भारत की मंदिर वास्तुकला/ Temple Architecture of India
- अति प्राचीन काल में मंदिर वेदी के रूप में खुले आकाश के नीचे बनाए जाते थे, जिसे ‘यान’ या ‘चौरण’ कहा जाता था।
- इसके ऊपर देव प्रतीक रखकर पूजा-अर्चना की जाती थी।
- मंदिर निर्माण के दूसरे चरण में वेदी के चारों ओर बाड़ बनाने की प्रथा प्रारंभ हुई, इसे ‘प्राकार’ कहा गया।
- स्थापत्य के विकास की दृष्टि से गुप्त काल को प्राचीन भारत के इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है।
- गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ
- मंदिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरों पर होता था।
- मंदिरों के चबूतरों तक पहुँचने के लिये सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं।
- मंदिर के भीतर एक चौकोर अथवा वर्गाकार कक्ष बनाया जाता था, जिसमें मूर्ति रखी जाती थी, इसे ‘गर्भ-गृह’ कहते थे।
- गर्भ-गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा-मार्ग बना होता था।
- मंदिर की सपाट छत पर शिखर बनाने की शुरुआत हुई।
- गुप्त काल के अधिकांश मंदिर पाषाण निर्मित हैं।
- केवल भीतरगाँव तथा सिरपुर के मंदिर ही ईंटों से बनाए गए हैं।
- पंचायतन’ शैली – जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा हुआ होता है तो इसे ‘पंचायतन’ रचना शैली का मंदिर कहते हैं।
- चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में 5वीं शताब्दी ईसवी में बनाए गा थे। स्थानीय भाषा में इसे ‘रथ’ कहते हैं
- इनका नाम पाँच पांडवों और द्रौपदी के नाम पर रखा गया है।
हिंदू धर्म मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया गया।
- नागर शैली
- द्रविड़ शैली
- बेसर शैली
नागर शैली
- विस्तार – हिमालय से लेकर विंध्य क्षेत्र तक
- आकर – आयताकार
- उत्तर भारतीय मंदिर शैली में मंदिर एक वर्गाकार गर्भ-गृह, स्तंभों वाला मंडप तथा गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर से संयोजित होता है।
- कभी-कभी वह पंचायतन प्रकार के होते हैं, जिसमें एक जगती के ऊपर मध्य में मुख्य मंदिर होता है और उसके चारों कोनों पर चार छोटे देवालय होते हैं।
- मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थापित होता है, जिसे ‘जगती’ कहते हैं
- जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी होती हैं।
- नागर शैली में बने मंदिरों के गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर होता है।
- यह प्रायः तीन उभारों से संयोजित होता है, जिसमें सबसे मध्य के उभार को ‘भद्ररथ‘ कहते हैं तथा सबसे किनारे वाले उभार का ‘कर्नरथ’ कहा जाता है।
- भद्ररथ तथा कर्नरथ के मध्य के उभार को ‘प्रतिरथ’ कहा जाता है।
- शिखर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग सबसे ऊपर लगा आमलक (अम्लसारक) होता है ।
- कालखंड – 7वीं से 13वीं शताब्दी तक
- क्षेत्र विशेष – उत्तर भारत की शैली, हिमालय से विंध्य पर्वत तक
- सबद्ध शासक/वंश –
नागर स्थापत्य की विशेषताएं:
- नागर शैली में शिखर अपनी ऊँचाई के क्रम में ऊपर की ओर क्रमशः पतला होता जाता है।
- मंदिर में सभा भवन और प्रदक्षिणा पथ भी होता था।
- शिखर पर आमलक की स्थापना होती है।
- वर्गाकार तथा ऊपर की ओर वक्र होते शिखर इसकी विशेषता है।
नागर शैली के मंदिर की संरचना
- संपूर्ण मंदिर का भार जिस पर रहता है, उसे ‘पाद-अधिष्ठान’ या ‘जगती पीठ’ कहते हैं।
- इसे सामान्य भाषा में ‘चबूतरा’ कहते हैं।
- मंदिर का भीतरी गुप्त क्षेत्र ‘गर्भ-गृह’ कहलाता है।
