पुनर्जागरण काल के दौरान यूरोपीय देशों ने विभिन्न भौगोलिक खोजें की
छापेखाने का आविष्कार
नौवहन प्रणाली
विश्व के कई प्रसिद्ध आविष्कार एवं सिद्धांतों की चर्चा भारत के अन्वेषकों ने हजारों वर्ष पूर्व कर दी थी, परंतु औपनिवेशिक दासता के कारण भारत उन सिद्धांतों की वैश्विक मान्यता न ले पाया।
जिस गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को हम पाश्चात्य वैज्ञानिक न्यूटन की देन मानते हैं, इसकी पुष्टि न्यूटन से सैकड़ों वर्ष पूर्व ब्रह्मगुप्त ने कर दी थी।
आर्यभट्ट ने कॉपरनिकस से सैकड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी की गोल आकृति और इसके धुरी पर घूमने की बात सिद्ध कर दी थी।
खगोल शास्त्र, गणित, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, धातु विज्ञान तथा विभिन्न तकनीकों एवं कई प्रमुख सिद्धांतों का ज़िक्र भारत के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
आर्यभट्ट गणितज्ञ
वर्गमूल, घनमूल निकालने की विधि
‘ज्या’ (Sine) सिद्धांत
ब्रह्मगुप्त गणितज्ञ
‘पिंगल’ गणितज्ञ
प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में
‘पिंगल’ ने ‘बाइनरी पद्धति’ को दशमलव संख्याओं में परिवर्तनीय समीकरण के तौर पर विकसित किया।
पुस्तक- ‘छंदशास्त्र’
खगोल शास्त्री
आर्यभट्ट – आर्यभटीयम्’ ग्रंथ में कुल 121 श्लोक हैं।
उन्होंने प्रतिपादित किया कि पृथ्वी गोल है तथा अपनी धुरी पर घूमते हुए जब उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चंद्रग्रहण होता है।
इसके विपरीत, जब चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है। यद्यपि उस समय के पुरातनपंथी विचारकों के अनुसार ग्रहण तब होता था, जब राक्षस नक्षत्र को निगल लेता था।
वराहमिहिर – ‘पंचसिद्धांतिका’ ग्रंथ
पंचसिद्धांतिका में नक्षत्र विज्ञान विषयक पाँच सिद्धांतों का सार (जिसमें ‘सूर्यसिद्धांत’ ग्रंथ का सार भी शामिल है) दिया गया है।
वराहमिहिर – रचना ‘बृहत्संहिता’ है।
बृहत्संहिता में वराहमिहिर ने बता दिया था कि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है।
ब्रह्मगुप्त – पुस्तक ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’
भास्कराचार्य – ‘सिद्धांत शिरोमणि’ (संस्कृत में लिखी गई रचना है)
औषध विज्ञान
प्राचीन भारत में आयुर्वेद के तीन महान विद्वान हुए
चरक – चरक-संहिता ( चिकित्सा ग्रंथ )
सुश्रुत – सुश्रुत-संहिता ( चिकित्सा ग्रंथ )
वाग्भट – अष्टांग-संग्रह ( चिकित्सा ग्रंथ )
इन्हें ‘बृहत्रयी’ के नाम से जाना जाता है।
औषध विज्ञान एवं ज्ञान के प्रमुख केंद्र – तक्षशिला और बनारस
ये ग्रंथ अनेक भाषाओं में अनूदित होकर चीन और मध्य-एशिया तक पहुंच गए।
पशु चिकित्सक
‘शालिहोत्र’ नामक पशु चिकित्सक के तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं।
हय आयुर्वेद
अश्व लक्षण शास्त्र
अश्व-प्रशंसा
पालकप्य पशु चिकित्सक ने – हास्त्यायुर्वेद ग्रंथ लिखा
प्राचीन भारत के प्रमुख वैज्ञानिक
बौधायन
बौधायन छठी शताब्दी ईसा पूर्व के गणितज्ञ थे
बौधायन ने सर्वप्रथम ‘पाई’ के मान की गणना की।
आर्यभट्ट
‘आर्यभट्ट’ पाँचवीं से छठवीं सदी के गणितज्ञ, नक्षत्रविद्, ज्योतिषविद् और भौतिकी के ज्ञाता थे।
प्रसिद्ध ग्रंथ – ‘आर्यभटीयम्’ है
इस ग्रंथ के चार अध्याय हैं, जिसमें से एक अध्याय का प्रयोग ‘अलबरूनी’ द्वारा अपनी पुस्तक ‘कानून मसूदी’ में किया गया है।
