नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy)
- Renewable energy, often referred to as clean energy, comes from natural sources or processes that are constantly replenished.
- अक्षय ऊर्जा जिसे अक्सर स्वच्छ ऊर्जा के रूप में जाना जाता है, प्राकृतिक स्रोतों या प्रक्रियाओं से आती है जो लगातार भर जाती हैं।
- Solar Energy
- Wind Energy.
- Hydroelectric.
- Ocean Energy.
- Geothermal Energy.
- Biomass Energy
- Hydrogen Energy
पवन ऊर्जा (Wind Energy)
- पवन चक्कियों में तीव्र गति से चलने वाली हवाओं द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।
- पवन चक्कियों के समूह से युक्त पवन फार्म तटीय क्षेत्रों और पर्वतघाटियों जहाँ प्रबल और लगातार हवाएँ चलती हैं, वहाँ स्थापित किये जाते हैं।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय
- पवन संसाधन मूल्यांकन – राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान द्वारा
- सतह से 120 मीटर ऊपर अनुमानित पवन ऊर्जा क्षमता – 695.5 गीगावाट
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता राज्य:
- गुजरात (142.56)
- राजस्थान (127.75)
- कर्नाटक (124.15)
- महाराष्ट्र (98.21)
- आंध्र प्रदेश (74.90)
- सतह से 150 मीटर ऊपर अनुमानित पवन ऊर्जा क्षमता – 1,164 गीगावाट
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता राज्य:
- राजस्थान (284.25)
- गुजरात (180.79)
- महाराष्ट्र (173.86)
- कर्नाटक (169.25)
- आंध्र प्रदेश (123.33)
- सतह से 120 मीटर ऊपर अनुमानित पवन ऊर्जा क्षमता – 695.5 गीगावाट
- पवन ऊर्जा के विकास हेतु सरकारी पहल:
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पुनः सशक्त बनाने की नीति, 2016:
- भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (Indian Renewable Energy Development Agency- IREDA) द्वारा वित्तपोषित
- पवन टरबाइन ब्लेड में उपयोग किये जाने वालेफाइबर प्रबलित प्लास्टिक (Fiber Reinforced Plastic- FRP) के निपटान के लिये दिशा-निर्देश:
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018:
- राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति:
- उद्देश्य- 7600 किमी. की भारतीय तटरेखा के साथ भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र में अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करना
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पुनः सशक्त बनाने की नीति, 2016:
जल विद्युत (Hydro Electricity)
जल विद्युत परियोजनाएँ सामान्यतः 2 भागों में वर्गीकृत होती हैं
लघु जल विद्युत परियोजना
- 25 मेगावाट तक की परियोजनाएँ
- नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत
- सूक्ष्म जल विद्युत- 100 kw तक
- मिनी जल विद्युत- 101 से 2000 kw तक
- स्मॉल जल विद्युत- 2001 से 25000 kw तक
वृहत् जल विद्युत परियोजना
- 25 मेगावाट से ऊपर की परियोजनाएँ
- विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन परियोजना
सौर ऊर्जा (Solar Energy)
सौर ऊर्जा से विद्युत निर्माण की दो विधियाँ प्रचलित हैं
