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झारखण्ड की जनजातियाँ।। कोरा जनजाति
कोरा जनजाति
- कोरा जनजाति प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो-आस्ट्रेलायड समूह से संबंधित हैं परन्तु रिजले ने इन्हें द्रविड़ प्रजाति समूह में वर्गीकृत किया है।
- यह झारखंड की एक अल्पसंख्यक जनजाति है .
- 1872 की पहली जनगणना में 18 जनजातियों को सूचीबद्ध किया गया था कोरा जनजाति को 1931 की जनगणना में शामिल किया गया .
- इस जनजाति को कई स्थानों पर ‘दांगर‘ भी कहा जाता है।
- इस जनजाति की बोली का नाम भी कोरा है जो मुण्डारी परिवार (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) से संबंधित है।
- इस जनजाति का संकेन्द्रण मुख्यतः हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, सिंहभूम एवं संथाल परगना क्षेत्र में है।
- इस जनजाति का परिवार पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय होता है।
- रिजले के अनुसार इस जनजाति की 7 उपजातियाँ हैं।
- यह जनजाति मुख्यतः ठोलो, मोलो, सिखरिया और बदमिया नामक वर्गों में विभाजित है।
- कोरा लोग अपने घर को ओड़ा तथा गोत्र को गुष्टी कहते हैं।
- इस जनजाति के युवागृह को ‘गितिओड़ा‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति में वधु मूल्य को ‘पोन‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह निषिद्ध माना जाता है।
- इस जनजाति में गोदना की प्रथा पायी जाती है तथा ये गोदना को स्वर्ग या नरक में अपने संबंधियों को पहचानने हेतु आवश्यक चिह्न मानते हैं।
- कोरा की एक परंपरागत ग्राम पंचायत होती है जिसका मुखिया /गांव के प्रधान को महतो कहा जाता है। महतो की सहायता के लिए प्रमाणिक और जोगमांझी होते हैं। परंपरागत पंचायत के सभी पद वंशानुगत होते हैं।
- कोरा जनजाति के प्रमुख गोत्र एवं उनके प्रतीक
- इनके गोत्रों में सबसे ऊपर ‘कच’ तथा सबसे नीचे ‘बुटकोई’ हैं।
- इस जनजाति के प्रमुख त्योहार सवा लाख की पूजा (सवा लाख देवी-देवताओं की पूजा), नवाखानी, भगवती दाय, कालीमाय पूजा, बागेश्वर पूजा, सोहराय आदि हैं।
- इस जनजाति के प्रमुख नृत्य खेमटा, गोलवारी, दोहरी, झिंगफुलिया आदि हैं।
- इस जनजाति का परंपरागत पेशा मिट्टी कोड़ना था, जिसके कारण ही इनका नाम ‘कोड़ा’ पड़ा।
- इनका पूजा स्थल पिंगी ,अखड़ा, बोगाथान , अहीरथान दादीथान आदि है.इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है।
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