उत्तर मुग़ल काल (Post Mughal Period)
- अकबर के शासनकाल से आरंभ हुआ मुगल साम्राज्य का उत्कर्ष औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत पतन की ओर अग्रसर होने लगा। यह अयोग्य उत्तरवर्ती उत्तराधिकारी, कमजोर प्रशासनिक नीतियाँ, बदलते राजनैतिक परिदृश्यों का समग्र परिणाम था। इस दौरान लघु अंतराल पर शासकों का परिवर्तन होता रहा जिनके बारे में हम इस अध्याय में क्रमवार अध्ययन करेंगे।
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उसके तीनों पुत्र-मुअज्जम, मुहम्मद आजम तथा मुहम्मद कामबख्या में उत्तराधिकार के लिये युद्ध हुआ, जिसमें बहादुर शाह (मुअज्ज़म) विजयी रहा।
- औरंगजेब की मृत्यु के समय मुअज्जम काबुल, आज़म गुजरात और कामबख्या बीजापुर का सूबेदार था।
- जून 1707 ई. में जाजऊ (आगरा व धौलपुर के मध्य) नामक स्थान पर हुए उत्तराधिकार के संघर्ष में मुअज़्ज़म की सेना ने आज़म को पराजित कर मुगल सिंहासन पर अधिकार किया।
- 1707 ई. में मुअज़्ज़म उत्तराधिकार के युद्ध में सफल होने के बाद बहादुर शाह प्रथम की उपाधि धारण करके दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ।
- सत्ता प्राप्ति के बाद 1709 ई. में बहादुर शाह (मुअज़्ज़म) ने अपने तीसरे भाई कामबख्श को बीजापुर के निकट पराजित किया।
बहादुर शाह प्रथम (मुअज्जम) (1707-1712 ई.)
- बहादुर शाह प्रथम एक योग्य एवं विद्वान व्यक्ति था। वह समझौते तथा मेल-मिलाप की नीति का अनुसरण करके शाही दुरबार के अधिकांश गुटों का सहयोग प्राप्त करने में सफल रहा।
- बहादुर शाह ने सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह के साथ मेल-मिलाप के संबंध स्थापित किये एवं उन्हें संतुष्ट करने के लिये गुरु के सम्मान में ‘उच्च मनसब’ प्रदान किया।
- गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के पश्चात् एक सिख नेता बंदा बहादुर के नेतृत्व में पंजाब में सिखों ने बगावत कर दी। इससे तंग आकर बहादुर शाह ने सिखों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का फैसला लिया।
- अंततः इसी सिख नेता (बंदाबहादुर) के विरुद्ध युद्ध करते हुए एक सैन्य अभियान के दौरान फरवरी 1712 ई. में बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हो गई।
- बहादुर शाह को उसकी शासकीय क्षमता में अभिरुचि न होने कारण ‘शाह-ए-बेख़बर’ (शाहे-बेख़बर) के उपनाम से जाना जाता था।
- फरवरी 1712 ई. में बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात् उसके चार पुत्रों-जहाँदार शाह, अजीम उस-शान, रफी-उस-शान और जमान शाह में राजशाही गद्दी के लिये संघर्ष हुआ, जिसमें जहाँदारशाह सफल रहा।
जहाँदार शाह (1712-1713)
- उत्तराधिकार के युद्ध में अपने तीनों भाइयों को पराजित कर 1712 ई. में जहाँदार शाह शासक बना। जहाँदार शाह को ईरानी दल के नेता जुल्फिकार खाँ का सहयोग प्राप्त था।
- जहाँदार शाह ने अपने लगभग एक वर्ष के कार्यकाल (1712-1713) में हिंदू और मराठा राजाओं से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखा।
- उसने आमेर के राजा जयसिंह को ‘मिर्जा राजा सवाई जयसिंह‘ की पदवी दी तथा मालवा का सूबेदार बनाया।
- जहाँदार शाह ने मराठों से संबंध बनाए रखने के लिये समकालिक शाहू जी को कुछ शर्तों पर दक्कन के ‘चौथ’ व ‘सरदेशमुखी’ वसूलने के अधिकार दिये।
- जहाँदार शाह के समय जजिया कर पर रोक लगा दी गई।
- जहाँदार शाह ने वित्तीय व्यवस्था में सुधार के लिये राजस्व वसली का कार्य ठेके पर देने की नई व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया, जिसे ‘इजारा व्यवस्था‘ कहते हैं।
- जहाँदार शाह को ‘लंपट मूर्ख‘ भी कहा जाता था।
- 1713 ई. में जहाँदार शाह के भतीजे फर्रुखसियर ने हिंदुस्तानी अमीर सैय्यद बंधुओं के सहयोग से बादशाह को सिंहासन से अपदस्थ कर हत्या करवा दी।
फर्रुखसियर (1713-1719 ई.)
