झारखण्ड का मुण्डा राज
- झारखण्ड की जनजातियों में सर्वप्रथम राज्य निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ – मुण्डाओं ने
- झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का श्रेय – रिता मुण्डा/ऋषा मुण्डा
- मुण्डाओं का प्रथम शासक – सुतिया पाहन
- सुतिया पाहन के नाम पर झारखण्ड का नाम सुतिया नागखण्ड पड़ा।
- सुतिया नागखण्ड राज्य में गढ़ों की संख्या – सात
- सुतिया नागखण्ड राज्य में परगना की संख्या – 21
- सुतिया नागखण्ड राज्य का अंतिम राजा – मदरा मुण्डा
छोटानागपुर खास का नाग वंश
- मुण्डा राज के बाद नाग वंश द्वारा अपना राज्य स्थापित किया गया।
- नाग वंश के प्रमुख शासक
फणी मुकुट राय
- नागवंशी राज्य की स्थापना – 64 ई. में (10वीं सदी ई. में – जे. रीड के अनुसार )
- नागवंशी राज्य का संस्थापक – फणी मुकुट राय
- नागवंशी राज्य का प्रथम राजधानी – सुतियाम्बे
- नाग वंश का ‘आदि पुरूष’ – फणी मुकुट राय को
- फणी मुकुट राय का राज्य 66 परगना में विभाजित था।
- फणी मुकुट राय ने सुतियाम्बे में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।
- फणी मुकुट राय ने अपने राज्य में गैर-आदिवासियों को भी आश्रय दिया
- दीवान – भवराय श्रीवास्तव (गैर-आदिवासि )
- फणी मुकुट राय की हत्या – बाघदेव सिंह ने
प्रताप राय
- प्रताप राय के शासनकाल में पलामू किला का निर्माण कराया गया था।
- प्रताप राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे से चुटिया को बनाया
भीम कर्ण ( 1095-1184 ई.)
- कर्ण की उपाधि धारण करनेवाला प्रथम नागवंशी शासक – भीम कर्ण
बरवा की लड़ाई
- भीम कर्ण एवं सरगुजा के हैहयवंशी रक्सेल राजा- के बीच
- रक्सेल राजा पराजित हुआ था ।
- भीम कर्ण ने बरवा तथा टोरी (वर्तमान लातेहार जिले में स्थित) पर कब्जा कर लिया।
- भीम कर्ण को वासुदेव की एक मूर्ति भी प्राप्त हुयी।
- इस लड़ाई में विजय के बाद नागवंशियों का राज्य गढ़वाल राज्य की सीमा तक विस्तारित हो गया।
- भीम कर्ण ने भीम सागर का निर्माण कराया।
- भीम कर्ण ने 1122 ई. में अपनी राजधानी चुटिया से खुखरा स्थानांतरित कर दी।
शिवदास कर्ण
- हापामुनि मंदिर,घाघरा,गुमला की स्थापना – 1401 ई. में ,शिवदास कर्ण ने
- शिवदास कर्ण ने मंदिर में सियानाथ देव से भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई।
- सियानाथ देव एक मराठा ब्राह्मण थे।
प्रताप कर्ण (1451-1469 ई.)
- सल्तनत काल के लोदी वंश के समकालीन नागवंशी राजा
- प्रताप कर्ण, छत्र कर्ण एवं विराट कर्ण
- इसके समय नागवंशी राज्य घटवार राजाओं के विद्रोह से त्रस्त था।
- इसके समय तमाड़ के राजा ने नागवंशी राज्य पर आक्रमण कर प्रताप कर्ण को किले में बंदी बना दिया।
छत्र कर्ण (1469-1496 ई.)
- लोदी वंश के समकालीन राजा
- छत्र कर्ण के काल में विष्णु की मूर्ति कोराम्बे में स्थापित की गयी।
- इसी मूर्ति से प्रभावित होकर चैतन्य महाप्रभु मथुरा जाते समय 16वीं सदी के आरंभ में पंचपरगना क्षेत्र में रूके थे।
- इन्होनें चैतन्य चरितामृत में झारखण्ड का वर्णन किया है।
- चैतन्य महाप्रभु ने संथाल परगना के कई गांवों में ठाकुरबाड़ी की स्थापना की थी।
- चैतन्य महाप्रभु ने झारखण्ड में वैष्णव मत का प्रचार-प्रसार किया।
रामशाह ( 1690-1715 ई.)
- मुगल शासक बहादुर शाह प्रथम के समकालीन
यदुनाथ शाह ( 1715-24 ई.)
