28. बिरहोर जनजाति
- प्रजातीय समूह – प्रोटो ऑस्ट्रेलायड
- भाषायी समूह – ऑस्ट्रो एशियाटिक
- भाषा – बिरहारी
- नोट : (बिरहोर का अर्थ – जंगल का आदमी )
- यह जनजाति स्वयं को सूर्यवंशी मानती है।
- यह जनजाति मूलत: झारखण्ड राज्य में ही पायी जाती है।
- बिरहोर शब्द (मुण्डारी भाषा से उत्पन्न ) का शाब्दिक अर्थ – ‘जंगल का आदमी
- परिवार – पितृसत्तात्मक
- इनके बस्ती को टंडा कहा जाता है।
- इनकी झोपड़ी को कुम्बा/कुरहर कहा जाता है।
- बड़ी झोपड़ी – ‘ओड़ा कुम्बा‘
- छोटी झोपड़ी ‘चू कुम्बा‘
- गोत्र की संख्या – 13
- युवागृह को ‘गितिजोरी, गत्योरा या गितिओड़ा‘ कहा जाता है।
- ‘डोंडा कांठा‘ – लड़कों के गितिओड़ा
- ‘डीडी कुंडी‘ – लड़कियों के गितिओड़ा
- 10 प्रकार के विवाहों का प्रचलन है।
- ‘सदर बापला‘ – क्रय विवाह
- सेवा विवाह – ‘किरिंग जवाई बापला’,
- पलायन विवाह – ‘उदरा-उदरी बापला’,
- विनिमय विवाह – ‘गुआ बापला‘,
- हठ विवाह – ‘बोलो बापला’
- विधवा विवाह – ‘सांगा बापला’
- त्योहार – करमा, सोहराई, नवाजोम, जीतिया, दलई आदि
- नृत्य- डांग, लागरी तथा मुतकर आदि
- प्रमुख वाद्ययंत्र
- तुमदा (मांदर या ढोल)
- तमक (नगाड़ा)
- तिरियों (बांस की बांसुरी)
- प्रमुख पेशा – लकड़ी काटना, शिकार करना एवं खाद्य संग्रहण
- बिरहोर जनजाति घूमन्तू जीवन व्यतीत करते हैं।
- घूमन्तू जीवन जीने वाले बिरहोर – उलथू या भुलियास कहा जाता है।
- स्थायी जीवन जीने वाले बिरहोरों – जांघी या थानिया कहा जाता है।
- इनकी भूमि को तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
- नीची भूमि – ‘बेरा‘, कहा जाता है
- बीच की भूमि – ‘बाद‘ कहा जाता है।
- उच्च भूमि – ‘गोड़ा‘ कहा जाता है।
- भूमि सामुदायिक संपत्ति है जिसे बेचना निषिद्ध होता है।
- बिरहोर जनजाति के लोग पीतल, तांबे व कांसे के कार्य में दक्ष होते हैं।
- प्रमुख देवता
- सिंगबोंगा, ओरा बोंगा, कांदो बोंगा, होपरोम बोंगा, टण्डा बोंगा ,देवी माई
- इनके धार्मिक प्रधान को ‘नाये’ कहते हैं।