डहर बनाइ चल रे

 

2 : डहर बनाइ चल रे कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

डहर बनाइ चल रे । जिनगिक डहरें कांटा , कांटा उखाइर चल रे ।। सुलगवा चुल्हाक तितकी के धरवा बोनेक वाठी के झोंसक मुसा – मखरी के ढोढ़सक उड़ीस बखरी के रगदा सियार- हुंडरवइन के निगंछल चाला जोकवइन के हँडइर हूँडरू घाघ कहे , तोञ हूंडरल चल रे । कबिक संग नेता चल लेखक अभिनेता चल आदिक माड़ल बासी चल सदानी – चौरासी चले मजदूर किसान चल देसेक जुवान चल दम धइर दामुदर डाके , दनदनाइल चल रे । झार – बोनेक घाघ तोञ हजारीबागेक बाघ तोञ लाल सोनाक गोला तो करिया हीराक मीरा तोञ नागपुरेक नाग तो कोयल – कारोक राग तोञ हँकइद उठे पारसनाथ , तोञ हँकदल चल रे । सिंहभूमेक सिंहीन उठ मानभूमेक बाघिन उठ 

कइली – सीनगिक संगी उठ झारखण्डेक बोंगी उठ मइनाक संगे चोटी उठ माटिक बीर बेटी उठ जबरानी जनी सिकार जनवे , सिकार करल चल रे सहरेक लोर तोर रे गाँवेक नाता जोर रे कोठिक भीतर चोर रे लुवाठी लइ खोर रे फूलेक बिछना छोड़ रे जियें राखा घोर रे मंदनभेड़िक साड़ा सुइन , डुगडुगी बजवल चल रे । तिलैया के आन सुन संकरी के पुरान मयुराक्छिक पर अजय नदिक धार सुन बराकरेक मीत सुन उसरी के गीत सुन डाक देल खरगा डाडाइ डेग उठवल चल रे ।। बीर तिलकाक बेटा जाग • गंगा सिंहक सोंटा जाग सिघु – कान्हुक कांड जाग बिसनाथ नियर सांढ़ जाग नील – पीतेक परान जाग भीखारिक कुरान जाग हुलुस्थुल कइर बिरसा हँकवे हुलमाइल करल चल रे ।

2 : डहर बनाइ चल रे कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

  • शीर्षक का अर्थ – रास्ता बनाकर चलो 

  • यह एक उद्बोधन गीत है। एक माचिंग सांग है एक पयास गीत है। कवि झारखण्ड वासियों को अपनी महान संस्कृति को समाप्त करते हुए, अपनी गौरवशाली अन्याय के प्रतिकार की परंपरा को याद करते हुए, आदिवासी-सदान का एक साथ मिल- जुलकर विकास के मार्ग में आये हर कांटे को हटाते हुए, हर प्रतिरोध का शमन करते हुए आगे बढ़ने का आहवान करता है।

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