्यों की विधानसभा, राज्यसभा और विधानपरिषद् का सदस्य हो,
- अनुच्छेद 243 ध के अधीन गठित बोर्ड / समितियों का अध्यक्ष हो ।
- अध्यक्षों का निर्वाचन विधानमंडल द्वारा उपबंधित रीति से होता है ।
- तीन लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र में आने वाले दो या अधिक वार्डों के लिए ‘वार्ड समितियाँ बनाना आवश्यक माना गया है।
- राज्य विधानमंडल उनके गठन, क्षेत्र और वार्ड समितियों में स्थानों के भरे जाने के बारे में उपबंध करता है । राज्य विधानमंडल वार्ड समितियों के अतिरिक्त भी समितियाँ गठित कर सकता है ।
- जो व्यक्ति राज्य विधानमंडल के लिए चुने जाने के योग्य है वह नगरपालिका का सदस्य होने के योग्य होगा । ( अनुच्छेद 243 फ) इसमें सिर्फ एक बात में भिन्नता है कि नगरपालिका के लिए 21 वर्ष की आयु का व्यक्ति सदस्यता के लिए योग्य होगा, जबकि राज्य विधानसभा के लिए 25 वर्ष का होना आवश्यक है ।
- दलित-आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान है।
आरक्षण
- दलित आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान है।
- नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का प्रावधान है।
- यदि अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 30 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या
- 21 प्रतिशत है तो उनके लिए क्रमशः 30 प्रतिशत और 21 प्रतिशत स्थान आरक्षित होंगे ।
- बिहार में वर्ष 2007 से त्रि-स्तरीय पंचायतों की तरह नगर निगमों और नगर निकायों के सभी कोटि के पदों पर महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत तथा अति पिछड़े वर्ग के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।
- यह विधानमंडल पर छोड़ दिया गया है कि वह इस बात का निर्णय करे कि नगरपालिकाओं के अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण किस प्रकार होगा ।
अवधि व शक्तियाँ
- प्रत्येक नगरपालिका अपने पहले अधिवेशन की तारीख से 5 वर्षों की अवधि तक कार्य करती है। किन्तु उसका विघटन विधि के अनुसार अवधि की समाप्ति के पूर्व भी किया जा सकता है ।
- विघटन के पहले नगरपालिका को सुनवाई का अवसर दिया जाता है ।
- निर्वाचन अवधि ( 5 वर्ष) की समाप्ति के पूर्व नगरपालिका का गठन हो जाना चाहिए । > यदि नगरपालिका को उसकी अवधि के पहले विघटित कर दिया जाता है तो निर्वाचन विघटन की तारीख से 6 माह के भीतर हो जाना चाहिए। 5 वर्ष की पूरी अवधि की समाप्ति के पहले विघटित नगरपालिका जब पुनर्गठित की जाती है तो वह अवशिष्ट अवधि के लिए ही होगी। किंतु यदि शेष अवधि 6 माह से कम है तो निर्वाचन आवश्यक नहीं है ।
- राज्य विधानमंडल को यह शक्ति दी गयी है कि वे नगरपालिकाओं को ऐसी सभी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करे, जो स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में उनके कार्य के लिए आवश्यक हों (अनुच्छेद 243 ब ) ।
- नगरपालिकाओं को जो उत्तरदायित्व सौंपे जा सकते हैं, वे हैं—
- राज्य विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को कर, शुल्क, पथकर आदि उगाही करने, उनका संग्रह करने और उन्हें विनियोजित करने के लिए और प्राधिकृत कर सकता है। > राज्य सरकार द्वारा संगृहीत कर, शुल्क आदि नगरपालिकाओं को समानुदेशित किये जा सकते हैं ।
- राज्य की संचित निधि से नगरपालिकाओं को सहायता अनुदान भी दिया जाता है।
नगरपालिका वित्त आयोग
- राज्य सरकार द्वारा नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन करने तथा इस बारे में सिफारिश करने के लिए एक वित्त आयोग की स्थापना करने का प्रावधान है ( अनुच्छेद 243 म)।
योजना समितियाँ
- संविधान में 47वें संशोधन अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की है । इस संशोधन अधिनियम में यह कहा गया है कि प्रत्येक राज्य में दो समितियाँ – जिला स्तर परं जिला योजना समिति तथा प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर योजना समिति गठित की जायेगी ( अनुच्छेद 243 य घ और 243 य ङ ) ।
