- वाच्य का शाब्दिक अर्थ है – ‘बोलने का विषय’।
- क्रिया के जिस रूपांतर से यह जाना जाए कि क्रिया द्वारा किए गए विधान (कही गई बात) का विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है उसे ‘वाच्य‘ कहते हैं।
- खोरठा में वाच्य तीन होते हैं –
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य,
- भाववाच्य
कर्तृवाच्य – कर्ता प्रधान हो
- जिस वाक्य में वाच्य बिंदु ‘कर्ता’ है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं; जैसे –
- राम रोटी खाता है ।
- कविता गाना गाएगी।
- वह व्यायाम कर रहा है।
2. कर्मवाच्य – कर्म प्रधान हो
- जहाँ वाच्य बिंदु कर्ता न होकर कर्म हो, वह वाच्य कर्मवाच्य कहलाता है। जैसे –
- रोटी राम से खाई जाती है।
- कविता से गाना गाया जाएगा।
- उससे व्यायाम किया जा रहा है।
कर्मवाच्य के प्रयोग स्थल:
निम्नलिखित स्थलों पर कर्मवाच्य वाक्यों का प्रयोग होता है:
- (क) जहाँ कर्ता अज्ञात हो; जैसे– पत्र भेजा गया।
- (ख) जब आपके बिना चाहे कोई कर्म अचानक आ गया हो; जैसे – काँच का गिलास टूट गया।
- (ग) जहाँ कर्ता को प्रकट न करना हो; जैसे – डाकुओं का पता लगाया जा रहा है।
- (घ) सूचना, विज्ञप्ति आदि में, जहाँ कर्ता निश्चित नहीं है; जैसे – अपराधी को कल पेश किया जाए। रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
- (ङ) अशक्यता सूचित करने के लिए; जैसे – अब अधिक दूध नहीं पिया जाता।
भाववाच्य – क्रिया प्रधान हो
- जहाँ वाच्य बिंदु न तो कर्ता हो, न कर्म बल्कि क्रिया का भाव ही मुख्य हो, उसे भाववाच्य कहा जाता है; जैसे –
- बच्चों द्वारा सोया जाता है।
- अब चला जाए।
- मुझसे बैठा नहीं जाता।