खोरठा लेखक नरेश नील कमल की जीवनी (Naresh Neel Kamal Biography )

  खोरठा लेखक नरेश नील कमल  की जीवनी

(Naresh Neel Kamal Biography )

नरेश नील कमल 

  • जन्म – 16 जुलाई ,1949 धनबाद , कहरियाँ (ओझाडीह )
  • निधन2 मार्च 2008
  • पानुरी जी द्वारा संपादित मालाक फूल कविता में इनके कई कविता संकलित है
  • 1970 में पानुरी जी द्वारा संपादित पत्रिका खोरठा के संपादक थे

विनय कुमार तिवारी: एक परिचय
नाम: विनय कुमार तिवारी
जन्म: 5 अक्टूबर, 1974
पिता का नाम: श्री हरि प्रसाद तिवारी 
माता का नाम: स्व0 बेला रानी
जन्म स्थान: ग्राम – रोवाम, पंचायत- ढांगी
प्रखण्ड: तोपचाँची, जिला – धनबाद राज्य- झारखण्ड (भारत)।
षिक्षा: स्नातक प्रतिष्ठा (अर्थशास्त्र)।
कला क्षेत्र: गीत कविता और पटकथा लेखन।
भाषा: खोरठा (झारखण्ड के सबसे बड़े क्षेत्र और आबादी की लोकभाषा)।
उपलब्धियाँ: 
सम्मान/उपाधि/पुरस्कार:
1. झारखंड सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिबू सोरेन से साल 2008 में ’खोरठा गौरव अवार्ड। 
2. नेट इंडिया सुविधा कार्ड्स लिमिटेड कंपनी द्वारा खोरठा रत्न सम्मान। 
3. श्री मथुरा प्रसाद महतो खाद्य आपूर्ति एवं भू .राजस्व मंत्री झारखंड सरकार से 2011 में खोरठा गीत एसंगीत व सिनेमा क्षेत्र में योगदान हेतु खोरठा सम्मान से सम्मानित।
4. पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग, सांस्कृतिक कार्य निदेशालय झारखंड सरकार द्वारा 21 मार्च 2016 को खोरठा लोक गीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सांस्कृतिक सम्मान से सम्मानित।
5. श्री निवास पानुरी स्मृति सम्मान व श्री निवास  पानुरी खोरठा प्रबुद्व सम्मान।
6. ऋषिकेश स्मारक सेवा समिति द्वारा खोरठा गीत सम्मान।
7. प्रथम झारखंड अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में श्री निवास पानुरी मेमोरियल अवार्ड फॉर खोरठा लिटरेचर।
8. झारखंड फिल्म निर्माता संघ द्वारा झारखंड कला रत्न सम्मान।
9. प्रथम झारखंड नेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट गीतकार ऑफ खोरठा सम्मान से सम्मानित।
10. ऋषिकेश स्मारक सेवा समिति द्वारा खोरठा श्री सम्मान।
11. द्वितीय झारखंड नेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट स्क्रिप्ट राइटर ऑफ खोरठा सम्मान से सम्मानित।
12. आधुनिक व अति लोकप्रिय खोरठा गीत लेखन तथा  खोरठा गीत संगीत सिनेमा के विकास में विशिष्ट योगदान हेतु खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद द्वारा  खोरठा कला संस्कृति रत्न सम्मान से सम्मानित।
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13. खोरठा गीत-संगीत-सहित्य व सिनेमा के  प्रचार एप्रसार एविकास एसंरक्षण-संवर्धन व आंदोलन के लिए अनेकों प्रशासकों, समाज सेवियों-जनप्रतिनिधियों व संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्रों एवं सम्मानों से सम्मानित।
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1. 
