खोरठा लोकगीतो से सम्बंधित विभिन लोगो के विचार
- लोक गीतों के उद्गम से संबंधित डॉ. देवेन्द्र सत्यार्थी के विचार
- “कहाँ से आते हैं इतने गीत ? स्मरण-विस्मरण की आँख-मिचौनी से! कुछ अट्टहास से। कुछ उदास हृदय से कहाँ से आते हैं इतने गीत? वास्तव में मानव स्वयं आश्चर्यचकित हैं। ये असंख्य गीत असंख्य कंठों से असंख्य धाराओ में प्रवाहित हो रहे हैं।”
- डॉ. श्याम परमार –
- “स्त्री-पुरूष ने थक कर इसके माधुर्य में अपनी थकान मिटायी है, इसकी ध्वनि में बालक सोये हैं, जवानों में प्रेम की मस्ती आयी है, बुढ़ों ने मन बहलाये हैं, वैरागियों ने उपदेशों का पान कराया है, विरही युवकों ने मन की कसक मिटायी है, विधवाओं ने अपनी एकांगी जीवन में रस पाया है, पथिकों ने थकावट दूर की है, किसानों ने अपने बड़े-बड़े खेत जोते हैं, मजदूरो ने विशाल भवनों पर पत्थर चढ़ाये हैं और मौजियों न चुटकुले छोड़ें हैं। ”
- सृष्टि के आदिकाल में सामाजिक चेतना के साथ ही लोक गीतों का उदय हुआ।
- श्री सूर्यकरण पारीक का विचार–
- “आदिम मनुष्य हृदय के गानों का नाम लोकगीत है, सही है।
- धनबाद से प्रकाशित दैनिक आवाज के संपादक स्व. ब्रह्मदेव सिंह शर्मा के शब्दों में–
- “उपेक्षा की वजह से खोरठा पनप नहीं पायी है। किंतु जन-जीवन में गीतों की लोक प्रियता ने इसे मरने नहीं दिया।”
- मार्खम कॉलेज के संस्थापक एवं शिक्षाविद् प्राचार्य शिव दयाल सिंह “शिवदीप”
- “आपन देसेक लगाइत एकतीस हजार वर्ग किलोमीटरें पसरल-फइलल परकिरतिक खास आखरात्र खोरठा छेतर आपन लोकगीतें फुरचाहे।”
- खोरठा लोकगीत संसारेक भासा प्रेमी आर बुजरूग सब के आपन बाट टाने ले आर भाव, रूप अरथ से परिचय पावे ले विजय कराय रहल हइ।”
- गिरिडीह जिला के सीमान्त क्षेत्र संकरी नदी के किनारे खरगा पहाड़ की गोद में बसी आबादी में हमें खोरठा के आश्चर्यचकित करने वाले लोकगीत मिले।
- इसी क्षेत्र के लोकगीत के रसिक वयोवृद्ध श्री बहादुर पाण्डेय “झिंगफुलिया” हइ।
खोरठा लोकगीतों की प्रमुख विशेषता
- 1. ये खोरठाँचल की मौखिक, अलिखित एवं पारम्परिक सांस्कृतिक निधियाँ है।
- 2. कुछेक छोड़ कर अधिकांश इनके रचनाकार अज्ञात हैं।
- 3. क्षेत्रानुसार खोरठा की बोलियों के उच्चारण स्वरूप कुछ शब्दों या पंक्तियों में स्थानगत विभिन्नता विद्यमान है।
- 4. खोरठा लोकगीतों में अश्लीलता का अभाव है।
- 5. इनमें जातिवाद को बढ़ावा न देकर मानवता का स्पष्ट रूप परिलक्षित है।
- 6. प्रकृति के विभिन्न रूपों की झलकियाँ मिलती हैं।
- 7. भाई एवं बहन और स्त्री और पुरूष में असीम प्यार मिलता है।
- 8. गीतों में संगीत और गेयता उपलब्ध है।
- 9. गीतों में कृत्रिमता न होकर सरलता प्राप्य है।
- 10. इनमें क्षेत्र और सीमा का बंधन नहीं है।
- 11. छठी और विवाह संस्कार के कुछ लोकगीतों को छोड़कर इनके साथ वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं।
- 12. ये व्याकरण और भाषा विज्ञान के नियमों से परे हैं।
- 13. खोरठा के लोकगीत इनके पर्व-त्यौहारों में समाहित हैं।
- 14. खोरठा के लोकगीतों में श्रम की महत्ता वैशिष्ट्य है।
- 15. खोरठा के लोकगीतों के करुण रस में भी आनंद समाहित है।
खोरठा लोक गीतों का वर्गीकरण
- (क) संस्कार संबंधी
- छठी (जन्म)
- विवाह
- श्राद्ध संस्कार
- (ख) ऋतु (मौसम) संबंधी
- (ग) प्रकृति विषयक
- (घ) पर्व-त्यौहार संबंधी
- (ड़) श्रम संबंधी
- (च) सहियारी (मित्रता) संबंधी
- (छ) विविध ।
(क) संस्कार संबंधी खोरठा लोकगीत
खोरठा क्षेत्र में प्रमुख रूप से तीन संस्कार हैं।
- छठी (जन्म)
- विवाह
- श्राद्ध संस्कार।
इनमें से श्राद्ध संस्कार को छोड़ कर शेष छठी और विवाह संस्कार संबंधी लोकगीत असंख्य हैं।
(क) संस्कार सम्बन्धी
छठी (जन्म संस्कार) :
