जहांगीर (Jahangir)

 

जहाँगीर(1605-1627)

 

प्रारंभिक जीवन व राज्याभिषेक 

  • जहाँगीर का जन्म अगस्त 1569 ई. में शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर की पत्नी मरियम उज्जमानी से हुआ था, इसलिये इसका नाम सलीम रखा गया। 
  • अक्तूबर 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात् सलीम, ‘नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह गाजी‘ की उपाधि से मुगल साम्राज्य का शासक बना। 
  • जहाँगीर का राज्यारोहण विवादास्पद ढंग से हुआ था। अकबर के दरबार के कुछ सामंत जहाँगीर की जगह पर उसके बड़े बेटे राजकुमार खुसरो को सम्राट बनाने के पक्ष में थे। उनमें राजा मानसिंह और मिर्जा अजीज कोका प्रमुख थे। 
  • मानसिंह और मिर्जा अज़ीज़ कोका के दल की संख्या कम होने के कारण शहज़ादा सलीम उत्तराधिकारी चुन लिया गया। अपनी मृत्यु के पूर्व स्वयं अकबर ने सलीम के सिर पर शाही ताज रखकर उसको राज्य का उत्तराधिकारी माना। 

 

जहाँगीर के प्रारंभिक कार्य 

  • जहाँगीर ने सर्वप्रथम अपनी नीति की घोषणा प्रसिद्ध नियमों (दस्तूर-उल-अमल) में की, ये नियम निम्नलिखित थे
    • करों (जकात, तमगा आदि) का निषेध
    • आम रास्ते पर डकैती तथा चोरी के संबंध में नियम; 
    • मृत व्यक्तियों की संपत्ति उसके उत्तराधिकारी के अभाव में सार्वजनिक निर्माण कार्य, यथा- भवनों, कुओं, तालाबों आदि के निर्माण पर खर्च किया जाए: 
    • मदिरा तथा सभी प्रकार के मादक द्रव्यों की बिक्री पर  निषेध; 
    • अपराधियों के घरों की कुर्की तथा उनके नाक और कान काटे जाने पर निषेध; 
    • संपत्ति पर बलपूर्वक अधिकार करने का निषेध; 
    • अस्पतालों का निर्माण तथा रोगियों की देखभाल के लिये वैद्यों की नियुक्ति; 
    •  सप्ताह में दो दिन गुरुवार (जहाँगीर के राज्याभिषेक का दिन) एवं रविवार (अकबर का जन्मदिन) को पशुहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध; 
    • सड़कों के किनारे सराय, मस्जिद एवं कुओं का निर्माण; 
    • मनसबों तथा जागीरों का सामान्य प्रमाणीकरण; 
    • आइमा (मदद-ए-माश) भूमि का प्रमाणीकरण
    • दुर्गों तथा प्रत्येक प्रकार के बंदीगृहों के सभी बंदियों को क्षमादान। 

 

  • जहाँगीर ने आगरा के किले की शाह बुर्ज के मध्य एक न्याय की जंजीर लगवाई ताकि दु:खी जनता अपनी शिकायतों को सम्राट के सम्मुख रख सके।  
  • इस प्रकार जहाँगीर ने अपनी आरंभिक समस्याओं (राज्याभिषेक के समय) को हल करते हुए शुरुआती कार्यकाल में ही प्रशासनिक सुधार किये, जिससे प्रजा का उसके प्रति स्नेह बना रहे। 

 

शहज़ादा खुसरो का विद्रोह (1606 ई.) 

  • जहाँगीर के गद्दी पर बैठने के पश्चात् शहज़ादा खुसरो (जिसको राजा मानसिंह और मिर्जा अज़ीज़ कोका का समर्थन प्राप्त था) ने विद्रोह कर दिया।
  • जहाँगीर के राज्याभिषेक के समय खुसरो के विद्रोह को दबाते हुए उसे आगरा के किले में बंदी बनाकर रखा गया था। कालांतर में वह अपनी चतुराई के कारण आगरा के किले से भागने में सफल रहा। तत्पश्चात अपने कुछ समथर्कों के साथ खुसरो ने पुनः विद्रोह कर दिया। सिख गुरु अर्जुन देव ने भी समर्थन किया। 
  • बादशाह जहाँगीर ने सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को शहज़ादा खुसरो को समर्थन देने के कारण मौत के घाट उतार दिया। इसी वजह से सिखों और मुगलों के मध्य अत्यंत कड़वाहट पैदा हो गई। 
  • खुर्रम के साथ दक्षिण अभियान के समय खुसरो की हत्या कर दी गई।
  • बाद में इसका शव इलाहाबाद में लाकर दफना दिया गया। 