हज़ारो साल अपनी बेनूरी पर रोती है जब नर्गिस
तब जाकर जाकर चमन पर आता है दीदावर कोई।
इकबाल का यह शेर पता नहीं किसके लिए कहा गया था। पर इसका निहितार्थ है वह झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्र और सबसे बड़ी आबादी की मातृभाषा खोरठा पर भी लागू होता है। खोरठा भी अपनी पहचान के लिए सदियों से तरस रही थी, उपेक्षा और तिरस्कार का पीड़ा झेल रही थी। इसके महत्व की चमक (नूर) से दुनिया बेखबर थी। ऐसे में हजारो बरस बाद इसे पहचान कर दुनिया के सामने इसकी खूबियों को रखनेवाले पिछली सदी में पैदा हुए थे। इन्हीं में से एक दीदावर का नाम है विनय कुमार तिवारी। 
श्री विनय तिवारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित बिंदुओं में प्रस्तुत है –
1. आधुनिक खोरठा गीत-संगीत-सिनेमा के अग्रदूत 
देश का अठाइसवाँ राज्य – झारखंड प्रजाति, प्रकृति और भाषा-संस्कृति के संदर्भ में एक अनूठा प्रदेश है। यहाँ तीन प्रजाति के मानव समुदायों द्वारा तीन वर्ग की भाषाएँ बोली जाती है। आग्नेय, द्रविड़ और आर्य परिवार की एक दर्जन से अधिक भाषाओं का प्रचलन हे जो झारखण्ड की मूल भाषाएँ हैं। जिनें से सबसे बड़े क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी की भाषा है खोरठा। जो एक प्रचीन भाषा होने के साथ ही काफी समृद्ध भी है। झारखण्ड के 24 में-से 16-17 जिलों में खोरठा भाषी बसे हुए हैं जिनकी संख्या डेढ़ करोड़ के आसपास मनी गई है। 2011 की जनगणना के आँकड़ों को माने तो खोरठा बोलनेवाले 84 लाख हैं। यह पारंपरिक लोकभाषा यहाँ के गैर जनजाति और जनजाति की मातृभाषा होने साथ ही दो इतर भाषा-भाषा समुदाय के बीच की पारंपरिक संपर्क भाषा है। समृद्ध लोक साहित्य की पृष्ठभूमि में इस भाषा में लगभग तीन सौ साल पहले साहित्य लेखन शुरू हुआ था पर पर छिट-पुट रूप में। बीती सदी के उत्तरार्द्ध में इसके साहित्य लेखन में गति आई। और अबतक दो सौ से अधिक साहित्यिक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ है। इसके साथ ही  पिछले चालीस से अधिक वर्षों से अकादमिक स्तर से मान्यता प्राप्त है और 2011 से झारखण्ड राज्य में द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिला है। 
पर इतना होने के बावजूद खोरठा एक उपेक्षित भाषा थी। अपनी स्वतंत्र भाषिक पहचान  के लिए संघर्ष कर रही थी। कुछ साहित्यकार खोरठा में रचनाएँ कर खोरठा को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए काफी प्रयास कर रहे थे। लेकिन उनकी पहुँच कुछ पढ़े-लिखे लोगों तक ही सिमट कर रह गई थी। अकादमिक स्तर पर तो 1981-82 में राँची विश्वविद्यालय से एक क्षेत्रीय  भाषा के रूप में मान्यता दे दी गई थी, पर आम जनता में खोरठा को लेकर बहुत ही हीन भावना थी। इसे अनपढ़-गवाँरों की बेढंगी, खुरदरी भाषा माना जाता था। स्वयं खोरठा भाषी भी अपनी भाषा नाम लेने में सकुचाते थे। पढ़े-लिखे तो अपनी मातृभाषा के रूप में खोरठा को स्वीकारना भी पसंद नहीं करते थे।    खोरठा का लोक संगीत कुछ पर्व त्योहारों और कुछ सांस्कारिक अनुष्ठानों तक ही सिमट कर रह गया था। इसकी सैकड़ों किस्म की कर्णप्रिय लोकधुनें धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थीं। कुछ साहित्यकार और लोक चेतना संपन्न कुछ कलाकार एक पुरानी पर जीवंत लोकभाषा के अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे थे। 