- मंदिर के आंतरिक विस्तृत क्षेत्र को ‘विमान’ कहते हैं।
- मंदिर के बाह्य विस्तृत क्षेत्र को ‘शिखर’ कहते हैं।
- मंदिर का ऊपरी गोलाई वाला भाग ग्रीवा या शुकनासिका है।
- मंदिर का सबसे ऊपरी हिस्सा ‘आमलक स्तूप’ है।
नागर शैली की उप-शैलियाँ
- नागर शैली संपूर्ण उत्तर भारत पर प्रभावी रही
- नागर शैली की उप-शैलियाँ
- उडिया उपशैली – ओडिशा में
- अंतर्वेदी उपशैली – उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली में
- खजुराहो उपशैली – मध्य प्रदेश में
- चालुक्य/सोलंकी उपशैली – गुजरात एवं दक्षिण राजस्थान में
- कश्मीरी उपशैली – कश्मीर में
- क्षेत्रीय शैलियों में बने मंदिरों के उपनाम
- ओडिशा में ‘कलिंग’,
- गुजरात में ‘लाट’
- हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’
बुंदेलखंड का स्थापत्य
- इसे ‘खजुराहो उपशैली’ भी कहा जाता है।
- यह उपशैली 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच रही, जिसे चंदेल शासकों ने संरक्षण प्रदान किया।
- मंदिर निर्माण में प्रयुक्त सामग्री
- पन्ना खदान से गुलाबी व मटमैले ग्रेनाइट एवं लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल
- खजुराहो उपशैली के मंदिरों में परकोटा का अभाव है
- यानी मंदिर चहारदीवारी में नहीं है।
- ‘उरूशृंग’ व ‘अंतराल’ बुंदेलखंड स्थापत्य की अपनी पहचान/विशेषता
- शिखर के ऊपर निकली हुई मीनारनुमा आकृति को ‘उरूशृंग’ कहते हैं।
- गर्भ-गृह और बरामदे के बीच के लंबे गलियारे को ‘अंतराल’ कहते हैं।
- खजुराहो के पश्चिमी समूह
- लक्ष्मण, कंदरिया महादेव, मतंगेश्वर, लक्ष्मी, जगदंबा, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश के मंदिर और वराह व नंदी के मंडप हैं
- खजुराहो के पूर्वी समूह
- ब्रह्मा, वामन, जवारी व हनमान मंदिर
- जैन मंदिरों में आदिनाथ, पार्श्वनाथ, आदिनाथ घंटाई मंदिर हैं।
- 1986 में खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में स्थान प्राप्त हुआ।
- खजुराहो के मंदिरों में कामसूत्र से संबंधित कामुक प्रतिमाओं का भी चित्रण है
कंदरिया महादेव का मंदिर (मध्य प्रदेश)
- खजुराहो के मंदिरों में सबसे श्रेष्ठ कंदरिया महादेव का मंदिर है।
लक्ष्मण मंदिर
- 930-950 ईसवी के मध्य, चंदेल वंश के शासक यशोवर्मन द्वारा निर्मित यह मंदिर हिंदू तथा जैन धर्म को सम्मिलित रूप से समर्पित है।
- भगवान विष्णु की त्रिमुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित की गई है।
- यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है।
- मंदिर मुख्यतः नागर व उड़िया शैली की वास्तुकला द्वारा निर्मित है।
- लक्ष्मण मंदिर खजुराहो शैली के मंदिर में शामिल है।
गुजरात का स्थापत्य
- गुजरात के स्थापत्य को ‘सोलंकी उपशैली, चालुक्य उपशैली’ या ‘मंडोवार उपशैली‘ भी कहा जाता है।
- इसके तहत हिंदू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ।
- अर्द्धगोलाकार पीठ और ‘मंडोवार’ गुजरात उपशैली की प्रमुख विशेषता है।
- गुजरात शैली के प्रमुख उदाहरण
- माउंट आबू का आदिनाथ मंदिर
- तेजपाल मंदिर
- सोमनाथ मंदिर – गुजरात
- मोढेरा का सूर्य मंदिर
- पालिताना के मंदिर
- माउंट आबू पर बने कई मंदिरों में संगमरमर के दो मंदिर हैं
- दिलवाड़ा का जैन मंदिर
- पाँच मंदिरों का एक समूह है।
- तेजपाल मंदिर (अर्बुदगिरि के बगल में)
- दिलवाड़ा का जैन मंदिर
- कुंभरिया के पार्श्वनाथ मंदिर
- इसमें राजस्थान के मकराना के काले और सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है।