 

नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका 

  • नूरजहाँ, जहाँगीर की पत्नी थी। इन दोनों का विवाह 1611 ई. में हुआ था। विवाह के बाद उसे ‘नूरमहल’ की उपाधि प्राप्त हुई। बाद में यह उपाधि ‘नूरजहाँ’ (संसार की रोशनी) कर दी गई। 
  • नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरुन्निसा था। उसका पिता मिर्ज़ा ग्यास बेग  पर्शिया का निवासी था। जहाँगीर ने ग्यास बेग को ‘एत्मादुद्दौला’ की उपाधि प्रदान की। 
  • जहाँगीर के शासनकाल में नूरजहाँ गुट का प्रभाव था जिसमें उसके (नूरजहाँ) पिता एत्मादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसफ खाँ तथा शहज़ादा खुर्रम सम्मिलित थे। 
  • नूरजहाँ ने जहाँगीर के एक पुत्र शहरयार के साथ अपनी पुत्री लाडली बेगम (जो उसके पहले पति शेर अफगान की पुत्री थी) का विवाह किया तथा शहरयार को अपने गुट में खुर्रम की जगह प्रोत्साहित किया। 
  • नूरजहाँ, जहाँगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी। सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका भी नाम अंकित होता था। 
  • माना जाता है कि शाही आदेशों पर बादशाह के साथ नूरजहाँ के भी हस्ताक्षर होते थे। 

 

राजनैतिक अभियान 

मेवाड़ अभियान (1605-1615 ई.) 

  • 1605 से 1615 ई. के मध्य मेवाड़ में निरंतर सैनिक अभियान कराए। 
  • 1615 ई. में मेवाड़ के शासक राणा अमर सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। 
  • मेवाड़ अभियान की सफलता के बाद खुर्रम को शाह खुर्रम की उपाधि दी गई। 

 

कांगड़ा विजय (1620 ई.) 

  • जहाँगीर ने 1620 ई. में कांगड़ा दुर्ग का अभियान किया। माना जाता है कि कांगड़ा विजय करने में अकबर भी असफल रहा था। 
  • शहज़ादा खुर्रम के नेतृत्व में 4 महीने किले की घेरेबंदी के बाद कांगड़ा की सेना ने आत्मसमर्पण किया। 
  • कांगड़ा अभियान, जहाँगीर के मुख्य अभियानों में से सबसे कठिन माना जाता है। 
  •  कांगड़ा किला जीतने के उपलक्ष्य में जहाँगीर ने एक गाय को कटवाकर जश्न मनाया था।

 

दक्षिण अभियान 

  • दक्कन में जहाँगीर ने अपने पिता द्वारा आरंभ किये गए कार्य को पूरा करने का प्रयत्न किया। अकबर के समय में खानदेश और अहमदनगर राज्य के कुछ भागों को जीत लिया गया था, लेकिन अहमदनगर का राज्य समाप्त नहीं हुआ था। 
  •  अहमदनगर का वजीर मलिक अंबर था। उसने अहमदनगर के राज्य को सुसंगठित किया और दक्षिण में मुगल सेनापतियों के आपसी मतभेदों का लाभ उठाकर अहमदनगर के पूर्वी क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर लिया। 
  • 1617 ई. में अहमदनगर राज्य और मुगलों में संधि हो गई। 
  • बीजापुर के राजा (आदिलशाह) ने खुर्रम को मूल्यवान उपहार दिये और बदले में जहाँगीर ने उन्हें ‘फर्जन्द’ (पुत्र) की उपाधि दी। खुर्रम के वापस आने पर उसे ‘शाहजहाँ’ की उपाधि दी। 
  • 1617 में हुई संधि का मलिक अंबर ज़्यादा दिन तक पालन नहीं कर पाया। 
  • 1620 ई. में उसने पुनः मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिसे शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) के द्वारा दबा दिया गया। 
  • 1622 ई. में शहज़ादा खुर्रम के विद्रोह के कारण अहमदनगर पन: मुगलों के नियंत्रण से बाहर हो गया। 
  • खुर्रम के विद्रोह का दमन करने के लिये जहाँगीर ने महाबत खान को अहमदनगर भेजा, जिसने मलिक अंबर पर दबाव देकर शाहजहाँ को अहमदनगर से निष्कासित कराया और बालाघाट पर मुगलों का पुनः नियंत्रण स्थापित हो गया। 
  • 1626 ई. में मलिक अंबर की मृत्यु हो गई। 
  • उल्लेखनीय है कि मलिक अंबर ने दक्षिण में टोडरमल की भू-राजस्व प्रणाली को लागू  किया। 
  • उसने ठेके (इज़ारे) पर जमीन देने की पुरानी प्रथा को समाप्त कर दिया। 