- यह राम शाह के बाद नागवंशी शासक बना।
- यदुनाथ शाह फरूर्खशियर के समकालीन
- बिहार के मुगल सूबेदार सरबुलंद खाँ ने 1717 ई. में यदुनाथ शाह पर आक्रमण कर दिया
- यदुनाथ शाह पर मालगुजारी तय – 1 लाख रूपये
- यदुनाथ शाह ने अपनी राजधानी दोइसा से पालकोट स्थानांतरित कर दी।
- 1719-22 ई. तक टोरी परगना पर पलामू के चेरो राजा रणजीत राय का कब्जा रहा।
शिवनाथ शाह (1724-33 ई.)
- यदुनाथ शाह का उत्तराधिकारी
- बिहार के सूबेदार फखरूद्दौला ने छोटानागपुर पर आक्रमण – 1730 ई. में किया।
- शिवनाथ शाह ने फखरूद्दौला को 12,000 रूपये मालगुजारी देना स्वीकार किया।
उदयनाथ शाह (1733-40 ई.)
- शिवनाथ शाह का उत्तराधिकारी
- इसके समय बिहार का मुगल सूबेदार अलीवर्दी खाँ वार्षिक मालगुजारी वसूलता था।
- टेकारी के जमींदार सुंदर सिंह से
- रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह से
- नागवंशी शासक उदयनाथ शाह, रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह के माध्यम से ही अलीवर्दी खाँ को मालगुजारी का भुगतान करता था।
श्यामसुंदर शाह (1740-45 ई.)
- उदयनाथ शाह का उत्तराधिकारी
- इसके शासनकाल में बंगाल पर आक्रमण करने हेतु मराठों द्वारा झारखण्ड का प्रयोग
- 1742 ई. में भास्कर राव पंडित ने बंगाल पर आक्रमण
- 1743 ई. में मराठा रघुजी भोंसले ने भी बंगाल पर आक्रमण
- अलीवर्दी खां ने मराठा पेशवा – बालाजी राव को शिकायत की।
- इस शिकायत पर पेशवा बालाजी राव राजमहल के वामनागाँव होते हुए बंगाल पहुंचा
- जिसकी खबर पाकर रघुजी भोंसले मानभूम (धनबाद) होकर वापस अपने राज्य लौट गया।
- मराठों द्वारा बार-बार बंगाल पर आक्रमण हेतु झारखण्ड का प्रयोग करने से झारखण्ड से मुगलों का प्रभाव समाप्त हो गया
- मराठों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
- झारखण्ड क्षेत्र पर रघुजी भोंसले का प्रभाव स्थापित
- 31 अगस्त, 1743 को पेशवा बालाजी राव व रघुजी भोंसले के बीच हुए एक समझौते के अनुसार
नागवंशी शासक से सम्बंधित अन्य तथ्य
- 1498 ई. में संध्या के राजा द्वारा नागवंशी राज्य पर आक्रमण
- नागवंशी राजा ने खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण की सहायता ली ।
- शरणनाथ शाह के समय जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया था।
ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव
- बड़कागढ़ के ठाकुर महाराज रामशाह के चौथे पुत्र थे।
- इन्होनें अपनी राजधानी डोयसागढ़ से स्वर्णरेखा नदी के नजदीक सतरंजी में स्थापित की थी।
- 1691 ई. में राँची में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण – ऐनीनाथ शाहदेव ने
- हटिया बाजार को बसाया था।
- ठाकुर ऐनीनाथ शाह की पाँच पत्नियाँ तथा 21 पुत्र थे (उल्लेख -नागवंशावली में )
- नागवंशी शासक मणिनाथ शाह
- इसने सिल्ली, बुंडू, तमाड़, बरवा आदि के स्थानीय जमींदारों का दमन किया ।
पलामू का रक्सेल वंश
- पलामू पर सर्वप्रथम रक्सेलों का शासन था।
- रक्सेल स्वयं को राजपूत कहते थे।
- रक्सेलों का पलामू क्षेत्र में आगमन – राजपूताना क्षेत्र से रोहतासगढ़ होते हुए
- रक्सेलों की दो शाखाएँ थी
- देवगन ( हरहरगंज व महाराजगंज से होकर आए)
- कुंडेलवा (चतरा व पांकी से होकर आए)।
- कोरवा, गोंड, पहाड़िया, किसान और खरवार रक्सेलों के समय की महत्वपूर्ण जनजातियाँ थी।
- इनमें खरवार सर्वाधिक संख्या में थे
- खरवार के शासक – प्रताप धवल
- 16वीं सदी में रक्सेलों को चेरों ने पराजित किया।
पलाम का चेरो वंश
- चेरो वंश की स्थापना – भागवत राय ने ,1572 ई. में
चेरो वंश के प्रमुख शासक
- भागवत राय
- साहेब राय (1697-1716 ई.)
- रणजीत राय (1716-22 ई.)
- जयकृष्ण राय (1722-70 ई.)
साहेब राय (1697-1716 ई.)