फोटोवोल्टिक
- फोटोवोल्टिक सेल पर सूर्य द्वारा उत्सर्जित फोटॉन्स के पड़ने से सीधे बिजली पैदा होती है।
- यह सेल सिलिकॉन की दो परतों की बनी होती है।
- इससे दिष्ट धारा (D.C.) उत्पन्न होती है जिसको इन्वर्टर की सहायता से प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) में बदल दिया जाता है।
कॉन्संट्रेटिंग सोलर पावर
- यह सूर्य तापीय तकनीक भी कहलाता है।
- लेंस व मिरर के प्रयोग द्वारा प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) उत्पन्न की जाती है।
नई प्रौद्योगिकी (New Technology)
भू-तापीय ऊर्जा (Geo-Thermal Energy)
- यह पृथ्वी के क्रस्ट (Crust) में संचित ताप है जिसे पृथ्वी के अंदर भंडारित यूरेनियम, थोरियम व पोटैशियम आइसोटोप के विकरण तथा पृथ्वी के क्रोड (Core) की तरल मैग्मा द्वारा प्राप्त किया जाता है।
- ये ज्वालामुखी, उष्ण जल स्रोत आदि के रूप में पृथ्वी की सतह पर दिखाई पड़ते हैं।
भारत में भू-तापीय ऊर्जा संबंधी क्षेत्र
- जम्मू-कश्मीर – पुगाघाटी (लद्दाख)
- हिमाचल प्रदेश – मणिकर्ण, ज्वालामुखी
- उत्तराखंड – तपोवन
- झारखंड – सूरजकुंड (हज़ारीबाग)
- छत्तीसगढ़ – तातापानी (बलरामपुर)
- ओडिशा – तप्तपानी
- मध्य प्रदेश – अनहोनी
कमियाँ
- दोहन में सस्ती तकनीक की कमी, संयंत्र को स्थापित करने में अधिक धन व्यय एवं विशेष क्षेत्रों में ही लगाना संभव।
समुद्र ऊर्जा (Ocean Energy)
तरंग ऊर्जा (Wave Energy)
- एक के बाद एक तरंगों के उठने और गिरने से उत्पन्न ऊर्जा।
ज्वार ऊर्जा (Tidal Energy)
- ज्वार-भाटा के उठने और गिरने से उत्पन्न ऊर्जा। इस हेतु खाड़ी या मुहाने पर एक बाँध बनाया जाता है।
- भारत में खंभात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी एवं हुगली के ज्वारनदमुखी क्षेत्रों में इस ऊर्जा की अच्छी संभावनाएँ हैं।
- समस्याएँ: ज्वार-क्रिकों की कम संख्या, ऊँची ज्वार श्रेणी (5 मी. से ऊपर) की भारतीय तटीय क्षेत्रों में कमी, उच्च क्षमता क्षेत्र के सुदूरवर्ती होने के कारण ऊर्जा का पारेषण खर्चीला, बाँध निर्माण कार्य भी खर्चीला।
बायोमास से जैव ऊर्जा (Bio-Energy from Biomass)
- बायोमास के अंतर्गत जीवित या हाल-फिलहाल में मृत जीव, पौधे या जंतु आते हैं।
- बायोमास का प्रयोग नवीकरणीय विद्युत, थर्मल ऊर्जा या परिवहन ईंधन (जैव ईंधन-Biofuels) के उत्पादन हेतु किया जा सकता है।
- बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy) का आशय उन फसलों, अपशिष्टों एवं अन्य जैविक पदार्थों से है जिनका उपयोग ऊर्जा या अन्य उत्पादों के उत्पादन हेतु, जीवाश्म ईंधनों के विकल्प के रूप में किया जा सके। बायोमास में संचित ऊर्जा का निष्कासन नवीकरणीय विद्युत या ताप के उत्पादन हेतु किया जा सकता है।
- थर्मल ऊर्जा लकड़ी एवं शुष्क बायोमास के सीधे दहन द्वारा प्राप्त होती है जो कि प्रदूषणं का कारण है। परंतु नवीकरणीय विद्युत या जैव विद्युत (Biopower) एवं जैव ईंधन पर्यावरणीय रूप से हितैषी हैं।
- जैव विद्युत का उत्पादन शुष्क बायोमास के दहन (Combustion) या गैसीफिकेशन (Gasification) द्वारा या नियंत्रित अनॉक्सी अपघटन द्वारा प्राप्त बायोगैस (मेथेन) से किया जा सकता है।
