- लैटेराइट मृदा (Laterite Soil) लेटराइट मिट्टी का सर्वप्रथम अध्ययन 1905 में बुकानन द्वारा किया गया
- इस मृदा उच्च तापमान एवं भारी वर्षा क्षेत्रों में पाई जाती है।
- अधिक वर्षा के कारण जल के साथ चूना और सिलिका का निक्षालन हो जाता है तथा लोहे के ऑक्साइड और एल्युमीनियम के यौगिक मृदा में शेष बचे रहते हैं।
- प्रारूप लोहे का अतिरेक होने के कारण अनुर्वर हो रहा है।
- यह साधारणतः लाल रंग की होती है
- इसमें चूना ,जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्शियम की कमी होती है।
- कम उपजाऊ मृदा मानी जाती है।
- रबड़ और कॉफी की फसल के लिये सबसे अच्छी मानी जाती है।
- चाय, कहवा, रबड़, सिनकोना, काजू,टैपियोका मोटे अनाजों एवं मसालों की कृषि की जाती है
- आद्र अपछालित प्रदेश की मिटटी है।
- यह मृदा सूखने के बाद बहुत कड़ी हो जाती है
- लैटेराइट मृदा का प्रयोग ‘ईटों’ के निर्माण में भी किया जाता है।