- फर्रुखसियर के शासनकाल में सैय्यद बंधु अब्दुल्ला खाँ ‘वजीर’ तथा हुसैन अली ‘मीरबख़्शी’ के पद पर नियुक्त हुए।
- सैय्यद बंधुओं ने जजिया कर पूर्णतः समाप्त कर दिया और तीर्थयात्रा कर की समाप्ति का आदेश भी दे दिया।
- 1717 ई. फर्रुखसियर ने एक फरमान के ज़रिये अंग्रेजों को व्यापारिक छूट प्रदान की। इसे कंपनी का ‘मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है।
- फर्रुखसियर के कार्यकाल में ही सिख नेता बंदाबहादुर को मृत्युदंड दे दिया गया।
- सैय्यद बंधुओं के बढ़ते हस्तक्षेप से भयभीत होकर फर्रुखसियर इनके खिलाफ षड्यंत्र रचने लगा, लेकिन समय से पूर्व इन षड्यंत्रों की जानकारी सैय्यद बंधुओं को लगने से उन्होंने मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ, मारवाड़ के अजीत सिंह के सहयोग से जून, 1719 में फर्रुखसियर को सिंहासन से अपदस्थ कर हत्या करवा दी।
- फर्रुखसियर को ‘घृणित कायर‘ भी कहा जाता था।
- फर्रुखसियर की हत्या के बाद सैय्यद बंधुओं ने रफी-उद्-दरजात (1719 ई.) को गद्दी पर बैठाया, जिसकी जल्द ही बीमारी के कारण मृत्यु हो गई।
- रफी-उद्-दरजात की मृत्यु के बाद सैंय्यद बंधुओं न रफी-उद्-दौला (1719 ई.) को गद्दी पर बैठाया। वह अफीम का आदी था। इसकी भी जल्द ही मृत्यु हो गई।
- इसके बाद रफी-उद्-दौला (शाहजहाँ द्वितीय) के पुत्र रौशन अख्तर (महम्मद शाह) को सय्यद बंधुओं ने अगला मुगल बादशाह बनाया।
मुगल दरबार में विभिन्न गुट
सैय्यद बंधु : सैय्यद बंधु भारतीय इतिहास में ‘किंग मेकर’ के नाम से विख्यात हैं। इन्होंने कुल चार लोगों-फर्रुखसियर, रफी-उद्-दरजात, रफी-उद्-दौला एवं मुहम्मद शाह को मुगल बादशाह बनाया।
सैय्यद बंधु दो भाई :अब्दुल्ला खाँ एवं हुसैन अली बाराह थे। सैय्यद बंधुओं के विरोधी नेताओं में तूरानी दल के चिनकिलिच खाँ (निज़ाम-उल-मुल्क)ए,अमीन खाँ का प्रमुख योगदान था। इन्हीं के प्रयासों से मुहम्मद शाह रंगीला के समय में इन दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई।
तूरानी गुट : ये मध्य एशिया के सुन्नी मुसलमान थे। सैय्यद बंधुओं के पतन के बाद मुगल दरबार में इसी गुट का बोलबाला था। इस गुट में निज़ाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खाँ), अमीन खाँ और जकारिया खाँ प्रमुख थे।
ईरानी गुट : ये शिया मुसलमान थे। इस गुट में जुल्फिकार खाँ, सआदत खाँ, अमीर खाँ, इस्हाक खाँ प्रमुख थे।
अफगानी गुट : इस गुट में अली मुहम्मद खाँ एवं मुहम्मद बंगस प्रमुख थे।
मुहम्मद शाह (1719-1748 ई.)