- कुछ परिवहन ईंधनों को बायोमास द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जो बायो ईंधन कहलाते हैं। जैसेः एथेनॉल (Ethanol)– मक्का एवं गन्ने से तथा बायोडीजल (Biodiesel)सोया, रेपसीड एवं पाम तेल से प्राप्त किया जाता है।
प्रथम पीढ़ी के जैव ईंधन (1st Generation Biofuel)
- इन्हें उन कच्चे मालों से तैयार किया जाता है, जिनका उपयोग मनुष्य शुगर, स्टार्च या वनस्पति तेल के रूप में अपने भोजन में करता है।
- इनके अंतर्गत आने वाली प्रमुख खाद्य फसलें मक्का, गन्ना, चुकंदर, गेहूँ एवं ज्वार (Sorghum) हैं।
- ये परंपरागत जैव ईंधन भी कहलाते हैं, उदाहरण. बायोडीजलः सोयाबीन, रेपसीड (Canola) सूर्यमुखी के बीजों से निकाले गए वनस्पति तेलों से निर्मित।
- एथेनॉलः शुगर फसलों (गन्ना) या स्टार्च फसलों (मक्का, गेहूँ) से प्राप्त Simple Sugar के किण्वन (Fermentation) द्वारा तैयार।
- बायोगैसः फसल अपशिष्टों एवं कार्बनिक कचरों के अनॉक्सी किण्वन द्वारा तैयार।
द्वितीय पीढ़ी के जैव ईंधन (2nd Generation Biofuel)
- प्रथम पीढी की तरह ये भी संपोषणीय कच्चे माल से तैयार होते हैं, परंतु ये भोजन के रूप में मानव उपभोग हेतु प्रयोग में नहीं आते।
- इन अखाद्य कच्चे मालों के अंतर्गत काष्ठीय फसल (Woody Crops), कृषि अपशिष्ट या कचरे आते हैं। इन जैव ईंधनों के उत्पादन हेतु विकसित प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पड़ती है, जिस कारण इन्हें ‘विकसित जैव ईंधन’ (Advanced Biofuels) भी कहते हैं।
- द्वितीय पीढ़ी के बायोमास की श्रेणी अत्यंत विस्तृत है, जिसके अंतर्गत कृषि से लेकर वन एवं अपशिष्ट पदार्थ तक आते हैं।
- इस पीढ़ी के कच्चे मालों के अंतर्गत खाद्य फसलें नहीं आतीं एवं एक ही स्थिति में खाद्य फसलें प्रयोग में लाई जा सकती हैं, जब उनका भोजन उद्देश्य पूरा हो चुका हो अर्थात् उपभोग के बाद, यथा- Waste Vegetable Oil परंतु Virgin Vegetable Oil प्रथम पीढ़ी के अंतर्गत आएगा।
- हाल ही में औपचारिक रूप से पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इस्तेमाल हो चुके खाद्य तेल (Cooking Oil) से बायोडीजल बनाने की घोषणा की है।
- द्वितीय पीढी के बायोमास के उदाहरण-स्विचग्रास (Switchgrass), इंडियन ग्रास, जैट्रोफा (रतनजोत) एवं अन्य बीज फसलें (Seed Crops), यथा- कैमेलिना, रेपसीड, पाम ऑयल आदि। इसके अंतर्गत Municipal Solid Waste भी आता है।
- इनका अभी व्यावसायिक तौर पर उत्पादन नहीं हो रहा है।
द्वितीय पीढ़ी के जैव ईंधन 3rd Generation Biofuel
- जैव ईंधन की यह नवीनतम अवस्था है।
- इसके स्रोतों में सर्वप्रमुख शैवाल (Algae) है।
- पहले इसे द्वितीय पीढ़ी का माना जाता था।
- इस पीढ़ी के जैव ईंधनों के उत्पादन की प्रचालन लागत एवं पूंजी सबसे उच्च है।
- इसे अतिरिक्त अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है, ताकि उत्पादन के संपोषणीय तरीके को प्राप्त कर व्यावसायिक तौर पर इनका उत्पादन हो सके।
नोटः द्वितीय पीढी के ईंधन भी एथेनॉल, बायोडीज़ल वगैरह ही होते हैं | परंतु उन्हें प्राप्त करने वाले बायोमास स्रोत अलग होते हैं।
शैवाल (Algae)
