काली मिट्टी
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  • काली/रेगुर मृदा (Black / Regur Soil) – निर्माणलावा पदार्थो (बेसाल्ट चट्टान) के विखंडन से हुआ है। 
  • यह भारत की तीसरी प्रमुख मृदा है।
    • भारत के 5 .46 लाख वर्ग किलोमीटर में
  • इसका सर्वाधिक विकास महाराष्ट्र के ‘दक्कन ट्रैप’ के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में पाई जाती है। ।
  • यह मिट्टी कपास की खेती के लिये अधिक उपयोगी एवं विख्यात है ।
    • कपास के अतिरिक्त यह मृदा गन्ना, गेहूँ, प्याज और फलों की खेती करने के लिये अनुकूल है। 
  • अन्य नाम
    • ‘काली कपासी मिट्टी’ या ‘रेगुर’
    • ‘उष्ण कटिबंधीय चेरनोज़म’
    • ‘ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ’
    • करेल’ – उत्तर प्रदेश में
    • स्वतः जुताई वाली मृदा’
    • लावा मिट्टी 
  • काली मृदा गीली होने पर चिपचिपी हो जाती है तथा शुष्क होने पर इसमें बड़ी-बड़ी दरारें बन जाती हैं, जिससे इनकी स्वतः जुताई हो जाती है इसलिये इसे ‘स्वतः जुताई वाली मृदा’ के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इस मृदा की जलधारण क्षमता अत्यधिक होती है, जिसके कारण सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है।
  • शुष्क ऋतु में भी यह मृदा अपने में नमी बनाए रखती है।
  • ह्यूमस, एल्युमीनियम एवं लोहा के टाइटेनीफेरस मैग्नेटाइट (Titaniferous Magnetite) इस मिट्टी का रंग ‘काला’ होता है। 
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व जैव तत्त्वों की मात्रा कम होती है। 
  • लोहा,चुना , पोटाश, एल्युमीनियम, मैग्नीशियम कार्बोनेट की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। 
  • क्रेब्स के अनुसार , काली मृदा एक परिपक्व मृदा है।
  • भारत के 1.80 लाख वर्ग किलोमीटर में है।
  • मध्य प्रदेश की सभी प्रकार की मिट्टियों में काली मिट्टी का सबसे बड़ा हिस्सा (लगभग 47.6% है.
  • मध्य प्रदेश में काली मिट्टी मालवा पठार, नर्मदा- सोन घाटी और सतपुड़ा- मैकाल श्रेणी में पाई जाती है लोहा और चूने की अधिकता के कारण यह काले रंग की होती है