2024 में सुहागिनों का पावन त्यौहार करवाचौथ 20 अक्टूबर को

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वर्ष 2024 में सुहागिनों का पावन त्यौहार करवाचौथ 20 अक्टूबर को है. करवाचौथ एक प्रमुख हिंदू व्रत है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती हैं। करवाचौथ आशिन  माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ता है।

करवाचौथ का महत्व:
1. पति की दीर्घायु: इस व्रत को करने का मुख्य उद्देश्य पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करना होता है।
2. पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूती: इस दिन पति-पत्नी के रिश्ते में और भी मजबूती आती है क्योंकि यह प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
3. सामाजिक और पारिवारिक संबंध: करवाचौथ का त्योहार केवल पति-पत्नी के रिश्ते तक ही सीमित नहीं है। इसे परिवार और समाज के बीच में संबंधों को मजबूत करने का एक जरिया भी माना जाता है।

करवाचौथ की प्रक्रिया:
1. सजना-संवरना: महिलाएं करवाचौथ के दिन विशेष रूप से तैयार होती हैं। वे नई साड़ी या लहंगा पहनती हैं, और सुंदर आभूषण और मेहंदी लगाती हैं।
2. व्रत रखना: इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक बिना जल और अन्न ग्रहण किए व्रत रखती हैं। इसे निर्जला व्रत भी कहा जाता है।
3. करवा माता की पूज: दिन में महिलाएं करवा माता की पूजा करती हैं और करवा चौथ की कथा सुनती हैं। पूजा के दौरान महिलाएं मिट्टी के करवा (घड़े) की पूजा करती हैं, जिसमें जल भरकर उसमें कुछ खास चीजें डाली जाती हैं।
4. चंद्रोदय का इंतजार: चंद्रमा के उदय के बाद महिलाएं चंद्रमा को जल अर्पित करती हैं और छलनी से चंद्रमा और फिर अपने पति को देखती हैं। पति के हाथ से जल और भोजन ग्रहण करके व्रत को तोड़ा जाता है।

करवाचौथ की कथा:
इस व्रत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मनिष्ठ राजकुमारी थी. वह अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी. विवाह के बाद, वीरवती ने पहली बार अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. उसने दिनभर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया. पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मनिष्ठ राजकुमारी थी. वह अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी. विवाह के बाद, वीरवती ने पहली बार अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. उसने दिनभर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया.

वीरवती बहुत ही कोमल और नाजुक थी। वह व्रत की कठोरता सहन नहीं कर सकी। शाम होते होते उसे बहुत कमजोरी महसूस होने लगी और वह बेहोश सी हो गई। उसके सात भाई थे और उसका बहुत ध्यान रखते थे। उन्होंने उसका व्रत तुड़वा देना ठीक समझा। उन्होंने पहाड़ी पर आग लगाई और उसे चांद निकलना बता कर वीरवती का व्रत तुड़वाकर भोजन करवा दिया।

जैसे ही वीरवती ने खाना खाया उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। उसे बड़ा दुख हुआ और वह पति के घर जाने के लिए रवाना हुई। रास्ते में उसे शिवजी और माता पार्वती मिले। माता ने उसे बताया कि उसने झूठा चांद देखकर चौथ का व्रत तोड़ा। इसी वजह से उसके पति की मृत्यु हुई है। वीरवती अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगी। तब माता ने वरदान दिया कि उसका पति जीवित तो हो जाएगा लेकिन पूरी तरह स्वस्थ नहीं होगा। बाद में देवी की कृपा से वह पुनः व्रत करती है और उसके पति को जीवन मिल जाता है।

करवाचौथ का व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह महिलाओं के समर्पण और प्रेम को दर्शाता है।