बिहार के पर्यटन स्थल
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बिहार में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महत्व के स्थल 

  • महाबोधि मंदिर ( बोधगया)
  • सोनपुर का अंतर्राष्ट्रीय पशु मेला 
  • नालंदा महाविहार के अवशेष (नालंदा
  • शेरशाह का मकबरा (सासाराम ) 
  • रोहतास का किला (सासाराम ) 
  • मुंगेर का किला (मुंगेर
  • देव का सूर्य मंदिर (औरंगाबाद
  • विशाल का गढ़, अशोक स्तंभ (वैशाली
  • अशोक स्तंभ, लौरिया नंदनगढ़ ( पश्चिम चंपारण) 
  • केसरिया स्थित विश्व का सबसे ऊँचा बौद्ध स्तूप (पूर्वी चंपारण)
  • बिहारशरीफ स्थित बौद्ध विहार व मकबरे आदि 
  • राजगीर स्थित गर्म जल के कुंड एवं पुरातात्विक स्थल व चीजें 
  • बराबर की गुफाएँ एवं बराबर की पहाड़ियाँ (गया) 
  • पटना के अनेक प्राचीन व अन्य ऐतिहासिक स्थल 

बिहार के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल

नालंदा 

  • नालंदा प्राचीन काल से शिक्षा व ज्ञान का केन्द्र रहा है । आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद हैं जो नालंदा जिलान्तर्गत राजगीर से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।
  • नालंदा महाविहार के अवशेषों की खोज सर्वप्रथम पुरातत्वशास्त्री अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी । 
  • 7वीं शताब्दी में यहाँ स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में दुनियाभर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे । चीन से ह्वेनसांग, इत्सिंग (सातवीं सदी) तथा तिब्बत से लामा तारानाथ (नौवीं सदी) एवं धर्मास्वामिन (तेरहवीं सदी) जैसे छात्र नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने आये थे । 
  • ह्वेनसांग, जो इसी विश्वविद्यालय में विद्यार्थी और शिक्षक दोनों रूपों में रहे, ने नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तृत वर्णन किया है । 
  • नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं सदी ई० में कुमारगुप्त ने की थी । बुद्धगुप्त ने इसे अनुदान दिया था । 
  • पालवंशी शासक धर्मपाल ने इस महाविहार को 200 गाँव अनुदान में प्रदान किए। हर्षवर्द्धन के काल तक यह शिक्षा का एक अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र के साथ महायान दर्शन का केंद्र बन चुका था । 
  • यह विश्व का अपने प्रकार का प्रथम विश्वविद्यालय था, जहाँ प्रवेश परीक्षा ली जाती थी और उत्तीर्ण छात्रों को ही अध्ययन की अनुमति दी जाती थी । 
  • नालंदा को समुद्रगुप्त का एक ताम्रपत्र और यशोधर्मन के प्रस्तर स्तंभ अभिलेख के लिए भी जाना जाता है। 
  • यहाँ स्थित नव नालंदा महाविहार ‘ह्वेनसांग स्मारक’ के लिए प्रसिद्ध है। 12 फरवरी, 2007 को नालन्दा में निर्मित ह्वेनसांग स्मृति भवन के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए चीन के विदेशमंत्री ली चाउंग शिंग नालन्दा आये थे । इस भवन में ह्वेनसांग का अस्थिकलश स्थापित किया गया है । 
  • जुलाई, 2016 में इस्ताम्बुल (तुर्की) में हुई यूनेस्को की विश्व विरासत समिति की बैठक में लिये गए निर्णय के अनुसार नालंदा महाविहार को विश्व विरासत सूची में सांस्कृतिक स्थलों की श्रेणी में शामिल किया गया है । 

राजगृह (राजगीर

  • नालन्दा से 19 किमी तथा पटना से 103 किमी दक्षिण में स्थित राजगृह का प्राचीन नाम गिरिव्रज था । वर्तमान में इसे राजगीर के नाम से भी जाना जाता है, जो बिहार के नालंदा जिल में है । यह मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी थी । 
  • पुराणों के अनुसार चण्डप्रद्योत ने यहाँ मगध की राजधानी बसायी थी । 
  • महाभारत काल में जरासंध की तथा मगध नरेशों बिम्बिसार एवं अजातशत्रु की राजधानी राजगृह में ही थी । 
  • गया से 34 किमी की दूरी पर स्थित राजगीर को ‘राजा का घर’ भी कहा जाता है । यह हिन्दू, बौद्ध एवं जैनियों का एक प्रमुख धर्मस्थल है । 
  • महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों ने ही यहाँ वास किया। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहाँ की यात्रा की थी । 
  • राजगृह पाँच पहाड़ियों – विपुलगिरि, रत्नगिरि, उदयगिरि, सोनगिरि तथा वैभवगिरि के बीच बसा हुआ था। रत्नगिरि में बुद्ध का प्रिय निवास था, जो ‘गृद्धकूट’ के नाम से प्रसिद्ध था ।
  • महान् शिल्पी महागोविंद ने राजगृह नगर की निर्माण योजना बनायी थी ।
  • राजगृह के दर्शनीय स्थलों में – वेणुवन, करंद सरोवर, जरासंध का अखाड़ा, राजगीर की सुरक्षा के लिए बनाये गये विशाल दीवार के अवशेष, रज्जुमार्ग, जीवकाम्रवन, सोन भंडार गुफाएँ (संभवतः मौर्यकालीन), परवर्ती स्थलों में गुप्तकालीन मनियार मठ (सर्प – पूजा संस्कार से संबंधित), बिम्बिसार की जेल (जहाँ अजातशत्रु ने अपने पिता को बन्दी बनाकर रखा), मध्यकालीन सूफी संत मख्दुम शर्फुद्दीन याहया मनेरी का हुजरा (प्रार्थना करने की गुफा), गर्म जल कुण्ड आदि प्रमुख हैं। 
  • ‘सप्तपर्णी गुफा’ राजगृह का एक प्रसिद्ध स्थान है जहाँ 483 ई० पू० में अजातशत्रु के शासनकाल में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन सम्पन्न हुआ था । 
  • जैन धर्मावलम्बी राजगीर को अपने दूसरे तीर्थंकर मुनि सुब्रत का जन्म स्थान मानते हैं।
  • ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के ‘महावस्तु’ नामक एक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार इस नगर में 36 विभिन्न प्रकार के शिल्पों का केंद्र था । 
  • वैभवगिरि (वैभवा हिल) में स्थित गर्म जल कुंड में स्नान एवं रज्जु मार्ग ( रोप वे ) के माध्यम से प्रकृति के मनोरम दृश्यों का आनंद लेना यहाँ आने वाले पर्यटकों की प्राथमिकताओं में शामिल होते हैं । 
  • राजगीर में प्रत्येक तीसरे वर्ष ‘मलमास मेला’ लगता है तथा राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा हर वर्ष अक्टूबर माह के अंत में राजगीर नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है ।
  • यहाँ के घोड़ाकटोरा में हाल ही में उत्खनन कराये गये हैं। फिलहाल यहाँ एक आयुध कारखाना निर्माणाधीन है तथा एक पुलिस ट्रेनिंग महाविद्यालय प्रस्तावित है । 

