- जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil) नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपों से या सागर द्वारा पश्चगमन (पीछे हटने) के उपरांत छोड़े गए गाद से बनी है।
- इसे ‘काँप मृदा‘ या ‘कछारी मिट्टी‘,लोम (loam) मिट्टी भी कहते हैं।
- भारत के उत्तरी मैदान में जलोढ़ मृदा का सर्वाधिक विकास हुआ है।
- भारत का सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी है
- 40% बालू के कण
- 40% मृतिका (clay )
- 20% गाद
- इस मिट्टी का विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर तक है।
- भारत में सबसे अधिक भू-भाग पर (33.5%) जलोढ़ मिट्टी ही पाई जाती है।
- कृषि के लिये अधिक उपयोगी होती है।
- इस प्रकार की मृदा पर प्रायः गहन कृषि की जाती है।
- इसमें पोटाश (सर्वाधिक मात्रा) एवं चूने की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है
- फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की कमी होती है।
- बलुई दोमट मृदा की जलधारण क्षमता सबसे कम होती है, क्योंकि इसमें भारी मात्रा में रवे होते हैं
- चिकनी जलोढ़ मिट्टी में जल धारण की क्षमता सबसे अधिक होती है।
- भारत में जलोढ़ मृदा के अधिकांश क्षेत्र का संबंध अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश से होने के कारण ही इनके ऊपर की परतों में क्षारीय तत्त्वों की अधिकता रहती है।
- अम्लीय मिट्टी को स्थानीय रूप से रेह ,थुर , चोपन, ऊसर ,कल्लर जैसे नामों से भी जाना जाता है।
- इसका रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है ।
- प्राचीन जलोढ़ मिट्टी (बांगर)
- ‘नवीन जलोढ़ मृदा’ अथवा ‘खादर‘
- मध्य एवं निम्न मदानी क्षेत्रों में बाढ़ के कारण मृदा का नवीनीकरण होता है। इसे ‘नवीन जलोढ़ मृदा’ अथवा ‘खादर’ कहते हैं।
- गंगा के मैदानी भागों में इसकी गहराई लगभग 2,000 मीटर तक है।
- इस मिट्टी में मुख्यतः गेहूँ, गन्ना, जौ, दालें, तिलहन और गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में जूट की फसलें उगाई जाती हैं।
- इस मृदा में सामान्यतः मृदा संस्तर (Soil Profile) नहीं पाया जाता है।
- जलोढ़ मृदा को सामान्यतः 4 वर्गों में विभाजित किया जाता है
- 1. भाबर
- 2. तराई
- 3. बांगर
- 4. खादर