 

कंधार की पराजय 

  • कंधार ,भारत का प्रवेश द्वार और मध्य एशिया और फारस से आने वाले आक्रमणकारियों को रोकने का प्राकृतिक युद्ध मोर्चा भी था। 
  • 1622 ई. में फारस के शाह अब्बास ने कंधार को मुगलों से पुन: छीन लिया। फलत: जहाँगीर के शासनकाल में ही कंधार, ईरानियों  के कब्जे में चला गया था। 

 

जहाँगीर की धार्मिक नीति 

  • धार्मिक नीति के तहत जहाँगीर ने अकबर का ही अनुसरण किया; किंतु कुछ दिनों बाद ‘दीन-ए-इलाही‘ को समाप्त कर दिया। यद्यपि ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति को जारी रखा। 
  • सिंहासनारूढ़ होने के सातवें वर्ष यानी 1612 ई. में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया और अपनी कलाई पर राखी बंधवाई। 
  • अपवादस्वरूप जहाँगीर ने राजोरी (कश्मीर) के ब्राह्मणों का दड़ित किया, अजमेर के वराह मंदिर को तोड़ा और गुजरात के जैनियों को सज़ा दी। 

 

 

विदेशियों के दौरे

इंग्लैंड 

ऐंटवर्प ,बेल्जियम 

  • कैप्टन हॉकिंस  1608 ई. में
  • सर टॉमस रो 1615 ई. में 

Dutch East india company,1618

 

  • कैप्टन हॉकिंस और सर टॉमस रो जहाँगीर के ही शासनकाल में व्यापारिक अनुमति प्राप्त करने भारत आए। 
  • हॉकिंस एक अंग्रेज नाविक था जो 1608 ई. में भारत (सूरत में) आया था; 
  • वह इंग्लैंड के राजा जेम्प प्रथम से भारत के मुगल सम्राट अकबर के नाम एक पत्र लाया था। किंतु जब वह भारत पहुँचा तो सम्राट अकबर की मृत्यु हो चुकी थी और जहाँगीर बादशाह बन गया था। 
  • हॉकिंस जहाँगीर से आगरा में मिला (1609 ई.) और फारसी में बात की। कैप्टन हॉकिंस को  जहाँगीर ने ‘इंग्लिश खान’ की उपाधि से सम्मानित किया था। 
  • सर टॉमस रो को 1615 ई. में जेम्स प्रथम ने भेजा था। टॉमस रो जहाँगीर से सूरत में अंग्रेजों को व्यापार करने के लिये ‘फरमान’ प्राप्त करने में सफल हुआ।

 

 नोट: फ्रांसिस्को पल्सर्ट ने जहाँगीर के शासनकाल में भारत की यात्रा की थी।

 

जहाँगीर की मृत्यु

  •  नवंबर 1627 ई. में ‘भीमवार नामक स्थान पर जहाँगीर की मृत्यु हुई। 
  • जहाँगीर को लाहौर के निकट शाहदरा नामक स्थान पर  रावी नदी के किनारे दफनाया गया। 

 

जहाँगीर का मूल्यांकन 

  • जहाँगीर को पारसी, तुर्की तथा अरबी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इसे कविता लिखने का भी शौक था। 
  • शराब की लत उसकी एक  बुरी आदत थी, जो अंततः उसकी मौत का कारण भी बनी।
  •  उसने 1612 ई. में पहली बार रक्षाबंधन का त्योहार मनाया। 
  • जहाँगीर के समय को चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है। उस समय के सर्वोत्कृष्ट चित्रकार उस्ताद मंसूर और अबुल हसन को क्रमशः ‘नादिर-उल-अस्र ‘ तथा ‘नादिर-उल-जमाँ’ की उपाधि प्रदान की। 
  • उसने राज्य की जनता को न्याय दिलाने हेतु न्याय की प्रतीक सोने की जंजीर को अपने महल के बाहर लगवाया। 
  • उसके चरित्र में कुछ अवगुण भी थे, जिसके कारण वह निंदा का पात्र हुआ। उसने सिख गुरु अर्जुन देव को मृत्युदंड दिया, शेख अहमद सरहिंदी को बंदी बनाया और दीन-ए-इलाही में दीक्षा देना बंद करवा दिया।