वैशाली 

  • वैशाली विश्व की प्राचीनतम गणतंत्र तथा गणतंत्र के वर्तमान स्वरूप की जननी मानी जाती है । यह मुजफ्फरपुर से 37 किमी दूर दक्षिण- पश्चिम की ओर स्थित है । प्राचीन वैशाली के अवशेष वर्तमान वैशाली जिलान्तर्गत बसाढ़ नामक गाँव में पाये गये हैं । 
  • वैशाली का विकास लिच्छवियों ने किया । प्रसिद्ध वज्जिसंघ की राजधानी वैशाली थी ।
  • वैशाली जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • ‘महावस्तु’ से ज्ञात होता है कि गौतम बुद्ध लिच्छवियों के निमंत्रण पर वैशाली गये थे । आम्रपाली यहाँ की राजनर्तकी थी, जिसने महात्मा बुद्ध के प्रभाव में आकर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था । 
  • द्वितीय- बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में 383 ई० पू० में हुआ था । 
  • अशोक स्तम्भ, राजा विशाल का गढ़, मीरांजी की दरगाह, कमल वन, हरिकटोरा मंदिर, बावन पोखर मंदिर, बौद्ध स्तूप आदि यहाँ के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं।
  • गुप्तकाल में नालंदा आदि स्थानों से वैशाली में श्रेष्ठियों, सार्थवाहों, प्रथम कुलिकों आदि का आवागमन होता था । इनकी मोहरें शिल्पियों की संघटनात्मक गतिविधियों को प्रदर्शित करती हैं।
  • यहाँ हुए उत्खननों में काले और लाल रंग के मृदभांड, लोहे के औजार मिले हैं। यहाँ से गुप्तकालीन मूर्तियों तथा गुप्तकालीन लिपि में उत्कीर्णित मोहरें भी मिली हैं । 

कोल्हुआ (आदर्श स्मारक)  

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 2015 में पटना से करीब 65 किमी दूर स्थित वैशाली  के कोल्हुआ को भारत के 25 आदर्श स्मारकों में चुना गया है । 
  • मौर्य सम्राट अशोक ने यहाँ अखंड, पॉलिश्ड बलुआ पत्थर का स्तंभ बनवाया था । इसमें स्तंभ पर बने वास्तविक आकार के शेर को देखा जा सकता है ।
  • इस स्थान को वज्जी महासंघ की राजधानी के साथ विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र भी माना जाता है।
  • यहाँ 1989-90, 1992-93 और 2010- 11 में मिले प्रथम काल के उत्तर कृष्ण मर्दित मृतभांड, द्वितीय काल के सुंगा- कुसना (पहली शताब्दी से दूसरी और तीसरी शताब्दी तक), तृतीय काल के गुप्त और गुप्त बाद के अवशेष ( चौथी शताब्दी से छठवीं और सातवीं शताब्दी तक) को भी देखा जा सकता है। (स्रोत : दै. भास्कर 12.02.2015) 

रैलिक स्तूप (Rallik Stupa)

  • रैलिक स्तूप भगवान बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने देश के आठ मौलिक स्तूपों में से एक है । बुद्ध के अस्थि अवशेष को आठ भागों में बाँटा गया, जिनमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को मिला था तथा शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्य, अल्कप्प के बुलि, समग्राम के लिए, दीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे । 