आर्यभट्ट ने वर्गमूल, घनमूल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, पिरामिड का आयतन, वृत्त का क्षेत्रफल आदि संबंधी अवधारणाएँ दीं।
आर्यभट्ट ने शून्य को केवल संख्या नहीं, बल्कि एक चिह्न के रूप में व्याख्यायित किया।
वराहमिहिर
ज्योतिष ग्रंथ – ‘पंचसिद्धांतिका’
वराहमिहिर ने बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेंड के बराबर होता है।
ब्रह्मगुप्त
सातवीं शताब्दी के ज्योतिष एवं गणितज्ञ थे।
उन्होंने ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ एवं ‘खंडखाद्य’ जैसे प्रमुख ग्रंथों की रचनाएँ की हैं।
इनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल और विकर्णों की लंबाई ज्ञात करने
शून्य के प्रयोग के नियम
द्विघात समीकरणों को हल करने के सूत्र (‘चक्रवात विधि’)
ब्रह्मगुप्त का प्रमुख ग्रंथ – ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’
ब्रह्मगुप्त के ‘खंडखाद्य’ ग्रंथ में पंचांग बनाने की विधियों का उल्लेख है।
ब्रह्मगुप्त गणित के सिद्धांतों को ज्योतिष में प्रयोग करने वाले प्रथम विद्वान थे।
बीजगणित के जिस खंड में अनिर्धार्य समीकरणों का अध्ययन किया जाता है, उसे ‘कुट्टक’ कहते हैं। ब्रह्मगुप्त ने इसी आधार पर इसका नाम ‘कुट्टक गणित’ रखा था।
महावीर
9वीं सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् गणितज्ञ
महावीर ने बीजगणित का विकास किया, जिसे बाद में भास्कर ने आगे बढ़ाया।
उन्होंने बताया कि ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल नहीं हो सकता।
महावीर ने ‘चक्रीय चतुर्भुज’ के कई गुणों को उद्घाटित या।
भास्कर-II
भास्कराचार्य द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि‘ है,चार भाग हैं।
पाटीगणित या लीलावती (अंकगणित से संबंधित)
बीजगणित (खगोलशास्त्र से संबंधित)
ग्रहगणिताध्याय
गोलाध्याय
चरक
चरक को प्राचीन भारतीय ‘औषध विज्ञान का जनक’ माना जाता है
ये कनिष्क के दरबार में राजवैद्य थे।
उन्होंने बताया कि शरीर में ‘वात-पित्त-कफ’ जैसे त्रिदोष पाए जाते हैं। ये त्रिदोष शरीर की समस्त क्रियाओं के लिये उत्तरदायी होते हैं। जब तक ये त्रिदोष शरीर में संतुलित रहते हैं; तब तक व्यक्ति स्वस्थ रहता है। लेकिन जैसे ही इनका संतुलन बिगड़ता है, व्यक्ति बीमार हो जाता है।
कफ के असंतुलन से 20, पित्त के असंतुलन से 40 तथा वात दोष के कारण 80 प्रकार के रोग बताए गए हैं।
महर्षि चरक ने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथ ‘चरक संहिता’ का संपादन किया जिसमें रोगनाशक जड़ी-बूटियों का उल्लेख है।
सुश्रुत
छठी शताब्दी ईसा पूर्व काशी में जन्मे सुश्रुत को ‘शल्य चिकित्सा का पितामह’ कहा जाता है।
सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की गई।
सुश्रुत संहिता में उन्होंने 121 शल्य उपकरणों का वर्णन किया है।
शल्य चिकित्सा से पहले रोगी को संज्ञा-शून्य करने (एनेस्थेसिया) की विधि एवं आवश्यकता बताई है।
सुश्रुत ने बहुत ही शुद्ध रूप में कटे अंगों को जोडने की विधि का विवरण दिया है। जो क्रम सुश्रुत ने भंग (कटे-फटे) अंगों को आपस में जोड़ने का बताया है; वही क्रम आज के प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञों द्वारा अपनाया जा रहा है।
सुश्रुत ने लगभग 760 पौधों का भी चिकित्सा की दृष्टि से उल्लेख किया है।
महर्षि कणाद
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के वैज्ञानिक
महर्षि कणाद ‘वैशेषिक दर्शन’ के प्रतिपादक थे।
