सरहुल,झारखंड के पर्व-त्योहार JPSC/JSSC/JHARKHAND GK/JHARKHAND CURRENT AFFAIRS JHARKHAND LIBRARY

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झारखंड के पर्व-त्योहार

सरहुल

  • यह जनजातियो का सबसे बड़ा पर्व है।

अन्य नाम:

  • खद्दी (उराँव जनजाति) 

  • बा परब(संथाल जनजाति)

  • जकोर (खड़िया जनजाति) 

  • यह प्रकृति से संबंधित त्योहार है।

  • यह चैत / चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व बसंत के मौसम में मनाया जाता है। इस समय साल के वृक्षों पर नये फूल खिलते हैं। 

  • इस पर्व में साल के वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आदिवासी ऐसा मानते हैं कि साल के वृक्ष में उनके देवता बोंगा निवास करते हैं। यह फूलों का त्योहार है। 

यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है

पहला दिनमछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है। 

दूसरा दिन – उपवास रखा जाता है तथा गांव का पुजारी गांव के हर घर की छत

                   पर साल के फूल रखता है। 

तीसरा दिन – पाहन (पुरोहित) द्वारा सरना (पूजा स्थल) पर सरई के फूलों (सखुए का कुंज) की पूजा की जाती है तथा पाहन उपवास रखता है साथ ही मुर्गी की बलि दी जाती है तथा चावल और बलि की मुर्गी का मांस मिलाकर सुड़ी नामक खिचड़ी बनायी जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

 चौथा दिनगिड़िवा नामक स्थान पर सरहुल फूल का विसर्जन कहलाता है। 

  • एक परंपरा के आधार पर इस पर्व के दौरान गाँव का पुजारी मिट्टी के तीन पात्र लेता है | और उन्हें ताजे पानी से भरता है। अगले दिन प्रातः वह मिट्टी के तीनों पात्रों को देखता है। यदि पात्रों में पानी का स्तर घट गया है तो वह अकाल की भविष्यवाणी करता है और यदि पानी का स्तर सामान्य रहता है, तो इसे उत्तम वर्षा का संकेत माना जाता है।

  • सरहुल की पूजा के दौरान ग्रामीणों द्वारा सरना (पूजा स्थल) को घेरा जाता है।

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