कुण्डग्राम 

  • कुण्डग्राम ज्ञातृक गणराज्य था, जो वज्जिसंघ का सदस्य था । सिद्धार्थ ज्ञातृक संघ के प्रमुख थे। इनके पुत्र महावीर थे, जो जैन धर्म के 24वें एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हुए । >540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम या कुण्डलग्राम (वैशाली के निकट) में महावीर का जन्म हुआ था ।
  • बिहारशरीफ 
    • पटना से 64 किमी0 दूर स्थित बिहारशरीफ नालंदा जिला का मुख्यालय है तथा प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है । 
    • पालवंशीय शासक धर्मपाल ने 8वीं सदी ई० में यहाँ ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, जिसे तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने करीब 1198 ई० में नष्ट कर दिया । इसके आसपास फैले विहारों के कारण तुर्कों ने इसे ‘अर्जे बिहार’ (विहारों की भूमि ) कहा । तुगलक काल में यह बिहार की राजधानी थी । 
    • शेरशाह द्वारा 1541 ई० में राजधानी पटना ले आने के बाद बिहारशरीफ का महत्व घटने लगा । 
    • यहाँ 13वीं सदी में निर्मित मलिक इब्राहिम ( मलिक बया ) का मकबरा पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है तथा प्रसिद्ध सूफी संत मख्दुम शर्फुद्दीन याहया मनेरी की दरगाह भी है। 
  • चिरांद 
    • चिरांद बिहार के छपरा जिले में स्थित है । 
    • यहाँ हुए उत्खननों से पाँच सांस्कृतिक चरण प्रकाश में आये हैं— 
      • चरण-I- नवपाषाण 
      • चरण II – ताम्रपाषाण
      • चरण III –  नार्दर्न ब्लैक पॉलिड वेयर (NBPW) 
      • चरण IV – ई० पू० पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी ईस्वी सन्
      • चरण V –  उत्तर ऐतिहासिक / पूर्व मध्यकाल
  • इस स्थान से प्राप्त वस्तुओं में हड्डी के औजार और अलंकृत बर्तन, हड्डी के आभूषण, खुले चूल्हों सहित एक गोलाकार फर्श, खंभे गाड़ने के गड्ढे, जले हुए चावल, गेहूँ, जौ, मूंग और मसूर के दाने तथा चावल के छिलके के छापों सहित मिट्टी के टुकड़े आदि प्रमुख हैं, समय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति एवं कृषि की ओर संकेत करते हैं ।
  • यहाँ से लोहे की वस्तुएँ, जानवरों की खुली कब्रें और हड्डी से बने वाणाग्र दूसरे चरण में प्राप्त हुए हैं । 
  • चरण IV में यहाँ कुषाण काल का एक बौद्ध विहार तथा तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं ।

लौरिया – नंदनगढ़ एवं लौरिया – अरेराज 

  • पश्चिमी चम्पारण जिला में स्थित लौरिया – नंदनगढ़ अशोक के स्तंभ के लिए प्रसिद्ध है । 
  • अशोक के प्रथम छह स्तंभ – लेख उत्तर बिहार में लौरिया – नंदनगढ़, लौरिया अरेराज और रामपूर्वा से प्राप्त हुए हैं । 
  • प्रथम स्तंभ लेख में धम्म के प्रति अपनी निष्ठा, दूसरे स्तंभ – लेख में धम्म के गुणों, तीसरे स्तंभ – लेख में प्रजा को अपनी अच्छाइयों और बुराइयों की चेतना रखने, चौथे स्तंभ लेख में राजुक नामक अधिकारियों के कार्यों, पाँचवें स्तंभ लेख में पशु-पक्षी वध को नियंत्रित करने तथा छठे स्तंभ- लेख में धम्म प्रचार हेतु उपाय और सभी धर्मों के प्रति अपनी श्रद्धा का उल्लेख अशोक ने किया है। 
  • उत्खनन के क्रम में यहाँ एक बौद्ध स्तूप, सिक्के और अनेक मृदभांडों के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
  • कुषाणकाल में संभवतः यहाँ एक मुद्रालय भी था । गुप्तोत्तरकाल में इस नगर की समृद्धि का अंत हुआ । 

रामपूर्वा 

  • बिहार -नेपाल सीमा के निकट स्थित रामपूर्वा से दो अशोक स्तंभों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । 
  • ये स्तंभ मौर्यकालीन वास्तुकला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । इनके पत्थरों की चमक विशेष आकर्षण रखती है । 
  • इन स्तंभों के शीर्षभाग पर पशुओं (एक पर सिंह और एक पर सांड) की आकृतियाँ बनी हैं । इन स्तंभों पर कोई अभिलेख नहीं है । 

बोधगया 

  • गया से 14 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है बोधगया । यहीं पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस वृक्ष को ‘बोधिवृक्ष’ तथा इस स्थान को ‘उरुवेला’ कहा जाता है । 
  • सम्राट अशोक ने यहीं से पीपल के नन्हें पौधे श्रीलंका भिजवाये थे । 
  • बोधगया के निकट निरंजना नदी बहती है, जहाँ भगवान बुद्ध ने स्नान किया था । 
  • यहीं महाबोधि मन्दिर है, जहाँ भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है। भगवान बुद्ध के जन्म के लगभग 2,600 वर्ष बाद यूनेस्को ने जुलाई, 2002 में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर को ‘विश्व विरासत’ घोषित किया । 
  • 1,400 साल पुराने 180 फुट ऊँचे इस मंदिर को यूनेस्को ने पुरातात्विक चमत्कार माना है । 
  • ‘अनीमेशलोचन चैत्य’ इसी महाबोधि मन्दिर के निकट स्थित है, जहाँ ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध एकटक देखते खड़े रहे थे ।
  • ‘चन्कामन’ एक उठा चबूतरा है, जहाँ भगवान बुद्ध ऊपर-नीचे टहले थे, यह जानने को कि यह ज्ञान विश्व को दिया जाए अथवा नहीं । यहीं पर एक विशाल धर्मचक्र अथवा विधिचक्र के साथ तिब्बती मठ स्थित है ।

गया 

  • फल्गु नदी के किनारे बसा गया बिहार का एक प्रमुख ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है । 
  • यहाँ स्थित विष्णुपद मंदिर का निर्माण इन्दौर की रानी अहिल्याबाई ने करवाया था । 
  • गया में कुषाण और गुप्त काल का निर्माण कार्य देखने को मिलता है ।  
  • समुद्रगुप्त के समय श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने गया में एक विहार का निर्माण कराया था ।
  • बंगाल के शासक शशांक ने इन धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया तथा बोधगया स्थित बोधिवृक्ष को भी नुकसान पहुँचाया । पाल शासकों के अधीन इन धार्मिक स्थलों का पुनः निर्माण हुआ । 
  • गया प्राचीनकाल में धातु के मार्ग पर अंतिम पड़ाव स्थल था । 