महर्षि कणाद के अनुसार, यह भौतिक विश्व (परमाणुओं) से बना है, जिन्हें मानवीय आँखों से नहीं देखा जा सकता। इनका पुनः विखंडन नहीं किया जा सकता। अर्थात् न तो इन्हें विभाजित किया जा सकता है और न ही इनका विनाश संभव है।
महर्षि कपिल
‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक महर्षि कपिल को ब्रह्मांड विज्ञान का जनक माना जाता है।
उन्होंने सर्वप्रथम तमस, रजस् व सत्व गुणों का प्रतिपादन किया।
कपिल मुनि ने अपने सांख्य दर्शन में कर्मकांड के विपरीत ज्ञानकांड को महत्त्व दिया है।
भारतीय संस्कृति में त्याग, तपस्या और समाधि को प्रतिष्ठित कराने का श्रेय कपिल को ही है।
विकासवाद का सर्वप्रथम प्रतिपादन करके उन्होंने संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न माना है।
साख्य दर्शन में ईश्वर का कोई विशेष उल्लेख न होने के कारण कुछ विद्वान इसे अनीश्वरवादी मानते हैं।
महर्षि पतंजलि
द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के महर्षि पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार हैं।
योगसूत्र योगाभ्यास की योग सूक्तियों का संग्रह है।
पतंजलि द्वारा लिखे हुए तीन प्रमुख ग्रंथ
योगसूत्र
अष्टाध्यायी पर भाष्य
आयुर्वेद पर ग्रंथ
पतंजलि द्वारा पाणिनी के अष्टाध्यायी पर लिखी गई टीका को ‘महाभाष्य’ कहा जाता है, जो कि व्याकरण का ग्रंथ है।
ये एक महान चिकित्सक भी थे।
पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे।
धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है।
नागार्जुन
दसवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक थे।
उन्होंने अपने ग्रंथ ‘रसरत्नाकर’ में सोना, चांदी, टिन और तांबा आदि निकालने का उल्लेख किया है।
पाणिनी
‘अष्टाध्यायी’ नामक व्याकरण के रचनाकार
पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के संस्कृत भाषा के विद्वान थे।
उन्होंने ध्वनिशास्त्र, स्वर विज्ञान और शब्द संरचना के लिये व्यापक और वैज्ञानिक सिद्धांत दिये।
अष्टाध्यायी नामक व्याकरण में आठ अध्याय हैं।
प्राचीन भारत के कुछ प्रमुख ग्रंथ
शुल्ब सूत्र
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के गणितज्ञ बौधायन द्वारा रचित ‘शुल्व सूत्र’ गणित का प्राचीनतम ग्रंथ है।
शुल्व सूत्र को विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग समय पर तैयार किया था, जिनमें से चार शुल्व सूत्र गणितीय दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, जिन्हें क्रमशः बौधायन, मानव, आपस्तम्ब तथा कात्यायन ऋषि ने तैयार किया है।
इन शुल्व-सूत्रों में बौधायन का शुल्व सूत्र, प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
चरक संहिता
चरक संहिता आयुर्वेद का एक प्राचीनतम तथा मूल ग्रंथ है, जो औषध विज्ञान से संबंधित है।
यह संस्कृत भाषा में लिखी गई है तथा इसे आठ भागों और 120 अध्यायों में विभाजित किया गया है।
कुछ लोग भ्रमवश आचार्य चरक को चरक संहिता का रचनाकार मानते हैं। परंतु उन्होंने आचार्य अग्निवेश द्वारा रचित ‘अग्निवेश-तंत्र’ का संपादन करने के पश्चात् उसमें कुछ भाग एवं अध्याय जोड़कर उसे नया रूप प्रदान किया।
‘अग्निवेश-तंत्र’ का यह संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण ही बाद में ‘चरक-संहिता’ के नाम से जाना गया।
सुश्रुत संहिता
शल्य चिकित्सा का पितामह कहे जाने वाले महर्षि सुश्रुत द्वारा शल्य चिकित्सा के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की गई।