- मुगक शासक बहादुरशाह, जहाँदार शाह तथा फर्रुखसियर का समकालीन
रणजीत राय (1716-22 ई.)
- इनके शासन काल में बिहार का मुगल सूबेदार सरबुलंद खाँ पलामू आया था।
- इन्होनें सरबुलंद खाँ से टोरी परगना पर कब्जा किया ।
जयकृष्ण राय (1722-70 ई.)
- जयकृष्ण राय ने रणजीत राय की हत्या करके पलामू राज्य पर कब्जा कर लिया।
- बिहार के सूबेदार फखरूद्दौला द्वारा जयकृष्ण राय पर तय कर (1730 ई. में)
- सालाना कर – 5,000 रूपये
- बिहार के सूबेदार अलीवर्दी खाँ द्वारा जयकृष्ण राय पर तय कर (1733 ई. में)
- सालाना कर – 5,000 रूपये
- वसूलने का अधिकार – टेकारी के राजा सुंदर सिंह को
- बिहार के सूबेदार जैनुद्दीन खाँ द्वारा जयकृष्ण राय पर तय कर (1740 ई. में)
- सालाना कर – 5,000 रूपये
- मुगलों द्वारा पलामू के चेरो राजाओं पर अंतिम आक्रमण
- जैनुद्दीन खाँ के सैन्य अधिकारी हिदायत अली खाँ ने
सिंहभूम का सिंह वंश
- हो जनजाति के अनुसार सिंहभूम का नामकरण सिंगबोंगा के नाम पर हुआ है।
- सिंह वंश के ग्रंथ ‘वंशप्रभा लेखन’ में सिंह वंश की दो शाखाओं का वर्णन है
- पहली शाखा
- दूसरी शाखा।
पहली शाखा
- सिंह वंश की पहली शाखा की स्थापना – 8वीं सदी ई. के आरंभ में
- सिंह वंश की पहली शाखा का संस्थापक – काशीनाथ सिंह
- इस शाखा में तेरह राजाओं द्वारा 13वीं सदी के प्रारंभ तक शासन किया गया ।
दूसरी शाखा
- सिंह वंश की दूसरी शाखा की स्थापना – 1205 ई. में
- सिंह वंश की दूसरी शाखा का संस्थापक – दर्प नारायण सिंह (1205-62 ई.) ने
सिंह वंश की दूसरी शाखा के प्रमुख शासक
-
- दर्प नारायण सिंह (1205-62 ई.) ने
- दूसरा शासक – युधिष्ठिर (1262-71 ई.)
- काशीराम सिंह (पोरहाट को नयी राजधानी बनाया )
- महिपाल सिंह
- काशीनाथ सिंह
- अच्युत सिंह
- त्रिलोचन सिंह
- अर्जुन सिंह प्रथम
- जगन्नाथ सिंह द्वितीय (13वाँ शासक)
- पुरुषोत्तम सिंह (जगन्नाथ सिंह द्वितीय का पुत्र)
- अर्जुन सिंह द्वितीय (पुरुषोत्तम सिंह का पुत्र)
- अमर सिंह
- जगन्नाथ सिंह चतुर्थ
काशीराम सिंह
- इसने बनाई क्षेत्र में पोरहाट नामक नयी राजधानी बनायी।
काशीनाथ सिंह
यह मुगल शासक बहादुरशाह प्रथम का समकालीन था।
अच्युत सिंह
- अच्युत सिंह के शासन काल में सिंह वंश की कुलदेवी पौरी देवी की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी।
जगन्नाथ सिंह द्वितीय
- इसके शोषण से भुइयां जनजाति ने विद्रोह कर दिया था।
अर्जुन सिंह द्वितीय
- इसने अपने चाचा विक्रम सिंह को 12 गाँवों वाला एक जागीर दिया था, जिसे ‘सिंहभूम पीर’ कहा जाता था।
सरायकेला राज्य का निर्माण
- विक्रम सिंह ने अन्य क्षेत्रों को ‘सिंहभूम पीर’ में मिलाकर सरायकेला राज्य बनाया
- इसकी राजधानी सरायकेला को बनाया।
जगन्नाथ सिंह चतुर्थ
- इसके शासनकाल में पोरहाट क्षेत्र में हो एवं कोल जनजातियों द्वारा उपद्रव मचाया जा रहा था।
- उपद्रव को काबू करने हेतु जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने छोटानागपुर खास के नागवंशी राजा दर्पनाथ सिंह की मदद ली
- हो आदिवासियों ने इनकी संयुक्त सेना को भी पराजित कर दिया।
- उपद्रव को काबू करने हेतु जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने छोटानागपुर खास के नागवंशी राजा दर्पनाथ सिंह की मदद ली
- जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने स्थिति को नियंत्रित करने हेतु अंग्रेजों की सहायता ली
- पहली बार सिंहभूम क्षेत्र (झारखण्ड ) में अंग्रेजों का प्रवेश – 1767 ई. में
रामगढ़ राज्य
रामगढ़ राज्य के प्रमुख शासक
-
- बाघदेव सिंह – रामगढ़ राज्य के संस्थापक
- हेमन्त सिंह
- राजा दलेल सिंह (1667 से 1724 ई)
- विष्णु सिंह (1724 से 1763 ई.)