- शैवाल आधारित जैव ईंधन ऊर्जा के नए स्रोत के रूप में उभर रहे हैं।
विशेषताएँ
- परंपरागत जैव ईंधन बायोमास, यथा-मक्का, सोयाबीन आदि की तुलना में इनमें उच्च बायोमास का पाया जाना इन्हें ज़्यादा उपयोगी बनाता है।
- कुछ प्रजातियाँ कार्बोहाइड्रेट की बड़ी मात्रा एवं तेलभार का 50% ट्राइग्लिसराइड के रूप में अपनी कोशिकाओं में जमा करने में सक्षम हैं।
- खाद्य के रूप में इनका प्रयोग न होना एवं परंपरागत जैव ईंधन की तुलना में ज़्यादा ऊर्जा का उत्पादन, इन्हें खास बनाता है।
- इसकी उत्पादकता पाम तेल एवं परंपरागत वनस्पति तेलों की अपेक्षा कई गुना अधिक है, साथ ही यह काफी कम जल का उपभोग करता है।
- शैवाल प्रभावी विविधता दर्शाता है अर्थात् यह बायो डीजल, ब्यूटेनॉल, गैसोलीन, एथेनॉल एवं यहाँ तक कि जेट ईंधन का भी उत्पादन कर सकता है।
सीमाएँ
- ट्राइग्लिसराइड के इंटरएस्टेरीफिकेशन द्वारा वनस्पति तेलों के निर्माण की विधि का प्रयोग शैवाल तेल (Algae Oil) से बायो डीजल बनाने में भी किया जाता है, परंतु वर्तमान में इसकी उत्पादन लागत काफी उच्च है।
- बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु जलाशयों (तालाब आदि) के एक बड़े क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है।
- इसका उत्पादन समुद्र के साथ भूमि (कृषि के लिये अनुपयुक्त भूमि भी) में भी हो सकता है परंतु इसके लिये समुद्र आधारित प्रणाली से ज्यादा विकसित तकनीक की आवश्यकता होती है। शैवाल रित जैव ईंधन का उत्पादन अभी प्रारंभिक स्तर पर है। आर्थिक रूप से बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन पारिस्थितिक एवं सामाजिक मुद्दों को जन्म दे सकता है।
ईंधन सेल (Fuel Cell)
- ईंधन सेल एक विद्युत रासायनिक यंत्र है जो हाइड्रोजन या अन्य ईंधन की रासायनिक ऊर्जा का प्रयोग कर स्वच्छता एवं सक्षमतापूर्वक विद्युत का उत्पादन करता है।
- अगर ईंधन सेल में हाइड्रोजन ईंधन का प्रयोग किया जाता है तो इसे हाइड्रोजन ईंधन सेल (Hydrogen Fuel Cell) कहते हैं।
- इसमें हाइड्रोजन ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर उप-उत्पाद के रूप में विद्युत, ताप एवं शुद्ध जल का उत्पादन करता है। सामान्यतः इसमें ऑक्सीजन को हवा से प्राप्त किया जाता है। इसमें ईंधन की रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। चूँकि यहाँ दहन (Combustion) की प्रक्रिया संपन्न नहीं होती, अतः कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता।
- एक सिंगल फ्यूल सेल (Single Fuel Cell) दिष्ट धारा (Direct Current) की छोटी मात्रा का उत्पादन करती है।
ईंधन सेल के प्रकार (Types of Fuel Cell)
- हाइड्रोजन एवं फास्फोरिक एसिड बहुत ही सामान्य प्रकार की ईंधन सेल है।
- Alkaline Fuel Cell System का प्रयोग अंतरिक्ष यात्रियों के लिये पेयजल उपलब्ध कराने एवं विद्युत उत्पादन हेतु किया गया था।
- कई प्रकार से ईंधन सेल कार या MP3 प्लेयर आदि में लगने वाले बैटरी के समान ही होती है, जैसे-दोनों ही रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। परंतु बैटरी की तरह ईंधन सेल डिस्चार्ज नहीं होती।
