पंचायती राज (Panchayati Raj)
- पंचायती राज’ का अभिप्राय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्धति से है।
- यह भारत के सभी राज्यों में राज्य विधानसभाओं द्वारा स्थापित किया गया है। इसे ग्रामीण विकास का दायित्व सौंपा गया है।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया।
पंचायती राज का विकास
बलवंत राय मेहता समिति
- जनवरी 1957 में भारत सरकार ने समिति का गठन किया।
- इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता थे।
- समिति ने नवंबर 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और ‘लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (स्वायतत्ता)’ की योजना की सिफारिश की, जो कि अंतिम रूप से पंचायती राज के रूप में जाना गया।
- समिति द्वारा दी गई विशिष्ट सिफारिशें निम्नलिखित हैं:
- 1. तीन स्तरीय पंचायती राज पद्धति की स्थापना
- गांव स्तर पर ग्राम पंचायत – प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि
- ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति – अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि
- जिला स्तर पर जिला परिषद–अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि
- 2 . पंचायत समिति को कार्यकारी निकाय तथा जिला परिषद को सलाहकारी, समन्वयकारी और पर्यवेक्षण निकाय होना चाहिए।
- 3 .जिला परिषद का अध्यक्ष—जिलाधिकारी होना चाहिए।
- इसके बाद आंध्र प्रदेश ने इस योजना को 1959 में लागू किया।
अशोक मेहता समिति
- दिसंबर 1977 में, जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता का अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं पर एक समिति का गठन किया।
- इसने अगस्त 1978 में अपनी रिपोर्ट सौंपी
- समिति ने 132 सिफारिशें कीं।
- इसकी मुख्य सिफारिशें इस प्रकार है
- 1. त्रिस्तरीय पंचायती राज पद्धति को द्विस्तरीय पद्धति में बदलना चाहिए।
- जिला स्तर पर -जिला परिषद
- गांवों के समूह स्तर पर – मंडल पंचायत में (15K से 20K जनसंख्या)
- 2. राज्य स्तर से नीचे लोक निरीक्षण में विकेंद्रीकरण के लिए जिला ही प्रथम बिंदु होना चाहिए।
- 3. जिला परिषदकार्यकारी निकाय होना चाहिए और वह राज्य स्तर पर योजना और विकास के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।
- 4. पंचायती राज संस्थाओं देखरेख के लिए राज्य मंत्रिपरिषद में एक मंत्री होनी चाहिए।
- 5. उनकी जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए स्थान आरक्षित होना चाहिए।
- 6. पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए।
- 1. त्रिस्तरीय पंचायती राज पद्धति को द्विस्तरीय पद्धति में बदलना चाहिए।
जी.वी.के. राव समिति
- योजना आयोग द्वारा1985 में जी.वी.के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया किया।
- समिति ने विभिन्न सिफारिशें की, जो इस प्रकार थीं:
- 1. जिला परिषद को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिये।
- 2. एक जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन किया जाना चाहिये।
- 3. पंचायती राज संस्थानों में नियमित निर्वाचन होने चाहिये।
प्रखंड स्तरीय आयोजना पर- दाँतवाला समिति, 1978
जिला आयोजना पर – हनुमंत राव समिति रिपोर्ट 1984
- दोनों समितियों में यह सुझाया गया था कि मूलभूत विकेन्द्रित आयोजना का कार्य जिला स्तर पर सम्पन्न किया जाना चाहिए।
एल.एम. सिंघवी समिति
- 1986 में राजीव गांधी सरकार ने एक समिति का गठन एल.एम. सिंहवी की अध्यक्षता में किया।
- इसने निम्न सिफारिशें दी:
- 1. पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता देने और उनके संरक्षण की आवश्यकता है।
- 2. गांवों के समूह के लिए न्याय पंचायतों की स्थापना की जाये।
- 3. पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव, उनके विघटन एवं उनके कार्यों से संबंधित जो भी विवाद उत्पन्न होते हैं. उनके निस्तारण के लिये न्यायिक अधिकरणों की स्थापना की जानी चाहिये।
थुंगन समिति
- 1988 में, संसद की सलाहकार समिति की एक उप-समिति पी. के. थुंगन की अध्यक्षता में गठित की गयी।
- इस समिति ने निम्न अनुशंसाएं की थी:
- 1. पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।
- 2. गांव ,प्रखंड तथा जिला स्तरों पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज
- 3 . पंचायती राज संस्थाओं का पांच वर्ष का निश्चित कार्यकाल होनी चाहिए।
- 4 . एक संस्था के सुपर सत्र की अधिकतम अवधि छह माह होनी चाहिए।
- 5 . राज्य स्तर पर योजना मंत्री की अध्यक्षता में एक योजना निर्माण तथा समन्वय समिति गठित होनी चाहिए।
- 6. पंचायती राज के तीन स्तरों पर जनसंख्या के हिसाब आरक्षण होनी चाहिए। महिलाओं के लिए भी आरक्षण होनी चाहिए।
- 7. हर राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन चाहिए।
- 8. जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी जिले का कलक्टर होगा।
गाडगिल समिति