- मुकुंद सिंह (विष्णु सिंह का भाई)
- कामाख्या नारायण सिंह
- रामगढ़ राज्य की स्थापना – बाघदेव सिंह ने, 1368 ई. में
- बाघदेव सिंह अपने बड़े भाई – सिंहदेव
- ये दोनों नागवंशी शासकों के दरबार में थे, लेकिन नागवंशी शासकों से इनका विवाद हो गया।
- इसके बाद वे बड़कागांव क्षेत्र में कर्णपुरा आ गये तथा इस क्षेत्र पर अधिकार कर रामगढ़ राज्य की स्थापना की।
राजा दलेल सिंह (1667 से 1724 ई)
- रामगढ़ राज्य का सर्वाधिक शक्तिसाली राजा दलेल सिंह था ।
- दलेल सिंह 1667 से 1724 ई. तक रामगढ़ का शासक रहा।
- दलेल सिंह ने 1718 ई. में छै राज्य के राजा मगर सिंह की हत्या कर उसके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
- हालांकि 1724 ई. में मगर सिंह के पुत्र रणभस्त खाँ ने दलेल सिंह को पराजित कर अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
विष्णु सिंह (1724 से 1763 ई.)
- दलेल सिंह के बाद विष्णु सिंह 1724 से 1763 ई. तक रामगढ़ का शासक रहा।
- विष्णु सिंह ने छै राज्य पर पुनः कब्जा कर लिया
- बंगाल के नवाब अलीवर्दी खाँ ने हिदायत अली खाँ को 1740 ई. में रामगढ़ से वार्षिक कर वसूलने हेतु भेजा।
- रामगढ़ का वार्षिक कर – 12,000 रूपये
- इसके काल में रामगढ़ राज्य पर भास्कर राव के नेतृत्व में मराठों के आक्रमण – 1747 ई. में
- नरहत समया के जमींदार कामगार खाँ ने विष्णु सिंह पर 1751-52 ई. में आक्रमण कर विष्णु सिंह को समझौता करने हेतु विवश कर दिया।
- बंगाल के नवाब मीर कासिम ने 1763 ई. में मरकत खाँ और असदुल्लाह खाँ के नेतृत्व में विष्णु सिंह को पराजित किया था ।
मुकुंद सिंह
- विष्णु सिंह के बाद उसका भाई मुकुंद सिंह रामगढ़ का शासक बना
- मुकुंद सिंह ने छै राज्य को रामगढ़ राज्य में मिला लिया।
- 1937 ई. में रामगढ़ राज्य के शासक कामाख्या नारायण सिंह बने।
- 26 जनवरी, 1955 को बिहार राज्य भूमि सुधार अधिनियम के द्वारा बाघदेव सिंह द्वारा स्थापित रामगढ़ राज्य को समाप्त कर दिया गया।
खड़गडीहा राज्य
- खड़गडीहा राज्य की स्थापना – हंसराज देव ने ,15वीं सदी में
- खड़गडीहा राज्य का विस्तार – हज़ारीबाग़ ,गिरिडीह
- खड़गडीहा राज्य के अन्य राजा – शिवनाथ सिंह, मोद नारायण, गिरिवर नारायण देव आदि
ढालभूम का ढाल वंश
- ढालभूम क्षेत्र का विस्तार सिंहभूम में था।
- ढाल वंश के शासनकाल में नरबलि प्रथा का प्रचलन था।
मानभूम
- मानभूम के मान वंश
- मानभूम का पंचेत राज्य – मानभूम का सबसे शक्तिशाली राज्य
मानभूम के मान वंश
- मानभूम के मान वंश की जानकारी का श्रोत
- 8वीं सदी का दूधपानी शिलालेख (हजारीबाग)
- 14वीं सदी में गोविंदपुर शिलालेख (धनबाद) – कवि गंगाधर द्वारा निर्मित
- मान वंश का विस्तार – हजारीबाग एवं मानभूम क्षेत्र (धनबाद) में
- मान राजाओं की अत्याचार के कारण
मानभूम का पंचेत राज्य
- मानभूम का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य पंचेत राज्य था।
- पंचेत राज्य का राजचिह्न – कपिला गाय का पूँछ या चँवर
- पंचेत राज्य के राजाओं को गोमुखी राजा कहा गया।