बेरोज़गारी Unemployment : SARKARI LIBRARY

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 परिचय

  • भारत में बेरोज़गारी के प्रकार
    • शहरी बेरोज़गारी
      • औद्योगिक बेरोज़गारी
      • शिक्षित बेरोज़गारी
    • ग्रामीण बेरोज़गारी
      • प्रच्छन्न बेरोज़गारी
      • मौसमी बेरोज़गारी
  • बेरोज़गारी के अन्य प्रकार
    • खुली बेरोज़गारी
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी
    • अल्प रोज़गार 
      • दृश्य अल्प रोज़गार
      • अदृश्य अल्प रोज़गार
    • संघर्षात्मक/घर्षणात्मक बेरोज़गारी
    • चक्रीय बेरोज़गारी
  • बेरोज़गारी की अवधारणाएँ
    • सामान्य स्थिति बेरोज़गारी
    • साप्ताहिक स्थिति बेरोज़गारी
    • दैनिक स्थिति बेरोज़गारी
    • सामान्य सैद्धांतिक एवं सहायक स्थिति दृष्टिकोण
  • भारत में बेरोज़गारी के कारण
  • बेरोज़गारी के परिणाम
    • आर्थिक परिणाम
    • सामाजिक परिणाम
  • भारत में बेरोज़गारी दूर करने के संबंध में सुझाव
  • बेरोज़गारी से संबंधित सरकारी योजनाएँ एवं कार्यक्रम
    • पंडित दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना .
    • कौशल विकास एवं उद्यमिता के लिये राष्ट्रीय नीति, 2015
    • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम
    • प्रधानमंत्री युवा योजना
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
  • अभ्यास प्रश्न

परिचय (Introduction )

  • एक व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है, जब वह प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिये तैयार तथा इच्छुक है, किंतु उसे काम नहीं मिलता है।
  • जब समाज में प्रचलित पारिश्रमिक पर भी काम करने के इच्छुक एवं सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य नहीं मिलता तब ऐसे व्यक्तियों को ‘बेरोज़गार’ तथा ऐसी समस्या को ‘बेरोज़गारी की समस्या’ कहा जाता है।
  • बेरोज़गारी मानव संसाधन की हानि है । 
  • रोज़गार में आनुपातिक वृद्धि के बिना होने वाली आर्थिक संवृद्धि सामाजिक न्याय रहित तथा विकास से वंचित संवृद्धि होती है और इस कारण यह निरर्थक होती है।
  • सामान्य रूप से 15–59 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रूप से सक्रिय अर्थात् कार्यशील माना जाता है।अतः अगर इस आयु वर्ग के व्यक्ति लाभदायक रूप से नियोजित नहीं हैं तो इन्हें बेरोज़गार माना जाता है ।
  • भारत में बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय’ (NSSO) द्वारा जारी किये जाते हैं।

 (NSSO-National Sample Survey Office)

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO-National Sample Survey Office), जिसे पहले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) कहा जाता था, मई 2019 तक भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय(Ministry of Statistics) के अधीन काम करता है।
  •  23 मई 2019 को, भारत सरकार ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO-National Statistical Office) बनाने के लिए NSSO को केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO-Central Statistics Office) के साथ विलय करने का आदेश पारित किया।
  • NSO का नेतृत्व सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI- Ministry of Statistics and Programme Implementation) करेगा।
  • भारत में अधिकांश असंगठित क्षेत्र द्वारा अनौपचारिक रोज़गार उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • रोज़गार के संबंध में आँकड़ों को एकत्र करने के लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में कार्यबल का गठन किया गया।
  • यह कार्यबल रोज़गार तथा बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़ों का संग्रहण करने, आँकड़ों का मूल्यांकन करने, हालिया वर्षों के दौरान सृजित रोज़गार के अवसरों का अनुमान लगाने एवं भविष्य में रोज़गार से संबंधित अनुमानों को रूप से प्रस्तुत करने से संबंधित कार्य करेगा।

शहरी बेरोज़गारी (Urban Unemployment)

शहरी क्षेत्रों में मुख्य रूप से दो प्रकार की बेरोज़गारी पाई जाती है

औद्योगिक बेरोज़गारी (Industrial Unemployment )

