मुगलकालीन अर्थव्यवस्था
कृषि
- ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में भारत में सिंचाई व्यवस्था के लिये नहरों के अभाव का उल्लेख मिलता है।
- भारत में कृषि भूमि तो उपजाऊ थी, किंतु उत्पादन के साधन साधारण थे और कृषि तकनीक में बहुत उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी थी। चूँकि, जनसंख्या कम थी और उसके अनुपात में कृषि भू-क्षेत्र अधिक था। अतः लोगों के पास उत्पादन का अभाव नहीं रहा।
- शाहजहाँ ने ‘फैज’ और ‘शाह’ नामक नहरों का निर्माण करवाया और कृषि व्यवस्था को उन्नत करने की कोशिश की।
- मगल काल में अकालों की चर्चा तत्कालीन इतिहासकारों और विदेशी यात्री दोनों द्वारा की गई है-
- बदायूँनी उल्लेख करता है कि अकबर के शासनकाल में अकाल व महामारी दोनों का प्रकोप मिलता है।
- 1630-31 में शाहजहाँ के शासनकाल में गुजरात व दक्षिण में भीषण अकाल, जिसका उल्लेख लाहौरी व पीटर मुंडी करते हैं। उल्लेखनीय यह है कि मुगल शासकों द्वारा आपदा प्रबंधन या राहत के कार्यों का भी उल्लेख मिलता है।
- इस समय विदेशों से कई कृषि उत्पाद भारत लाये गए
- 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में कॉफी का उत्पादन होने लगा और 18वीं शताब्दी आते-आते आलू, टमाटर व लालमिर्च की खेती की जाने लगी।
- पूर्वी राजस्थान व महाराष्ट्र में 18वीं सदी से मक्का का उत्पादन होने लगा किंतु उल्लेखनीय यह है कि ‘आइन-ए-अकबरी’ में मक्के की खेती का उल्लेख नहीं मिलता।
- नकदी फसलों को ‘जीन्स-ए-आला’ कहा जाता था जिसमें सबसे अधिक खेती गन्ने की होती थी और बंगाल का गन्ना सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।
तंबाकू
- भारत में सर्वप्रथम तंबाकू पुर्तगालियों द्वारा दक्षिण में लाया गया।
- बीजापुर के कुछ सरदारों द्वारा यह पहली बार अकबर के दरबार में आया।
- तंबाकू की खेती जहाँगीर के समय से प्रारंभ हुई और यह इतना प्रचलित हो गया कि इतिहासकार इसे भारतीय कृषि की विविधता का सर्वश्रेष्ठ परिचायक मानते हैं।
- जहाँगीर ने अपने 12 अध्यादेशों के द्वारा इसके उपयोग को निषिद्ध कर दिया।
नोट: नील के लिये सरखेज (गुजरात) व बयाना महत्त्वपूर्ण क्षेत्र थे।
- अफीम जो औषधि निर्माण हेतु उत्पादित की जाती थी उसका मुख्य क्षेत्र बिहार व मालवा था।
- गुड़ तथा चीनी उत्पादन के लिये पंजाब, बंगाल व गुजरात मुख्य केंद्र थे।
- मुगल काल में राजस्व का मुख्य स्रोत तो कृषि ही थी, किंतु उद्योगों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया और कुछ विनिर्मित भारतीय वस्तुएँ तो संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय हुईं।
- राजकीय संरक्षण में कार्यरत कारखाने विशेष औद्योगिक प्रतिष्ठान के रूप में उभरे, जिसमें विविध वस्तुओं का निर्माण होता था। किंतु सर्वाधिक रूप में वस्त्र उत्पादन होता था।
- अबुल फज़ल, मज़दूरों, शिल्पकारों की स्थिति में सुधार लाने के लिये अकबर के प्रयासों की प्रशंसा करता है।
वस्त्र उद्योग
- वस्त्र निर्माण हेतु रूई का उत्पादन लगभग संपूर्ण देश में होता था।
- सूती वस्त्रों के लिये बंगाल और गुजरात विशेष लोकप्रिय थे।
- मलमल के कपड़ों के लिये बंगाल विश्वविख्यात था।
