संविधान की प्रस्तावना (Preamble OF the constitution)
- सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को सम्मिलित किया गया था
- प्रस्तावना में संविधान का सार होता है।
- एन.ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को ‘संविधान का परिचय पत्र’ कहा है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित नेहरू द्वारा बनाए और पेश किए गए एवं संविधान सभा द्वारा अपनाए गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है।
- इसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संशोधित किया गया, जिसने इसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए।
संविधान के प्रस्तावना की विषय-वस्तु
प्रस्तावना के तत्व प्रस्तावना में चार मूल तत्व हैं:
1. संविधान के अधिकार का स्त्रोतः
- प्रस्तावना कहती है कि संविधान भारत के लोगों से शक्ति अधिगृहीत करता है।
2. भारत की प्रकृतिः
- यह घोषणा करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक राजव्यवस्था वाला देश है।
3. संविधान के उद्देश्यः
- इसके अनुसार न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व संविधान के उद्देश्य हैं।
4. संविधान लागू होने की तिथि:
- यह 26 नवंबर, 1949 की तिथि का उल्लेख करती है।
प्रस्तावना में मुख्य शब्द
1. संप्रभुता (Sovereign)
- संप्रभु शब्द का आशय है कि, भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है और न ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है ।
- इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने मामलों (आंतरिक अथवा बाहरी) का नि:तारण करने के लिए स्वतंत्र है।
- एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत किसी विदेशी सीमा अधिग्रहण अथवा किसी अन्य देश के पक्ष में अपनी सीमा के किसी हिस्से से दावा छोड़ सकता है।
- एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत विदेशी क्षेत्र का भी अधिग्रहण कर सकता है।
उदाहरण के लिए- सत्तांतरण (संधि के अनुसार , खरीद, उपहार या लीज), व्यवसाय (जिसे अभी तक किसी मान्य शासक ने अधिग्रहीत न किया हो), जीत या हराकर।
उदाहरण के लिए भारत ने संविधान लागू होने के बाद कुछ विदेशी क्षेत्रों का अधिग्रहण किया जैसे-दादर और नागर हवेली, गोवा, दमन एवं दीव, पुदुचेरी एवं सिक्किम।
2. समाजवादी (Socialist)
- वर्ष 42वें संविधान संशोधन 1976 से पहले भी भारत के संविधान में नीति-निदेशक सिद्धांतों के रूप में समाजवादी लक्षण मौजूद थे।
- भारतीय समाजवाद ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ है न कि ‘साम्यवादी समाजवाद’, जिसे ‘राज्याश्रित समाजवाद’ भी कहा जाता है, जिसमें उत्पादन और वितरण के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण और निजी संपत्ति का उन्मूलन शामिल है।
- लोकतांत्रिक समाजवादमिश्रित अर्थव्यवस्था में आस्था रखता है, जहां सार्वजनिक व निजी क्षेत्र साथ-साथ मौजूद रहते हैं।
- “लोकतांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य गरीबी, उपेक्षा, बीमारी व अवसर की असमानता को समाप्त करना है।
- भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद का मिला-जुला रूप है, जिसमें गांधीवादी समाजवाद की ओर ज्यादा झुकाव है।
3. धर्मनिरपेक्ष (SECULAR)
- धर्मनिरपेक्ष शब्द को भी 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया।
- हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और सभी धर्मो को सरकार का समान समर्थन प्राप्त है।
4. लोकतांत्रिक (Democratic)
- लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
प्रत्यक्ष लोकतंत्र
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग अपनी शक्ति का इस्तेमाल प्रत्यक्ष रूप से करते हैं, जैसे-स्विट्जरलैंड में।
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र के चार मुख्य औजार हैं, इनके नाम हैं
- परिपृच्छा (Referendum)
- पहल (Initiative)
- प्रत्यावर्तन या प्रत्याशी को वापस बुलाना (Recall)
- जनमत संग्रह (Plebiscite)।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सर्वोच्च शक्ति का इस्तेमाल करते हैं और सरकार चलाते हुए कानूनों का निर्माण करते हैं।
- इस प्रकार के लोकतंत्र को प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है।
- यह दो प्रकार का होता है-संसदीय और राष्ट्रपति के अधीन।
- भारतीय संविधान में प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है, जिसमें कार्यकारिणी अपनी सभी नीतियों और कार्यों के लिए विधायिका के प्रति जवाबदेह है।
5. गणतंत्र (Republic)
- एक लोकतांत्रिक राज्यव्यवस्था को दो वर्गों में बांटा जा सकता है-
- राजशाही
- गणतंत्र
राजशाही व्यवस्था
- राजशाही व्यवस्था में राज्य का प्रमुख – राजा या रानी
- राज्य का प्रमुखउत्तराधिकारिता के माध्यम से पद पर आसीन होता है; जैसा कि ब्रिटेन में ।
गणतंत्र
- गणतंत्र में राज्य प्रमुख – प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष चुनाव से निर्वाचित
- गणतंत्र में राज्य प्रमुख एक निश्चित समय के लिए निर्वाचित हो कर आता है, जैसे-अमेरिका।
- गणतंत्र के अर्थ में दो और बातें शामिल हैं।
- राजनैतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने का बजाए लोगों के हाथ में होती है
- किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति।
- इसलिए हर सार्वजनिक कार्यालय बगैर किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिए खुला होगा।
6. न्याय (Justice)
- प्रस्तावना में न्याय तीन भिन्न रूपों में शामिल है
सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक।
- सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय के इन तत्वों को 1917 की रूसी क्रांति से लिया गया है।
सामाजिक न्याय
- हर व्यक्ति के साथ जाति, रंग, धर्म, लिंग के आधार पर बिना भेदभाव किए समान व्यवहार।
- इसका मतलब है समाज में किसी वर्ग विशेष के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति और अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार।