- राज्य विधान मंडल द्वारा समिति के गठन और उसमें स्थानों के भरे जाने के विषय में उपबंध किया जाता है । किन्तु उसके लिए आवश्यक है कि-
- जिला योजना समिति की दशा में कम-से-कम 4/5 सदस्य जिला स्तर पंचायत और जिलों की नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किये जाएँ । उनका अनुपात जिले में नगर और ग्राम की जनसंख्या के अनुपात में होगा ।
- महानगर योजना समिति की दशा में समिति के कम-से-कम 2/3 सदस्य नगरपालिकाओं के सदस्यों के सदस्य और नगरपालिका क्षेत्र में पंचायत के अध्यक्षों द्वारा अपने में से निर्वाचित किये जाएं। स्थानों का विभाजन उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में होगा ।
पटना नगर निगम
- बिहार सरकार ने 1922 ई० के नगरपालिका अधिनियम के अनुसार नगरपालिकाओं की स्थापना की है ।
- पटना नगर निगम की स्थापना 15 अगस्त, 1952 ई० को हुई ।
- पटना नगर निगम का एक महापौर (मेयर) तथा एक उपमहापौर (डिप्टी मेयर ) होता है । इनका कार्यकाल एक वर्ष का होता है। पटना नगर निगम का गठन निगम परिषद्, निगम समितियाँ तथा प्रमुख प्रशासकीय पदाधिकारी को मिलाकर हुआ है ।
- पटना नगर के आय का स्रोत विभिन्न प्रकार के कर, शुल्क एवं सरकारी अनुदान हैं ।
- उन्नयन न्यास – उन्नयन न्यास शहरों के विकास के लिए बनाये जाते हैं तथा नगरों के आधुनिकीकरण, सफाई, स्वास्थ्य, सौंदर्यीकरण तथा योजनाबद्ध निर्माण के लिए कार्य करते हैं।
- क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण – आज बड़े शहरों में योजनाबद्ध विकास का जिम्मा क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों ने ले लिया है। इनका कार्य शहरों का आधुनिकीकरण व चतुर्दिक विकास है ।
- अधिसूचित क्षेत्र समिति – इन समितियों की स्थापना उन छोटे-छोटे शहरों में की जाती है, जहाँ नगरपालिका व्यवस्था उपयुक्त नहीं समझी जाती है। अधिसूचित क्षेत्र समिति की स्थापना का उद्देश्य वहाँ बाद में नगरपालिका को स्थापित करना है । समिति उन सभी कार्यों को करती है जो नगरपालिका करती है ।
- छावनी बोर्ड – छावनी बोर्ड केन्द्रशासित क्षेत्र है तथा प्रतिरक्षा मंत्रालय के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है । देश में 63 छावनी परिषद् कार्यरत हैं । 1924 में छावनी अधिनियम पारित हुआ, जिसके अनुसार छावनी के प्रबंध के लिए छावनी परिषद् स्थापित करने की व्यवस्था की गयी ।
- आवास परिषद् – आवास परिषदों का गठन सार्वजनिक आवास की परियोजनाओं को तैयार करने और क्रियान्वित करने के लिए किया गया है ।
74वाँ संविधान संशोधन व बिहार
- नगरीय स्थानीय स्वशासन से संबंधित 74वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा नगरपालिका, टाउन एरिया तथा अधिसूचित क्षेत्र (नोटीफाइड एरिया) आदि स्थानीय निकायों में महिलाओं, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है । इस विधेयक द्वारा राज्य विधानसभाओं को नगर निकायों के लिए आर्थिक विकास योजना बनाने तथा कर एवं शुल्क की वसूली एवं उपयोग करने का अधिकार दिया गया है ।
ग्रामीण प्रशासन / पंचायती राज
- बिहार में ग्रामीण प्रशासन के प्रमाण प्राचीन काल से ही मिलते हैं ।
- भारतीय संविधान की धारा 40 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य का कर्तव्य है कि वह ग्राम पंचायतों का गठन करे ।
- 1956 में भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता समिति की नियुक्ति की, जिसके प्रतिवेदन के आधार पर पंचायती राज्य संगठनों को लागू करने की योजना को मूर्त रूप दिया गया ।
