समास

 समास :

  •   ‘सम्’ (समीप) + ‘आस’ (बैठाना)  = समीप बैठाना
  • संक्षिप्त कर देना ही समास है।
  • दो या दो से अधिक पदों के साथ प्रयुक्त विभक्ति चिह्नों या योजक पदों या अव्यय पदों का लोप कर नए पद की निर्माण प्रक्रिया को समास कहते हैं।  
    • चक्र है पाणि में जिसके वह – चक्रपाणि
    • माल को ढोने वाली गाड़ी – मालगाड़ी
    • रेल पर चलने वाली गाड़ी – रेलगाड़ी
    • हस्त से लिखित – हस्तलिखित
    • देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
    • घोड़ों के लिए साल (भवन) = घुड़साल
    • सभा के लिए मंडप = सभामंडप
    • गुण से रहित = गुणरहित
  • समास शब्द का विलोम शब्द ‘व्यास’ होता है।

 

समास-विग्रह : 

  • किसी सामासिक पद को उसके सभी विभक्ति चिह्नों या योजक पदों या अव्यय पदों या परस्पर संबंध रखने वाले पदों के साथ लिखने को समास-विग्रह कहते हैं। 
  • जैसे – रेलगाड़ी –  रेल पर चलने वाली गाड़ी
    • रेलगाड़ी एक सामासिक पद है। 
    • इस सामासिक पद का समास-विग्रह रेल पर चलने वाली गाड़ी होगा।

 

समास के भेद 

  • समास की प्रक्रिया में दो पदों का योग होता है। 
  • दोनों पदों के योग से बनने वाले सामासिक पद में किसी एक पद का अर्थ प्रमुख होता है। 
  • खोरठा में समास के भेद 
    • 1. अव्ययीभाव समास (प्रथम पद के अर्थ की प्रधानता)
    • 2. द्वन्द्व समास (दोनों पदों के अर्थ की प्रधानता)
    • 3. बहुव्रीहि समास (दोनों पदों के अर्थ की अप्रधानता)
    • 4. तत्पुरुष समास (द्वितीय पद के अर्थ की प्रधानता)
    • 5.कर्मधारय समास  
    • 6.द्विगु समास 
    • 7.नय समास
    • 8. माँझ पद लोपी समास 
    • 9.किरियाक समास (उपपद)

 

1. अव्ययीभाव समास (प्रथम पद के अर्थ की प्रधानता) – एक / अबिअएक समास

  • समास का वह रूप, जिसमें प्रथम पद ‘अव्यय’ होता है और उसका अर्थ ‘प्रधान’ होता है, उसे ‘अव्ययीभाव समास’ कहते है। 
  • अव्ययीभाव समास में अव्यय पद का प्रारूप ‘लिंग, वचन व कारक’ में परिवर्तित नहीं होता है, बल्कि वह सदैव एकसमान रहता है।
  • पहचान – अव्ययीभाव समास के प्रथम पद में ‘अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर‘ आदि आते है।
    • यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
    • यथाक्रम क्रम के अनुसार
    • यथानियम नियम के अनुसार
    • प्रतिदिन प्रत्येक दिन
    • प्रतिवर्ष हर वर्ष

अइसन समास जे अबिअइ लइ के बने। जे रकम- भेठर, बेगँव, अनखाइ, करे करे, पइत धँव, गरजुइत, घने-घन, सगर-घरी, सारा बछर, घेंचा भइर, घेनेर- घेनेर, कलेकल आदि ।

 

2. द्वन्द्व(जोड़ा ) समास (दोनों पदों के अर्थ की प्रधानता) – अड़सड़या समास

  • जिस समास में दोनों पद प्रधान एवं एक दूसरे के विलोम या विलोम जैसे हों
  • माता-पिता = माता और पिता
  • दूध-रोटी = दूध और रोटी
  • जला-भूना = जला और भूना
  • आकाश-पाताल = आकाश और पाताल
  • जीवन-मरण = जीवन या मरण
  • ई समासेक दुइयो पद अड़सड़ रह – हइ, जे रकम कि ई दुइयोक मइधें बादा-बादी चल – हइ । 
  • जइसें- काटा-काटी, लोका-लोकी, नूनू-नूनी, काँखे – कोरें, ( जोड़ा सबद के पटतइरें देखा ) ।

