4 . कते सुंदर छोटानागपुर – दीपक सवाल, खैराचातर, बोकारो
भावार्थ 👍
इस गीत के माध्यम से लेखक उस व्यक्ति को संबोधित कर रहे हैं जो झारखंड की संस्कृति, खनिज, वनसम्पदा,जन्मभूमि, समृद्धि आदि को छोड़कर धन कमाने के लिए बाहर पलायन कर जाते हैं। उनसे लेखक कहते हैं कि ओ भैया मेरे यह छोटानागपुर कितना सुंदर है। इसे छोड़ कर बाहर दूर क्यों जाना चाहते हो। यहां की बोली भाषा इतनी मीठी है कि हवा भी सुनकर मदमस्त हो जाती है। यहां की संस्कृति इतनी प्यारी और खूबसूरत है कि कर्म टुसू में बहने उल्लास उमंग से झूमने लगती है। और अनेक सुरों में गीत गाने लगती है। यहां के जंगल झाड़ में तरह-तरह के फूल फल पाए जाते हैं। तरह-तरह की चिड़िया -सुगा, मैना, कोयल, पशु पंछी विचरण करके इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। यहां की मिट्टी धूल मानो सबको आदर से जोहार करती है। यहां की मिट्टी के अंदर अनगिनत खनिजों का भंडार छिपा है। मिट्टी के ऊपर के जंगल की समृद्धि देखकर लोगों में उल्लास भर उठता है। झारखंड इस देश का रूर क्षेत्र है और भैया मेरे इतनी सुंदर ,समृद्ध धरती को छोड़कर क्यों बाहर जा रहे हो।
ओ दादा रे कते सुन्दर छोटानागपुर -2
छोड़ के तोंय जाहें काहे दूर, ओ दादा रे-2
कते सुन्दर छोटानागपुर …..
हियाँ कर बोली भासा, सुनी के माते हावा
बहिन सब झूमे लागथ जखन आवे टुसू जावा
गीत गावथ सोभे सुरे-सुर ओ दादा रे-2
कते सुंदर छोटानापुर….. ओ दादा रे…..।।
हियाँ कर बोना-झारें, नाना रकम फूल-फल
एक डारीं सुगा मइना एक डारी कूके – कोयल
जोहार करे हियाँक माटी – धूर, ओ दादा रे-2
कते सुंदर छोटानापुर ….. ओ दादा रे…..।।
हियाँ कर माटी लागे, चाँदी हीरा आर सोना
हिया हुलाइस उठे देखि के हियाँक बोना
झारखंड ई देसवा के रूर, ओ दादा रे || 2 ||
छोइड़ के तोंय … ओ दादा रे….।
Q. कते सुंदर छोटानागपुर के लिखबइया के लागथीन ? दीपक रावाल
Q. दीपक रावाल के जन्मथान हकय ? खैराचातर, बोकारो