- मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में ।
- दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए।
- इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की।
- सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला।
- कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े रहे।
- इनका निधन 2020 में हुआ।
- मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं-
- पहाड़ पर लालटेन,
- घर का रास्ता,
- हम जो देखते हैं
- आवाज़ भी एक जगह है।
- साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।
- मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।
- कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं।
- मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एव पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है ।
- वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुंदर सपना रचकर करते हैं।
- उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी ।
संगतकार : मंगलेश डबराल
संगतकार कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों; जैसे-नाटक, फ़िल्म, संगीत, नृत्य के बारे में तो यह सही है ही; हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक प्रसंगों को देख सकते हैं जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं मानवीयता है। संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है मानो हम इसे अपने सामने घटित होता देख रहे हों।
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
शब्द-संपदा
- संगतकार – मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला कलाकार, सहयोगी
- गरज – ऊँची गंभीर आवाज़
- अंतरा – स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण
- जटिल – कठिन
- तान – संगीत में स्वर का विस्तार
- नौसिखिया – जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो
- राख जैसा कुछ गिरता हुआ – बुझता हुआ स्वर
- ढाँढ़स बँधाना – तसल्ली देना, सांत्वना देना
यह भी जानें
- सरगम – संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं।
- वे हैं- षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, चैवत और निषाद ।
- इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।
- सप्तक – सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा।
- लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं।
- यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक‘ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक‘ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक‘ कहते हैं।