- सोमनाथ मंदिर को सोलंकी शासकों की देन न मानकर गुर्जर-प्रतिहारों की देन माना जाता है।
दिलवाड़ा मंदिर समूह
- निर्माण:-11वीं-से13वीं. शताब्दी
- निर्माता:-वास्तुपाल एवं तेजपाल दो भाई
- स्थित – माउंट आबू , सिरोही जिला , राजस्थान
- माउंट आबू को ‘अर्बुदरान्य’ भी कहा जाता है |
- जिसका नाम नाग देवता ‘अर्बुदा’ के नाम पर पड़ा।
- दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में पांच मंदिर है।
-
- विमल वसाही मंदिर
- लुना वसाही मंदिर
- पीथालहर मंदिर
- खरतार वसाही मंदिर
- श्री महावीर स्वामी मंदिर।
- विमल वासाही मंदिर “प्रथम र्तीथकर(आदिनाथ/ऋषभदेव)’ को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है जो 1031 ई. में बना था।
- बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित ‘लुन वासाही मंदिर’ 1231 में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था।
माउंट आबू में अन्य स्थल
- 1. नक्की झील ( Nakki lake)
- 2. सनसेट पॉइंट (Sunset point)
- 3. टोड रोक (Tod rock) (मेंढक के आकार का चट्टान )
- 4 . गुरु-शिखर (Guru shikhar)
- गुरु शिखर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है।
- जिसकी ऊँचाई 1722 मीटर है
- गुरू दत्तात्रय मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो इस पर्वत के ऊपर स्थित है।
- 5 .अचलगढ़ (Achalgarh) (अचलगढ़ की पहाड़ियों)
गुजरात शैली
- मोढेरा का सूर्य मंदिर – गुजरात
राजस्थानी शैली
आबू पर्वत पर विमलशाही मंदिर
- राजस्थान का यह मंदिर आबू पर्वत पर बना है।
- माउंट आबू के मंदिरों का निर्माण सोलंकी शासक भीम सिंह प्रथम के मंत्री दंडनायक विमल शाह ने करवाया था।
- यह राजस्थान के जैन मंदिरों में अद्वितीय है।
- यह श्वेत संगमरमर पत्थर का बना है।
- इसके सामने पूरब की ओर 6 स्तंभों का मंडप है। इसके बीच में जैनियों के पवित्र पर्वतों का दृश्य बना है, जिसे समोसण कहा जाता है। उसके आगे विमल शाह का परिवार अंकित है।
- इसके तीन मुख्य अंग हैं
- 1. द्वारमंडप
- 2. अंतराल
- 3. गर्भ-गृह
ओसिया का जैन महावीर मंदिर – जोधपुर
- इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया था।
- गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित
- इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन 10वीं शताब्दी में इसकी मरम्मत करानी पड़ी
- यहाँ सीढ़ीनुमा आकृति पर मंडप बनाया गया, जिसे नलमंडप की संज्ञा दी गई।
- निर्माण शैली में नल का अर्थ ‘सीढ़ी’ होता है।
ओडिशा का स्थापत्य
- प्रचलन – 8वीं से 13वीं शताब्दी तक
- इसे ओडिशा के विभिन्न शासक वंशो शैल, सोम, भौम, पूर्वी गंग या चेदि गंग आदि वंशों से संरक्षण मिला ।
- ओडिशा के मंदिर मुख्यतः भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क में स्थित हैं।
- ओडिशा वास्तुकला की विशेषता
- देउल (गर्भ-गृह के ऊपर उठता हुआ विमान तल)
- जगमोहन (गर्भ-गृह के बगल का विशाल हॉल)
- नटमंडप (जगमोहन के बगल में नृत्य के लिये हॉल)
- भोगमंडप
- परकोटा तथा ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल शामिल है।
- भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर
- भुवनेश्वर का राजरानी मंदिर
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर
- पुरी का कोणार्क का सूर्य मंदिर
- कोणार्क के ब्लैक पैगोडा (सूर्य मंदिर)
- कटारमल सूर्य मंदिर – उत्तराखंड के अल्मोड़ा में
- अनंत वासुदेव मंदिर – 1278 में स्थापित ,भुवनेश्वर में
प्रमुख मंदिर
कोणार्क का सूर्य मंदिर – पुरी जिले में
- कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया है।
- इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के शासक राजा नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था।
- इसे यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में 1984 में रखा गया है।
- इसे ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहा जाता है।
- मंदिर को रथ का स्वरूप देने के लिये मंदिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिये बनाए गए।
- पहियों को खींचने के लिये 7 घोड़े बनाए गए।
- कुछ स्थानों पर खजुराहो की तरह कामातुर आकृतियाँ है।
- मंदिर की ऊँचाई 70 मी है।
लिंगराज मंदिर – भुवनेश्वर,ओडिशा
- लिंगराज मंदिर का निर्माण ययाति केसरी द्वारा 7वीं शताब्दी में किया गया था
- ययाति केसरी ने अपनी राजधानी जयपुर से भुवनेश्वर स्थानांतरित की।
- लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है।
- गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित मंदिर
पुरी का जगन्नाथ मंदिर
- यह 1110 ई. में बनाया गया था।
- मंदिर के ठीक सामने “एकाश्म गरुड़ स्तम्भ” को कोणार्क सूर्य मंदिर से लेकर गाड़ा गया है
मुक्तेश्वर मंदिर
- इसे ओडिशा वास्तुकला का रत्न कहा जाता है।
परशुरामेश्वर मंदिर – ओड़ीसा के भुवनेश्वर में
कश्मीर शैली तथा मार्तंड मंदिर
- मार्तंड मंदिर – अनंतनाग ,कश्मीर
- निर्माणकर्ता – ललितादित्य मुक्तापीड़
- यह सूर्य मंदिर है
पालकालीन स्थापत्य
- विक्रमशिला विहार
- ओदंतपुरी विहार
- जगद्दल विहार
- सोमापुर महाविहार (बांग्लादेश) – धर्मपाल द्वारा निर्मित
- सबसे बड़ा बौद्ध विहार
- 1985 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल
- नालंदा महाविहार – कुमारगुप्त द्वारा निर्मित
बेसर शैली
- नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं।
- विस्तार – विंध्याचल पर्वत से कृष्णा नदी तक
- बेसर शैली को ‘चालुक्य शैली’ भी कहते हैं।
- बेसर शैली के मंदिरों का आकार
- आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्धगोलाकार
-
बेसर शैली का उदाहरण
- वृंदावन का वैष्णव मंदिर, जिसमें गोपुरम बनाया गया है।
- होयलेश्वर मंदिर – हेलेबिड ,मैसूर
-
कालखंड – 8वीं से 14वीं शताब्दी तक
-
क्षेत्र विशेष
-
दक्कन भारत की शैली
-
विंध्य पर्वत से कृष्णा नदी तक की शैली
-
ये महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र में प्रभावी
-
-
सबद्ध शासक/वश –
-
मान्यखेत के राष्ट्रकूट
-
कल्याणी के चालक्य
-
देवगिरि के यादव
-
वारंगल के काकतीय
-
द्वारसमुद्र के होयसल
-
चालुक्यकालीन स्थापत्य
- यह नागर और द्रविड़ शैली की विशेषताओं से युक्त बेसर शैली है।
- यहाँ के मंदिरों में चट्टानों को काटकर मंदिरों का निर्माण देखने को मिलता है।
- ऐहोल में 70 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें रविकीर्ति द्वारा बनवाया गयामेगुती जैन मंदिरतथा लाढ खाँ का सूर्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध है।
- बादामी में मिली चार गुफाएँ
- शिव, विष्णु, विष्णु अवतार व जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ से संबंधित हैं।
- बादामी के भूतनाथ मंदिर
- बादामी के मल्लिकार्जुन मंदिर
- बादामी के येल्लमा के मंदिर
- पट्टदकल के विरूपाक्ष मंदिर
- संगमेश्वर मंदिर
- पापनाथ मंदिर
- पटटदकल के मंदिर
- इसे 1987 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
ऐहोल का मंदिर
- यह कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित है।