आष्टांग संग्रह
इसके रचयिता वाग्भट हैं।
यह गुप्तकाल की आयुर्वेद संबंधी अंतिम संहिता है, जो गद्य और पद्य दोनों में लिखी गई है।
इसके अलावा गुप्त काल का प्रसिद्ध शब्द ‘अलिञ्जर’ का उल्लेख भी इसमें मिलता है।
इस संग्रह में गुप्त काल की प्रसिद्ध उक्ति “गुग्गुल के अतिसेवन से क्लीवता आती है“, का भी ज़िक्र है
यह ग्रंथ चरक संहिता या सुश्रुत संहिता के बाद लिखा गया है।
मध्यकालीन भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मध्यकालीन युग में मकतब व मदरसे एक सुनिश्चित पाठ्यक्रम हतु अस्तित्व में आए।
मकतब
प्रारंभिक शिक्षा देने वाले मदरसों को मकतब कहा जाता था।
इन संस्थाओं को शाही संरक्षण प्राप्त था।
शेख अब्दुल्ला आर शल अजीजुल्लाह को क्रमशः संभल और आगरा के मदरसों का अध्यक्ष बनाया गया था। ये दोनों भाई थे तथा दोनों को तार्किक विज्ञान (मगुलत) विशेषज्ञता हासिल थी।
गणित
मध्य युग में गणित के क्षेत्र में दो सुप्रसिद्ध ग्रंथ थे:
1.श्रीधर द्वारा रचित ‘गणितसार’
2. भास्कराचार्य द्वारा रचित ‘लीलावती’
‘गणेश दैवज्ञ’ ने ‘लीलावती’ पर ‘बुद्धिविलासिनी’ नामक टीका लिखी है।
1587 ई. में ‘लीलावती’ का अनुवाद फैज़ी ने फारसी में किया।
मध्य काल की गणित के क्षेत्र में कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ एवं कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
नारायण पंडित “गणित कौमुदी और बीजगणित वतम्सा “ के लिये जाने जाते थे।
गुजरात में गंगाधर द्वारा ‘लीलावती कर्मदीपिका’, ‘सुद्धांत दीपिका’ और ‘लीलावती व्याख्या’ कृतियों की रचना की गई।
नीलकंठ सोमसुतवन ने ‘तंत्रसमगृह’ का लेखन किया।
अकबर के दरबारी नीलकंठ ज्योतिर्विद ने ‘ताजिक’ ग्रंथ का संकलन किया।
नसीरुद्दीन तुसी – मार्घ वेधशाला के संस्थापक निदेशक थे।
खगोल विज्ञान
उज्जैन, बनारस, मथुरा और दिल्ली में प्रमुख वेधशालाएँ थीं।
फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने दिल्ली में वेधशाला बनवाई।
फ़िरोज़शाह बहमनी ने दौलताबाद में एक वेधशाला बनवाई।
जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने दिल्ली, उज्जैन, वाराणसी, मथुरा और जयपुर में नक्षत्र विषयक वेधशालाएँ बनवाईं।
फ़िरोज़शाह के दरबार में नक्षत्र विज्ञानी महेंद्र सूरी ने एक यंत्र ‘यंत्रज’ का विकास किया।
नीलकंठ सोमसुरा ने आर्यभट्ट पर टीका लिखी।
कमलाकर ने नक्षत्र विज्ञान पर इस्लामिक विचारों का अध्ययन किया।
केरल के परमेश्वर और महाभास्करीय/परिवार पंचांग बनाने में ख्याति प्राप्त थे।
औषध विज्ञान
इस काल में ‘चिकित्सासमग्र’ तथा ‘भावप्रकाश’ जैसी आयुर्वेद की कछ प्रमख कृतियों की रचना की गई।
शारंगधर द्वारा रचित ‘शारंगधर संहिता’ में अफीम को औषध के रूप में उपयोग किये जाने की बात कही गई है।
17वीं शताब्दी में ‘मुहम्मद मुनीन’ द्वारा रचित एक फारसी ग्रंथ ‘तुहफ़त-उल-मुमीनिन’ में विभिन्न चिकित्सकों के मतों का वर्णन किया गया है।
अली-बिन-रब्बन ने अपने ग्रंथ ‘फिरदौस-अल-हिकमत’ में ग्रीक औषध व्यवस्था और भारतीय औषध व्यवस्था का वर्णन किया है।
यूनानी औषध व्यवस्था 11वीं शताब्दी के आसपास मुस्लिमों के साथ हिंदुस्तान में आई ।
हकीम दिया मुहम्मद ने ‘मैजिनी-ए-दियाई’ नामक फ़ारसी आयुर्वेदिक ग्रंथ लिखा है।
फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने ‘तिब्ब-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की।
‘तिब्ब-ए-औरंगज़ेबी’ आयुर्वेदिक स्रोतों पर आधारित रचना है, जो औरंगजेब को समर्पित है।
