- भारत के संविधान में अनुच्छेद 280 के अंतर्गत वित्त आयोग (Finance Commission) की व्यवस्था की गई है , इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा हर पांचवें वर्ष किया जाता है।
- राज्य वित्त आयोग का गठन राज्यपाल के द्वारा 5 वर्ष के लिए अनुच्छेद 243-I के तहत किया जाता है
- वित्त आयोग में एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- प्रथम वित्त आयोग अध्यक्ष – के.सी. नियोगी, पंद्रहवा वित्त आयोग अध्यक्ष – N.K.SINGH
- 16 वें वित्त आयोग का अध्यक्ष – अरविंद पनगढ़िया
- उनका कार्यकाल राष्ट्रपति के आदेश के तहत तय होता है। उनकी पुनर्नियुक्ति भी हो सकती है।
- यह एक संवैधानिक संस्था (constitutional body) और अर्द्ध-न्यायिक निकाय (quasi-judicial body) है.
- संविधान ने संसद को इन सदस्यों की योग्यता और चयन विधि का निर्धारण करने का अधिकार दिया है।
- इसी के तहत संसद ने आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की विशेष योग्यताओं का निर्धारण किया है।’
- अध्यक्ष सार्वजनिक मामलों का अनुभवी होना चाहिए और अन्य चार सदस्यों को निम्नलिखित में से चुना जाना चाहिए:
- 1. किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या इस पद के लिए योग्य व्यक्ति।
- 2. ऐसा व्यक्ति जिसे भारत के लेखा एवं वित्त मामलों का विशेष ज्ञान हो।
- 3. ऐसा व्यक्ति, जिसे प्रशासन और वित्तीय मामलों का व्यापक अनुभव हो।
- 4. ऐसा व्यक्ति, जो अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञाता हो।
- वित्त आयोग, भारत के राष्ट्रपति को निम्नांकित मामलों पर सिफारिशें करता है:
- 1. संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगामों का वितरण और राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन।
- 2. भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांत।
- 3. राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगरपालिकाओं और पंचायतों के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए आवश्यक उपाए।
- 4. राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सुदृढ़ वित्त के हित में निर्दिष्ट कोई अन्य विषय।
- 1960 तक आयोग असम, बिहार, ओडीशा एवं पश्चिम बंगाल को प्रत्येक वर्ष जूट और जूट उत्पादों के निर्यात शुल्क में निवल प्राप्तियों के ऐवज में दी जाने वाली सहायता राशि के बारे में भी सुझाव देता था। संविधान के अनुसार, यह सहायता राशि दस वर्ष की अस्थायी अवधि तक दी जाती रही।
- आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जो इसे संसद के दोनों सदनों में रखता है।
- रिपोर्ट के साथ उसका आकलन संबंधी ज्ञापन एवं इस संबंध में उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में विवरण भी रखा जाता है।
सलाहकारी भूमिका
- यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि वित्त आयोग की सिफारिशों की प्रकृति सलाहकारी होती है और इनको मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं होती।
- यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह राज्य सरकारों को दी जाने वाली सहायता के संबंध में आयोग की सिफारिशों को लागू करे।
- संविधान में यह नहीं बताया गया है कि आयोग की सिफारिशों के प्रति भारत सरकार बाध्य होगी और आयोग द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर राज्यों द्वारा प्राप्त धन को लाभकारी मामलों में लगाने का उसे विधिक अधिकार होगा।
- इसकी सलाह को भारत सरकार तब तक मानने के लिये बाध्य नहीं है, जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो।
- वित्त आयोग भारत में राजकोषीय संघवाद के संतुलन की भूमिका निभाएगा।