बराबर की पहाड़ी 

  • गया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बराबर पहाड़ियों के बीच बनी गुफाएँ मौर्यकालीन हैं और इन पर अशोककालीन अभिलेख अंकित हैं । 
  • इन्हें सम्राट अशोक द्वारा आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के निवास के लिए बनवाया गया था ।
  • गुफा – विहारों की शृंखला में यह प्राचीनतम है । अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12वें वर्ष में 
  • सुदामा गुहा आजीवक भिक्षुओं को दान में दी, इस गुफा में दो कोष्ठ हैं, दोनों कोष्ठों की भित्तियों और छतों पर शीशे जैसी चमकती हुई पॉलिश है । इससे ज्ञात होता है कि चैत्य घर का मौलिक विकास अशोक के समय में ही प्रारंभ हो गया था । 
  • > यहाँ पर अशोक के तीन और उसके पुत्र दशरथ के तीन लघु शिलालेख सुरक्षित हैं ।
  • इन गुफाओं में करण चौपर, सुदामा गुहा, लोमस ऋषि की गुफा और विश्व झोपड़ी प्रमुख हैं। 
  • गया जिलान्तर्गत बराबर तथा नागार्जुनी पहाड़ियों से मौखरी वंश के भी तीन लेख प्राप्त हुए हैं ।

सोनपुर (गया) 

  • बिहार के गया जिले में स्थित सोनपुर (या सोनापुर) से नवपाषाण युगीन अनेक साक्ष्य मिले हैं। 
  • उत्खननों में यहाँ से 400 ई० पू० की एक कुल्हाड़ी प्राप्त हुई है । 
  • काले व लाल मृद्भांडों के प्रयोगकर्ताओं की संस्कृति के तत्व, जैसे – चित्रहीन तथा चित्रित काले व लाल मृदुद्भांड, लघु पाषाण उपकरण और चावल की खेती आदि के प्रमाण सोनपुर में मिले हैं। सोनपुर से लगभग 700 ई० पू० के जले हुए चावल के दाने भी मिले हैं। 

मुंगेर 

  • पाल शासक देवपाल ने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया। 
  • 1533-34 में शेरशाह ने मुंगेर पर अधिकार कर लिया, जबकि 1563 में अकबर ने मुंगेर को जीतकर मुगल साम्राज्य का अंग बना लिया । 
  • अंग्रेजों के हस्तक्षेप से मुक्त रहने के उद्देश्य से मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटा कर मुंगेर में स्थापित की ।  
  • अकबर ने बिहार विजय के बाद मुंगेर में किले का निर्माण करवाया था, जिसका जीर्णोद्वार मीर कासिम ने करवाया । 
  • मुंगेर में ब्रिटिश काल में ब्रिटिश सेना की छावनी थी । यहाँ पर अंग्रेज सैनिकों ने वेतन एवं भत्तों की मांगों को लेकर विद्रोह किया । इस विद्रोह को ‘श्वेत सैनिक विद्रोह’ कहा गया । इस विद्रोह के कारण यहाँ सैन्य छावनी भंग कर दी गई। 
  • सम्प्रति मुंगेर सिगरेट फैक्ट्री और बन्दूक कारखाना के लिए भी प्रसिद्ध है । 

पावापुरी 

  • पावापुरी नालंदा जिला में स्थित है । यह जैन धर्मावलम्बियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • पावापुरी में महावीर स्वामी ने अंतिम उपदेश दिया और यहीं पर उनका निधन भी हुआ था।
  • यहाँ का जल मंदिर संगमरमर की एक सुंदर इमारत है जो झील के मध्य स्थित है । विक्रमशिला 
  • विक्रमशिला भागलपुर जिला में स्थित है । यह पाल काल में शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र था । 
  • यहाँ पर विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल ने की थी । इसके अवशेष अंतीचक से मिले हैं । 
  • तुर्कों के आने के पश्चात् (बख्तियार खिलजी के आक्रमण के परिणामस्वरूप) इस विश्वविद्यालय का पतन हो गया । 

अंग 

  • प्राचीन काल में अंग एक महाजनपद था । इसकी स्थापना अंग नामक राजा ने की थी ।
  • महाभारत व पुराणों के अनुसार इसकी राजधानी चंपा का प्राचीन नाम ‘मालिनी’ था । 
  • अंग का मगध से हमेशा संघर्ष चलता रहता था । अंग का सबसे प्रसिद्ध राजा ब्रह्मदत्त था, जिसने मगध नरेश भट्टियम को हराकर मगध पर अपना अधिकार कर लिया था । कुछ समय पश्चात् बिंबिसार ने ब्रह्मदत्त की हत्या कर के अंग पर अधिकार कर लिया । तत्पश्चात् बिंबिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग का उप-राजा बना दिया । 
  • अंग वर्तमान बिहार के भागलपुर जिले में स्थित था । 

कुम्हरार 

  • कुम्हरार पटना में स्थित है, जहाँ मौर्यकालीन स्थापत्य कला का सबसे पहला उदाहरण चंद्रगुप्त के प्रासाद का अवशेष मिला है । 
  • कुम्हरार की खुदाई में प्रासाद के सभा भवन के जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उससे पता चलता है कि यह सभा-भवन 80 खंभों वाला हाल था । सन् 1914-15 की खुदाई तथा 1951 की खुदाई में कुल मिलाकर 40 पाषाण स्तंभ मिले हैं, जो इस समय भग्न दशा में हैं ।
  • इस सभा भवन का फर्श और छत लकड़ी के थे। भवन की लंबाई 140 फुट और चौड़ाई 120 फुट थी । भवन के स्तंभ बलुआ पत्थर के बने हुए थे और उनमें चमकदार पॉलिश की गई थी । फाह्यान ने अत्यंत भाव – प्रवण शब्दों में इस प्रासाद की प्रशंसा की है । 
  • उत्खननों में यहाँ कुषाण काल की ईंटों की संरचना, सिक्के तथा गुप्तकालीन सिक्के मिले हैं। बुद्ध स्मृति पार्क 
  • भगवान बुद्ध के 2550वें महापरिनिर्वाण वर्ष एवं उनके ज्ञानप्राप्ति के 2600 वें वर्ष की स्मृति में निर्मित ‘बुद्ध स्मृति पार्क, पटना जंक्शन के समीप पुराने बांकीपुर सेंट्रल जेल परिसर में अवस्थित है | 2013 ई० में यहाँ पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संघ समागम आयोजित हुआ, जिसमें 17 देशों के बौद्ध भिक्षुओं ने पावन दलाई लामा की उपस्थिति में भाग लिया । 
  • 22 एकड़ भूमि पर लगभग 125 करोड़ रुपये की लागत से बने इस पार्क में ‘पाटलिपुत्र करुणा स्तूप’ नामक 200 मीटर ऊँचा बौद्ध परिक्रमा स्तूप के अतिरिक्त स्मृति संग्रहालय और ध्यान केन्द्र (मेडिटेशन सेंटर) भी है । 
  • बौद्ध धर्म के शीर्ष गुरु दलाई लामा द्वारा 27 मई, 2010 ( बुद्ध पूर्णिमा) को लोकार्पित इस पार्क में श्रीलंका के अनुराधापुरम से लाया गया बोधिवृक्ष का पौधा लगाया गया है तथा श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैण्ड, जापान और इंडोनेशिया से प्राप्त स्मृति अवशेष रखे गये हैं । 
  • बौद्ध स्मृति अवशेष को रखने के लिए स्तूप के भीतरी भाग में बुलेट प्रूफ कमरा तैयार किया गया है । 