जीव विज्ञान
13 वीं शताब्दी में हंसदेव द्वारा रचित ‘मृगपक्षीशास्त्र‘ में भी शिकार के लिये प्रयुक्त कुछ पशु-पक्षियों इत्यादि के बारे में सामान्य जानकारी दी गई है।
जहाँगीर द्वारा रचित ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में पशुओं की कुल 36 प्रजातियों का वर्णन किया गया है।
रसायनशास्त्र
मध्यकाल में ही भारत में कागज़ का प्रयोग शुरू हो गया था।
मध्यकाल में कागज़ उत्पादन के प्रसिद्ध केंद्र
मैसूर, औरंगाबाद, अहमदाबाद, कश्मीर, सियालकोट, जाफराबाद, पटना आदि
मुगल शासक बाबर ने अपनी स्वलिखित जीवनी ‘तुजुक-ए-बाबरी‘ में तोप के गोलों को भी बनाने का वर्णन किया है।
मध्यकाल में गुलाब के इत्र की सुप्रसिद्ध सुगंध होती थी, जिसे बनाने का श्रेय नूरजहाँ की माँ ‘अस्मत बेगम’ को दिया जाता है।
अब तक विद्यमान सबसे पुराना कागज़ी दस्तावेज़ फ़ारस का 718 ई. का है, जबकि भारत में निश्चित रूप से कागज़ पर लिखित पांडुलिपि 1223-24 ई. में गुजरात में लिखी हुई थी।
मध्यकाल में सिंचाई में पर्शियन चक्र का प्रयोग आगरा में किया जाता था।
आधुनिक भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास की असल शुरुआत तो बीसवीं शताब्दी के पाँचवें दशक से ही शुरू हुई, जब 26 सितंबर, 1942 को डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर की कोशिशों के चलते वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की स्थापना दिल्ली में एक स्वायत्त संस्था के रूप में हुई।
1938 के ‘नेहरू ड्राफ्ट’ में भी विज्ञान एवं तकनीकी विकास को ही भारत के विकास के साथ जोड़ा गया।
वैज्ञानिकों को, वैज्ञानिक अनुसंधानों और आविष्कारों के लिये दिया जाने वाला सर्वोच्च शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार उन्हीं के नाम पर दिया जाता है।
नाभिकीय ऊर्जा
1948 में नेहरू ने कहा था कि “भविष्य उनका है, जो परमाणु ऊर्जा से युक्त होंगे।”
डॉ. होमी जहाँगीर भाभा के प्रयासों के फलस्वरूप 1948 में ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ का गठन हुआ।
‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ मुंबई में स्थित है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन
1969 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन
आधुनिक भारत के प्रमुख वैज्ञानिक
जगदीश चंद्र बोस (1858-1937)
जन्म: 30 नवंबर 1858, मुंशीगंज जिला, बांग्लादेश
मृत्यु: 23 नवंबर 1937, गिरिडीह
जगदीश चंद्र बोस कलकत्ता से भौतिकशास्त्र में स्नातक करने के पश्चात् विदेश चले गए और नोबेल पुरस्कार विजेता लॉर्ड रेयलिघ (Lord Rayleigh) के साथ शोध कार्य किया।
वर्ष 1885 में ये भारत लौटे और प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के तौर पर पढ़ाने लगे।
उनके कुछ छात्र, जो आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री बने, उनमें सत्येंद्र नाथ बोस भी शामिल हैं।
रेडियो तरंगों को खोजने के लिये सेमीकंडक्टर जंक्शन का प्रयोग करने वाले वे पहले वैज्ञानिक थे।
बोस ने ही सूर्य से आने वाली विद्युत चुंबकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था, जिसकी पष्टि 1944 में हुई।
उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र का विकास किया, जो पौधे की वृद्धि की गति के एक मिलीमीटर उन्नति के दस लाखवें हिस्से को भी दर्ज़ कर सकता है।
श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920)