  • औद्योगिक बेरोज़गारी में वे लोग शामिल होते हैं, जो लोग तकनीकी एवं गैर-तकनीकी रूप से कार्य करने की क्षमता तो रखते हैं, परंतु बेरोज़गार हैं।
  • औद्योगिक क्षेत्र में बेरोज़गारी की समस्या जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है।
  • रोज़गार की तलाश में बड़ी मात्रा में ग्रामीणों का शहरी क्षेत्रों में प्रवसन होता रहा है। इसके कारण शहरों में औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों की पूर्ति बढ़ती जाती है ।
  • देश में औद्योगिक बेरोज़गारी में वृद्धि का कारण धीमी औद्योगीकरण प्रक्रिया तथा अनुपयुक्त तकनीक का प्रयोग है।

शिक्षित बेरोजगारी ( Educated Unemployment )

  • पढे-लिखे लोगों द्वारा रोज़गार न प्राप्त कर पाना शिक्षित बेरोज़गारी कहलाती है अर्थात् ऐसे श्रमिक जिनके शिक्षण-प्रशिक्षण में बड़ी मात्रा में संसाधन उपयोग किये जाते हैं तथा इन श्रमिकों की कार्य दक्षता भी अन्य श्रमिकों से अधिक होती है, ऐसे रोज़गार विहीन श्रमिकों को ‘शिक्षित बेरोज़गार’ कहते हैं ।
  • भारत में शिक्षित वर्ग में बेरोज़गारी की समस्या काफी गंभीर है।
  • भारत में शिक्षित बेरोज़गारी के निम्नलिखित कारण हैं-
    • देश में शिक्षण संस्थाओं, जैसे- विश्वविद्यालय, कॉलेजों, स्कूलों आदि की संख्या में वृद्धि होने के कारण शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि होना;
    • भारत में शिक्षा प्रणाली रोज़गारप्रेरक नहीं बल्कि उपाधिप्रेरक है अर्थात् भारत में शिक्षा व्यवस्था दोषपूर्ण है;
    • भारत में रोज़गार के अवसरों में उतनी वृद्धि नहीं हुई है, जितनी शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है अर्थात् शिक्षित लोगों की मांग व पूर्ति में असंतुलन पाया जाता है।

ग्रामीण बेरोज़गारी ( Rural Unemployment )

ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः दो प्रकार की बेरोज़गारी पाई जाती है –

प्रच्छन्न / अदृश्य बेरोज़गारी (Disguised Unemployment )

  • कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी की समस्या अत्यधिक पाई जाती है। 
  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी वह है, जिसमें किसी कार्य को करने के लिये जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है, उससे अधिक श्रमिक काम पर लगे हुए होते हैं।
  • ‘अदृश्य बेरोज़गार’ उसे कहा जाता है, जिसमें लोग देखने में तो काम में लगे होते हैं, परंतु यदि उन्हें उत्पादन क्रिया से अलग कर दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा उत्पादन पूर्ववत् ही बना रहेगा अर्थात् यहाँ पर सीमांत उत्पादन शून्य होता है।
  • इस प्रकार की बेरोज़गारी में श्रमिकों/व्यक्तियों की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति का उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

मौसमी बेरोज़गारी (Seasonal Unemployment )

  • एक वर्ष के किसी मौसम या कुछ महीनों के लिये किसी व्यक्ति को रोज़गार मिलना तथा शेष महीनों या मौसम में कार्य नहीं मिलना ‘मौसमी बेरोज़गारी’ कहलाता है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोज़गारी अधिक पाई जाती है।
  • भारत की लगभग 48 प्रतिशत जनसंख्या कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कार्यरत है।
  • कृषि एक मौसमी व्यवसाय है अर्थात् कृषि में मौसम के अनुसार फसलें बोई जाती हैं । खाली मौसम में अक्सर कृषि में कार्यरत किसान बेरोज़गार रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के अतिरिक्त और भी कई मौसमी कार्य हैं, जैसे- ईंटों के भट्टे, गन्ना पेराई इत्यादि के क्षेत्र में कार्य; जिनमें मौसमी बेरोजगारी की समस्या पाई जाती है।

बेरोज़गारी के अन्य प्रकार (Other types of Unemployment )

खुली बेरोज़गारी (Open Unemployment)

