भारत में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) की गणना नीति आयोग (NITI Aayog), OPHI, और UNDP के सहयोग से की जाती है. यह सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा, और जीवन स्तर के तीन समान रूप से भारित आयामों में एक साथ अभाव का आकलन करता है. इन आयामों में पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, भोजन पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, ऊर्जा, आवास, संपत्ति, और बैंक खाते शामिल हैं.
MPI के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति का दरिद्रता स्कोर 33.33% या इससे ज़्यादा है, तो उसे गरीब माना जाता है. साल 2013-14 में भारत में बहुआयामी गरीबी 29.17% थी, जो घटकर 2022-23 में 11.28% रह गई. इस दौरान करीब 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है, जहां 5.94 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. इसके बाद बिहार 3.77 करोड़ और मध्य प्रदेश 2.30 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.
भारत में बहुआयामी गरीबी में आई इस गिरावट का श्रेय सरकार की अलग-अलग पहलों को दिया जाता है. साल 2021 के वैश्विक एमपीआई के मुताबिक, भारत 109 देशों में 66वें स्थान पर था. साल 2015-16 से 2019-21 के बीच, एमपीआई का आंकड़ा लगभग आधा हो गया था, 0.117 से 0.066.