अमर चट्टान सर्ग Amar Chatan Sarg Damuderak Koran Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC
Damuderak Koran Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC
दामुदेरक कोराञ् शिवनाथ प्रमाणिक
khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC
KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC
दामुदेरक कोराञ्
दामुदर नदी की गोद में
अध्याय-5 : अमर चाटान
अर्थ – अमृत चटनी
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इस अध्याय में वन में एक साधु(धुमा ) से कमल और सरंची की भेंट होती है।
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वह साधु उन्हें एक औषधीय चटनी चाटने के लिए देता है।
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उस चटनी को चाटते ही ये दोनों स्वप्न लोक में विचरण करते हैं
अमर चाटान
नीम, असोक, महुवाक छाल
कोहेक बाकला गाछेक पात।
सतमुली, सिमइरेक सिकर
संजीवन सुने रोगेक बात ।।
अमर लता, लत गुलाँइच
घी कुँवइर, लजौनी घास।
थल कमल, अकंद धतुरा
तुलसी नात्र रोगेक बास ।।
मेंहदी, दुब, हरदी, पियाज
मचकंद फूल, नागर मोथा।
झगरिक जइर, बेलेक रस
कांदा करे रोगेक थोथा ।।
पाताल कोहड़ाक बड़ी गुन
सेवन करलें रोग साराइ।
हइरला, बेहरा, आँवलाक डरें
कफ, पीत्त, बात पाराइ।।
लत-पातं, जइर मोवाइर फूल फर बाकला छाल ।
खइलें मानुसेक बोल बाढ़े
रोगके करे एके गाल ||
धनंतरी, चरक, नागारजुन अयुरवेदेक भेला बइद।
बइद बनावे ओसध-पाती बिखधरोक बइद राखे गइद ।।
ओसध गुने काया बदले बयस मानुसेक बाढ़ल जाइ।
काया अमर हवे मानुसेक बोने ई सब पावल जाइ।।
ओसोध चोखाइल घाव निमराझार भेला मुदइ सेना।
सवँइ पाइ घाव सुखल
सरजुताइ गेल बोनेक सेना ।।
बापेक खंगटल राजमहल धरल हाथे कमलकेतू।
बनबासिक संगे लइ चलत
बोनेक धरम रइखा हेतू ।।
बिधवा मायेक बीर बेटी सरंची, कमल के संग दइ।
सोझाइल सगरट सभेक समाज
भागला बोनेक दइ मुदइ ।।
हदकल लुआठी हाथें लइ काजरी काठी अंधार राइतें।
घोड़ाक उपर कमल-सरंची
बोने आवथ गते।।
महल ले महुवाक बन पहरा देथ दुइयो झन
जोरियाक धारी, बाघेक सुइंधें गाबचाइ भालथ दुइयो झन ।।
मानुस तरी भुचुंग करिया एगो जीव चतनियाँ माइर।
पीसे-धंसे निजेक हाथें
एक टुपा जइर मोवाइर।।
महकुप अंधारे, हेर अंचभित हेरा-हेरी चौकीदारी।
बात फुटे नाय कमलेक मुँहे
सरंचिक उकित आँइख ठोरी।।
जीबेक पासे बीर सरंची चहँइट गेली गतें-गतें।
सादा भाल तरी मुँहे-मुड़े लखे, झोतरल चुइल गातें।।
लुआठिक रँफे हेइर साधु मुचकी हाँसी, हाँइस देल।
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नाँव धइर ओखरिक डाके
सरंची कमल हाइचक भेल ।।
मनेक भीतर खटक तावों करे टाटक जोदि मुदइ।
धनुक धरली हाथें सरंची
अंधारे तनी मलीन सुझाइ ।।
खदखदाई देल हाँइस बोनेक जोगी जटवाला।
“काँड़-धनुक राख बेटी हामें नाञ मोरे वाला।।
आव बेटी सरंची बाला करबो अमर तोहनिक काया।
तोहनी बाँचलें बोन बाँचत
बाँचत बोनेक थरम माया ।।
गरीब-दुख बोनेक मानुस जगतेक दलिदर सब नाज।
दुखी-गरीब बनावल गेल
सरगत हामर माटी-माज ।।
बोनेक आँइख सरची कमल दुइयों चाँद-सुरूज बोनेक।
दुइयो करम-धरम बोनेक
गोंड़-हाँथ दुइयो बोनेक ।।”
जाइन के आपन हित घोड़ा से कमल नाभल।
सुइन-वुइझ अड़गुड़ बात साधुकेर नजीके चलत।।
चुइलवालाक चाम चाकर चोख चोइख चनफनियाँ।
चेगराइ के चाटान चाटे
चकर चकर गमगमियाँ ।।
जोगिक मोह. अडगुड़ रैफ सोंढ़ मोंढ़ थुलथुल गात
पीसे घुसे चाटे साधु
नाञ टुटे ताव ओकर बात ।।
“तोहें के, हे साधुबाबा? कथिक साधनी पथल खोहें?
दामुदरेक कोरात्र गाजार बोने
चाटा चाटान कथिक तोहें?