  • खुली बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें श्रमिक काम करने के लिये तैयार होता है तथा उसमें काम करने की आवश्यक योग्यता भी होती है, परंतु उसे काम नहीं मिलता है । वह पूरे समय के लिये बेकार रहता है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment )

  • ‘संरचनात्मक बेरोज़गारी’ वह बेरोज़गारी है, जो अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। 
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था में औद्योगिक ढाँचे के पिछड़ेपन, सीमित पूंजी, पुरानी उत्पादन तकनीकी इत्यादि के कारण होती है। 
  • यह एक दीर्घकालीन समस्या है।

संरचनात्मक परिवर्तन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं –

  • प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन तकनीक में परिवर्तन के फलस्वरूप पुराने तकनीकी कारीगरों की आवश्यकता नहीं रहती, वे बेरोज़गार हो जाते हैं ।
  • मांग के प्रतिमान में परिवर्तन के फलस्वरूप कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं और श्रमिकों को उद्योगों से बाहर कर दिया जाता है।

अल्प रोज़गार (Underemployment )

  • जब एक श्रमिक को जितने समय काम करना चाहिये, उससे कम समय के लिये काम मिलता है अथवा इसे वर्ष में कुछ महीनों/ समय के लिये बेकार रहना पड़ता है या श्रमिक को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिलता है तो इस अवस्था को ‘अल्प रोज़गार’ की अवस्था ‘ कहा जाता है। 
  • अल्प रोज़गार दो प्रकार का होता है-
    1. दृश्य अल्प रोज़गार (Visible Underemployment )
    2. अदृश्य अल्प रोज़गार (Invisible Underemployment )

दृश्य अल्प रोज़गार (Visible Underemployment )

  • इस अवस्था में लोगों को काम करने के सामान्य घंटों से कम काम मिलता है। 
  • जैसे- भारत में एक व्यक्ति सामान्यतः 8 घंटे काम करता है। यदि उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध केवल 4 घंटे काम करना पड़े तो इस अवस्था को ‘दृश्य अल्प रोज़गार’ कहा जाएगा।


अदृश्य अल्प रोज़गार (Invisible Underemployment )

  • इस अवस्था में लोग काम तो पूरा समय करते हैं, परंतु उनकी आय बहुत कम होती है अथवा उन्हें ऐसे काम करने पड़ते हैं, जिनमें उनकी योग्यता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता । 
  • अदृश्य अल्प रोज़गार वह स्थिति है, जिसमें श्रमिकों / व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार बहुत निम्न स्तर का कार्य मिलता है । 
  • जैसे- एक एम. ए. पास व्यक्ति को चपरासी का काम करना पड़े तो वह ‘अदृश्य अल्प रोज़गार’ कहलाएगा.


संघर्षात्मक / घर्षणात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment )

  • यह बेरोज़गारी उस समय  विशेष के दौरान उत्पन्न होती है, जब श्रमिक एक उत्पादन प्रक्रिया से दूसरी प्रक्रिया की ओर चले जाते हैं अर्थात् विभिन्न व्यवसायों में श्रमिकों की गतिशीलता में अपूर्णता के कारण यह बेरोज़गारी उत्पन्न होती है। 
  • एक व्यक्ति एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में जाने के लिये इच्छुक होता है, परंतु नए व्यवसाय / कार्यों के लिये उसे आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है। इस प्रकार परिवर्तन की प्रक्रिया के दौरान वह श्रमिक / व्यक्ति कुछ समय के लिये बेरोज़गार हो जाता है, इसे ही ‘संघर्षात्मक बेरोज़गारी’ कहते हैं । 
  • अर्थव्यवस्था के आर्थिक ढाँचे में होने वाले परिवर्तन एवं उत्पादन प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन एवं प्रौद्योगिकी परिवर्तन के कारण संघर्षात्मक बेरोज़गारी उत्पन्न होती है । 
  • इस प्रकार यह बेरोज़गारी विकास के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।


चक्रीय बेरोज़गारी ( Cyclical Unemployment)