रामानुजन अद्वितीय गणितीय प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे।
उन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवन भर में गणित के लगभग 3900 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। हाल ही में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है।
1911 में उन्होंने ‘जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी’ में ‘बरनौली संख्याओं के कुछ गुण’ विषय पर एक शोध-पत्र प्रकाशित किया।
विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय बुला लिया।
वह लंदन की ‘रॉयल सोसाइटी’ के फेलो चुने जाने वाले दूसरे और ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे।
उनका जन्म दिवस 22 दिसंबर को भारत में ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
सी.वी. रमन (1888–1970)
वर्ष 1930 में चंद्रशेखर वेंकट रमन को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
सी.वी. रमन ऐसे पहले एशियाई वैज्ञानिक थे, जिन्हें भौतिकी में यह सम्मान मिला था।
उनको नोबेल पुरस्कार उनकी खोज ‘रमन प्रभाव'(रमण प्रकीर्णन/Raman scattering) के लिये मिला।
उनके इसी प्रभाव पर ‘रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ आधारित है ।
विज्ञान में उनके योगदान के लिये उन्हें 1929 में नाइटहुड, 1954 में भारत रत्न तथा 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘रमन प्रभाव’ की खोज के उपलक्ष्य में 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर (1894-1955)
इन्होंने रसायनशास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर अध्यापन कार्य किया।
उन्हें भारत में ‘अनुसंधान प्रयोगशालाओं के पिता’ के तौर पर जाना जाता है।
डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर ‘वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पहले महानिदेशक व ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ के पहले चेयरमैन भी रहे।
CSIR उनकी उपलब्धियों एवं योगदान के सम्मान में 1958 से ‘शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार’ प्रदान करती है।
उन्हें 1954 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ दिया गया।
डॉ. होमी जहाँगीर भाभा (1909–1966)
इन्हें भारतीय नाभिकीय विज्ञान का जनक कहा जाता है।
उन्होंने बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी के प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया।
उन्होंने सर दोराबजी टाटा के सहयोग से 1945 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की ।
15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया और अगस्त 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई।
परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम सचिव डॉ. होमी जहाँगीर भाभा बने।
परमाणु ऊजा आयोग द्वारा जनवरी 1954 में परमाण ऊर्जा संस्थान, ट्रॉम्बे की शुरुआत की गई।
डॉ. भाभा के विशेष मार्गदर्शन में भारत का पहला आण्विक रिएक्टर ‘अप्सरा’ स्थापित हुआ
भाभा की 24 जनवरी, 1966 में एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गयी
उनके योगदान को विनम्र श्रद्धांजलि देते हए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनवरी 1967 में ए.ई.ई.टी. का नाम बदलकर ‘भाभा परम अनुसधान केंद्र’ रख दिया।
