- अबुल हसन यमीनुद्दीन अमीर ख़ुसरो चौदहवीं सदी के लगभग अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली सल्तनत के 7 विभिन्न शासकों के दरबार में रहते थे) के प्रसिद्ध संगीतकार थे।
- तोता – ए – हिंद – निजामुद्दीन औलिया ने
- अमीर खुसरो का मकबरा – दिल्ली में
- अमीर खुसरो की रचना – ‘खजायन-उल-फुतूह’
- अमीर खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था। ये निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे। ये खड़ी बोली के आदि कवि कहे जाते हैं।
- मध्य एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफ़ुद्दीन के पुत्र अमीर ख़ुसरो का जन्म 1253 ई. में एटा (उत्तरप्रदेश) के पटियाली नामक कस्बे में हुआ था। इनका परिवार चंगेज़ खाँ के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन (1266-1286 ई.) के राज्यकाल में शरणार्थी के रूप में भारत आ बसा था।
- उन्होंने सन 1289 ई. में ‘मसनवी किरानुससादैन’ की रचना की।
- जलालुद्दीन खिलजी ने ख़ुसरो को ‘अमीर’ की उपाधि से विभूषित किया। ख़ुसरो ने जलालुद्दीन की प्रशंसा में ‘मिफ्त-उल-फ़तह’ नामक ग्रंथ की रचना की।
- जलालुद्दीन के हत्यारे उसके भतीजे अलाउद्दीन ने अमीर ख़ुसरो को ‘राजकवि’ की उपाधि दी।
- 1298 ई. से 1301 ई. तक की अवधि में उन्होंने पाँच रोमांटिक मसनवियाँ— ‘मल्लोल अनवर’, ‘शिरीन ख़ुसरो’, ‘मजनू लैला’, ‘आईन-ए-सिकंदरी’, और ‘हश्त-विहिश्त’ लिखीं। ये पंच गंज नाम से प्रसिद्ध हैं।
- ख़ुसरो ने दो गद्य ग्रंथों की रचना की—‘खजाइनुल फतह’, जिसमें अलाउद्दीन की विजयों का वर्णन है और ‘एजाजयेख़ुसरवी’ जो अलंकार ग्रंथ है।
- अलाउद्दीन के शासन के अंतिम दिनों में ख़ुसरो ने ‘देवलरानी ख़िज़्र खाँ’ नामक प्रसिद्ध ऐतिहासिक मसनवी लिखी।
- अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी कुतुबद्दीन मुबारकशाह के दरबार में भी ख़ुसरो ससम्मान राजकवि के रूप में बने रहे, यद्यपि मुबारकशाह ख़ुसरो के गुरु शेख निजामुद्दीन से शत्रुता रखता था। इस काल में ख़ुसरो ने ‘नूहसिपहर’ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें मुबारकशाह के राज्य-काल की मुख्य-मुख्य घटनाओं का वर्णन है।