  • यह बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ावों के कारण उत्पन्न होती है। 
  • आर्थिक तेज़ी के दौरान आर्थिक गतिविधियों का स्तर ऊँचा हो जाता है और इसके फलस्वरूप रोज़गार की मात्रा भी बढ़ जाती है। 
  • इसके विपरीत आर्थिक मंदी वह अवस्था है, जिसमें कुल मांग बहुत अधिक मात्रा में गिर जाती है, जिससे उत्पादन तथा रोज़गार में काफी कटौती होती है । चक्रीय बेरोज़गारी मुख्यतया व्यापार चक्र से संबंधित होती है। 
  • यह बेरोज़गारी सामान्यतया अस्थायी प्रकृति की होती है। 
  • आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप यह बेरोज़गारी समाप्त हो जाती है ।


बेरोज़गारी की अवधारणाएँ (Concepts of Unemployment)


सामान्य स्थिति बेरोज़गारी (Usual Status Unemployment) 

  • सामान्य स्थिति बेरोज़गारी एक व्यक्ति दर है एवं यह दीर्घकालीन बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़ों को प्रदर्शित करती है। 
  • इसके अंतर्गत लोगों की सामान्य गतिविधियों के बारे में जानने का प्रयास किया जाता है। 
  • इसमें यह जानने का प्रयास किया जाता है कि सर्वेक्षण में शामिल व्यक्तियों में से कितने रोज़गार में हैं, बेरोज़गार हैं अथवा श्रम शक्ति से बाहर हैं । इसमें सामान्यतया सर्वेक्षण से पहले के एक वर्ष के आँकड़ों का अध्ययन किया जाता है। 
  • इसके अंतर्गत यदि व्यक्ति 365 दिनों में से 183 दिन या इससे अधिक दिन रोज़गार में नियोजित है तो उसे श्रम बल में माना जाता है और यदि वह 183 दिनों से रोज़गाररत नहीं है तो उसे श्रम बल से बाहर माना जाता है । 
  • इस प्रकार प्रदर्शित बेरोज़गारी जीर्ण अथवा दीर्घकालीन बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है ।


साप्ताहिक स्थिति बेरोज़गारी (Weekly Status Unemployment )

  • साप्ताहिक स्थिति बेरोज़गारी भी एक व्यक्ति दर है, जो पिछले सात दिनों (सप्ताह) में किसी व्यक्ति की सामान्य गतिविधियों को प्रदर्शित करती है। 
  • इसके अंतर्गत यदि व्यक्ति इन सात दिनों में एक घंटा भी कार्य प्राप्त करने में समर्थ रहता है तो उसे रोज़गार में मान लिया जाता है ।


दैनिक स्थिति बेरोज़गारी (Daily Status Unemployment)

  • दैनिक स्थिति बेरोज़गारी प्रति सप्ताह बेरोज़गारी के श्रम  दिनों का प्रति सप्ताह कुल श्रम दिनों से अनुपात है । 
  • यह एक समय दर है । 
  • इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति की पिछले सात दिनों में से प्रतिदिन की गतिविधियों एवं कार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी दिन एक घंटे से अधिक एवं चार घंटे से कम काम करता है तो उसे आधे दिन कार्यरत माना जाएगा और चार घंटों से अधिक काम करने पर वह व्यक्ति पूरे दिन कार्यरत माना जाता है । 
  • दैनिक स्थिति बेरोज़गारी, बेरोज़गारी की सर्वोत्तम माप प्रस्तुत करती है ।


सामान्य सैद्धांतिक एवं सहायक स्थिति दृष्टिकोण (Usual Principal and Subsidiary Status Approach-UPSS)

  • इस दृष्टिकोण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पिछले 12 माहों में 30 दिन या उससे अधिक दिनों के लिये आर्थिक गतिविधियों में नियोजित अथवा रोज़गाररत है तो उसे रोज़गार में माना जाता है।


श्रम आपूर्ति(Labour Supply)

  • श्रम आपूर्ति से अभिप्राय, विभिन्न मज़दूरी दरों के अनुरूप श्रम की आपूर्ति से है। 
  • श्रम की आपूर्ति का माप मनुष्य-दिनों (Man- days) के रूप में किया जाता है और इसका अध्ययन सदैव मज़दूरी दर के संदर्भ में किया जाता है।
  • काम करने वालों की संख्या स्थिर रहते हुए भी श्रम की आपूर्ति कम या अधिक हो सकती है, क्योंकि श्रम की आपूर्ति को मनुष्य-दिनों या व्यक्ति-दिनों (Person Days) के रूप में मापा जाता है।उदाहरणस्वरूप एक-व्यक्ति-दिन से अभिप्राय 8 घंटे का काम है।