- बिहार सरकार ने सर्वप्रथम बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 पारित किया, जिसने 17 फरवरी, 1962 ई० को कानून का रूप ग्रहण किया। इस अधिनियम के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की स्थानीय संस्थाओं के लिए तीन इकाइयों : ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् का निर्माण किया गया ।
- ग्राम पंचायत – बिहार में ग्राम पंचायत प्रशासन की सबसे छोटी किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण इकाई है ।
- प्रथम पंचवर्षीय योजना में ग्राम विकास को एक स्वतंत्र क्षेत्र घोषित कर दिया गया तथा ग्राम विकास विभाग को बिहार पंचायती राज योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेवारी सौंपी गयी ।
बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1993
- भारतीय संसद द्वारा 73वां संविधान संशोधन विधेयक, 1992 के पारित हो जाने के आलोक में बिहार सरकार ने भी उसी के अनुरूप अपने राज्य में प्रशासन के विकेन्द्रीकरण के उद्देश्य से बिहार राज्य पंचायत राज अधिनियम, 1993 लागू किया । इस अधिनियम के अनुसार राज्य में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू करने की व्यवस्था है । मूल रूप से यह विधेयक बिहार में 1947 और 1961 के पंचायती राज विधेयक को निरस्त करके उसके स्थान पर लागू किया गया है।
- बिहार राज्य में ग्राम पंचायत के छह अंग हैं—
- ग्राम सभा,
- कार्यकारिणी समिति,
- मुखिया,
- ग्राम सेवक,
- ग्राम रक्षा दल
- ग्राम कचहरी ।
- ग्राम सभा – ग्राम सभा ग्राम पंचायत की विधायिका होती है। इसमें ग्राम या ग्राम समूह में रहनेवाले सभी मताधिकारी शामिल होते है
- बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के अनुसार, ग्राम सभा की बैठक समय-समय पर होगी, किन्तु किन्हीं दो बैठकों के बीच तीन महीने से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए ।
- ग्राम सभा के कुछ प्रमुख कार्य हैं— ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कार्यों को स्वीकृति देना, वार्षिक बजट, लेखा और लेखा परीक्षण रिपोर्ट को स्वीकृति देना, समुदाय सेवा, स्वैच्छिक श्रम विकास संबंधी कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं को स्वीकृति देना तथा कर संबंधी प्रस्ताव पर विचार करना और उसकी स्वीकृति देना ।
- किसी बैठक की गणपूर्ति (कोरम) ग्राम सभा के कुल सदस्यों के बीसवें भाग से पूरी होगी ।
- कार्यकारिणी समिति – प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यकारिणी समिति होती है । कार्यकारिणी समिति का प्रधान मुखिया होता है । मुखिया के अलावे कार्यकारिणी समिति के आठ सदस्य होते हैं ।
- मुखिया – मुखिया ग्राम पंचायत की कार्यपालिका का प्रधान होता है । वह कार्यकारिणी समिति की अध्यक्षता करता है और उसकी बैठकें बुलाता है
बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006
- 8 अप्रैल 2006 से लागू बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 में किये गए प्रावधानों के अनुसार-
- ग्राम सभा के प्रत्येक बैठक की अध्यक्षता संबद्ध ग्राम पंचायत का मुखिया या उसकी अनुपस्थिति में उप मुखिया करेगा।
- ग्राम पंचायत के कार्यों, स्कीमों और अन्य कार्य-कलापों, जो उस ग्राम से संबंधित हों, का पर्यवेक्षण करने और उनसे संबंधित रिपोर्ट बैठक में प्रस्तुत करने के लिए ग्राम सभा एक या अधिक निगरानी समितियाँ भी गठित कर सकेगी, जिसमें वैसे व्यक्ति रहेंगे जो ग्राम पंचायत के सदस्य नही हो ।
- मुखिया और उप मुखिया की पदावधि सामान्यतः पंचायत के सदस्य के रूप में उनकी पदावधि की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगी।
- मुखिया या उप मुखिया अपना पद त्यागने के लिए जिला पंचायत राज पदाधिकारी को स्वयं लिखकर र यागपत्र दे सकेगा।