पाटलिपुत्र 

  • प्राचीनकाल में पाटलिपुत्र का नाम कुसुमपुर अथवा पुष्पपुर था । 
  • पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य, नंदवंश, मौर्य साम्राज्य, गुप्त राजवंश की भी राजधानी रहा । 
  • आजकल यह पटना नाम से विख्यात है और बिहार राज्य की राजधानी है । 
  • अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र का किला बनवाया था, जबकि उसके पुत्र उदयिन ने पाटलिपुत्र नगर बसाया और इसे मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया – (460-444 ई० पू० ) । 
  • आधुनिक शोधों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र नाम का यह महानगर एक लम्बी पट्टी के रूप में कुम्हरार के आधा मील उत्तर में विस्तृत था । सम्राट् अशोक का राजमहल छोटी पहाड़ी से कुम्हरार तक 10 वर्ग किमी० – क्षेत्र में फैला था । – 
  • पाटलिपुत्र (पटना) में ही भिखना पहाड़ी स्थित है, जो एक कृत्रिम पहाड़ी है । इसकी ऊँचाई 
  • लगभग 12 मीटर है और यह 1 मीले के घेरे में विस्तृत है । यहाँ पटना के नवाबों की रियासत थी ।
  • यहीं सम्राट् अशोक ने सन्त की कुटिया रूपी पहाड़ी बनवाया था । अशोक ने ही यहाँ पंच पहाड़ियों का निर्माण कराया था । 
  • लगभग 185 ई०पू० में हिन्द-यूनानी शासक डेमेट्रीयस के अभियान से पाटलिपुत्र का विनाश हुआ । 
  • चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आये यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र के कुम्हरार, भिखना पहाड़ी, अगमकुआँ, बुलन्दीबाग, कंकड़बाग तथा अन्य निकटवर्ती स्थानों का वर्णन अपने यात्रा-वृत्तान्त में किया था। 
  • अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयभद्र (उदयिन) ने मगध की राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया था । 
  • मेगास्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र नगर की लंबाई साढ़े नौ मील और चौथाई डेढ़ मील थी, नगर के चारों ओर लकड़ी की दीवार बनी हुई थी । मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र को ‘पालिबोथ्रा’ कहा है और इसे समकालीन सूसा और एकबताना (ईरान के प्रसिद्ध नगर) से श्रेष्ठ बताया है । पटना में गत वर्षों में जो खुदाई हुई उससे काष्ठ निर्मित दीवार के अवशेष प्राप्त हुए हैं, बुलंदीबाग की खुदाई में प्राचीर का एक अंश उपलब्ध हुआ है । 
  • अशोक के शासनकाल में 250 ई० पू० में पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्मावलंबियों को पुनर्गठित करने के लिए बौद्ध परिषद् को तीसरा महासम्मेलन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगलिपुत्त तिस्स ने की । 
  • चीनी यात्री फाह्यान ने पाटलिपुत्र की काफी प्रशंसा की है । 
  • गुप्त साम्राज्य के पतन और हूणों के आक्रमण के पश्चात् इस नगर का पतन हो गया। सातवीं 
  • शताब्दी के चीनी यात्री युआन च्वांग ने पाटलिपुत्र की नष्ट अवस्था का वर्णन किया है । इस क्षेत्र का जीर्णोद्धार और वर्तमान पटना के निर्माण का श्रेय महान अफगान शासक शेरशाह को जाता है । 
  • तारीख़े-दाउदी के विवरण के अनुसार 1541 में शेरशाह ने इस नगर के सामरिक महत्व और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एक यहाँ मजबूत किले का निर्माण कराया। इस पर पाँच लाख रुपये खर्च हुए । 
  • शेरशाह ने बिहारशरीफ से हटाकर पटना को राजधानी बनाया । 
  • अकबर ने 1574 में पटना पर मुगल शासन स्थापित किया और 1580 में यहाँ पर टकसाल और मुद्रालय स्थापित किया । 
  • 1641 में पटना आने वाले मैनरीक नामक यात्री ने यहाँ की जनसंख्या दो लाख बताया है । मैनरीक के अनुसार यूरोपीय कम्पनियाँ इस नगर से व्यापार में सक्रिय थीं। 
  • औरंगजेब के पौत्र शाहजादा अजीम ने 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इस नगर का पुनर्निर्माण कराया तथा इसका नाम अजीमाबाद रखा । उसने इसे ‘द्वितीय दिल्ली’ बनाने का प्रयास किया । 1738-39 में नादिरशाह द्वारा दिल्ली में कत्लेआम के बाद कुछ समय के लिए अज़ीमाबाद का नगर ही उत्तरी भारत का सबसे महत्वपूर्ण शैक्षिक और सांस्कृतिक केन्द्र बन गया था । > 1912 में बिहार प्रांत के गठन के बाद इस नगर का विस्तार हुआ तथा इसका महत्व बढ़ा । पटना की नगर देवी पटनदेवी के नाम पर ही सम्भवतः इस नगर का नाम पटनों पड़ा । पटना में अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें तख्त श्री हरमन्दिर, गोलघर, खुदाबख्श खाँ का पुस्तकालय पटना संग्रहालय, इंदिरा गाँधी विज्ञान परिसर, तारामंडल, संजय गाँधी जैविक उद्यान आदि मुख्य हैं । 
  • आधुनिक पटना के मुख्य भवनों में राजभवन, नया – तथा पुराना सचिवालय भवन, बिहार विधानसभा तथा विधानपरिषद् भवन, उच्च न्यायालय भवन आदि प्रमुख हैं । 
  • पर्यटन की दृष्टि से पटना के अन्य महत्वपूर्ण – स्थानों में किला हाउस, शेरशाह का किला, गाँधीघाट, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, बिरला मन्दिर, वीर कुँवर सिंह पार्क, सदाकत आश्रम, महात्मा गाँधी सेतु आदि उल्लेखनीय हैं। 
  • [ ध्यातव्य : पटना में जल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 20 जुलाई, 2009 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा ‘गाँधी घाट’ पर ‘फ्लोटिंग रेस्तराँ एम वी गंगा विहार’ का उद्घाटन किया गया। इस जलयान पर लगभग 100 पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था है, जिसमें 48 सीटें वातानुकूलित हैं ।] 
  • इटली और भारत के पुरातत्वविदों द्वारा पाटलिपुत्र के अवशेष की खोज का प्रयास 
  • प्राचीन भारत की सबसे समृद्ध राजधानी पाटलिपुत्र के अवशेष खोजने के लिए अब इटली के पुरातत्वविदों ने पहल किया है । 
  • अभी तक पुरातत्वविद सिर्फ मौर्य वंश से संबंधित साक्ष्य ही ढूँढ पाये हैं, जबकि खुदाई के दौरान इससे पूर्व के हर्यक वंश, शिशुनाग वंश तथा नंद वंश से संबंधित और संभवतः महाभारत काल के भी कई महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं । 
  • सर्वप्रथम बुकानन के द्वारा प्राचीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष का सर्वे किया गया। बाद में अंग्रेज विद्वान सर एलेक्जेंडर कनिंघम त था बेंगलर द्वारा प्राचीन पाटलिपुत्र की पहचान की गई ।
  • 1892 ई० में अंग्रेज विद्वान वाडेल ने पटना का गहन सर्वेक्षण किया तथा 1894 में यहाँ उत्खनन करवाया । विख्यात विद्वान जी० सी० मुखर्जी ने भी 1896-97 में यहाँ पर उत्खनन करवाया। इसकी वृहद खुदाई सबसे पहले 1911-12 से लेकर 1914-15 में डी०वी० स्पूनर ने करवाई । इसके लिए वित्तीय सहयोग सर रतन टाटा ने प्रदान किया था । 
  • इस संदर्भ में बड़ी सफलता उस समय मिली जब डॉ० ए० एफ० अलेक्जेंडर तथा विजयकांत मिश्र के निर्देशन में 1951 से 1955 तक कुम्हरार की विस्तृत खुदाई करवाई गई। इस खुदाई के दौरान यहाँ अस्सी खम्भों वाला सभा मंडप व आरोग्य विहार का अवशेष मिला है । इसकी रपट 1959 में प्रकाशित हुई और इसने पूरे विश्व के सामने प्राचीन भारतीय समृद्धि का ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किया । 
  • हॉल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के ( अंचल – तीन के) अधीक्षण पुरातत्वविद डा० फणिकांत मिश्र के निर्देशन में पुनः इन स्थलों पर काम प्रारंभ किया गया  
  • इसके लिए इटली ने प्रो० विराल्डी को तथा भारत ने डॉ० फणिकांत मिश्र को इसका कार्य सौंपा है। इटली के पुरातत्व निर्देशक प्रो० विराल्डी बुद्धिस्ट सर्किट पर काम कर रहे हैं । उन्होंने अक्टूबर 2007 में नेपाल के ‘गोदियावा’ में उत्खनन करवाया है। 