- कपड़ों (सूती वस्त्र) को रंगने के लिये रंगसाजी उद्योग का विकास हुआ था।
- ऊनी वस्त्रों का निर्माण कश्मीर, पंजाब तथा पहाड़ी क्षेत्रों में होता था किंतु अच्छी किस्म के ऊनी कपड़े आयात ही किये जाते थे।
- जहाँगीर ने अमृतसर में ऊनी वस्त्रों, शॉल तथा कालीन बनाने के लिये एक उद्योग केंद्र स्थापित कराया था।
- बंगाल में रेशम से मिलता-जुलता सन का कपड़ा तैयार किया जाता था।
- भारत के दमिश्की इस्पात से बने तलवार की मांग पूरे विश्व में थी।
- चीनी मिट्टी के बर्तनों का अधिकतर आयात किया जाता था किंतु काँच के बर्तनों का निर्माण भारत में होता था।
- फतेहपुर सीकरी, बिहार और बरार में काँच उद्योग के कारखाने थे।
- पोत निर्माण का इस काल में समुचित विकास हुआ और धीरे-धीरे यह प्रमुख व्यवसाय हो गया। (सिंध, बंगाल, गंगा के तटीय क्षेत्र)।
नोट: शोरा जिसका मुख्यतः प्रयोग बारूद निर्माण व पानी को ठंडा करने के लिये किया जाता था, का मुख्य उत्पादन क्षेत्र बिहार था। डच व अंग्रेज़ इसे भारत से बाहर ले जाते थे।
विज्ञान और तकनीक
- मुगल काल में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कोई अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई।
- 1582 में अकबर के दरबार में ‘शिराजी’ नामक विद्वान आया जिसकी प्रशंसा में अकबर ने कहा कि “यदि उसके बदले में मेरा कोई संपूर्ण खजाना भी ले ले तो मेरा सौदा मेरे फायदे में ही होगा।”
- अबुल फज़ल अमेरिका की खोज का उल्लेख करता है और उसे ‘आलमे नव’ कहता है।
- आग्नेय अस्त्रों का नियमित उपयोग दक्षिण में पुर्तगालियों ने और उत्तर भारत में बाबर ने किया।
- फ्राँसीसी चिकित्सक बर्नियरदानिशमंद खाँ के साथ 5 वर्षों तक रहा और उन्हें विलियम हार्वे तथा पैगुएट के रक्त परिसंचरण के खोज के बारे में बताया।
- भारतीयों को शरीर संबंधी विज्ञान की जानकारी कम थी और यहाँ तक कि हकीमों ने हार्वे के खोज के प्रति रुचि नहीं दिखाई। लोहा गलाने के लिये लकडी के कोयले का उपयोग किया जाता था। अबुल फज़ल लोहे की तोपों व बंदूक की नालों को बनाने की तकनीक का उल्लेख भी करता है।
- भारत में जस्ता शोधन की तकनीक 12वीं सदी से ही प्रारंभ हो चुकी थी और अबुल फज़ल इसके लिये जाबर क्षेत्र (उदयपुर, राजस्थान) का उल्लेख करता है।
- पीतल (तांबा + जस्ता) और काँसा (तांबा + टिन) भारत में मिलता था, किंतु एशियाई क्षेत्रों से इसका आयात भी किया जाता था।
- आंध्र क्षेत्र में लगभग 400 ई.पू. से ही ‘वुट्ज’ पद्धति का उल्लेख मिलता है जो तेलुगू शब्द ‘उक्कू’ से बना। यह लोहा बनाने की अति प्राचीन विधि है।
- 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली छपाईखाने को गोवा लेकर आये, जिसमें एक भारतीय व्यापारी भीमजी पारिख ने गहरी दिलचस्पी दिखाई।
- अबुल फज़ल के अनुसार, आसवान विधि भी भारतीयों को ज्ञात थी और शोरे से पानी को ठंडा करना महत्त्वपूर्ण आविष्कार माना गया।
- भारत में पनचक्की का इस्तेमाल बहुत कम होता था।
हुंडी
- ‘हुंडी’ का प्रचलन मुगल काल की व्यवस्था थी, जो व्यापारिक आदान-प्रदान के लिये एक ‘प्रपत्र’ के रूप में होती थी।
- उल्लेखनीय यह है कि बड़े व्यापार हुंडी के माध्यम से ही होते थे।