- 1988 मेंवी.एन गाडगिल की अध्यक्षता में एक नीति एवं कार्यक्रम समिति का गठन कांग्रेस पार्टी ने किया था।
- इस समिति से इस प्रश्न पर विचार करने के लिए कहा गया कि “पंचायती राज संस्थाओं को प्रभावकारी कैसे बनाया जा सकता।’
- इस संदर्भ में समिति ने निम्न अनुशंसाएँ (recommendations) की थी:
- 1. पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए।
- 2. गाँव, प्रखंड तथा जिला स्तर पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज होना चाहिए।
- 3. पचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष सुनिश्चित कर दिया जाए।
- 4. पंचायत के सभी तीन स्तरों के सदस्यों का सीधा निर्वाचन होना चाहिए।
- 5. अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिए।
- 6. पंचायती राज संस्थाओं को कर (taxes) तथा (duties) लगाने, वसूलने तथा जमा करने का अधिकार होगा।
- 8. एक राज्यवित्त आयोग की स्थापना हो जो पंचायतों को वित्त का आवंटन करें।
- 9. एक राज्य चुनाव आयोग की स्थापना हो जो पंचायतों के चुनाव संपन्न करवाए।
- गाडगिल समिति की ये अनुशंसाएँ एक संशोधन विधेयक के निर्माण का आधार बनीं।
- इस विधेयक का लक्ष्य था-पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा तथा सुरक्षा देना।
नरसिम्हा राव सरकार :
- पी.वी. नरसिम्हा राव के कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर पंचायती राज के संवैधानिकरण के मामले पर विचार किया।
- सितंबर, 1991 को लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया।
- यह विधेयक 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल, 1993 को प्रभाव में आया।
73वां संशोधन अधिनियम 1992
- इस अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया भाग -IX और अनुच्छेद 243 से 243-O के प्रावधान सम्मिलित किया।
- इसे ‘पंचायतें/Panchayats‘ नाम उल्लिखित किया गया
- इस अधिनियम ने संविधान में एक नई 11वीं अनुसूची भी जोड़ी।
- इस सूची में पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय-वस्तु है। यह अनुच्छेद 243-G से संबंधित है।
- इस अधिनियम ने संविधान के 40वें अनुच्छेद को एक व्यवहारिक रूप दिया, जिसमें कहा गया है कि, “ग्राम पंचायतों को गठित करने के लिए राज्य कदम उठाएगा। यह अनुच्छेद राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों का एक हिस्सा है।”
- इस अधिनियम ने पंचायती राज संस्थाओं को एक संवैधानिक दर्जा दिया
- इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार नई पंचायती राज पद्धति को अपनाने के लिए राज्य सरकारें संवैधानिक से बाध्य है।
- इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- ग्राम सभा: यह अधिनियम पंचायती राज के ग्राम सभा का प्रावधान करता है।
- त्रिस्तरीय प्रणाली:
- इस अधिनियम में सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली का प्रावधान किया गया है,
- ऐसा राज्य जिसकी जनसंख्या 20 लाख से ऊपर न हो, को माध्यमिक स्तर पर पंचायतें को गठन न करने की छूट देता है।
- सदस्यों एवं अध्यक्ष का चुनाव:
- गांव, माध्यमिक तथा जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जाएंगे।
- इसके अलावा, माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्हीं में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा
- जबकि गांव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा।
- सीटों का आरक्षण:
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति को उनकी संख्या के कुल जनसंख्या के अनुपात में सीटों पर आरक्षण उपलब्ध कराता है
- महिलाओं के लिए आरक्षण एक-तिहाई से कम नहीं होगा।
- पंचायतों का कार्यकाल:
- पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निश्चित करता है।
- समय पूरा होने से पूर्व भी उसे विघटित किया जा सकता है। इसके बाद पंचायत गठन के लिए नए चुनाव होंगे।
- (अ) इसकी 5 वर्ष की अवधि खत्म होने से पूर्व
- (ब) विघटित होने की तिथि से 6 माह की अवधि के अंदर।
- परंतु जहाँ शेष अवधि छह माह से कम है, वहाँ इस अवधि के लिए नई पंचायत का चुनाव आवश्यक नहीं होगा। पाका
- भंग पंचायत के स्थान पर गठित पंचायत जो भंग पंचायत की शेष अवधि के लिए गठित की गई है। वह भंग पंचायत की शेष अवधि तक ही कार्यरत रहेगी।
- अर्हताएं:qualifications:
- यदि वह 21 वर्ष की आयु पूरा कर चुका है।
राज्य निर्वाचन आयोग:
- पंचायतों के चुनाव संबंधित सभी मामलों पर राज्य विधान कोई भी उपबंध बना सकता है।
- पंचायतों का चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जायगा
- इसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्तराज्य चुनाव आयुक्त सम्मिलित हैं।
- उसकी सेवा शर्ते और पदावधि भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
- इसे राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का हटाने के लिए निर्धारित तरीके से हटाया जाएगा।
- राज्य का राज्यपाल द्वारा प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए वित्त आयोग का गठन करेगा।
