लाल मृदा
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  • लाल-पीली मृदा (Red-Yellow Soil) – यह भारत की दूसरी प्रमुख मृदा है, जिसका विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें (ग्रेनाइट तथा नीस) पाई जाती हैं। 
  • इसके अतिरिक्त पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्रों, ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में भी इस मृदा का विकास हुआ है।
  • प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश क्षेत्रों में इस मिट्टी का विकास होने के कारण इसे ‘मंडलीय मृदा’ भी कहते हैं। 
  • लोहे के ऑक्साइड (मुख्यतः फेरिक ऑक्साइड) की उपस्थिति के कारण ही इस मिट्टी का रंग लाल होता है। 
  • इस मृदा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश एवं ह्यूमस की कमी होती है। यह स्वभाव से अम्लीय प्रकृति की होती है। 
  • महीन कण वाली लाल व पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं, जबकि मोटे कणों वाली मृदाएँ अनुर्वर होती हैं। 
  • लाल मृदा ऊँची भूमियों पर बाजरा, मूंगफली और आलू की खेती के लिये उपयोगी है, जबकि निम्न भूमियों पर इसमें चावल, रागी, तंबाकू तथा सब्जियों आदि की खेती की जाती है।