- उप मुखिया के चुनाव में ग्राम पंचायत का मुखिया मतदाता होगा। निर्वाचन में मतों की बराबरी की स्थिति में परिणाम लॉटरी द्वारा निर्धारित किया जाएगा । प्रत्येक ग्राम कचहरी, यदि उसे किसी प्रवृत्त (लागू) विधि के अधीन विघटित न कर दिया जाए तो, अपनी प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख से पाँच वर्षों की अवधि तक बनी रहेगी और उससे अधिक नहीं । ग्राम कचहरी का सरपंच उस ग्राम पंचायत की मतदाता- सूची में नामांकित मतदाताओं के बहुमत द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुना जाएगा।
- ग्राम कचहरी की न्यायपीठ के किसी आदेश/निर्णय के विरुद्ध अपील ऐसे आदेश/निर्णय के पारित किये जाने के तीस दिनों के भीतर ग्राम कचहरी की पूर्ण न्यायपीठ के समक्ष दायर की जा सकेगी। ऐसे अपील की सुनवाई के लिए पूर्ण न्यायपीठ के गठन के प्रयोजनार्थ सात पची से गणपूर्ति होगी ।
- इस अधिनियम के आलोक में बिहार में पहली बार चुनाव मई-जून 2006 में दस चरणों में हुए । इसमें त्रिस्तरीय पंचायतों के स्थानों या पदों में सभी कोटियों में महिलाओं को 50% आरक्षण दी गई जो पहले 33% थी। ऐसा करनेवाला बिहार भारत का प्रथम राज्य है । अत्यंत पिछड़ा वर्ग (M.B.C.) का भी आरक्षण बढ़ाकर 20% कर दिया गया है। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को भी इसके आबादी के अनुरूप क्रमशः 16% एवं 1% आरक्षण पंचायतों में दी गई है। राज्य में 8463 पंचायत, 531 पंचायत समिति तथा 38 जिला परिषद् है ।
- त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं की कार्य अवधि 5 वर्ष की होगी ।
- उप मुखिया
- कार्यकारिणी समिति के सदस्य विहित रीति से अपने में से एक सदस्य को उप मुखिया निर्वाचित करते हैं । मुखिया कार्यकारिणी समिति के अनुमोदन से उप मुखिया को अपनी शक्ति सौंप सकता है । किन्तु उप मुखिया छह महीने से अधिक मुखिया के रूप में कार्य नहीं कर सकता । ग्राम सेवक
- प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यालय होता है, जो ग्राम सेवक के जिम्मे रहता है। ग्राम सेवक को पंचायत सेवक भी कहा जाता है । वह सरकारी कर्मचारी होता है तथा उसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है ।
- ग्राम सेवक ग्राम पंचायत के सचिव के रूप में कार्य करता है तथा वह मुखिया, सरपंच तथा ग्राम पंचायत के कार्य संचालन में सहायता करता है ।
ग्राम रक्षा दल
- बिहार पंचायती राज्य अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायतों को ग्राम रक्षा दल कायम रखने का अधिकार दिया गया है। ग्राम रक्षा दल का नेता ‘दलपति’ कहलाता है तथा इसकी नियुक्ति मुखिया और कार्यकारिणी समिति की राय से होती है ।
ग्राम कचहरी
- ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी की संज्ञा दी गयी है। इसके माध्यम से ग्रामीण जनता को न्याय मिलता है । भारतीय स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में ग्राम पंचायत ही एक ऐसी संस्था है, जिसको न्याय से संबंधित शक्तियाँ प्राप्त हैं ।
- मुखिया तथा कार्यकारिणी समिति का कोई भी सदस्य ग्राम कचहरी का सदस्य नहीं हो सकता है। ग्राम पंचायत के न्यायिक कार्यों के निष्पादन के लिए गठित ग्राम कचहरी में सरपंच समेत नौ पंचों की एक तालिका होती है। सरपंच एवं पंचों की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए की जाती है ।
पंचायत समिति
- बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 के अनुसार पंचायत समिति के शासन के चार मुख्य अंग हैं — पंचायत समिति, प्रमुख एवं उप प्रमुख, स्थायी समिति तथा प्रखंड विकास पदाधिकारी ।
- प्रमुख तथा उप प्रमुख
- पंचायत समिति अपने सदस्यों में से एक प्रमुख तथा एक उप प्रमुख पाँच वर्षों के लिए निर्वाचित करती है। यदि किसी ग्राम पंचायत का मुखिया प्रमुख या उप प्रमुख के पद पर निर्वाचित हो जाय, तो उसे मुखिया का पद खाली करना पड़ता है ।
- प्रखंड विकास पदाधिकारी
- बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम के अनुच्छेद 20 के अंतर्गत प्रत्येक प्रखंड के लिए राज्य सरकार लोक सेवा आयोग की अनुशंसा पर प्रखंड विकास पदाधिकारी की नियुक्ति करती है । वह पंचायत समिति काकार्यपालक पदाधिकारी और सचिव होता है ।
