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झारखण्ड की जनजातियाँ।। परहिया जनजाति
परहिया जनजाति
- परहिया जनजाति का संबंध प्रोटो ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह से है।
- रिजले ने इस जनजाति को लघु द्रविड़ जनजाति कहा है।
- ये मूलतः पलामू प्रमण्डल में निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त राँची, चतरा, हजारीबाग व संथाल परगना क्षेत्र में भी ये निवास करते हैं।
- इस जनजाति में नातेदारी प्रथा बिल्कुल हिन्दुओं की तरह है।
- इस जनजाति में नातेदारी की व्यवस्था ‘धैयानिया’ तथा ‘सनाही‘ में विभाजित होता है। ‘धैयानिया’ जन्म से जुड़ा नातेदारी संबंध है जिसके सदस्य को ‘कुल कुटुंब’ कहा जाता है जबकि ‘सनाही‘ विवाह द्वारा जुड़ा संबंध है जिसके सदस्य को ‘हित कुटुंब‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति में गोत्र नहीं पाया जाता है।
- इस जनजाति में साक्षी प्रथा का प्रचलन पाया जाता है।
- इस जनजाति में माँ के वंशज को प्राथमिकता दी जाती है।
- इस जनजाति में आयोजित विवाह’ सर्वाधिक प्रचलित है।
- इनके घर को ‘सासन‘ के नाम से जाना जाता है तथा इनके द्वारा निर्मित झोपड़ीनुमा घर को ‘झाला‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति में वधु मूल्य को ‘डाली‘ कहा जाता है।
- इनमें परिवार की गिनती कुराला (चूल्हे) से होती है।
- इनकी पंचायत को भैयारी या जातिगोढ़ तथा ग्राम पंचायत का मुखिया महतो/प्रधान कहलाता है।
- इनका प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा, धरती पूजा, सोहराय आदि है।
- इस जनजाति का मुख्य पेशा बांस की टोकरी बनाना तथा ढोल बनाना है।
- पारंपरिक रूप से यह जनजाति स्थानांतरणशील कृषि करती थी जिसे ‘बियोड़ा’ या ‘झूम‘ कहा जाता है।
- इनके सर्वाधिक प्रमुख देवता ‘धरती‘ हैं।
- इस जनजाति में ‘मुआ पूजा’ (पूर्वजों की पूजा) का सर्वाधिक महत्व है।
- इस जनजाति में अलौकिक शक्तियों पर अत्यधिक बल दिया जाता है।
- इनके धार्मिक प्रधान को ‘दिहुरी’ कहा जाता है।
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