 

3. बहुव्रीहि समास (दोनों पदों के अर्थ की अप्रधानता) – अड़गाही समास

  • जिस समास में कोई पद प्रधान न होकर (दिए गए पदों में) किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
    • दशानन: दस हैं आनन जिसके , अर्थात  रावण 
    • लम्बोदर – लम्बा है जिसका उदर अर्थात गणेश 
    • महादेव – देवतावो में जो महान है , अर्थात महादेव 
    • वीणापाणि = वीणा है पाणि में जिसके वह – सरस्वती
    • चक्रपाणि = चक्र है पाणि में जिसके वह – विष्णु
    • शूलपाणि =  शूल है पाणि में जिसके वह – शिव

ई समासेक कोनो पद जोरगर नाँइ रहे हे , आर सभे मिलके एगो (दोसर ) आड़ अरथेक इंगित कर – हइ । 

  • ढेइर बेसी गोड़ रहइक जकर – गेंड़गेंवारी । 
  • जे कामें गरु चरवल जाहे – गोरखी । 
  • धान तारेहे जे खाँचीं – ताराही खाँची
  • बुटु अइसन रहे जे खुँखड़ी – बुटु खुखड़ी |

 

4. तत्पुरुष समास (द्वितीय पद के अर्थ की प्रधानता) –  पेछुवाड़ी समास

  • समास का वह रूप जिसमें द्वितीय पद या उत्तर पद प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। 
  • तत्पुरुष समास में प्रथम पद संज्ञा या विशेषण होता है और लिंग-वचन का निर्धारण अंतिम या द्वितीय पद के अनुसार होता है।
  • तत्पुरुष समास में पूर्व पद एवं अंतिम पद के मध्य कारक चिन्हों का लोप होता है और जब सामासिक पद का समास-विग्रह किया जाता है, तो कर्ता कारक एवं सम्बोधन कारक को छोड़कर शेष कारकों के कारक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है।
    • स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
    • शरणागत = शरण को आया हुआ
    • अकालपीड़ित = अकाल से पीड़ित
    • तुलसीकृत = तुलसीदास द्वारा किया हुआ
    • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
    • सभामंडप = सभा के लिए मंडप
    • गुणरहित = गुण से रहित
  • अइसन समास, जकर पइछला भाग टाइ बेसी मुइख रहे; पेछुवाड़ी समास कहल जाहे ।
  • जइसे – घर – जमइया, घरमोहड़ी, घर-जामाइ, निमन मुँहाँ, गुमनमुहां आदि । 

कारकेक चिन्हाक पेछाञ् ई समास टाक भाग बाँटाउ करल जाहें- 

  • (क) (1). बेंगेक छउआ बेंग पोहना ! बेंग चूर। (2). गुँड़ी कूटेक दिन – गुँड़ी कूटा ( बँउड़िक एगो दिन)। ( 3 ) . गोड़ लागेक काम – गोड़ लगी। 4. घर में ढूंढेक घर ढूंढ़ी | ( 5 ) . बापले मिलल – बपउती । 
  • (ख) जोतल – नारल– जोती से नारल । 
  • (ग) घर करेक ले आदमी (जनी) – घरनी, पुरवेक ले चीज (वसुत ) पुरउती
  • (घ) घर ले बहरवल ( छोड़वल बा छोड़ल) – घर छाड़ा
  • (ङ) बिता ले बेसी नाँइ – बितना। मुड़ी ले कटवइया – मुड़ी काटा, मुड़कटवा। हराम ले जनमल – हरामजादा । 
  • (च) काड़ाक जोतेवाला गाड़ी-काड़ा गाड़ी। बीहाक घर- बीहा घर। सबके नास – सरब  नास। 
  • (छ) घरे बइसल – घर बइसु; मुंह थापल – मुँह थापा आदि-2