जिला परिषद्
- जिले में पंचायती राज प्रणाली की सर्वोच्च संस्था जिला परिषद् होती है । यह एक कानूनी संस्था है तथा पंचायत समिति की तरह यह भी कानूनी अधिकार व शक्तियाँ रखती है । इसके अंतर्गत जिले की सभी पंचायत समितियाँ आती है ।
- जिला परिषद् के चार प्रमुख अंग होते हैं – जिला परिषद्, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, स्थायी समितियाँ तथा जिला विकास पदाधिकारी / आयुक्त | जिला परिषद् के प्रमुख कार्यों में जिले की विकास संबंधी गतिविधियों में सरकार को परामर्श देना, पंचायत समितियों के बजटों का परीक्षण करना और उनको स्वीकृति देना तथा प्रखंड और जिला द्वारा तैयार विकास योजनाओं का समन्वय और परीक्षण करना आदि प्रमुख हैं ।
बिहार का प्रान्तीय प्रशासन
- प्रशासनिक दृष्टि से बिहार को 9 प्रमंडलों, 38 जिलों, 101 अनुमंडलों एवं 534 प्रखंडों में विभाजित किया गया है ।
राज्य सचिवालय
- बिहार का राज्य सचिवालय पटना में अवस्थित है, जो राज्य का प्रशासनिक केन्द्र है ।
- प्रत्येक विभाग का राजनीतिक प्रधान एक मंत्री होता है । प्रत्येक विभाग का एक सचिव होता है जो विभाग का प्रमुख अधिकारी होता है। प्रत्येक विभाग के सचिव को उनके कार्यों में सहायता पहुँचाने हेतु विशेष सचिव, संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव तथा अन्य अनेक अधिकारी एवं कर्मचारी होते हैं ।
- मुख्यमंत्री का भी अपना एक सचिवालय होता है। मुख्यमंत्री सचिवालय का प्रमुख मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव होता है ।
- यह सचिवालय मुख्यमंत्री को उनके कार्यों के सम्पादन में सहायता प्रदान करता है । ये सभी पद सामान्यतः वरिष्ठ भारतीय या बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से भरे जाते हैं ।
राज्य सचिवालय के कार्य
- सचिवीय सहायता : राज्य सचिवालय का महत्वपूर्ण कार्य है मंत्रिमंडल तथा उसकी विभिन्न समितियों को सचिवीय सहायता प्रदान करना ।
- सूचना केन्द्र के रूप में : राज्य सचिवालय सरकार से संबंधित आवश्यक सूचनाएँ मंत्रिमंडल तथा उनकी विभिन्न समितियों एवं राज्यपाल को प्रेषित करता है। मंत्रिमंडल की बैठकों में लिये गये निर्णयों की सूचना भी वह संबंधित विभागों को भेजता है ।
- समन्वयात्मक कार्य : विभिन्न सचिवीय समितियों का अध्यक्ष होने के नाते मुख्य सचिव विभागों के बीच समन्वय स्थापित करता है ।
- परामर्शदात्री कार्य : राजकीय सचिवालय मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को नीतियों के निरूपण एवं सम्पादन में परामर्श देता है ।
- मुख्य सचिव
- मुख्य सचिव सचिवालय का प्रधान होता है तथा यह भारतीय प्रशासनिक सेवा का कोई वरिष्ठतम श्रेणी का अधिकारी होता है। मुख्य सचिव सिविल सेवा का प्रधान माना जाता है अर्थात् वह राज्य की लोक सेवाओं का अध्यक्ष होता है ।
- वह राज्य सरकार का जनसम्पर्क अधिकारी होता है, जो अन्तर्राज्यीय सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार के मध्य प्रशासनिक संचार का माध्यम है ।
- मुख्य सचिव सरकारी तंत्र का मुखिया तथा मंत्रिपरिषद् का सलाहकार होता है। वह विभिन्न विभागों में समन्वय बनाये रखता है ।
क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाइयाँ
- प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से राज्य – प्रशासन को पाँच इकाइयों में बाँटा गया है-
- प्रमंडल
- बिहार राज्य में प्रमंडल क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाई का शीर्ष संगठन है ।
- कई जिलों को मिलाकर एक प्रमंडल बनता है ।
- आयुक्त / कमिश्नर प्रमंडल का उच्चतम अधिकारी होता है ।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बिहार में केवल 4 प्रमंडल थे—
