मुगलकालीन चित्रकला Mughal painting

 

मुगल चित्रकला 

 

  • चित्रकारी के क्षेत्र में मुगलों ने विशिष्ट योगदान किया। उन्होंने चित्रकारी की ऐसी जीवंत परंपरा का सूत्रपात किया, जो मुगलों के अवसान के बाद भी दीर्घकाल तक देश के विभिन्न भागों में कायम रही। 
  • मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने ईरान के प्रसिद्ध चित्रकार बिहजादके चित्रों की समीक्षा की थी। बाबर की चित्रकला में व्यापक रुचि थी। 
  • बाबर के बेटे हुमायूँ के दरबार में दो प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार अब्दुस्समद और मीर सैयद अली रहते थे। 
  • मुगल शैली का विकास चित्रकला की स्वदेशी भारतीय शैली और फारसी चित्रकला की सफाविद शैली के एक उचित संश्लेषण के परिणामस्वरूप हुआ था। इस चित्रशैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं. 
    • मुगल शैली के चित्रों के विषय दरबारी शानो-शौकत, बादशाह की रुचियों पर आधारित रहे हैं। 
    • मुगल कला में अत्यधिक महीन काम किया गया है। महीन एवं नुकीली तूलिका से बहुत बारीक रेखाएँ खींचने का अद्भुत कौशल देखने को मिलता है। 
    • मुगल शैली का रंग-विधान प्रचलित भारतीय परंपरा और ईरानी परंपरा से भिन्नता रखता है। इस शैली में लाजवर्दी और सनहरे रंग का इस्तेमाल किया गया है। 
    • इन रंगों को बनाने में विशेष कौशल भी दिखता है। कूची या ब्रश को प्रायः गिलहरी के बालों से बनाया गया है। 
    • चित्रकारों ने संध्या और रात्रि के चित्रांकन में भी रुचि ली है। ऐसे चित्रों में चांदी और स्वर्ण रंग भरे गए हैं। 

 

  •  इस काल के अधिकतर चित्र कागज़ पर बनाए गए हैं। इसके अलावा कपड़े, भित्ति और हाथी दाँत पर भी चित्र बनाए गए हैं। 
  • इन सामान्य विशेषताओं के बावजूद मुगल काल के प्रत्येक बादशाह के काल में बने चित्रों में पर्याप्त विशेषताएँ मिलती हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है

 

अकबरकालीन चित्रकला

 विशेषताएँ

  • अकबरकालीन चित्रकला पर यूरोपीय चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता है, जैसे
    •  व्यक्ति विशेष का चित्रण करना।
    • दृश्य में आगे दिखने वाली वस्तुओं को छोटे आकार में बनाना। 
    • आलोचना एवं व्यंग्य के विषय को चित्रित करना। 
    • चित्रों में छायाकरण और परिप्रेक्ष्य का बढ़ता हुआ महत्त्व। 
    • गहरे नीले तथा लाल रंग का अत्यधिक प्रयोग करना। 
    • चित्र में उछलते-कूदते गीत गाते पक्षियों का अंकन करना। 
    • चौड़े ब्रश की जगह गोल ब्रश का प्रयोग करना।

 

प्रमुख चित्रकार 

  • अकबर के राजदरबार के चित्रकारों की एक सूची में बड़ी संख्या में नाम शामिल हैं। मीर सैयद अली और अब्दुस्समद खान के अलावा प्रसिद्ध चित्रकार हैं- दसवंत, मिसकिना, नन्हा, कान्हा, बसावन, मनोहर, दौलत, केसू, भीम गुजराती, धर्मदास, और इनायत। 

 

जहाँगीरकालीन चित्रकला

जहाँगीर के समय मुगल चित्रकला की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं

  • जहाँगीर के समय की चित्रकारी के क्षेत्र में घटी महत्त्वपूर्ण घटना थी-मुगल चित्रकला की फारसी प्रभाव से मुक्ति। 
  • इस समय चित्रकला में भारतीय पद्धति का विकास हुआ। इस कारण पर्सी ब्राउन ने कहा “जहाँगीर के समय मुगल चित्रकला की वास्तविक आत्मा लुप्त हो गई।” 
  • इस दौर की चित्रकला में रूढ़ियों के स्थान पर वास्तविकता का प्रदर्शित किया जाने लगा। हस्तमुद्राएँ वास्तविकता के अधिक निकट हैं। जैसे अकबर काल में बादल रूई के गठ्ठर जैसे दिखते है, लेकिन जहाँगीर काल में वास्तविक दिखने लगे। 
  • इस काल में प्रकृति का अधिक सजीव और बारीक चित्रण किया गया। पशु, पक्षी, फूल और वनस्पतियों का बेहद सुंदर चित्रांकन किया गया है।
  • धार्मिक चित्र बनने कम हो गए और चित्रों में दरबार का चित्रण ज्यादा होने लगा। व्यक्ति-चित्र बहुत ज्यादा संख्या में बनने लगे। 
  • एक छोटे आकार के चित्र बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई, जिसे पगड़ी पर लगाया जा सके या गले में पहना जा सके। 
  • छवि चित्रों के प्रचलन के साथ-साथ चित्रकला में मुरवके शैली (एलबम) तथा अलंकृत हाशिये का विकास हुआ। 

