सात भाइ-बहिन खोरठा लोककथा ( Saat Bhai Bahin Lokkatha ,Khortha)

डॉo गजाधर महतो प्रभाकर

  • जनम – 11 फरवरी 1952
  • जनम थान – ग्राम साहेदा, सिल्ली जिला – राँची (झारखण्ड)
  • माँयेक नाम – लाखो देवी
  • बापेक नाम – जगन्नाथ महतो
  • शिक्षा – 
    • MA  (खोरठा)
    • P.HD (खोरठा लोककथा विषय और विश्लेषण) 
  • कार्य – सहायक शिक्षक, महात्मा गाँधी उच्च विद्यालय, भुरकुण्डा
  • सम्मान – खोरठा रत्न

गजाधर जी महात्मा गाँधी उच्च विद्यालय, भुरकुण्डाञ, 1978 से मास्टर रूपे काम कइर रहल हथ। एकर से पहिले कोयरी टोला, हाई स्कूल, रामगढ़ एक बछर आर लारी हाई स्कूले एक बछर मास्टर रइह चुकल हथ ।

कृत्ति – 

  • पुटुसफूल (खोरठा कहनी संगरह 1988)
  • मरीचिका (लघु कथा संगरह, 1988)
  • हिन्दी व्याकरण (1995) 
  • आब ना रहा पंटाइल (खोरठा कबिता संगरह)
  • खोरठा लोककथाक नेवरा (खोरठा लोककथा संगरह) 
  • समय की पुकार (हिन्दी कविता संग्रह) आदि। 
  • एकर छाड़ा इनखर ढेइरे खोरठा वार्त्ता आकाशवाणी राँची से प्रसारित भेल हे ।


सात भाइ-बहिन लोककथा

( Saat Bhai Bahin Lokkatha ,Khortha)

लेखक – डॉo गजाधर महतो प्रभाकर

पुस्तक – दू डाइर परास फूल


बड़ी दिनेक बात लागे। आदमी बोन-झार काइट कुइट के झोपड़ी तोपड़ी बनाइ रहेक सुरू कइर देल हला आर करे-कर गाँव बनेक सुरु भइ गेल हल। आदमी बोन झार काइट के आर डाइह के, पोड़ाइ के खेती-बारियो सुरू कइर देल हला। अइसन खेती के ‘झुम खेती’ कहल जाहे जब तइक ऊ ठाँवे पइदा हवे लागे तखन दोसर ठाँवे बोन डाइह के खेती सुरू कइर दे हलथ। सेहे खातिर एखनो झारखंडे ढेइरे ठाँव अइसन पावल जाहे जकर नाम ‘डाही’, ‘हेंठ डाही’, ‘उपर डाही’, ‘जारा’, ‘खुट जारा’ आरो-आरो राखल गेल हे ।

हाँ तो अइसने एगो छोट-छाट गाँवे सात भाइ-बहिन रहो हला। मेने छव गो भाइ आर एगो बहिन । छवो भाइ बोन-झार पोड़ाइ के खेती-बारी करो हला आर ओखिन के बहिन उ सभेक खाइक – पियेक रॉइध-बाँइट देहलइन ।

एक बइर ऊ साग चीर-हलिक । साग चीरते कटाइ गेलिक । दमें लहु बहराइ लागलइ । ओकर बुइध काम नाञ करे लागल ज लहु कहाँ पोछतइ । ऊ सोचलइ लुगा-फाटाञ बा भीतें-तीतें पोछइत तो दादाञ पुछता तो की कहबइ ? एहे डरे ऊ लहु के साग पोइछ देल | ओहे साग के राँइध देलइ । छवो भाइ जखन काम-धाम कइर के घुरला तो साग भात खाइले देलइन । साग से दिन बड़ी सवाद लागलइन ऊ सब के । तखन ऊ सब पूछलथिं आइझ साग तिअन जे बड़ी सवाद लागलद, की बात हइ मइआँ ? कोन्हों चीज सगवाञ मेसवल हल्हीं ना कि ? ऊ बेचारी बड़ी डेराइ गेलइ । बात कहे कि नाञ कहे? फिकिरे पइर गेलिक । ओकरा डेराइल देइख के छवो भाइ कटि जोर दइके पूछलथिं तो सो बात फारे-फार कइह देलइन । तकर पेछु ऊ सब सोचला जे एक कटि खून सगवाञ मेसइलइ तो एतेक सवाद लागलइ तो एकर माँस टा कते सवाद लागतइ ! ओखिनेक मने पाप समाइ गेलइन। ऊ सब ओकरा मइर के खायेक उता-सुता करे लागला ।