- वर्ष 2000 तक राज्य में प्रमंडलों की संख्या 13 हो गई थी, किंतु 4 प्रमंडल नव-निर्मित झारखंड राज्य में चले जाने के कारण वर्तमान समय में बिहार में प्रमंडलों की संख्या 9 है ।
- जिला
- जिला क्षेत्रीय प्रशासन की महत्वपूर्ण इकाई है । एक या एक से अधिक अथवा कई अनुमंडलों को मिलाकर एक जिला का निर्माण होता है। जिलाधिकारी या कलेक्टर जिला का उच्चतम अधिकारी होता है ।
- जिला स्तर पर प्रशासनिक कार्यों का समन्वयन एवं कार्यान्वयन जिलाधिकारी का महत्वपूर्ण कार्य होता है । वर्तमान में जिलाधिकारी कानून एवं व्यवस्था के अतिरिक्त नागरिक अपूर्ति, राहत एवं पुनर्वास कार्यों के दायित्व का भी निर्वहन करता है ।
- अनुमंडल
- एक से अधिक अथवा कई प्रखंडों को मिलाकर एक अनुमंडल बनाया जाता है ।
- अनुमंडलाधिकारी (S.D.O.) अनुमंडल का सबसे बड़ा अधिकारी होता है ।
- प्रखंड
- ग्राम पंचायत
- ग्राम पंचायत बिहार में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई है। ग्राम पंचायत द्वारा गाँव का प्रबंध व सुधार का कार्य किया जाता है । प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक प्रधान होता है जो मुखिया कहलाता है ।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ग्राम कचहरी होती है जहाँ गाँव के आपसी झगड़ों का निपटारा किया जाता है ।
लोक सेवा आयोग
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अनुसार संघ के लिए एक संघीय लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग गठित करने की व्यवस्था की गई है।
- बिहार लोक सेवा आयोग लोक सेवकों के चयन के लिए प्रतियोगिता परीक्षा तथा साक्षात्कार का आयोजन करता है ।
- संविधानतः बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, जबकि व्यवहारतः यह नियुक्ति मंत्रिपरिषद् की सलाह से मुख्यमंत्री करता है ।
केन्द्र-राज्य संबंध
- भारतीय संविधान के अनुसार सरकार की शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है— (1) संघ सूची, (2) राज्य सूची और (3) समवर्ती सूची |
- राज्य सूची के महत्वपूर्ण विषय, जिन पर राज्य सरकार का अधिकार है, निम्नलिखित हैं- (1) कृषि (2) भूमि स्वामित्व ( 3 ) सिंचाई (4) मत्स्यपालन ( 5 ) सार्वजनिक स्वास्थ्य (6) पुलिस (7) कानून और व्यवस्था ( 8 ) स्थानीय शासन आदि ।
अन्यान्य
- भारतीय संघ का कोई भी राज्य विदेशी राष्ट्र या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन से सीधे ऋण नहीं ले सकता है ।
- दो या दो से अधिक राज्यों में बहने वाली नदियों या जलाशयों के जल के बँटवारे से संबंधित विवादों की मध्यस्थता संसद द्वारा किया जाता है ।
- केन्द्र-राज्य संबंधों पर विचार-विमर्श करने के लिए केन्द्र सरकार ने 1983 ई० में न्यायमूर्ति आर० एस० सरकारिया की अध्यक्षता में सरकारिया आयोग नियुक्त किया था ।
- संघ और राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों के वितरण के सम्बन्ध में सलाह देने के लिए
- राष्ट्रपति 5 वर्षों के लिए वित्त आयोग की नियुक्ति करता है ।
- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी सभापति थे ।
- हिन्दी के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ संसद के सदस्य भी रहे । 1956 ई० में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया ।
- संसद किसी भी राज्य का नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा किसी भी राज्य का क्षेत्र घटा या बढ़ा सकता है ।
- सम्प्रति भारतीय संघ में राज्यों की संख्या 28 तथा केन्द्रशासित क्षेत्रों की संख्या 7 है । संविधान की आठवीं अनुसूची में ‘मैथिली’ सहित 22 भाषाओं को सम्मिलित किया गया है । योजना आयोग संवैधानिक निकाय नहीं है ।
- प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है ।
- राजभाषा आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है ।
- राजभाषा आयोग में 22 सदस्य होते हैं ।