- ऐहोल मंदिर वास्तु में बौद्ध चैत्य का हिंदू मंदिर पर प्रभाव दिखता है।
- यहाँ का विशिष्ट मंदिर दुर्गा मंदिर है।
विरूपाक्ष मंदिर – हम्पी,कर्नाटक
- विरुपाक्ष मंदिर हम्पी में अवस्थित है।
राष्ट्रकूटकालीन स्थापत्य
- राष्ट्रकूट के स्थापत्य में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एलोरा नामक स्थल और मुंबई के निकट एलिफेंटा द्वीप पर स्थित एलिफेंटा की गुफाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- एलिफेंटा में बनी त्रिमूर्ति है, जो शिव के ही तीनों रूपों की है।
- कोंकणी मौर्यों के समय में एलिफेंटा द्वीप को ‘घारापुरी’ कहा जाता था।
- बाद में हाथी की एक विशाल प्रतिमा मिलने के कारण पुर्तगालियों ने इसे एलिफेंटा नाम दिया।
- ‘रॉक कट आर्किटेक्चर’ का बेहतरीन उदाहरण है -एलोरा की गुफाएँ।
- इन्हें 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया है।
- कैलाश गुहा मंदिर (गुफा संख्या-16)
- इसका तुलना एथेंस के प्रसिद्ध मंदिर ‘पार्थेनन’ से की गई है।
- एलिफेंटा की गुफाएँहिंदू (शिव) और बौद्ध धर्म को समर्पित हैं
- एलोरा की गुफाएँहिंदू, बौद्ध व जैन तीनों को समर्पित रहा है।
एलोरा का कैलाश मंदिर
- Aurangabad District, Maharashtra, India
- चालुक्यों के बाद राष्ट्रकूट उनके उत्तराधिकारी हुए।
होयसल शासकों का स्थापत्य
- होयसल शासकों की कला को कर्नाटक-द्रविड़ कला कहा जाता है।
- विस्तार – ऐहोल, बादामी और पट्टदकल के प्रारंभिक चालुक्यकालीन मंदिरों में
- होयसलों की स्थापत्य कला
- बेलूर का चिन्नाकेशव मंदिर – कर्नाटक
- हेलेबिड़ का होयसलेश्वर मंदिर – कर्नाटक
- सोमनाथपुर का केशव मंदिर – कर्नाटक
- इस शैली के मंदिर मैसूर में बने हैं।
- मंदिर योजना के चार अंग हैं
- 1. गर्भ-गृह (कोष्ठ)
- 2. अंतराल (सुखानसी)
- 3. स्तंभयुक्त वृहद् कक्ष (नवरंग)
- 4. स्तंभयुक्त खुला मंडप (मुख्य मंडप)
हेलेबिड का होयसलेश्वर मंदिर – कर्नाटक
- यह होयसल नरेश नरसिंह द्वारा 12वीं सदी में अपनी राजधानी ‘द्वारसमुद्र’ में बनवाया गया था।
- यह शिव मंदिर है।
लकुदी का काशी विश्वेश्वर मंदिर
द्रविड़ शैली
- द्रविड़ शैली की शुरुआत – 7वीं शताब्दी में
- विस्तार – कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक
- द्रविड़ मंदिरों का निचला भाग वर्गाकार और मस्तक गुंबदाकार होता है।
- द्रविड़ शैली की पहचान संबंधी विशेषता
- प्राकार (चहारदीवारी)
- गोपुरम (प्रवेश द्वार)
- वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भ-गृह (रथ)
- पिरामिडनुमा शिखर
- मंडप (नंदी मंडप)
- अष्टकोणीय मंदिर संरचना
- द्रविड शैली का प्रारम्भ – पल्लवों ने
- चोल काल द्रविड शैली कास्वर्णयुग
- विजयनगर काल में द्रविड शैली कापतन सुरु ।
- तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर (चोल शासक राजराज-I द्वारा निर्मित)
- यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल
- द्रविड़ शैली के अंतर्गत नायक शैली के उदाहरण
- मीनाक्षी मंदिर (मदुरै)
- रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु)
- रामेश्वरम् मंदिर
- कालखंड – 7वीं से 18वीं शताब्दी तक
- तीनों शैलियों में द्रविड़ ही सबसे ज्यादा दीर्घकालिक रही
- क्षेत्र विशेष – सुदूर दक्षिण भारत की शैली
- तमिलनाडु, केरल, दक्षिण आंध्र और दक्षिण कर्नाटक
- सबद्ध शासक/वश –
- पल्लव काल
- महान् चोल
- पांड्य
- विजयनगर
- नायक वंश
पल्लवकालीन स्थापत्य
- पल्लव काल के विकास की विभिन्न शैलि
- महेंद्र शैली (610-640 ई.)