 

 

जहाँगीरकालीन प्रमुख चित्र 

  • ईरान के शाह अब्बास का स्वागत करते जहाँगीर।
  • वर्जिन मैरी का चित्र पकड़े हुए जहाँगीर। 
  • मलिक अंबर के कटे सिर को लात मारते हुए जहाँगीर। 
  • अयार-ए-दानिश नामक पशुओं के किस्से-कहानियों की पुस्तक में चित्रकारी। 
  • इसके अतिरिक्त, इस काल के दौरान दरबार के दृश्यों, प्रतिकृतियों, पक्षियों, पशुओं और पुष्पों का चित्रण भी किया गया था। 

 

जहाँगीरकालीन प्रमुख चित्रकार

जहाँगीर के अधीन अनेक चित्रकार काम कर रहे थे, उनमें से फारूख बेग, अकारिज़ा, अबुल हसन, मंसूर, बिशनदास, मनोहर, गोवर्धन, बालचंद, दौलत, मुखलिस, भीम और इनायत प्रमुख थे।

 

शाहजहाँकालीन चित्रकला 

  • जहाँगीर की मृत्यु के बाद कुछ ही वर्षों में मुगल चित्रकला ने अपनी चमक-दमक और परिष्कार खो दिया। 
  • यद्यपि शाहजहाँ लघुचित्रों में रुचि रखता था और चित्रित पांडुलिपियों को प्राथमिकता देता रहा, फिर भी वह मुख्यतः भवन-निर्माण के प्रति ही उत्साहित दिखाई दिया। 
  • शाहजहाँ को दैवीय संरक्षण में अपनी तस्वीरें बनवाना सदा प्रिय रहा, जैसे- गुणगान करते हुए देवदूत स्वर्ग से ताज लेकर उतर रहे हैं। इस काल के चित्रों के विषयों में यवन सुंदरियाँ, रंगमहल, विलासी जीवन और ईसाई धर्म शामिल हुए। 
  • इस काल में स्याह कलम चित्र बने, जिन्हें कागज़, फिटकरी और सरेस आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता था। 
  • इनकी खासियत बारीकियों का चित्रण था, जैसे- दाढ़ी का एक-एक बाल दिखना, रंगों को हल्की घुलन के साथ लगाना। 
  • चित्रकला के अतिरिक्त, तपस्वियों और रहस्यवादियों के समूहों को दर्शाने वाली अन्य चित्रकलाएँ और अनेक निदर्शी पांडुलिपियाँ भी इस अवधि में निष्पादित की गई थीं। 
  • शाहजहाँ के जो भी छवि चित्र बने हैं उन सबमें प्रायः उसे सर्वोत्तम वस्त्र और रत्नाभूषण धारण किये चित्रित किया गया है। 
  • इन चित्रों में उसके सिर के पीछे प्रभा पुंज भी शोभायमान है। 
  • इस दौर के एकल छविचित्रों में यह विशेषता देखने में आती है कि गहराई और संपूर्ण दृश्य विधान प्रकट करने के लिये चित्रों की पृष्ठभूमि में दूर दिखाई देने वाला धुंधला नगर दृश्य हल्के रंगों में चित्रित किया गया है।

 

शाहजहाँकालीन प्रमुख चित्र 

  • गुलिस्ताँ तथा सादी का बुस्तान। 
  • दरबारियों के बीच ऊँचे आसन पर विराजमान शाहजहाँ। 
  • पिता जहाँगीर और दादा अकबर की संगति में शाहजहाँ, जिसमें अकबर ताज शाहजहाँ को सौंप रहा है। 

 

शाहजहाँकालीन प्रमुख चित्रकार

  • शाहजहाँकालीन प्रमुख के प्रमुख चित्रकारों में विचित्र, चैतरमन, अनुप चत्तर, समरकंद का मोहम्मद नादिर, इनायत और मकर आदि हैं। 

 

औरंगजेबकालीन चित्रकला 

  • मुगल चित्रकला के अवसान की शुरुआत शाहजहाँ के काल से ही प्रारंभ हो गई थी। 
  • नवीनता के स्थान पर चित्रों में रूढ़िवादिता का समावेश हो गया, जिससे चित्रों में दोहराव नज़र आने लगा। 
  • कट्टर मुसलमान होने के कारण औरंगजेब चित्रकला तथा संगीत से इतना विमुख रहा कि लघुचित्रों की एक अत्यंत विकसित कला उसके शासनकाल में औंधे मुँह जा गिरी। 
  • हालाँकि औरंगजेब ने अपने शासनकाल के अंतिम समय में चित्रकारी में कुछ रुचि ली थी। परिणामस्वरूप उसके कुछ लघु चित्र शिकार खेलते हुए, दरबार लगाते हुए एवं युद्ध करते हुए बने।

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