श्रम बल(Labour force)

  • श्रम बल से अभिप्राय है, वास्तव में काम कर रहे या काम करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या। 
  • इसका मज़दूरी दर से कोई संबंध नहीं होता है।
  • क्योंकि इसे व्यक्तियों की संख्या के रूप में (न कि व्यक्ति-दिनों के रूप में) मापा जाता है, इसलिये श्रम बल का आकार तब बढ़ता या घटता है, जब वास्तव में काम करने वालों या काम करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या बढ़ती या घटती है।


बेरोज़गारी का आधार (Basis of Unemployment )

  1. यदि कोई व्यक्ति किसी वर्ष में इष्टतमपूर्ण रोज़गारीय घंटे या दिन से कम काम करता है तो उसे हम ‘समय आधार पर बेरोज़गार’ कहेंगे।
  2. यदि कोई वांछित न्यूनतम स्तर से कम आय अर्जित करता है तो उसे ‘आय कसौटी पर बेरोज़गार’ कहेंगे।
  3. यदि कोई व्यक्ति वर्तमान में लगे हुए काम से अधिक कार्य करने के लिये इच्छुक है तो उसे ‘इच्छुकता के आधार पर बेरोज़गार’ कहेंगे।
  4. यदि किसी व्यक्ति के रोज़गार से निकलने के बाद भी कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़े तो उसे ‘निष्पादन आधार पर बेरोज़गार’ कहेंगे।


भारत में बेरोज़गारी के कारण (Causes of Unemployment in India)

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक संवृद्धि दर का निम्न होना
  • जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
  • दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
  • बचत एवं निवेश का निम्न स्तर
  • भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता दबाव 
  • लघु एवं कुटीर उद्योगों का ह्रास
  • कृषि आधारित उद्योगों का अभाव
  • कृषि एक मौसमी व्यवसाय
  • रोज़गार विहीन संवृद्धि
  • श्रमिकों की गतिशीलता का अभाव
  • नागरिकों में उद्यमशीलता का अभाव
  • नागरिकों में कौशल एवं तकनीकी ज्ञान का अभाव
  • अपर्याप्त रोज़गार योजनाएँ
  • परंपरागत हस्तकला उद्योगों का ह्रास
  • स्वरोज़गार की इच्छा का अभाव।

नौकरी रहित संवृद्धि / रोज़गार विहीन संवृद्धि (Jobless Growth)

  • आर्थिक संवृद्धि तब होती है, जब देश में वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि होती है अर्थात् उत्पादन के स्तर में वृद्धि होती है।
  • उत्पादन के स्तर में वृद्धि दो प्रकार से होती है
    • अधिक रोज़गार द्वारा
    • बेहतर प्रौद्योगिकी द्वारा
  • आर्थिक संवृद्धि तभी अर्थपूर्ण सिद्ध होती है, जब रोज़गार के अवसरों में भारी वृद्धि होती है, जिससे कि निर्धनता का सामना किया जा सके। 
  • इसकी बजाय यदि आर्थिक संवृद्धि केवल बेहतर प्रौद्योगिकी द्वारा होती है तो यह अर्थव्यवस्था में सहभागिता की दर को सुधारने में अक्षम होती है। ऐसी संवृद्धि को ही ‘नौकरी रहित संवृद्धि / रोज़गार विहीन संवृद्धि’ (Jobless Growth) कहा जाता है।
  • नौकरी रहित संवृद्धि वह स्थिति होती है, जिसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्तर तो बढ़ता है, किंतु रोजगार के अवसरों में उसी अनुपात में वृद्धि नहीं होती, अतः बेरोज़गारी बनी रहती है।
  • यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है, लेकिन यह वृद्धि प्रौद्योगिकी में सुधार द्वारा होती है।


ओकुन का नियम (Okun’s Law)

  • ओकुन का नियम किसी देश की विकास दर और बेरोज़गारी दर के बीच संबंध बताता है । 
  • इन दोनों में विपरीत संबंध पाया जाता है । 
  • ओकुन के नियमानुसार, यदि किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद में 3 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो उस देश की बेरोजगारी दर में 1 प्रतिशत की कमी होगी । 
  • इसी प्रकार यदि किसी देश में बेरोज़गारी की दूर में 1 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3 प्रतिशत की कमी होगी।