- मामल्ल शैली (640-674 ई.)
- राजसिंह शैली (674-800 ई.)
- नंदिवर्मन-अपराजित वर्मन शैली (8वीं-9वीं शताब्दी)
- द्रविड शैली
- पल्लव शासक महेंद्रवर्मन के समय वास्तुकला में ‘मंडप’ निर्माण प्रारंभ हुआ।
- महाबलीपुरम् उर्फ मामल्लपुरम् नगर की स्थापना– राजा नरसिंहवर्मन ने की
- चिंगलपेट में समुद्र किनारे
- ‘रथ’ निर्माण का शुभारंभ किया।
- राजसिंह शैली के उदाहरण
- महाबलीपुरम के तटीय मंदिर
- अर्काट का पनमलाई मंदिर
- काँची के कैलाशनाथ
- बैकुंठ पेरूमल का मंदिर (भगवान विष्णु)
महाबलीपुरम् के रथ मंदिर (तमिलनाडु)
- इन मंदिरों का निर्माण नरसिंह वर्मन द्वारा 630ई. से 658 ई. के बीच चिंगलपेट,मद्रास में हुआ था।
- ये रथ मंदिर पर्वत को काटकर बनाए गए हैं।
- इनकी संख्या आठ हैं।
- 1. धर्मराज, 2. भीम, 3. अर्जुन, 4. सहदेव, 5. गणेश, 6. द्रौपदी, 7. पिंडारी. 8. वलैयंकटटै
- इन आठ रथों में द्रौपदी रथ एकमंज़िला और छोटा है
- बाकी सातों रथों को ‘सप्त पैगोडा’ कहा गया।
- ये मंदिरएकाश्मक रथ कहे जाते हैं।
- ये आग्नेय चट्टान से निर्मित हैं।
कांजीवरम् का वैकुंठ पेरूमल मंदिर (तमिलनाडु)
- पल्लवों के अधिकांश मंदिर शैव धर्म से संबंधित हैं।
कांजीवरम् का कैलाश मंदिर – Tamil Nadu
- राजसिंह ने राजसिंहेश्वर या कैलाशनाथ मंदिर की रचना कांजीवरम् में कराई।
- मुख्य मंदिर के पूरब में नारदेश्वर मंदिर है, जिसे महेंद्र वर्मन तृतीय व उसके पुत्र ने बनवाया था।
- यह शैव मंदिर योजना में शोर मंदिर के समान है।
- यह ग्रेनाइट का बना मंदिर है।
शोर मंदिर
- Mahabalipuram,Tamil Nadu,
- Creator: Narasimhavarman I, Pallava dynasty
चोलकालीन स्थापत्य
- द्रविड़ वास्तुकला या वास्तुशैली का प्रारंभ – पल्लव काल में हुआ
- द्रविड़ वास्तुकला का चरमोत्कर्ष चोल काल में देखने को मिला।
- इस काल को दक्षिण भारतीय कला का स्वर्णयुग कहा जा सकता है।
- चोल शासकों ने द्रविड़ शैली के अंतर्गत ईंटों की जगह पत्थरों और शिलाओं का प्रयोग किया।
- चोल इतिहास के प्रथम चरण (विजयालय से लेकर उत्तम चोल)
- श्री सुंदरेश्वर मंदिर – मदुरै
- बालसुब्रह्मण्यम मंदिर – कन्नूर (Kannur) भारत के केरल
- विजयालय चोलेश्वर मंदिर – तमिलनाडु में पुदुकोट्टई जिले
- कुंबकोनम का नागेश्वर मंदिर
- कदंबर मलाई मंदिर
- तंजावुर (तंजौर) में बृहदेश्वर मंदिर
- गंगैकोंडचोलपुरम् का शिव मंदिर- (राजेंद्र प्रथम का)
- दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर
- त्रिभुवनम का कंपहरेश्वर मंदिर
- चोलयुगीन मूर्तियों में नटराज की कांस्य प्रतिमा(तमिलनाडु में चिदम्बरम में) सर्वोत्कृष्ट है।
बृहदेश्वर मंदिर या राजराजेश्वरम् मंदिर – तंजौर, तमिलनाडु के
- शैव मंदिर
- दक्षिण मेरू के नाम से जाना जाता है
- चोल सम्राट राजराज चोल प्रथम (985-1012 ई.) ने बनवाया था है।