डॉ. भाभा को विज्ञान के क्षेत्र में अत्याध योगदान के कारण ही 1943 में एडम्स पुरस्कार, 1948 में हॉपकिंस पुरस्कार तथा 1954 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ दिया गया।
विक्रम अंबालाल साराभाई (1919-1971)
विक्रम अंबालाल साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक के तौर पर भी जाना जाता है।
उनका जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ था।
कैंब्रिज से उच्च शिक्षा प्राप्त करके भारत में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू में कार्य शुरू किया।
उन्होंने 11 नवंबर, 1947 को भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की।
साराभाई आई.आई.एम. अहमदाबाद के संस्थापक सदस्य थे।
1962 में वे अहमदाबाद में सी.ई.पी.टी. विश्वविद्यालय (Centre for Environmental Planning and Technology University) के संस्थापक अध्यक्ष बने।
1965 में उन्होंने नेहरू विकास संस्था की स्थापना की।
उन्होंने विक्रम ए. साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर की स्थापना ।
भाभा ने भी साराभाई को पहले रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन, थुंबा (केरल) की स्थापना में सहयोग दिया।
विक्रम ए. साराभाई का सबसे बड़ा योगदान 1969 मेंभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना रहा है।
विक्रम साराभाई को 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया गया।
उन्हें 1966 में पद्मभूषण तथा 1972 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam (1931-2015)
जन्म: 15 अक्टूबर 1931, रामेश्वरम,तमिलनाडु
मृत्यु: 27 जुलाई 2015, शिलांग (शिक्षक के रूप में शिलॉन्ग आईआईएम में व्याख्यान देते हुए)
पेशा – वैज्ञानिक, विचारक, राजनेता,लेखक और एक आदर्श शिक्षक
उपनाम – ‘मिसाइल मैन’ ,‘जनता के राष्ट्रपति’
वे भारत के 11वें निर्वाचित राष्ट्रपति (2002 -2007 ) थे
1997 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम् में हुई।
मद्रास तकनीकी संस्थान से उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की।
डॉ. कलाम ने 1963-1982 तक इसरो में कार्य किया।
उनके नेतृत्व में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल को विकसित किया गया।
जब वे DRDO में निदेशक पद पर थे तब उन्हें ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
उन्होंने ‘पृथ्वी’, ‘अग्नि’, ‘त्रिशूल’, ‘आकाश’ और ‘नाग’ जैसी रक्षा-परियोजनाओं का विकास किया।
जुलाई 1992 में – भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त
2002 में – भारत के राष्ट्रपति चुने गए।
उनकी देख-रेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया ।
डॉ. कलाम द्वारा लिखित पुस्तकें
Wings of Fire
India 2020: A Vision for the New Millennium
Ignited Minds: Unleashing the Power Within India
My Journey: Transforming Dreams into Actions(Naa Jeevana Gamanam)
Turning Points
Prernatamak Vichar (Inspiring Thoughts )
Indomitable Spirit (Adamya Sahas)
Chuā āsamāna : ātmakathā
You Are Born To Blossom
Transcendence: My Spiritual Experiences with Pramukh Swamiji
Failure is a Teacher:
Target 3 Billion
Forge your Future
सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा (सैम पित्रोदा)
सैम पित्रोदा को एक दूर-संचार अभियंता, आविष्कारक, उद्यमी एवं नीति-निर्माता के तौर पर जाना जाता है।
