सात भाई एक बहिन ( हिन्दी )
sat bhai ek bahin kahani
‘ सात भाइ एक बहिन ‘ लोककथा ‘ नागपुरी लोककथा ‘ नामक लोककथा से ली गयी है । इसके संग्रहकर्ता और संपादक हैं डॉ . राम प्रसाद । जिसका प्रकाशन सन 1992 इ . में जनजातीय भाषा अकादमी , बिहार सरकार द्वारा किया गया है ।
‘ सात भाइ एक बहिन ‘ लोककथा में एक राजा के सात बेटा और एक बेटी थे । उसकी बहन साग तोड़ने के लिये बारी जाती है और साग तोड़कर लाती है । साग काटने के दरम्यान उसकी अंगुली कट जाती है और अपनी अंगुली से निकल रहे खून को पोछने को लेकर तरह – तरह क वह अपने खून को साग में ही पोछ दती है । उसके भाइ जब साग खाते हैं तो उन्हें साग बहुत ही स्वादिस्ट लगता है । इस पर वे अपने पत्नियों से पूछते हैं कि आज साग किसने बनाया है । जब उन्हें पता चलता है कि साग उसकी छोटी बहन ने बनाया है तब वे उससे पूछते हैं कि साग में ऐसा क्या चीज डाली है कि बहुत स्वादिश्ट लग रहा है । इस पर वह पूरा वष्टतांत अपने भाइयों को सुनाती है । अपनी बहन की बात सुनकर सभी भाइ सोचने लगते हैं कि जब इसका खून इतना स्वादिश्ट है तो मांस कितना स्वादिश्ट होगा । यह सोचकर वे अपनी बहन को जंगल लकड़ी लाने के लिये ले जाते हैं । बहन को एक पेड़ में चढकर लकड़ी काटने के लिये कहते हैं । वह जब पेड़ में चढ़कर लकड़ी काटने लगती है तब छवो भाइ तीर – धनुश से उसे निषाना लगाने लगते हैं । तब उसकी बहन अपनी भाइयों से कहती है कि –
” बिंधबे तो बिंधबे , छाती तुइक तुइक । तोर तीर दादा बावें दाहिने जाएल | ”
छवो भाइ में कोई भी उसे मार नहीं पाते तब सबसे छोटे भाइ को निषाना लगाने के लिये कहते हैं । परन्तु वह इंकार कर जाता है । उसके इंकार करने पर वे लोग उसे ही जान से मारने की धमकी दते हैं तब वह अपनी छोटी बहन पर निषाना साधता है और एक ही बार में उसे मार डालता है । इसके पष्चात छवो भाइ अपने छोटे भाइ को तरह तरह की यातनाएं देने लगते हैं घड़े को छेद कर पानी लाने , तो कभी बिना रस्सी के लकड़ी लाने भेजते । इस पर तालाब में मछली और बेंग को वह अपनी व्यथा सुनाता है । उसकी बात सुनकर वे उसकी मदत करते हैं । उसी प्रकार जंगल में भी सांप उसकी व्यथा सुनकर उसकी मदत करता है । उनकी मदत से वह सभी कार्यों को सम्पन्न करता है । इधर सभी भाइ अपने बहन का मांस को बांट लेते हैं । परन्तु छोटा भाइ नहीं खाया ।
वह मछली , केकड़ा वगैरह खाया और चुपके से अपनी बहन की मांस को भुड़ (छेद ) में डाल देता है । उस छेद से एक सुरंग बास बढ़ा , जिसे एक डोम ने काट कर के केंदरा बाजा बनाता है और उस बाजा को लेकर राजा के सामने बजाता है । उस बाजे से ‘ ना बाज , ना बाज केंदरा इ तो मोर दसमन भाइ । ‘ छोटा भाइ जब आता है तो उस समय बाजा से आवाज आती है –‘बाज – बाज रे केंदरा , खउब बाज इ तो मोर सहोदर भाइ ।।
यह सुनकर छोटा भाइ डोम से कहता है कि इस बाजा को मुझे दे दो । इस पर वह अपनी रोजी रोटी का हवाला दते हुये देने से इंकार कर देता है । इस पर वह डोम को बाजा के बदले अपना आधा राजपाट देने की बात कहता है । राजपाट मिलने की लालच में वह बाजा को दे दता है । बाजा को छोटा भाइ अपने पास रख लेता है । एक रात वह सोने का बहाना कर के बिस्तर में मटियाये रहता है । उसी समय केंदरा से निकलकर उसकी छोटी बहन अपने छोटे भाइ का पैर दबाती है और मधुर गीत गाती है । यह क्रम दो – तीन रातों तक चलता रहा । एक रात उसने केंदरा को जला देता है । जिससे कि उसकी छोटी बहन बाहर ही रह जाती है और फिर दोनों भाई – बहन सुख – शांति से रहने लगते हैं ।