आर्थिक न्याय का अर्थ
- आर्थिक कारणों के आधार पर किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसमें संपदा, आय व संपत्ति की असमानता को दूर करना भी शामिल है।
- सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय का मिला-जुला रूप अनुपाती न्याय’ को परिलक्षित करता है।
राजनीतिक न्याय का अर्थ
- हर व्यक्ति को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होंगे, चाहे वो राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का अधिकार।
7. स्वतंत्रता (Freedom)
- हमारी प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व(liberty, equality and fraternity) के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789-1799 ई.) से लिया गया है।
- स्वतंत्रता का अर्थ है-लोगों की गतिविधियों पर किसी प्रकार की रोकटोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना।
- प्रस्तावना हर व्यक्ति के लिए मौलिक अधिकारों के जरिए अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सुरक्षित करती है।
- इनके हनन के मामले में कानून का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।
8. समता
- समता का अर्थ है-समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने के उपबंध।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना हर नागरिक को स्थिति और अवसर की समता प्रदान करती है।
- इस उपबंध में समता के तीन आयाम शामिल हैं-
नागरिक, राजनीतिक व आर्थिक।
नागरिक समता
मौलिक अधिकारों पर निम्न प्रावधान नागरिक समता को सुनिश्चित करते हैं:
- विधि के समक्ष समता (अनुच्छेद-14)
- धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषेध (अनुच्छेद-15)
- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (अनुच्छेद-16)
- अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद-17)
- उपाधियों का अंत (अनुच्छेद-18)
राजनीतिक समता
- अनुच्छेद-325 -धर्म, जाति, लिंग अथवा वर्ग के आधार पर किसी व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल होने के अयोग्य करार नहीं दिया जाएगा
- अनुच्छेद-326 –लोकसभा और विधानसभाओं के लिए वयस्क मतदान का प्रावधान
आर्थिक समता
- अनुच्छेद-39 -राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत के तहत महिला तथा पुरुष को जीवन यापन के लिए पर्याप्त साधन और समान काम के लिए समान वेतन के अधिकार को सुरक्षित करते हैं।
9. बंधुत्व (fraternity)
- बंधुत्व का अर्थ है-भाईचारे की भावना।
संविधान एकल नागरिकता के एक तंत्र के माध्यम से भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करता है।
मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद-51क)
- हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय अथवा वर्ग विविधताओं से ऊपर उठ सौहार्द और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करेगा।
- प्रस्तावना कहती है कि बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा।
व्यक्ति का सम्मान
देश की एकता और अखंडता।
- अखंडता शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया।
- सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर के शब्दों में, “संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।”
- के.एम. मुंशी के अनुसार, प्रस्तावना ‘हमारी संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का भविष्यफल है।’
- पंडित ठाकुर दास भार्गव ने संविधान की प्रस्तावना के संबंध में कहा, ‘प्रस्तावना संविधान का सबसे सम्मानित भाग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का आभूषण है। यह एक उचित स्थान है जहां से कोई भी संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।’
- अर्नेस्ट बार्कर संविधान की प्रस्तावना को संविधान का ‘कुंजी नोट कहते हैं।
- भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम हिदायतुल्लाह मानते हैं, “प्रस्तावना अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा के समान है, लेकिन यह एक घोषणा से भी ज्यादा है। यह हमारे संविधान की आत्मा है जिसमें हमारे राजनीतिक समाज के तौर-तरीकों को दर्शाया गया है। इसमें गंभीर संकल्प शामिल हैं, जिन्हें एक क्रांति ही परिवर्तित कर सकती है।”
संविधान के एक भाग के रूप में प्रस्तावना
Q क्या प्रस्तावना संविधान का एक भाग है या नहीं ?
ANS-
- बेरूबाड़ी संघ मामले (1960) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।
- लेकिन केशवानंद भारती मामले (1973) में उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है।
- एल.आई.सी. ऑफ इंडिया मामले (1995) में भी पुनः उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि प्रस्तावना संविधान का आंतरिक हिस्सा है।
दो तथ्य उल्लेखनीय हैं:
- प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही उसकी शक्तियों पर प्रतिबंध लगाने वाला।
- यह गैर-न्यायिक है अर्थात इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
प्रस्तावना में संशोधन की संभावना
Q . क्या प्रस्तावना में संविधान की धारा 368 के तहत संशोधन किया जा सकता है ?
ANS-
- उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है।
- न्यायालय ने अपना यह मत केशवानंद भारती मामले (1973) के तहत दिया और कहा कि प्रस्तावना को संशोधित किया जा सकता है, बशर्ते मूल विशेषताओं में संशोधन नहीं किया जाए।
- न्यायालय ने व्यवस्था दी कि प्रस्तावना में निहित मूल विशेषताओं को अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित नहीं किया जा सकता।
- अब तक प्रस्तावना को केवल एक बार 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के तहत संशोधित किया गया है।
- इसके जरिए इसमें तीन नए शब्दों को जोड़ा गया-समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता(Socialist, secular and integrity.)। इस संशोधन को वैध ठहराया गया।