सैम पित्रोदा को 1980 के दशक में भारत में दूरसंचार और प्रौद्योगिकी क्रांति की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
2005 में सैम पित्रोदा को भारत के राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
सैम पित्रोदा ने राष्ट्रीय नवप्रवर्तन परिषद की स्थापना की ।
भारत में टेलीमैटिक्स विकास केंद्र का शुभारंभ भी सैम पित्रोदा ने किया था।
उन्हें वर्ष 2000 में लोक प्रशासन और प्रबंधन सेवाओं में उत्कृष्टता के लिये लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।
2009 में सैम पित्रोदा को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
डॉ. वर्गीज कुरियन (1921-2012)
जन्म – केरल के कोझिकोड में ,26 नवंबर, 1921 को हुआ था।
मृत्यु – 9 September 2012
“Father of the White Revolution”(“श्वेत क्रांति(दुग्ध) के जनक”)
उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया
उन्होंने चेन्नई के जी.सी. इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने जमशेदपुर स्थित टिस्को कंपनी में काम किया
बाद में डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिये भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने के बाद उन्होंने बंगलूरू के ‘इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हसबेंड्री एंड डेयरिंग’ में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।
इसके बाद उन्होंने उत्तरी अमेरिका में स्थित मिशीगन स्टेट यूविर्सिटी से 1948 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था।
डॉ. वर्गीज कुरियन वर्ष 1948 में अमेरिका से वापस भारत आकर सरकार के डेयरी विभाग में शामिल हो गए।
मई 1949 में उन्हें गुजरात के आनंद में सरकारी अनुसंधान क्रीमरी में डेयरी इंजीनियर के रूप में तैनात किया गया और आगे 1965 में वे ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ के संस्थापक अध्यक्ष बने।
1960 के आखिरी दशक में डॉ. कुरियन ने ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से एक परियोजना की शुरुआत की, जिसके द्वारा दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई
1979 मेंखाद्य तेलों के व्यवसाय को बढ़ाने के लिये ‘धारा’ नामक परियोजना लॉन्च की।
डॉ. वर्गीज कुरियन ने 1979 में आनंद में, ‘इंस्टीट्यूट ऑफ रुरल मैनेजमेंट (इरमा) की स्थापना की।
1988 में भारतीय सहकारी डेयरी महासंघ का पुनर्गठन तथा 1994 में विद्या डेयरी स्थापित करने में मदद की।
डॉ. वर्गीज कुरियन को उनके अतुलनीय कार्य के लिये मिले सम्मान
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1964)
पद्मश्री (1965)
पद्मभूषण (1966)
Padma Vibhushan (1999)
World Food Prize (1989)
डॉ. वर्गीज कुरियन द्वारा लिखे प्रमुख पुस्तकें:
आई टू हैड अ ड्रीम
द मैन हु मेड द एलीफैंट डांस (ऑडियो बुक)
एन अनफिनिश्ड ड्रीम
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध प्रमुख स्वायत्त संस्थान
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान(ARIES-Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences)
नैनीताल में अवस्थित
तरल क्रिस्टल अनुसंधान केंद्र
इसे वर्ष 1995 में एक स्वायत्त संस्था के रूप में बंगलूरू में स्थापित किया गया।
इसे सूचना तकनीक विभाग, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया है।
वर्ष 2002 के अंत से यह भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत कार्यरत है।