इन निराशाजनक परिस्थितियों से खोरठा गीत संगीत को गुमनामी के गर्त से निकालकर नई पहचान के पहाड़ पर आरूढ़ कराने के लिए एक विलक्षण प्रतिभा संपन्न कलाकार के रूप में खोरठा जगत में विनय तिवारी का प्रादुर्भाव होता है। इन्होंने खोरठा गीत-संगीत को आधुनिक समाज और संदर्भ से जोड़कर इस ढंग से प्रस्तुत किया कि आम खोरठाभाषी ही नहीं, बल्कि गैर खोरठा भाषियों में खोरठा गीतांें का जादू सर चढ़कर बोलने लगा। विनय तिवारी के लिखे और इन्हीं की बनाई धुनों से सजे गीतों ने गजब की धूम मचाई। जमाना टेप रिकाॅर्डर के कैसेटों का था। खोरठा गीत-संगीत में एक क्रांति आ गई।  खुशियों के मौकों पर अब फिल्मी गानों की जगह खोरठा गीतों ने ले ली। विनय जी के पीछे-पीछे खोरठा गीतकारों की एक बड़ी जमात पैदा होने लगी। तरह-तरह के खोरठा गीतों के एलबम लोगों के बीच आने लगे। लेकिन सर्वाधिक लोक-स्वीकृति तिवारी जी की गीत रचनाओं को मिली। सिर्फ खोरठा भाषी क्षेत्र या झारखण्ड ही नहीं, बल्कि बिहार, बंगाल, असम, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी तिवारी जी के गीतों ने अभूतपूर्व लोकप्रियता का परचम लहराया। जिस खोरठा नाम से खोरठा भाषी भी परिचित नहीं थे उसे राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने लगा। जिसका सर्वाधिक श्रेय निर्विवाद रूप से विनय तिवारी जी को जाता है।
2. असाधारण प्रतिभा संपन्न गीतकार 
विनय तिवारी एक असाधारण प्रतिभाशाली गीत रचनाकार हैं। इनके गीतों में जीवन की सतरंगी छटा के दर्शन होते हैं। सरल-सहज शब्दों में भाव-विषयों की इतनी सुंदर प्रस्तुति की जाती है कि सुननेवाले के दिल में सीधे उतर जाते हैं। आपके गीत युवा दिलों को धड़काते हैं, बजुर्गों को रिझाते हैं तो महिलाओं को ममता और करुणा से भर देते हैं। 
बाॅलीवूड के शीर्ष गायकों ने गाए विनय के गीत: सिद्ध गीतकार विनय जी के बहुआयामी गीतों का विशाल भंडार है। अबतक आपने दो हजार से अधिक खोरठा गीतों की रचना की है। जो अलग-अलग भाव-विषय के हैं। अधिकतर रोमांटिक और भक्ति भाव पर आधारित हैं। जिनमें से अधिकांश सुपर-डुपर हिट हुए हैं। इनकी गीतों की लोकग्राह्यता को देखकर टी सिरिज़ कैसेट कंपनी ने इन्हें अपने लिए लिखने के लिए अनुबंध किया और अनेक हिट एलबम बाजार में छोड़े। जो कैसेट के जमाने से लेकर आज यूट्यूब और सोसल मीडिया के नवयुग में भी काफी लोकप्रिय हैं। इनके गीतों को स्थानीय कलाकारों अलावे बाॅलीवूड के कुमार शानु उदित नारायण और भजन सम्राट अनुप जलोटा जैसे विख्यात कलाकारों ने अपनी आवाजें दी हैं। 
खोरठा में इनके गीतों की धूम के चलते इन्हें लोग खोरठा का ‘समीर’ कहकर पुकारते हैं।
खोरठा के अतिरिक्त भोजपुरी और नागपुरी भाषाओं में इन्होंने गीत लिखे हैं जिन्हें लोगों ने काफी पसंद किया है। एक अति लोकप्रिय गीतकार के रूप में इनके साक्षात्कार कई टीवी चैनलों, आकाशवाणी और पत्र-पत्रिकाओं में प्रसारित-प्रकाशित हुए हुए हैं। जिनमें ई टीवी बिहार, आकाशवाणी राँची और झारखंड सरकार की ऐतिहासिक पत्रिका ‘आदिवासी’ उल्लेखनीय है।
इन्होंने अनेक सामाजिक विषय के गीतों की रचना की है। जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं/संकलनों में प्रकाशित होकर चर्चित हैं। जिनमें से ‘भात’ शीर्षक गीत को काफी सराहा गया है। आपके कई गीत रचनाएँ विश्वविद्यालय के खोरठा पाठ्क्रम में शामिल हैं।
