3. मुण्डा
- उपनाम – कोल ,होड़ोको
- झारखण्ड की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति
- नोट : 1.संथाल 2.उराँव 3.मुण्डा
- जनजातियों की कुल जनसंख्या में इनका प्रतिशत – 14.56%
- मुण्डा शब्द का अर्थ – विशिष्ट व्यक्ति ( गाँव का राजनीतिक प्रमुख )
- प्रजातीय संबंध – प्रोटो-आस्ट्रेलायड समूह
- भाषा – मुण्डारी भाषा (ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार )
- अपनी भाषा को होड़ो जगर कहते हैं।
- मुण्डा जनजाति रिजगढ़ (राजगीर, बिहार ) तथा रूईदासगढ़ से दक्षिण की तरफ ओमेडंडा (बुरमु, झारखण्ड) में आकर बस गयी।
- झारखण्ड में आगमन – 600 ई.पू. में ।
- झारखण्ड में निवास(सर्वाधिक) – राँची
- यह जनजाति केवल झारखण्ड में ही पायी जाती है।
‘खूटकट्टी भूमि‘
- मुण्डाओं द्वारा निर्मित भूमि को ‘खूटकट्टी भूमि‘ कहा जाता है।
- खुंट का आशय – परिवार से है
- मुण्डा समाज ठाकुर, मानकी, मुण्डा, बाबू भंडारी एवं पातर में विभक्त है।
- मुण्डा जनजाति में सगोत्रीय विवाह वर्जित है।
- विवाह का सर्वाधिक प्रचलित रूप – आयोजित विवाह
विवाह के अन्य रूप निम्न हैं:
- राजी खुशी विवाह – वर-वधु की इच्छा सर्वोपरि
- हरण विवाह – पसंद की लड़की का हरण करके विवाह।
- सेवा विवाह – ससुर के घर सेवा द्वारा वधु मूल्य चुकाया जाना
- हठ विवाह – वधु द्वारा विवाह होने तक वर के यहाँ बलात् प्रवेश करके रहना।
सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:
- युवागृह – गितिओड़ा
- विवाह – अरण्डी
- विधवा विवाह – सगाई
- वधु मूल्य – गोनोंग टका (कुरी गोनोंग)
- यदि स्त्री तलाक(साकमचारी) देती है तो उसे लौटाना पड़ता है।
- ग्राम प्रधान – मुण्डा
- ग्राम पंचायत – हातू
- ग्राम पंचायत प्रधान – हातू मुण्डा
- कई गाँवों से मिलकर बनी पंचायत – परहा/पड़हा
- पंचायत स्थल – अखड़ा
- पड़हा पंचायत प्रधान – मानकी
- वंशकुल – खूट
- पितृसत्तात्मक परिवार
- गोत्र को कीली के नाम से जाना जाता है।
- गोत्र की संख्या – 340 (रिजले के अनुसार )
- मुण्डा जनजाति की उपशाखा – 13 (सोमा सिंह मुण्डा के अनुसार )
- महली मुण्डा ,कंपाट मुण्डा सर्वप्रमुख हैं।
- मुण्डा जनजाति की प्रसिद्ध लोककथा – सोसो बोंगा
- मुण्डा महिलाओं पर प्रतिबन्ध
- धान की बुआई करना
- महिलाओं के छप्पर पर चढ़ना
- महिलाओं का दाह संस्कार में भाग लेने हेतु श्मशान घाट जाना
- गांव की बेटियों द्वारा सरहुल का प्रसाद ग्रहण करना वर्जित
- बटोई या केरया – पुरूषों द्वारा धारण किये जाने वाले वस्त्र
- परेया – महिला द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र
- प्रमुख पर्व
- सरहुल / बा पर्व (चैत माह को बसंतोत्सव के रूप में)
- करमा (भादो माह)
- सोहराई (कार्तिक अमावस्या को पशु पूजा)
- रोआपुना (धान बुआई के समय)
- बतौली (आषाढ़ में, खेत जुताई से पूर्व छोटा सरहुल के रूप में)
- बुरू पर्व (दिसंबर माह )
- मागे पर्व, फागु पर्व (होली के समरूप)
- जतरा, जोमनवा आदि
- प्रमुख पेशा – कृषि व पशुपालन
- मुण्डा सभी अनुष्ठानों मे हड़िया एवं रान का प्रयोग करते हैं।
- इनकी भूमि तीन प्रकार की होती है:
- पंकु – हमेशा उपज देने वाली भूमि
- नागरा – औसत उपज वाली भूमि
- खिरसी – बालू युक्त भूमि
- सर्वप्रमुख देवता – सिंगबोंगा (सूर्य का प्रतिरूप)
अन्य प्रमुख देवी-देवता
- हातू बोंगा – ग्राम देवता
- देशाउली – गाँव की सबसे बड़ी देवी
- खूटहँकार/ओड़ा बोंगा – कुल देवता
- इकिर बोंगा – जल देवता
- बुरू बोंगा – पहाड़ देवता
- सरना- मुण्डा पूजास्थल
- गाँव का धार्मिक प्रधान – पाहन
- सहायक – पुजार/ पनभरा
- ग्रामीण पुजारी – डेहरी
- झाड़-फूंक करने वाला – देवड़ा
- सासन- स्थान जंहा मुण्डा जनजाति के पूर्वजों की हड्डिया दबी होती हैं
- सासन दिरि या हड़गड़ी – सासन में मृतक की स्मृति में शिलाखण्ड रखा जाता है