5.कर्मधारय समासपटतइरिया समास / एक पुछिया समास

  • जिसका पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य (संज्ञा ) अथवा एक पद उपमान तथा दूसरा पद उपमेय हो तो, वह ‘कर्मधारय समास’ कहलाता है। 
  • विशेषण–विशेष्य या  उपमान – उपमेय
    • नीलकमल – नीला है जो कमल
    • चाँदमुखी – 
    • कुकुरदत्ता – 
    • बड़लोक  –
    • खरगदत्ता – 
    • बोकटेगा – 
  • ई समासें रुप- गुनेक तुलना बा पटतइर देखवल जाहे । ई समासेक पद गुलाक कारक समाने रहे हे, से-ले एकराँ एक-पुंछियो कहल जाइ पारे । ‘उपमान बाचक’ वा ‘समानाधिकरण’ । 
  • कुकुर मुँहा, घोड़मुँहा, सोनागात, मेंजुरपुंछिया, हुडुकमुँहा, हुँडारमुँहा, नीलकमल, दिन- इंजोर आदि-आदि।

6.द्विगु समास – आग संइखा समास

  • वह समास जिसमें प्रथम या पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो व द्वितीय पद संज्ञा हो तथा समस्त पद से समूह या समाहार का बोध होता हो उसे द्विगु समास कहते हैं।
  • उदाहरण 
    • पंचघाघ – जंहा पांच घाघ (झरना हो )
    • दुमुहिया – दो मुँह वाला 
    • तीनमुखी – तीन मुँह वाला
    • दूबटिया – दो रास्ता वाला 

ई समासेक ओरेले कोनो संइखाक टावान मिले है। 

  • एक पइसाक (जुकुर) चीज – एक पइसिया । 
  • दू टाकाक बरावर – दू टकी । 
  • पाँच लोकेक बिचार- पंचइती, पंचाहित । 
  • सात ताराक गोठ –  सत तरवा । 
  • एक गोछेक चीज –  एक गोछिया
  • एक सोझवारी नाँइ रहेवाला – खेचपेचिया

7.नय समास – ना-नुकुरवा समास

  • जिसमे निषेध सूचक सब्द हो। 
    • अनपढ़ – जो पढ़ा लिखा नहीं है 
    • नासमझ – जिसे समझ न हो 
  • ई समास कोनो चीज के नाँइ रहेक, नाँइ होवेक आदिक बदे सड़वेहे ।
  • ना – नुकुरवा समास दू रकम होवे –
    • 1. ना नुकुरवा सँइगा
    • 2. ना नुकुरवा बिसेसन
  • कामें नाँइ लागे अइसन – अकारथ
  • बिना भेदेक चीज –  साढ़े बाईस
  • बिना लुइरेक – बेलुइर, बेलुरियाहा
  • जकर मुँह नाँइ रहे – निमुहियाँ
  • सुगुम बासी रहे – गुमन मुहियाँ ( मुँहा ) ।

8. माँझ (मध्यम ) पद लोपी समास 

  • खोरठा भाषा में संस्कृत की तरह माँझ (मध्यम ) पद लोपी समास पाया जाता है।  इसमें  शुरुआत और आखरी पद रहता है और आखिरी पद की प्रधानता रहता है।  समास विग्रह करने पर मध्यम पद को देखा जा सकता है। 
    • घरबड़ी – घर ठिनक बाड़ी 
    • बरदगाड़ी –  बरद से टानिक गाड़ी

 

9.किरियाक समास (उपपद) – 

  • छगरी चरने वाला – छगरी चरवा । 
  • घोड़ाक नाच नाचे वाला – घोड़ नचवा । 
  • झुमइर खेले वाला – झुमरिया । 
  • करम पोरोब मनवे वाला – करमइती। 
  • आफइतेक काम करे वाला – अइगटंगवा । 
  • मारा-मारी करे वाला – मइरखंड़ (मरखँड़िया )
  • गोड़ जाँतेक तरी काम करे वाला – गोड़ाइत। 
  • खूव तेजगर आइग  – गनगनियाँ
  • गुड़गुड़इले चलेवाला – गुड़गुड़ी।