झारखंड की आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में ‘झारखण्ड की सांस्कृतिक विरासत’ पाठ में खोरठा के प्रसिद्ध सांस्कृतिक व्यक्तित्व के रूप में आपका परिचय दिया गया है। 
  
3. खोरठा गीत-संगीत और सिनेमा के उन्नायक 
विनय तिवारी ने जिस प्रकार आधुनिक खोरठा गीत-संगीत को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचाने में अग्रणी भूमिका निभाई वहीं खोरठा में सिनेमा निर्माण को भी शुरूआत दी। इन्होंने खोरठा फिल्मों के लिए गीत के अलावे पटकथा और संवाद की भी रचना की है। खोरठा फिल्म ‘हामर देहाती बाबू में पटकथा लेखन खोरठा फिल्म ‘देय देबो जान गोरी’ में गीत लेखन नागपुरी फिल्म ‘करमा’ में गीत लेखन, खोरठा शार्ट फिल्म ‘पिता का मान बेटियाँ’ में पटकथा व निर्देशन खोरठा फिल्म ‘झारखंडेक माटी’ में गीत लेखक की भूमिका निभाई। ‘पिता का मान बेटियाँ’ फिल्म राष्ट्रीय फिल्म फेस्ट में सर्वश्रेष्ठ खोरठा फिल्म के पुरस्कार से नवाजी गई है। 
4. खोरठा भाषा साहित्य संगीत सिनेमा के हक के लिए संघर्षशील: खोरठा साहित्य गीत-संगीत, सिनेमा और साहित्यकार-कलाकारों के हक लिए विनय जी ने हमेशा संघर्ष किया है। कई बार आंदोलन किए। सरकार से पत्राचार किया। मीडिया के माध्यम से आवाजें उठाईं। जो आज भी जारी है। 
5. मृदुभाषी, विनम्र व्यक्तित्व: विनय तिवारी बड़े विनम्र स्वभाव के सौम्य-शालीन मृदुभाषी मिलनसार व्यक्ति हैं। एक गीतकार के रूप में सफलता की बुलंदियों पर पहुँचने के बावजूद आपमें इसका लेशमात्र अहंकार नहीं है। आपके व्यवहार से कोई अनजान भी अपनत्व का भाव पाता है।
विनय जी को कामयाबी और शोहरत का यह मुकाम आसानी से नहीं मिल गया। यहाँ तक पहुँचने में काफी संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जनमे, एक किरानी के तीसरे पुत्र विनय जी ने अपने गीत-संगीत से बचपन से रुचि थी, जिसे उन्होंने एक आयाम देने का ठाना। अपनी मातृभाषा में गीत कविताएँ लिखने लगे। स्नातक प्रतिष्ठा करने बाद भी किसी सेवा के लिए तैयारी करने की बजाए खोरठा गीत-संगीत को एक नई पहचान दिलाना ही जीवन लक्ष्य बना लिया। इसके लिए उन्हें परिवार और समाज से विरोध का सामना करना पड़ा था। लोगों ने काफी उपहास भी उड़ाया। संघर्ष के दौरान काफी आर्थिक संकट से जूझना पड़ा था। किंतु दृढ़ निश्चयी विनय जी विचलित नहीं हुए। सारी चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी धुन में आगे बढ़ते गये। कुछ ही वर्षों में उनके जुनून ने रंग लाया। अलोचकों की जुबाँ पर ताला लगा। प्रशंसकों की संख्या लाखों में नहीं करोड़ो में हो गई। आधुनिक खोरठा गीतों के पर्याय बन गए। चाहनेवालों उन्हें अपने दिलों में बिठा लिया। सफलता का शिखर उनके कदम चूमने लगा। आधुनिक खोरठा गीत-संगीत और सिनेमा के सफर में पचीस वर्षों से लगातार चलते हुए  एक अथक राही के तौर आज भी अपने कदमों को आगे के पड़ावों के लिए बढ़ाते जा रहे हैं। खोरठा गीत-संगीत सिनेमा को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने और सही हक दिलाने के लक्ष्य के आप निरंतर संघर्षशील हैं और हजारों के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।