तनी भरइस के सरंची बाला सवाल करली जोगी से।
जोगी बाबा उनिसासे
देला जबाब सरंची के।।
“अमर बूटी पिसों हामें चाटों हामें अमर-चाटान।
जंगली जीवेक रइखा खातिर
चाटा तोहनियों अमर चाटान ।।
हे कमल ! राजाक बेटी काया हमर बदइल गेल।
चिन्हें पाखें कइसे तोत्र
अइसने छोमास बीत गेल ||
आव ! बीर सरंली बाला गेले भुइल हामर नामा।
ओसध-पाती करम हामर
राजबइद हामें धुमा ।।
” राजबइद धुमा ! सुइन दुइयो हेरा-हेरी भेला।
टकटकी लागल दुइयो जनेक
गोड़े दुइयो पइर गेला ।।
“जेदिन तक दामुदरेक धार झारखंडे बोहत निराधार।
सेदिन तक तोहनिक काया रहतो अमर बोनेक सार ।।”
राजबइदेक असीस लइ सरंची बाला उकित करली
“कहाँ हल्हे राजबइद तोहें
मुदये जखन हमला करल?”
“पथल-खोहें बास हामर दिन-राइत एकाकार।
नाञ जानी हम कोनो मुदइ
रहलों साधनीं निराहार ।।
आइज अमावासियाक राती पइलों हम अमर-बेल ।
साधनी आइज टुटल हामर
अमर-चाटान बनल गेल ||
” जबाब दइ धुमा तखन बतर सिरें चाटान देला।
सरंची-कमल हाथ पाइत अमर-चाटान मुँहे लेला ।।
मुँहें जइसे चाटान गेल दुइयोक गात सिहइर गेला।
करमे-करमें दुइयो पेरमी
घोर नीदें नीदाइं गेला ।।
जगत गोटे पानी डुबल सँउसे जलाकर भइ गेल।
गाछ-पात, जीब-जन्तु
सभे पानी डुइब गेल ||
नाँव नाज आँधी-तुफानेक सीतह बयार बोहल जाइ।
साँत भेल जगत लीला।
सपुनेक लीला बुझा भाइ।।
साँत-सागरें नजइर चले। खाली पानीक अखइ भँडार।।
सँउसे समुदरें हेमाल पानी।
एकर नाञ ओर-पाधार।।
सागर कन्याक चंचल लहर। आवे चुपे-चुपे धारी।।
सोर माछ नियर खटक पइला
दौड़ल पाराइ माझारी ।।
माझ सागरें जलपरी नियर कखनु सरंची रगइद बुले।
कखनु उड़े, कखनु डूबे
कखनु कमल पँइर बुले ।।
गदगदाइ हाँसला जखन प्रेमी जुगल जोड़ी।
मोती झर-झर गिरे हाँसी
माछे करथ लुटा-लुटी।।
पानिक संगे-संगे खेलथ परकीरतिक दुइयो सयान छउवा।
हेमाल बतास बोहे लागल
चन्दन नियर गमकउवा ।।
सांत सागरेक उपरे-उपर सरंची-कमल उइड़ वुलथ।
राजबइद सागरेक उपर मानिक जोड़िक खोइज बुलथ ।।
सवइ आर ने जघक धइयार ने हित-मीतर-संगी।
दामुदरेक बानेक संगी।।
गते-गते उइठ गेल समुदरे एगो घुटु।
नजइर आवे बोनेक झार
घुटुक उपर लुटु -पुटु ।।
घुटुक उपरें खोंधा बनाइ सरंची कमलेक जोड़ी।
दुइयो बेगइत बास करथ
जल-हाँसेक जोड़ी।।
सिंगार रसें डुइब गेला सिंरिस्टिक नर-नारी।
सँवइ पाइ जाइल जनमल
झार-बोनेक माँझारी ।।
माघ मासेक हेमाल बातास भिनसरिये गातें परल ।
सरंची-कमलेक नींद टुटल
धुमाक नाञ आर पावल ।।
जे लखे देखली सरंची तइसने सपुन कमल देखल ।
दुइयो हेरे अड़गुड़ भाभे
धुमाक देखइक पछर रहल ।।
खानाक नाज तनिको तल-बीच सरंची देइख मुसइक देली।
लजाइ गेल कमलकेतू
आँखिक जोरें बात भेल ।।
कोराय सुतल आम बागें कमलकेतू लारू-पातु ।
नीर पिआवे दोने दोने
मात्र तरी सरंची करे हेतु ।।
बीतल कहनी मने परे
आरो कालेक बेटाक करम ।
परीखा कइर एके-एके
घटवाहा-बेटी भाभे धरम ||
अंकवाइर लेली सरंची-बाला
कमल, बनबासिक धरमी बेटा ।
सपनाक रसे मातला दुइयो
नाञ रहल तनिको चेठा।।
झार-बोनेक लत पात, जइर-मोवाइरेक एते गुन ।
अमर चाटान बने पारे, अमरित लखें एकर गुन ।।