मेढ़ आर मानुस तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

 मेढ़ आर मानुस कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

नित करा मानुसेक हित मानुस ले बड़ नखे मीत मुदा ! साइनके आर गोंजके माटिक मेढ़ – बनाइकें झलफले उइठ नहाइकें धूप दिया बाइकें टाका करजा करके पइसा खरचा करके उपासे पांठा काइटकें कांइदके आर मेंमाइ के भला कि तोञ मांगे हैं । मेढ़ ले कि खोजे हैं । काहे मेढ़ बनेहें मेढ़ेक खातिर मोरेहें । ककर घरें मोरी नाञ ककर परें हेरी नाम कहाँ बीमारी नाञ KA KA NA कहाँ फौदारी नाञ ? एक बात जाइन ले हमर बात माइन ले पुरानेक रीति कते चलबें सुगुमबासी ककरा मानवें । मानेक पहिले भेउ जान बाढ़तो तोर बुझ्ध – गियान तोञ कर मानुसेक मान डरपुलकाक भगवान जे डरे सेहे मोरे निडर लोक नाञ हरे । जकर पेटें भात नात्र लुगे लेपटल गात नात्र पइवें तोञ हुवां इमान ई घरतिक भगवान सेवा कर मानुस , माञ मानुस ले बोड़ केउ नाञ ।

7 : मेढ आर मानुस  कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – मूर्ति और मनुष्य

भावार्थ – यह एक प्रगतिशील भाव की कविता

है। मनुष्य देवी देवताओं को मिट्टी की काल्पनिक मूर्तियां बनाता है। उसमें प्राण प्रतिष्ठा करता है। मूर्तियां की निर्माता स्वयं मनुष्य है, पर उसी के आगे हाथ जोड़कर गिडगिड़ाता है, रक्षा की भीख मांगता है। वह भूल जाता है कि ये मिट्टी की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां उसके भाग्य का निर्माण नहीं कर सकती। वह भूल जाता है कि भगवान तो उन मेहनतकश गरीब जनता के हृदय में बसता है। कवि मूर्तियों की पूजा न कर मनुष्य की पूजा करने का संदेश देता है।

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