- यह आयोग राज्यपाल को पंचायतों की वित्तीय स्थिति के सुधार के लिए सिफारिशें करेगा
- राज्यपाल सिफारिशों को राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
- राज्य विधानमंडल ,पंचायत को उपयुक्त कर, चुंगी, शुल्क लगाने और उनके संग्रहण का अधिकार दे सकता है।
- संघ राज्य क्षेत्रों पर लागू होना:
- भारत का राष्ट्रपति किसी भी संघ राज्यक्षेत्र में पंचायती राज व्यवस्था को अपवादों अथवा संशोधनों के साथ लागू करने के लिए निर्देश दे सकता है।
छूट प्राप्त राज्य व क्षेत्रः
- यह कानून विशेष क्षेत्रों पर लागू नहीं होता।
- जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, मिजोरम
- इन क्षेत्रों के अंतर्गत
- राज्यों के अनुसूचित आदिवासी क्षेत्रों में
- मणिपुर के उन पहाड़ी क्षेत्रों में जहां जिला परिषद अस्तित्व में हो।
- पं. बंगाल को दार्जिलिंग जिला
- संसद चाहे तो इस अधिनियम को ऐसे अपवादों और संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजाति क्षेत्रों में लागू कर सकती है, जो वह उचित समझे।
वर्तमान कानून की निरंतरता एवं पंचायतों का अस्तित्वः
- कोई भी राज्य नए पंचायती राज कार्यक्रम को 24 अप्रैल, 1993 के बाद अधिकतम 1 वर्ष की अवधि के अंदर अपनाए जो कि इस अधिनियम के शुरुआत की तारीख है।
चुनावी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोकः
- यह अधिनियम पंचायत के चुनावी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है।
- 11वीं अनुसूची: इसमें पंचायतों के कानून क्षेत्र के साथ 29 विषय-वस्तु समाहित हैं:
- संविधान के भाग 11 या 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनिवार्य (बाध्यकारी) उपबंधों
- 1. एक गांव या गांवों के समूह में ग्राम सभा का गठन।
- 2. गांव स्तर पर पंचायतों, माध्यमिक स्तर एवं जिला स्तर पर पंचायतों की स्थापना।
- 3. तीनों स्तरों पर सभी सीटों के लिये प्रत्यक्ष चुनाव।
- 4. माध्यमिक और जिला स्तर के प्रमुखों के लिये अप्रत्यक्ष चुनाव।
- 5. पंचायतों में चुनाव लड़ने के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष का होनी चाहिये।
- 6. सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिये आरक्षण।
- 7. सभी स्तरों पर एक तिहाई पद महिलाओं के लिये आरक्षित।
- 8. पंचायतों के साथ ही मध्यवर्ती एवं जिला निकायों का कार्यकाल पांच वर्ष होना चाहिये तथा किसी पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने के छह माह की अवधि के भीतर नये चुनाव हो जाने चाहिये।
- 9. पंचायती राज संस्थानों में चनाव कराने के लिये राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना।
- 10. प्रत्येक पांच वर्ष बाद एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना की जानी चाहिये।
संविधान के भाग 11 या 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के स्वैच्छिक प्रावधान
- 1. विधानसभाओं एवं संसद के निर्वाचन क्षेत्र विशेष के अंतर्गत आने वाली सभी पंचायती राज संस्थाओं में संसद और विधानमण्डल (दोनों सदन) के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना।
- 2. पंचायत के किसी भी स्तर पर पिछड़े वर्ग के लिये (सदस्य एवं प्रमुख दोनों के लिये) स्थानों का आरक्षण।
पेसा अधिनियम,1996 (विस्तार अधिनियम)
- संविधान का भाग-9 के पंचायतो से सम्बंधितप्रावधान पाँचवीं अनुसूची में वर्णित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता।
- संसद पंचायतो से सम्बंधितप्रावधान को कुछ अपवादों तथा संशोधनों के साथ भाग-9 के क्षेत्रों पर लागू कर सकती है।
- इसी के अंतर्गत संसद ने पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित) अधिनियम 1996/ Panchayat (Extended to Scheduled Areas) Act 1996 पारित किया, जिसे पेसा एक्ट अथवा विस्तार अधिनियम/PESA Act or Extension Act कहा जाता है।
- वर्तमान (2016) में दस राज्यों में पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र आते है
- इन दस राज्यों ने पंचायती राज अधिनियमों में संशोधन कर अपेक्षित अनुपालन कानून अधिनियमित किए हैं।
पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत
- भारत के द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2005-2009) ने पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय स्रोतों तथा उनकी वित्तीय शक्तियों को निम्नांकित रूप में संक्षेपित किया है?
- 1. देश में पंचायतें निम्नलिखित तरीकों में राजस्व एकत्र करती है
- संविधान की धारा 280 के आधार पर केंद्रीय वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान।
- संविधान धारा 243-I के अनुसार राज्य वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान।
- राज्य सरकार से प्राप्त कर्ज/अनुदान
- केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं तथा अतिरिक्त केंद्रीय कार की मदद के नाम पर कार्यक्रम केंद्रित आवंटन
- आंतरिक (स्थानीय स्तर) पर संसाधन निर्माण (कर तथा गैर-कर)।