हरमंदिर 

  • गुरुद्वारा तख्त श्री हरमंदिर पटना सिटी ( पटना ) में स्थित है जो सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के जन्मस्थल पर बना है । 
  • गुरुगोविन्द सिंह जी का जन्म 26 दिसम्बर, 1666 को पटना सिटी में हुआ था । 
  • यहाँ एक संग्रहालय है जिसमें गुरुगोविन्द सिंह से संबंधित अनेक अवशेष सुरक्षित हैं । इनमें गुरुग्रंथ साहेब की एक प्रति है, जिसमें गुरु के हस्ताक्षर हैं । 

पादरी की हवेली 

  • ‘पादरी की हवेली’ पटना का सबसे पुराना चर्च है । इसका निर्माण 1772 में फादर जोसेफ ने आरम्भ किया । 
  • पत्थर की मस्जिदपत्थर की मस्जिद पटना में स्थित है। इसका निर्माण जहांगीर के पुत्र शाहजादा परवेज के 
  • आदेश पर नजर खाँ द्वारा 1626-27 में कराया गया था । 
  • गोलघर – गोलघर पटना में गाँधी मैदान के समीप स्थित है तथा इसकी ऊँचाई 96 फीट है । इसका निर्माण 1786 में कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने अनाज रखने के उद्देश्य से करवाया था । > राज्य में पहले म्यूजिकल फाउंटेन लेजर शो का शुभारंभ यहीं पर 14 जनवरी, 2013 को हुआ । वृंदावन, अहमदाबाद और दिल्ली के अक्षरधाम के बाद यह देश का चौथा वाटर स्क्रीन पर लेजर शो है । 
  • गुरहट्टा
    • गुरहट्टी पटना सिटी में स्थित एक ऐतिहासिक मुहल्ला है जहाँ 3 जुलाई, 1857 को पीर अली के नेतृत्व में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का ज्वाला भड़का । 
    • पीर अली गुरहट्टा का ही रहने वाला एक छोटा-सा पुस्तक विक्रेता था । 
    • अंग्रेज अधिकारी लायल की हत्या के आरोप में पटना के अंग्रेज कमिश्नर टेलर ने पीर अली को फाँसी दे दी । 
  • सादिकपुरपटना में सादिकपुर एक मुहल्ला है, जहाँ वहाबी आंदोलन का केन्द्र था । 
  • बाँस घाट 
    • बाँस घाट पटना में गोलघर के समीप गंगा नदी के तट पर अवस्थित है । > यहीं राजेन्द्र घाट पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की समाधि है । 
  • शहीद स्मारक ( सप्तमूर्ति) 
    • शहीद स्मारक पटना स्थित बिहार विधानमंडल (पुराना सचिवालय) के प्रवेश द्वार के सामने है । > यह स्मारक भारत छोड़ो आंदोलन में शहीद होने वाले 7 शहीदों की याद में बनवाया गया है। 
  • सदाकत आश्रम 
    • पटना में स्थित सदाकत आश्रम वर्तमान में बिहार प्रदेश काँग्रेस पार्टी का मुख्यालय है । > प्रथम राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् यहीं पर रहे थे। > इसे मौलाना मजहरूल हक ने असहयोग आंदोलन के दौरान उपयोग हेतु प्रदान किया था । 
  • गुलजार बाग 
    • गुलजार बाग को मीर कासिम के भाई गुलजार अली ने बसाया था । 
    • गुलजार बाग के दक्षिण में प्रसिद्ध पटन देवी का मंदिर स्थित है। मुगल प्रांतपति राजा मान सिंह द्वारा इस मंदिर का निर्माण 1587-94 के दौरान करवाया गया था । 
  • मनेर 
    • मनेर पटना जिला में स्थित है । यह मध्य कालीन बिहार में सूफी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था । 
    • मनेर में मख्दुम शर्फुद्दीन याहया मनेरी तथा शाह दौलत की मजार है । 
    • जहांगीर के द्वारा नियुक्त प्रांतपति इब्राहिम खाँ काकर ने यहाँ एक मकबरे का निर्माण करवाया था, जो मुगल स्थापत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण है । 
    • मनेर में व्याकरण के विश्वविख्यात ज्ञाता पाणिनी रहते थे । 
  • चौसा 
    • चौसा बिहार की पश्चिमी सीमा पर बक्सर के समीप बसा एक ऐतिहासिक स्थान है जो कर्मनाशा नदी के तट पर अवस्थित है । यहीं पर 1539 ई० में शेरशाह ने मुगल सम्राट हुमायूँ को पहली बार हराया था। यह मुगलों की भारत में पहली किन्तु निर्णायक पराजय थी । (1540 के कन्नौज / बिलग्राम के युद्ध में हुमायूँ के पुनः पराजित होने से मुगल साम्राज्य का कुछ समय के लिए भारत में अंत हो गया ।) 
  • चम्पारण 
    • भारत की स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण का विशेष महत्व है । 
    • चंपारण में नील उत्पादक किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध गाँधीजी ने सत्याग्रह  का पहला सफल प्रयोग यहीं पर किया । 
    • 1916 में काँग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ । इस अधिवेशन में चंपारण की समस्या पर चर्चा हुई। यहीं पर राजकुमार शुक्ल ने किसानों की इस समस्या के समाधान हेतु गाँधीजी को चंपारण चलने का अनुरोध किया । 
    • गाँधीजी ने चंपारण आकर किसानों की दयनीय स्थिति को देखा और उन्हें तीनकठिया की समस्या से मुक्त करवाया । 
    • केसरिया (पू० चम्पारण) में खुदाई में विश्व का सबसे ऊँचा बौद्ध स्तूप मिला है । 
  • सासाराम 
    • सासाराम पटना से 193 किलोमीटर दूर दिल्ली-कोलकाता रेलमार्ग पर स्थित है । 
    • शेरशाह सूरी का प्रसिद्ध किला और मकबरा यहीं स्थित है। शेरशाह का किला 150 फीट ऊँचा है। इसके गुम्बद 72 फीट ऊँचे हैं। इसकी ऊँचाई ताजमहल (आगरा) से भी 12 फीट अधिक है । 