- मंदिर ग्रेनाइट से बना हुआ है।
- इसका शिखर गुमटीदार गुंबद के रूप में है, जो कि अष्टकोणीय है।
- 1987 में इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
विजयनगर
- विजयनगर काल (1336-1646 ई.) के स्थापत्य पर चालुक्य, चोल, पांड्य और होयसलों, का प्रभाव दिखता है।
- विजयनगर (हंपी)तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा है।
- विजयनगर दौर में एक नवीन मंडप का चलन आया, जिसे ‘कल्याण मंडप’ कहा गया।
- यहाँ मुख्य मंदिरों के साथ-साथ सहायक मंदिरों की श्रृंखला को जोड़ा गया, जिसे ‘अम्मनशिरीन’ कहा गया।
- लेपाक्षी मंदिर – आँध्रप्रदेश
- वीरभद्र मंदिर – आँध्रप्रदेश
- विजयनगर के मंदिर में इस्तेमाल हुए स्तंभ, संगीत का गुण रखते थे, इसलिये इसे संगीतात्मक स्तंभ भी कहा गया।
- प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मंदिर(कर्नाटक) इसका उदाहरण है।
- विजयनगर काल में मंदिरों में मूर्ति प्रतिष्ठापन में शासकों और उनकी पत्नियों की भी मूर्ति लगाई जाने लगी।
- हजाराराम मंदिर – हम्पी, कर्नाटक
- विरूपाक्ष मंदिर- कर्नाटक राज्य के हम्पी में तुंगभद्रा नदी के किनारे
- रघुनाथ मंदिर-
- नरसिम्हा मंदिर-
- सुग्रीव गुफा- हम्पी, कर्नाटक
- विट्ठल मंदिर-
- कृष्ण मंदिर-
- संगमेश्वर मंदिर – पट्टदकल, कर्नाटक
- महानवमी डिब्बा – हम्पी, कर्नाटक
- विजयनगर शासकों के दौर में नगरों की स्थापना
- विजयनगर उर्फ ‘हम्पी’ –
- हरिहर-बुक्का द्वारा स्थापित यह नगर कर्नाटक में है।
- ग्रेनाइट एवं क्लोराइट पत्थर से निर्मित शहर
- विद्यानगर
- नगलापुरम
- वेल्लोर
- विजयनगर उर्फ ‘हम्पी’ –
विजयनगर साम्राज्य के कलात्मक योगदान
- विजयनगर की कला को द्रविड़ कला कहा गया है
- एक हज़ार स्तंभों वाले मंडपों का निर्माण विजयनगर मंदिर कला का आदर्श स्वरूप था।
- स्तंभों का अत्यधिक इस्तेमाल विजयनगर शैली की अपनी विशेषता है, जिसे ‘बोदिगेई’ कहते हैं।
- हम्पी शहर (वर्तमान कर्नाटक) के ध्वंसावशेषों में अभी भी विजयनगर के सौंदर्य एवं कलात्मक तत्त्व को देखा जा सकता है
- विट्ठल एवं हज़ारा राम मंदिर इसके उदाहरण हैं।
मीनाक्षी अम्मन मंदिर तथा नायक शैली – मदुरई
- मीनाक्षी मंदिर को विश्व के सात अजूबों में नामित किया गया है।
- इसका निर्माण 17वीं शताब्दी के मध्य में तिरूमलाई नायक के काल में हुआ था।
- इस विशाल मंदिर में दो मंदिर भवन हैं
- सुंदरेश्वर मंदिर – शिव को समर्पित
- मीनाक्षी मंदिर – शिव की पत्नी समर्पित
- मीनाक्षी मंदिर को आदर्श मानकर श्रीरंगम (तिरूचिरापल्ली), तिरुवरूर, रामेश्वर तथा चिदंबरम् इत्यादि मंदिरों का निर्माण किया गया।
- दक्षिण भारतीय विकसित मंदिरों के तीन प्रमुख अंग हैं
- 1. गोपुरम्
- 2. स्तंभ तथा स्तंभयुक्त विशाल मंडप
- 3. पुष्कारिणी या स्नानागार