ईंधन सेल के विभिन्न अनुप्रयोग (Different Application of Fuel Cell)
- भविष्य में इसका प्रयोग हाथ में पकड़ने योग्य छोटे उपकरण, यथा-मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिक वाहन, कार से लेकर बस तक को विद्युत उपलब्ध कराने में किया जा सकेगा।
- कार्यालय भवनों, अस्पतालों एवं अन्य बड़े व्यावसायिक एवं संस्थागत सुविधाओं हेतु ऑफ-ग्रिड विद्युत (Off-Grid Power) उपलब्ध कराने में।
- ये उन दूरस्थ स्थानों हेतु भी काफी उपयोगी हैं जहाँ परंपरागत विद्युत आपूर्ति की पहुँच सीमित है या संभव नहीं है।
- ईंधन. सेल का उद्देश्य इलेक्ट्रिक मोटर को विद्युत प्रदान करने अथवा एक बल्ब या शहर को प्रकाशित करने हेतु विद्युत धारा का उत्पादन करना है। वर्तमान के ईंधन सेल आकाश की ऊँचाइयों (अंतरिक्ष यान में) से लेकर समुद्र की गहराइयों तक (कुछ नवीनतम पनडुब्बियों में) में पाया जा सकता है।
चूँकि इस प्रौद्योगिकी का विकास जारी है, अतः इन ईंधन सेलों का अनुप्रयोग वर्तमान में प्रदर्शन प्रोजेक्टों (Demonstration Projects) तक सीमित है।
लाभ
- इसके प्रचालन (Operation) में शोर नहीं होता, अतः इसे आवासीय क्षेत्र में भी स्थापित किया जा सकता है।
- यह प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करती।
- यह समय के साथ खराब एवं लीक नहीं होती।
सीमाएँ
- ईंधन सेल के सुचारु रूप से कार्य करने हेतु हाइड्रोजन के एक स्रोत का होना आवश्यक है।
- हाइड्रोजन को संगृहीत एवं वितरित करना मुश्किल है, अतः हाइडोजन गैस के स्टेशन साधारणतः उपलब्ध नहीं होते।
- यह बहुत अधिक खर्चीला है।
हाइड्रोजन ऊर्जा (Hydrogen Energy)
- भविष्य का ईंधन हाइड्रोजन गैस को ही माना जा रहा है।
- यह सबसे सरल रासायनिक तत्त्व है (1 प्रोटॉन एवं 1 इलेक्ट्रॉन)
- यह पृथ्वी के धरातल पर सबसे ज्यादा पाए जाने वाले तत्त्वों में तीसरे स्थान पर आता है।
- वातावरण में हाइड्रोजन प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता है। हाइड्रोजन ईधन को या तो जीवाश्म इंधन, यथा-गैसोलीन, (मेथेनॉल. प्रोपेन ब्यटेन) एवं प्राकृतिक गैस से प्राप्त किया जाता है या इलेक्टोलीसिस प्रक्रिया द्वारा जल के ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन में विघटन दारा पा किया जाता है।
- परंतु इसे प्राप्त करने की दोनों प्रक्रियाओं में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अगर हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधन द्वारा प्राप्त करते हैं तो यह अनवीकरणीय ऊर्जा कहलाती है एवं अगर इसे जल द्वारा प्राप्त करने में आवश्यक ऊर्जा को पवन या सौर द्वारा प्राप्त करते हैं तो यह नवीकरणीय ऊर्जा Zero Emission Fuel कही जाती है।
- अगर हाइड्रोजन को ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है तो जल का निर्माण होता है।
कचरे से ऊर्जा (Energy from Waste)
- कचरे से ऊर्जा निर्माण का मुख्य उद्देश्य ऊर्जा को प्राप्त करना है, जिसके साथ-साथ कचरे का निपटान भी किया जाता है। इस प्रकार ऊर्जा प्राप्ति के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या के हल का विकल्प उपलब्ध होता है।
विभिन्न अपशिष्ट .