    • सासाराम नगर के पूर्व में चन्दनपीर पहाड़ी पर एक गुफा में अशोक के शिलालेख पाये गये हैं। इसमें अशोक द्वारा धम्म – यात्राओं की विस्तृत चर्चा मिलती है। पहाड़ी की चोटी पर एक मुसलमान फकीर की दरगाह है जिनके नाम से यह पहाड़ी प्रसिद्ध है। 
  • रोहतासगढ़ 
    • बिहार के मध्यकालीन स्मारकों में रोहतासगढ़ का विशेष महत्व है। यह क्षेत्र स्थानीय चेरो शासकों के अधीन था। इस पर शेरशाह ने उस समय अधिकार किया जब वह बिहार में अपनी सत्ता सुदृढ़ कर रहा था । 
    • शेरशाह ने हुमायूँ के साथ संघर्ष और उसके पूर्व बंगाल पर सफल अभियान के क्रम में बंगाल से प्राप्त धन को सुरक्षित रखने के लिए रोहतास के दुर्ग का ही उपयोग किया था। शेरशाह के राजनैतिक उत्कर्ष में रोहतास के दुर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रही । 
    • इस क्षेत्र में मुगल सत्ता की स्थापना के साथ ही रोहतासगढ़ मुगलों का एक महत्वपूर्ण सामरिक केन्द्र बना । 
    • किले के क्षेत्र में अकबर कालीन गवर्नर राजा मान सिंह द्वारा बनवायी गयी हवेली, मंदिर और अन्य स्मारक अभी भी सुरक्षित हैं । 
    • रोहतास में अनेक मंदिर भी स्थित हैं जिनमें रोहतासन मंदिर, हरिश्चन्द्र मंदिर, गणेश मंदिर और महादेव मंदिर प्रमुख हैं ।  
  • बक्सर 
    • बक्सर का बिहार के साथ-साथ भारतीय इतिहास में भी एक विशिष्ट महत्व है । 
    • यहाँ पर 1764 ई0 में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और 
    • बंगाल के विस्थापित नवाब मीर कासिम तथा अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ । 
    • इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और भारत में अंग्रेजों की सत्ता मजबूत हुई । 
  • चंपा 
    • चंपा आधुनिक चंपानगर है, जो बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है । 
    • चंपा, अंग महाजनपद की राजधानी था, जिसे मगध के शासक बिम्बिसार ने अपने राज्य में मिला लिया था । 
    • रेशमी वस्त्रों के उत्पादन का यह एक प्रमुख केंद्र था तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों को यहाँ से रेशमी वस्त्र निर्यात होते थे । 
    • जैन ग्रंथों के अनुसार यहाँ जैन तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म हुआ । 
    • यहाँ हुए उत्खननों से एक सुरक्षात्मक प्राचीर और डिजाइनों सहित उत्कृष्ट कोटि के उत्तरी काले परिष्कृत मृद्भांड मिले हैं। 
    • चंपा से शुंग – कुषाण काल के ईंटों से निर्मित आवास, मनके एवं आहत सिक्के प्राप्त हुए हैं । गुप्तकालीन तथा पाल शासकों के समय की टेराकोटा की कुछ वस्तुएँ एवं कांसे का सामान भी मिला है । 
    • पालि ग्रंथों एवं चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरणों में भी चंपा का उल्लेख मिलता है । 
  • जगदीशपुर 
    • आरा से लगभग 35 किमी० दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित जगदीशपुर 1857 के विप्लव के 
    • नायक बाबू कुंवर सिंह का जन्म – स्थल है । 
    • जगदीशपुर और आसपास के क्षेत्र से उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा था, जो लगभग एक साल तक चलता रहा । 
  • वनगाँव 
    • सहरसा से आठ किमी० पश्चिम में स्थित बनगाँव एक ऐतिहासिक गाँव एवं कोशी प्रमण्डल का एक प्रमुख पुरातात्विक स्थल है, जहाँ की खुदाई से अनेक पालकालीन सिक्के व अवशेष प्राप्त हुए हैं। 
    • यह परमहंस लक्ष्मीनाथ गोस्वामी नामक संत की कर्मस्थली के रूप में विख्यात है । 
    • बनगाँव में भगवती का एक मंदिर है, जिसमें देवी दुर्गा की एक पालकालीन मूर्ति है । 
    • इसके उत्तर में देवना नामक स्थान पर वाणेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है । 
    • बनगाँव के पश्चिम में स्थित कंदाहा में एक प्राचीन सूर्यमंदिर है । 
    • कुछ विशेषज्ञ इसमें स्थित मूर्ति एवं चित्रों में बौद्ध धर्म, भगवान बुद्ध एवं पालकालीन कला की झलक भी देखते हैं । 
    • 1917 ई० में यहाँ से प्राप्त मिट्टी के घड़े में चाँदी के आहत सिक्के, सोने की चिड़िया, ताँबे की चूड़ी और मनके मिले हैं। 
    • प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर, इतिहासकार डॉ० पी० एन० दास के अनुसार, इस स्थल का काल निर्धारण दूसरी सदी ई०पू० से दूसरी सदी ईस्वी तक किया गया है। 
  • देव या देवबर्नाक 
    • देव या देवबर्नाक गया से 20 किमी की दूरी पर औरंगाबाद जिला में स्थित है, जहाँ प्राचीन सूर्य मन्दिर स्थित है । यहाँ प्रतिवर्ष भव्य छठ पूजा आयोजित होता है । 
    • 1880 ई० में कनिंघम ने यहाँ से एक अभिलेख खोजा था, जिसमें परवर्ती तीन गुप्त शासकों के नाम मिलते हैं । लेख में सूर्य मन्दिर के लिए वरुणीक नामक गाँव दान देने का उल्लेख मिलता है । 