- छठी का अर्थ शिशु के जन्म का छठवाँ दिन, जिसे नारता भी कहा जाता है।
- इस दिन कुसराइन/डगरिन (दाई) द्वारा जच्चा-बच्चा को अच्छी तरह तेल हल्दी से नहलाया जाता है। और माँ और पिता को क्रमशः हल्दी से रंगी साड़ी और धोती पहनाया जाता है।
- क्षौर कर्म आस-पड़ोस के लोग करते हैं। और हल्दी-तेल लेकर स्नान करते हैं।
- हल्दी का प्रयोग इसलिए करते हैं चूंकि हल्दी रोग निवारक औषधि है, यह वायरस और विषाणु का नाश करता है।
- इस अवसर पर मुस्लिम भाट भी आते हैं और संस्कार गीत ( झांझन) गाते हैं।
- कुछ उदाहरण
अंगना में अइलइ ललनवाँ से
मंगलगीत मिली गावा हो
ललना, तिले-तिले बादैइ पुता / पुती अंगना में
सोहाइ जितइ मायेक/दादिक कोरवा हो ।
अर्थ : उपर्युक्त गीत की पंक्तियों को नवजात बच्चा या बच्ची के अनुसार औरतें गाती है। साथ ही नवजात के रिश्तेदारों को लेकर शब्दों को बारी-बारी से पुनरावृति के जाती है।
बोनवाँ फुललइ धोवइया फूलवा
बोनवाँ इंजोर भेलइ हो
मइया के कोखिया से बेटिया/बेटवा जनमलइ
अंगना इंजोर भेलइ हो ।
उपर्युक्त गीत में प्रयुक्त हो शब्द के स्थान पर किसी-किसी क्षेत्र / गाँव में ‘रे’ का व्यवहार होता है।
नवों जनम सुनी, बड़ी खुस मरद -जनी
कते-कते फूलल बरिसे।
मंगना सब अइला, कते-कते कि पड़ला
राजाक घर खुसी बिकसे ।।
विवाह संस्कार
- नेग का मतलब – रीतियाँ
- विवाह संबंधी विभिन्न नेग (रीतियाँ) निम्नलिखित है –
- 1. सगुन (वर / कन्या)
- 2. आम/महुवा बीहा
- 3. हरदी रांगा (दुवाइरख़ुदा )
- 4. जोग छेछा
- 5. लगन बांधा
- 6. पइरछन (वर / कन्या)
- 7. उबटन पीसा,
- 8. बांध कोड़ा,
- 9. उबटन माखा,
- 10. घी ढारा
- 11. कुश उखरवा,
- 12. सिन्दूर खेला,
- 13. मॉड़वा छारा
- 14. सिन्दूर दान,
- 15. कलश राँगा,
- 16. समधी मिलन,
- 17. कलश थापा,
- 18. भोकरइन मॉगा (वर पक्ष),
- 11. पानी सहा
- 20. दुवाइर टेका,
- 21. पानी काटा,
- 22. लावा लोक (कन्या पक्ष)
- 23. संग छोड़ोनी (कन्न्या पक्ष)
- 24. घर भोरा,
- 25.विदाई
- 26. खीर खियानी, 27. चोठारी, 28. सिकार खेला,
- 29. चुमान 30. मॉड़वा पूजा, 31. अइमलो पिया,
- 32. अठमंगला 33. सिनाइ फेरा, 34. चउखपुरा।
- वर पक्ष के लोक गीतों में हास-परिहास, व्यंग्य, उल्लास और उमंग पाया जाता है
- कन्या पक्ष के लोकगीत बड़े ही करूण एवं हृदयस्पर्शी होते हैं।
बेटी बिदाई के लोक गीतों
मइया बिनु जइतइ हदिआइ
मइया के देखी-देखी अंखिया झझाइ गो
हामर नूनी हकइ मइया के दुलरिया
बापा कांदइ घरें बहसी, मइया कांदइ पिड़े बइसी गो
हामर नूनी जइतइ ससुराइर ।
अब बेटी भेलिक पोहना गो
छोटो बहिन कांदइ दुवारा बइसी, दीदी संगे जड़बड़ गो
दीदिकेर नावाँ घरवा गो।
वर पक्ष:-
बेटा रे किया लइये जिबे ससूर घरा, किया लइये घुरबे रे
मइया गो सीथा के सिंदूर लइ जिबइ, धनी लइये घुरबड़ गो।
बेटा रे तोर धनी बड़ी रूप सुंदर, संदूके भोराइल हो रे
मइया गो एड़क मारी खोलबइ संदुकवा से
हामे धनी देखबइ गो।
नेउ के चाला बर बाबुक बाप
लागी जितउ धोतिया में पाना रसेक दाग
लागे देहु पाना रसेक दाग
आवो तो….. जनमल धोइ देतो दाग
विवाह संस्कार के हास-परिहास के लोकगीत-
फूल अइसन भात समधी
फूल अइसन भात हो,
एहो भात बिगभे समधी
घर गेलें समधिन पुछतो
काटबो तोर हाथ हो। तनी भात बिगल हलिये
कि जे भेलो हाथ हो,
काइट लेला हाथ हो।
वर पइरछन (स्वागत) के स्वागत में कन्या पक्ष की ओर से –
चोर के जनमल बेटवा
अंधरिया रात काहे अइले रे
हमर दुवरियें कटहर हे
कटहर नाय चोरइहें रे
बोंदर जइसन थोथना तोर
फार जइसन दाँत रे
चेर…. अइले रे।
वर के सालियों में मुखों से निःसृत एक व्यंग्य-वाण-
तरें-तरें अमवा मंजइर गेल
एहटा लागउ दजबोरा हो….2
दाढ़ी- मिसी भँवरा गुंजइर गेल
एहटा लागउ दजबोरा हो …2
Q. “आदिम मनुष्य हृदय के गानों का नाम लोकगीत है, सही है।” केकर कथन लागे ? श्री सूर्यकरण पारीक