- औद्योगिक अपशिष्ट (खोई, ताँबा, एल्युमीनियम एवं कागज़ उद्योग)
- कृषि अपशिष्ट (कृषि उत्पाद, भूसा, फसल अपशिष्ट, गोबर)
- नगरपालिका अपशिष्ट (घरेलू कचरा, प्लास्टिक सामान, कागज़, काँच का सामान, खाद्य पदार्थ)
- चिकित्सा अपशिष्ट (रासायनिक व जैविक अपशिष्ट)
अपशिष्ट से ऊर्जा निर्माण तकनीक
बायोमेथेनेशनः
- इसका प्रयोग लैंडफिल गैस रिकवरी में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन द्वारा मेथेन एवं अन्य गैसों को प्राप्त करने हेतु किया जाता है। बायोगैस को प्राप्त करने में भी इसी विधि का प्रयोग होता है।
गैसीफिकेशन/पायरोलिसिसः
- इसमें जैविक पदार्थों (खास कर नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल) को उच्च ताप एवं हवा की सीमित मात्रा में गर्म किया जाता है। इससे प्रोड्यूसर गैस (सिन गैस) का उत्पादन होता है।
भस्मीकरण:
- इसमें अपशिष्ट पदार्थों को 1000°C पर पूर्ण ऑक्सीकरण द्वारा जलाया जाता है। जिससे शुद्ध ग्रिप (Flue) गस एवं वाष्प प्राप्त होता है।
प्लाज्मा आर्कः
- खतरनाक एवं रेडियो सक्रियता वाले कचरे का निपटान इस विधि द्वारा किया जाता है, जिसमें कचरा पूरी तरह नष्ट हो जाता है। यह एक कम प्रदूषण वाली प्रक्रिया है, इसमें नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड नहीं बनते। यह एक महँगी प्रौद्योगिकी है।
ऑफ-ग्रिड पावर (Off-Grid Power)
- जो स्थान नेशनल पावर ग्रिड से जुड़े हुए नहीं हैं और आगे कुछ समय तक जिनके जुड़ने की संभावना भी नहीं है उनकी विद्युत ज़रूरतों को नवीकरणीय ऊर्जा के स्थानीय स्तर पर उत्पादन द्वारा पूरा करना ही ऑफ-ग्रिड पावर कहलाता है।
- इसके अंतर्गत पवन ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा, सौर ऊर्जा तथा जल ऊर्जा का प्रयोग करते हुए विकेंद्रीकृत पावर प्रोजेक्ट्स को भारत में स्थापित करना शामिल है, ताकि अलग-अलग समुदायों एवं स्थानों (जहाँ नज़दीक भविष्य में विद्युतीकरण की संभावना नहीं है) की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। इसमें उत्पादित नवीकरणीय ऊर्जा के संग्रहण हेतु बैटरी की आवश्यकता पड़ती है।
ग्रिड कनेक्टेड पावर (Grid Connected Power)
- गृह ऊर्जा तंत्र को राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड से जोड़ना ही ग्रिड कनेक्टेड पावर कहलाता है। गृह ऊर्जा तंत्र भवन को ऊर्जा प्रदान करने हेतु स्थापित किये गए छोटे नवीकरणीय ऊर्जा तंत्र (सौर ऊजो, पवन अगा,जल ऊर्जा आदि) होते हैं। सूर्य की उपस्थिति या पवनों के प्रचंड प्रवाह या जलप्रवाह के समय ये ऊर्जा का उत्पादन करते हैं जिससे भवन को विद्युत उपलब्ध होता रहता है। उपभोग उपरांत बची ऊर्जा ग्रिड को भेज दी जाती है। जब नवीकरणीय ऊर्जा अनुपलब्ध होती है (यथारात के समय सौर ऊर्जा), तब ग्रिड द्वारा विद्युत मांग की आपूर्ति की जाती है। यह बैटरी जैसे विद्युत संचयन उपकरणों की ज़रूरत को दूर करता है।
नेट मीटरिंग (Net Metering)
- कई विद्युत प्रदाताओं (Power Providers) द्वारा यह सुविधा प्रदान की जाती है जिसके अंतर्गत ग्रिड से जुड़े हुए नवीकरणीय ऊर्जा तंत्रों के द्वारा उत्पादित अतिरिक्त विद्युत, ग्रिड को भेज दी जाती है। अगर हमारे विद्यत उत्पादन की अपेक्षा उनसे प्राप्त विद्युत की मात्रा ज्यादा होती है तब हमें विद्युत प्रदाता को खर्च की गई ऊर्जा एवं उत्पादित ऊर्जा के अंतर को अदा (Pay) करना पड़ता है।