सूरजगढ़ा 

  • मुंगेर के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 25 मील की दूरी पर स्थित सूरजगढ़ा शेरशाह के राजनैतिक उत्कर्ष से जुड़ा है। 
  • 1536 में यहीं एक निर्णायक युद्ध में शेरशाह ने अपने प्रतिद्वन्द्वी नूहानी पठान सरदारों और उनकी सहायता कर रही बंगाल की सेना को पराजित कर बिहार में अपने राजनैतिक वर्चस्व को सुरक्षित कर लिया था । 
  • इसी युद्ध से उसके बंगाल – अभियान और तत्पश्चात् हुमायूँ के साथ निर्णायक संघर्ष की भूमिका बनी । 

अन्य प्रमुख स्थल 

  • ऐतिहासिक महत्व के अन्य स्थानों  में
    • चम्पारण स्थित केसरिया, (विश्व का सबसे ऊँचे बौद्ध स्तूप के अवशेष के लिए),
    • कहलगाँव ( बरारी गुफाओं और गुफा मंदिर के लिए), 
    • सुल्तानगंज (जहाँगीर कालीन प्रसिद्ध शिला के लिए ) प्रसिद्ध है । 
    • इनके अतिरिक्त मंदार पर्वत, सिमराँवगढ़ (कर्नाट शासकों की राजधानी, जो नेपाल की तराई  क्षेत्र में स्थित है ) आदि भी उल्लेखनीय ऐतिहासिक स्थल हैं ।