सहियारी गीत (मित्रता, फूल)
झारखण्ड क्षेत्र की सहियारी (मित्रता) इस संस्कृति का प्रमुख तत्व है। इस क्षेत्र में सहिया को मित्र कहा जाता है। कहीं-कहीं फूल भी कहा जाता है। महिला मित्र को सहियान या फूलिन कहा जाता है। सहियारी (मित्रता) के प्रमुख तत्व –
- 1. सहिया / सहियान दोनों भिन्न-भिन्न जाति के होते हैं।
- 2. दोनों का लगभग समान उम्र होना चाहिए।
- 3. विपरीत लिंगों में सहियारी नहीं होती है।
- पुरूष का सहिया – पुरूष
- महिला की सहियान – महिला
- 4. दोनों के पेशा या सन्तान या नाम या विचार समान होते हैं।
- 5. सहिया बनने के बाद जीवन के सुख-दुख में परस्पर भागीदारी निभाते हैं।
- 6. सहिया बनने या बनाने का अधिकतर निर्णय मेलों या पर्यटन स्थलों में लिये जाते हैं।
- 7. सहिया बनने के दिन दोनों सहिया उपवास करते हैं।
- अपराहून एक-दूसरे का घर बाजे-गाजे के साथ जाकर एक-दूसरे को पुवे पकवान, मिठाई, धोती-साड़ी भेंट करते हैं।
- नदी से लाया गया पवित्र जल से आम्र पल्लव द्वारा वे परस्पर अभिषेक कर उल्लासपूर्ण वातावरण में फूलखोसी करते हैं।
- जीवन में सुख-दुख में भागीदारी निबाहने की कसमें खातें हैं।
- Q.सहियारी गीत सम्बंधित है ? मित्रता से
- Q.सहिया का पर्यायवाची हकय ? मित्र, फूल
- Q.महिला मित्र को खोठा में क्या कहा जाता है ? सहियान या फूलिन
- Q.सहियारी गीत सम्बंधित है ? संस्कार गीत
सहियारी लोकगीत
जाइत छोइड़ आन जाइत घरें
सहिया पाताइ घरे-घरें। रंग
कर संगे जोड़ा मेसाइ
से नाता कभूँ ना सिराइ
आपन उकित सुरें पियारेक डोरे… रंग
घरेक पुरखाक करे मान
मथे गागरा गावे गान
जाइ चलल सहियाक घरें…. रंग
जनी मरद सभे जाय
जइसन चले बरियात
देखी हुवें – हुइलें मन भोरे रंग
अर्थ :
अपनी जाति छोड़ कर अन्य जाति से सहिया पताया जाता है। सभी रिश्तों में ऊँचा सहियारी (मित्रता) होती है। अपने पूर्वजों की इस परम्परा को याद करते हुए सहियारी की जाती है। ताकि आपस में प्रेम बढ़े और समाज का वातावरण सौहाद्रपूर्ण बना रहे।
आम पतइ पातांइ-पातांइ
गुवा-पानी सुपारी साजाइ –
सहिया के करबई मान हो
सहिया जोरा सभे झन हो
हमें तोहर तों हमर
भाभा ईटा मनेक भीतर
भुलिहा ना सहिया मोरे
सहियाक टेप सहिया घरे।
अर्थ : गीतांश में कहा गया है कि आम्र पल्लव, पान-सुपारी देकर सहिया का हम मान बढ़ाऐं। आइये मिल कर इस लोकप्रथा की परम्परा को बरकरार रखें।
हिन्दू-मुसलमानें सहिया पतावली
मुदइ के आँखीं सीझू दूध
भांड़े ले करइ बड़ी बुइध
बाप दादाक जोरल नाता कइसे भांगबइ
कइसे मानबइ छुआ-छुत
भाँड़े ले करइ बड़ी बुइध ।
सहिया के फूल देखी
हरखि उठलो सखी
रीझे रंगे हो हाम्हूँ सहिया पताइब
जइसन सहिया हे बइसन पिरिती लगाइब।
अर्थ :
इस गीत का अर्थ है एक हिन्दू महिला किसी मुसलमान महिला से सहिया पतायी, पर कुछ स्त्रियाँ डाह (ईर्ष्या) कर रही हैं। परन्तु दोनों बेपरवाह हैं और कहती हैं कि हमलोग छुआछुत नहीं मानते हैं जिसको जलना है तो जले। हमलोगों ने सहिया (मित्रता) निबाहने की कसम खा ली है।
सहियारी की अपार मित्रताभाव को देखकर एक दूसरे को भी सहियारी के लिए इच्छा प्रबल हो उठी। वह कहता है कि मैं भी किसी के साथ सहियारी करूँगा और जीवन भर साथ निबाहूँगा।
गुड़ सोवाद, मिसरी सोवाद आर सोवाद चीनी रे
चीनी ले जे आरो सोवाद सहिया हमर धनी रे।
सिमइर फूल पियार, चिलुम फूलो पियार
से हो ले उपरें पियारे, सहिया के ले गनी रे।
सिन्दूर लाल, गेरू लाल, आरो ललका रंग रे
तकरो ले टहटह लाल, सहिया लागे धनी रे।
अर्थ : लोक गीत का भाव है गुड़, मिश्री और चीनी से भी मीठा मेरा सहिया है। सेमल, चिलूम फूल से ज्यादा प्यारा मेरा सहिया है। सिन्दूर, गेरू, लाल से अधिक लाल मेरा सहिया है।