- मुहम्मद शाह के शासनकाल में मुगल साम्राज्य का पतन सर्वाधिक तेजी से हुआ।
- उसके शासनकाल में अनेक स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, जिसमें मुर्शिदकुली खाँ के नेतृत्व में बंगाल, सआदत खाँ ने अवध, निजाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खाँ) ने हैदराबाद, चूड़ामन व बदन सिंह ने भरतपुर में अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की।
- मुहम्मद शाह के शासनकाल में ही नादिरशाह का आक्रमण हुआ।
- नादिरशाह को ‘ईरान का नेपोलियन’ के नाम से जाना जाता है।
- मुहम्मद शाह के शासनकाल में नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमद शाह अब्दाली ने भी विशाल सेना के साथ पंजाब पर आक्रमण किया।
- मुहम्मद शाह को अधिक समय हरम में बिताने तथा उसके असंयत और विलासी आचरण के कारण ‘रंगीला’ कहा जाता है।
अहमद शाह बहादुर (1748-1754 ई.)
- अहमद शाह का कार्यकाल अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के लिये जाना जाता है।
- अहमद शाह के समय राजमाता ऊधमबाई के नाम से प्रसिद्ध महिला का प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक हस्तक्षेप था। उसे ‘किबला- ए-आजम की उपाधि प्राप्त थी।
- अहमद शाह ने हिजड़ों के सरदार जावेद खाँ को ‘नवाब बहादर’ की उपाधि प्रदान की।
- मराठा सरदार मल्हार राव के सहयोग से इमाद-उल-मुल्क (गाजीउद्दीन), सफदरजंग को अपदस्थ कर मुगल साम्राज्य का वज़ीर बन गया।
- 1754 ई. में वजीर इमाद-उल-मुल्क ने मराठों के सहयोग से अहमद को अपदस्थ कर आलमगीर द्वितीय को मुगल बादशाह बनाया।
आलमगीर द्वितीय (1754-58 ई.)
- आलमगीर द्वितीय अपने छोटे से कार्यकाल में अपने वज़ीर ‘इमाद-उल-मुल्क’ की कठपुतली बना रहा तथा प्लासी के युद्ध (1757 ई.) के समय यही दिल्ली का शासक था।
- 1758 ई. को इमाद-उल-मुल्क ने आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी तथा बहादुर शाह प्रथम के पौत्र शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ई.) को सिंहासन पर बैठा दिया।
शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ई.)
शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.)
- आलमगीर के पुत्र अली गौहर ने बिहार में शाहआलम द्वितीय के नाम से स्वयं को मुगल बादशाह घोषित किया।
- शाहआलम द्वितीय ने 1764 ई. में बक्सर युद्ध में मीर कासिम तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
- बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित होने के बाद शाहआलम द्वितीय को 1765 ई. में हुई इलाहाबाद की संधि के के अनुरूप कई वर्षों तक अंग्रेजों का पेंशनभोगी बनकर रहना पड़ा।
- 1772 ई. में मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने पेंशनभोगी शाहआलम द्वितीय को एक बारफिर राजधानी दिल्ली के मुगल सिंहासन पर बैठाया।
- शाहआलम द्वितीय के कार्यकाल में ही अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार त कर लिया।
- शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अकबर द्वितीय अगला मुगल बादशाह बना।
अकबर द्वितीय (1806-1837)
- अकबर द्वितीय के कार्यकाल तक मुगल बादशाह मात्र लाल किले तक सिमट कर रह गया था।
- अकबर द्वितीय अंग्रेजों के संरक्षण से बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह था।
- अकबर द्वितीय ने ही राममोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि दी।
- 1837 ई. में अकबर द्वितीय की मृत्यु के बाद बहादुर शाह द्वितीय अंतिम मुगल सम्राट हुआ।
बहादुर शाह द्वितीय (1837-1857 ई.)
- बहादुर शाह द्वितीय, ‘ज़फ़र’ के उपनाम से शायरी लिखा करता था, इसलिये इसे ‘बहादुर शाह जफ़र’ के नाम से भी जाना जाता है।
- 1857 के संग्राम में विद्रोहियों का साथ देने के कारण रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहाँ 1862 ई. में अंतिम मुगल सम्राट की मृत्यु हो गई।
- यह मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक था। इसकी मृत्यु के पश्चात मुगल साम्राज्य का भारत में अंत हो गया।