26. माल पहाड़िया
- माल पहाड़िया एक आदिम जनजाति है
- प्रजाति समूह – प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह
- द्रविड़ समूह – रिजले के अनुसार
- पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज – रसेल और हीरालाल के अनुसार
- मलेर – बुचानन हैमिल्टन ने
- इनका निवास मुख्यत संथाल परगना क्षेत्र है
- संथाल क्षेत्र के साहेबगंज को छोड़कर शेष क्षेत्रों में पायी जाती है।
- भाषा – मालतो ( द्रविड़ भाषा परिवार)
- पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था
- गोत्र नहीं होता है।
- अंतर्विवाह की व्यवस्था पायी जाती है।
- एक विशिष्ट वर्ग के व्यक्तियों को उसी वर्ग के अंदर रहने वाले व्यक्तियों में से ही वधू को चुनना पड़ता है। वे उस वर्ग से बाहर के किसी व्यक्ति के साथ विवाह नहीं कर सकते।
- वधु-मूल्य – (पोन या बंदी) के रूप मे सूअर देने की प्रथा है ।
- अगुवा (विवाह हेतु कन्या ढूंढने वाला व्यक्ति) – ‘सिथू या सिथूदार‘
- वर द्वारा विवाह के सभी खर्चों का भुगतान किया जाता है।
- गांव का मुखिया – माँझी (ग्राम पंचायत का भी प्रधान )
- पूजा पाठ
- माघी पूजा – माघ माह में
- घंघरा पूजा – अगहन माह में
- आड़या पूजा (ज्येष्ठ माह में) – खेतों में बीज बोते समय
- गांगी आड़या – फसल की कटाई के समय
- पुनु आड़या – बाजरा के फसल की कटाई के समय
- प्रमुख त्योहार – करमा, फागु व नवाखानी
- मुख्य पेशा – झूम कृषि, खाद्य संग्रहण एवं शिकार
- झूम खेती को कुरवा कहा जाता है।
- इस जनजाति द्वारा भूमि को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
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- सेम भूमि (सर्वाधिक उपजाऊ)
- टिकुर भूमि (सबसे कम उपजाऊ)
- डेम भूमि (सेम व टिकुर के बीच)
- बाड़ी भूमि (सब्जी उगाने हेतु प्रयुक्त)
- प्रमुख देवता – सूर्य एवं धरती गोरासी गोंसाई
- धरती गोरासी गोंसाई के अन्य नाम – वसुमति गोंसाई या वीरू गोंसाई
- पूर्वजों की पूजा को विशेष महत्व
- गांव का पुजारी – देहरी