गरीबी सूचकांक / दुःख सूचकांक (Misery Index)

  • इस सूचकांक का आविष्कार ऑर्थर ओकुन द्वारा किया गया था। 
  • इस सूचकांक की मुख्य धारणा यह है कि बढ़ती बेरोजगारी दर और अपेक्षाकृत उच्च मुद्रास्फीति दर का आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • यह सूचकांक किसी निश्चित समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में बेरोज़गारी की दर और मुद्रास्फीति की दर का योग होता है।


बेरोज़गारी के परिणाम (Consequences of Unemployment)

अत्यधिक बेरोज़गारी अर्थात् बेरोज़गारी की उच्च दर किसी भी अर्थव्यवस्था के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में एक बड़ी बाधा है।

आर्थिक परिणाम (Economic Consequences)

  • मानव संसाधन अर्थात् मानव शक्ति का कुशलतम प्रयोग नहीं;
  • वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में कमी;
  • बचत एवं पूंजी निर्माण की दर में गिरावट;
  • निम्न उत्पादकता की समस्या;
  • आर्थिक संवृद्धि की निम्न दर ।


सामाजिक परिणाम (Social Consequences)

  • जीवन स्तर की निम्न गुणवता 
  • आय तथा संपत्ति के वितरण में असमानता 
  • नागरिकों के मनोबल में कमी
  • वर्ग संघर्ष
  • सामाजिक अशांति
  • सामाजिक कुप्रथाओं एवं गैर-कानूनी गतिविधियों में बढ़ावा ।


भारत में बेरोज़गारी दूर करने के संबंध में सुझाव

(Suggestions to Solve the Problem of Unemployment in India)

  • रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के लिये कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये;
  • लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास को बढ़ावा देना चाहिये 
  • पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि एवं पूंजी-उत्पाद अनुपात में कमी की जानी चाहिये
  • श्रम की उत्पादकता एवं कुशलता में सुधार करना चाहिये 
  • शिक्षा प्रणाली में सुधार एवं व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिये
  • कृषि क्षेत्र में बहुफसलों को बढ़ावा देना चाहिये । इसके साथ ही बागवानी व वाणिज्यिक फसलों को भी बढ़ावा देना चाहिये
  • मत्स्यपालन एवं पशुपालन आदि गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिये
  • सहकारी उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये
  • स्वरोज़गार को बढ़ावा देना तथा स्वरोज़गार में लगे लोगों को सहायता प्रदान की जानी चाहिये
  • कौशल विकास हेतु कार्यक्रम चलाए जाने चाहिये
  • उत्पादन की तकनीक देश के संसाधनों एवं आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिये। पूंजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिये 
  • योजनाओं में रोज़गार के कार्यक्रमों को महत्त्व देना चाहिये।

बेरोज़गारी से संबंधित सरकारी योजनाएँ एवं कार्यक्रम


पंडित दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम (Pandit Deen Dayal Upadhyaya Shramev Jayate Karyakram)

  •   ‘पंडित दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम’ का शुभारंभ  16 अक्तूबर, 2014 को किया गया। 
  • इस कार्यक्रम के तहत ‘पाँच योजनाएँ’ आरंभ की गईं। 
  • इन योजनाओं का उद्देश्य औद्योगिक विकास और आसान व्यवसाय हेतु अनुकूल माहौल बनाना और श्रमिकों को प्रशिक्षण देने के लिये सरकारी सहायता को बढ़ाना है।
  • ‘पंडित दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम’ का क्रियान्वयन भारत सरकार के ‘श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय’ द्वारा किया जा रहा है।


कार्यक्रम की पाँच योजनाएँ

  1. समर्पित श्रम सुविधा पोर्टल (A Dedicated Shram Suvidha Portal)


समर्पित श्रम सुविधा पोर्टल (A Dedicated Shram Suvidha Portal)

  • इस पोर्टल के अंतर्गत सरकार लगभग 6 लाख फर्मों को श्रम पहचान संख्या अथवा लेबर आइडेंटीफिकेशन नंबर (Labour Identif