एक दिन कहलथिं – एक मइयाँ हमनि आइझ बड़ी दूर बोन भीतरे जोत- कोड़ करे जइबउ । हमिन हियाञ से हरगड़ले जाब, तोत्र ओहे हरगड़ के पेछात्र (देखले – देखले) कलवा लइके हामिन ठीन अइहें। छवो भाइ घार ले खूब धूर गाजार बोने एगो मचा बनाइ के आगुवे ले राखले हलथ । ओखिन के बहिन कलवा लइके हरगड़ के पेछात्र ऊठीन पोहइँच गेलइ जेठीन ओकर भाइ सब हार जोत-हला । ओकर भाइ सब कहलथि, ए मइयाँ, हियाँ बड़का – बड़का जंगली जानवर आवो हथि, से ले तोञ माचाञ चइढ़ के बइस बेचारी माचात्र चइढ़ के बइसलइ तकर पेछु आर भाइ सब निसइन हटाइ देलथि। कुछ खनेक पेछु ऊ सोब हार जोते छोइड़ के हाथ काँड़-धेनुक लइ लेला आर माचाने बइसल बहिन बाठे काँड़ चलवे लागला । बहिन कोन्हों रकम आड़े-बीड़े भइके आपन के बँचवे लागल | बहिन पुछलइन – आज दादा तोहिन ई की करे लागलाइ ?

तखन ओखिन कहलथिं – नाञ मइयाँ तोरा नाञ मारबो, गाछे एगो चरइ हलइ तकरा मारा हिअइ । तेकर पेछु ओखिन एक लगाइत तीन चलइते रहला । पांचों भाइ ताइक – ताइक के काँड़ चलाव हल्थि से खातिर ओखिन के काँड़ बहिन के बिंधे लागलइन । छोटका भाइ आपन बहिन के बड़ी दुलार कर हलइ से ले उ आड़े-बीड़े काँड़ चलवे कि बहिन के नाञ बिंधे। भाइ सब के अइसन करतुत देइख के ऊ काइँद – काइँद कहे लागलइन –

ना बिंधु ना बिंधु दादा 

काहे भेलाय बइरी दादा, काहे भेलाइ बइरी 

हाम तो तोहिन के दुलरउति बहिन

 दादा दुलरउति बहिन |


मकिन ओकर काँदेक, मेमाइक कोन्हों असर नाञ परलइल ओकर भाइ गुलाक उपरें। ओखिन काँड़ चलाइ चलाइ के बिंधते रहला आपन बहिन के छवो बिंध के मोराइ देलथि आर ओकरा काइट – काइट के माँस टा के छव ठीने बाँटला । पाँच भाइ माँस पकाइ के खइला मकिन छोटका भाइ कटि दूर जाइके एगो टील्हाञ गढ़ा कोइड़ के आपन हिस्सा के ओकर में तोइप देलइ ।

दिन बीतते देरी नाञ लागे हे। एहे रकम ढेइरे दिन बीत गेलइ । सब भाइ आपन बहिन के भुलाइ देला । सोब के बिहा- तिहा भइ गेलइन आर भिनाय – भिनाय आपन- आपन कुंबा – कुरिया बनाइ के रहे लागला ।

 दोसर बाट जे ठाँवे छोटका भाइ आपन हिस्सा माँस के टिल्हाञ साइज देल हलइ , सइ टिल्हा से एगो बाँस बुदा बहरइलइ जकर में बड़ी सुन्दर-सुन्दर बाँस हलइ । एक दिन एगो बँसकटवा ऊ दने ले पार भेल जा हल, तो ऊ बाँस बुदा देइख के बड़ी खुस भेलइ आर बाँस काइट के घार लइ आनल आर ओहे बाँस से बाँसी आर मुरली बनाइके गाँव-गाँव बजाइ-बजाइ बेचे लागल। ऊ बाँसी से बड़ी सुंदर-सुंदर राव आर सुर बहरा हलइ । एक दिन बाँसी बेचते-बेचते छवो भाइ के घर बाटे गेलक । ऊ पाँच भाइ के घरे गेलदन तो ओकर से गीत बहराइ लागलइ –

ना बाज- बाज रे बाँसी

ई तो हकऊ दुसमन कर घर

एहे रकम पाँचो भाइ घर बाँसी बाजलइ । अइसन सुइन के ओकर भाइ सब बाँस बेचवा के मार-पीट के भगाय देलथि । तकर पेछु ऊ छोटका भाइ के घार दने गेलक  तो बाँसी आपन्हीं माया – माया (करूण) राव फुइट बहराइ लागलइ 

बाज-बाज रे बाँयर

ई तो हकऊ छोट भाइ कर घर

एतना सुनथि ओकर छोटका भाइ के बिसरल बात मने परे लागलइ । बाँसी के राव सुइन के ओकर छोट भाइ झार-झार खूब काँदल खूब काँल । पेछू छोटका भाइ 1 बँसकटवा के ढेइर अन-धन देइ के बिदा करलइ ।

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