2. उराँव जनजाति (Oraon)
- झारखण्ड की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति
- भारत की चौथी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति
- झारखण्ड की सबसे शिक्षित जनजाति
- झारखण्ड की जनजातियों में सर्वाधिक विकास उराँव जनजाति का
- जनजातियों की कुल जनसंख्या में प्रतिशत – 18.14%
- सर्वाधिक संकेंद्रण – दक्षिणी छोटानागपुर एवं पलामू प्रमण्डल
- उराँव जनाजाति का मूल निवास स्थान – दक्कन
- उपनाम – कुडुख (अर्थ ‘मनुष्य‘)
- उराँव जनजाति की भाषा – कुडुख भाषा (द्रविड़ परिवार )
- प्रजातीय संबंध – द्रविड़ समूह
- भाषायी संबंध – द्रविड़ समूह
- उराँव जनजाति का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन किया – शरच्चंद्र राय ने
- गोत्र की संख्या – 68 गोत्र (किली)
- उराँव जनजाति को मुख्यतः 14 गोत्रों (किली) में विभाजित
- इनमें गोदना (Tatoo) प्रथा प्रचलित है।
- समगोत्रीय विवाह निषिद्ध
विवाह के रूप
- आयोजित विवाह
- सर्वाधिक प्रचलित विवाह
- जिसमें वर पक्ष को वधु मूल्य देना पड़ता है।
- सेवा विवाह – भावी वर कुछ समय तक भावी वधु के परिवार की सेवा करता है।
- विधवा विवाह
- एक ही गाँव के लड़का-लड़की के बीच शादी नहीं किया जाता है
सहियारो
- इस जनजाति में आपस में नाता स्थापित करने हेतु सहिया का चुनाव किया जाता है, जिसे ‘सहियारो‘ कहा जाता है।
- प्रत्येक तीन वर्षों की धनकटनी के बाद ‘सहिया चयन समारोह‘ का आयोजन किया जाता है।
- इस जनजाति में आपसी मित्रता की जाती है।
- ‘गोई’ या ‘करमडार‘ – लड़कि की मित्र को
- ‘लार’ या ‘संगी‘ – लड़के का मित्र को
- ‘लारिन’ या ‘संगिनी‘ – विवाह के बाद लड़कों की पत्नियाँ आपस में एक-दूसरे को
- परिवार की संपत्ति पर केवल पुरूषों का अधिकार होता है।
- सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:
- करया – त्योहार के समय पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र
- खनरिया – त्योहार के समय महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र
- पितृसत्तात्मक परिवार
- प्रमुख नृत्य – ‘यदुर‘
- प्रमुख उत्सव –
- वैशाख में विसू सेंदरा
- फागुन में फागु सेंदरा
- वर्षा ऋतु में जेठ शिकार करते हैं।
- अनौपचारिक शिकार – दौराहा शिकार
- उराँव जनजाति के वर्ष का प्रारंभ – नवम्बर-दिसम्बर में धनकटनी के बाद होता है।
प्रमुख त्योहार
- करमा (भादो माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को)
- सरहुल
- खद्दी (चैत माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को)
- जतरा (जेठ, अगहन व कार्तिक माह में धर्मेश देवता के सम्मान में)
- सोहराय (कार्तिक अमावस्या को पशुओं के सम्मान में)
- फागु पर्व (फागुन माह में होली के समरूप) आदि हैं।
- यह जनजाति स्थायी कृषक बन गयी है।
भुईहर /‘भुईहर गाँव‘
- उराँव जनजाति के ऐसे लोग जिन्होंने प्रारंभ में छोटानागपुर क्षेत्र में आने के बाद जंगलों को साफ करके कृषि कार्य करना प्रारंभ किया। ऐसे उराँवों को ‘भुईहर‘ कहा गया
- इनकी भूमि को ‘भुईहर भूमि‘ कहा गया।
- इनकी गाँव को ‘भुईहर गाँव‘ कहा गया।
- बाद में आने वाले उराँवों को ‘रैयत’ या ‘जेठ रैयत‘ कहा गया।
‘पसरी’ प्रथा
- जिसके अंतर्गत आपस में मेहनत का विनिमय किया जाता है
- या किसी को हल-बैल देकर उससे खेत को जोतने व कोड़ने में सहायता ली जाती है।
- बंदर का मांस नहीं खाती है।
- हड़िया – प्रिय पेय पदार्थ
- प्रमुख देवता – धर्मेश या धर्मी (सूर्य के समान)
- अन्य प्रमुख दवी-देवता
- मरांग बुरू – पहाड़ देवता
- ठाकुर देव – ग्राम देवता
- डीहवार – सीमांत देवता
- पूर्वजात्मा – कुल देवता
- ‘भेलवा पूजा – वर्ष में एक बार फसल की रोपनी के समय
- ‘गोरेया पूजा‘ – गाँव के कल्याण के लिए वर्ष में एक बार
- गाँव का धार्मिक प्रधान – पाहन
- सहयोगी – पुजार
- पूजा स्थल – सरना
- पूर्वजों की आत्मा के निवास स्थान – सासन
- ‘हड़बोरा’ संस्कार/‘गोत्र-खुदी’//‘कोहाबेंजा‘
- जनवरी में ‘हड़बोरा’ संस्कार का आयोजन
- साल भर में मरे गोत्र के सभी लोगों की हड्डियों को नदी में निक्षेपित किया जाता है। इसे ‘गोत्र-खुदी’ कहा जाता है।
- ‘कोहाबेंजा‘ – हड़बोरा संस्कार के बाद उनकी आत्मा पूर्वजों की आत्मा से मिलन
- माटी- जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को
घुमकुरिया
- घुमकुरिया एक युवागृह है
- युवागृह – जिसमें युवक-युवतियों को जनजातीय रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- प्रवेश – 10 -11 वर्ष की आयु में
- सदस्य्ता समाप्त – विवाह होने पर
- प्रवेश करने वाले सदस्यों की तीन श्रेणियाँ
- पूना जोखर (प्रवेश करने वाले नये सदस्य)
- माँझ जोखर (3 वर्ष बाद)
- कोहा जोखर
- जोख-एड़पा (धांगर कुड़िया) –युवकों के लिए प्रबंध
- मुखिया – धांगर या महतो
- सहायक – कोतवार
- पेल-एड़पा – युवतियों के लिए प्रबंध
- जोख का अर्थ – कुँवारा होता है।
- पेल-एड़पा की देखभाल करने वाली महिला – बड़की धांगरिन
- घुमकुरिया के अधिकारियों का बदलना – 3 वर्ष पर
- इसके लिए ‘मुखिया हंडी’ (हडिया पीना) समारोह का आयोजन